मंगलवार, 1 जनवरी 2019

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख -----



बहोरनसिंह वर्मा 'प्रवासी का जन्म 20 दिसम्बर 1921 को जनपद मुरादाबाद (वर्तमान जनपद सम्भल) के  कस्बे  सिरसी में हुआ। आपके पिता सिपाही सिंह स्वर्णकारी का कार्य करते थे। प्रारम्भिक शिक्षा सिरसी में हुई । वर्ष 1936 में हिन्दी मिडिल, वर्ष 1937 में उर्दू मिडिल, वर्ष 1940 में विशेष योग्यता हिन्दी की परीक्षा पास की। इसके उपरान्त वह प्राइमरी टीचिंग की ट्रेनिंग के लिए आंवला चले गये। वहाँ से वर्ष 1941 में आने के बाद उनकी नियुक्ति नयी बस्ती मुरादाबाद स्थित नगर पालिका के स्कूल में प्राइमरी शिक्षक के रूप में हो गयी। नौकरी लगने के एक वर्ष बाद वर्ष 1941 में आपका विवाह चांदपुर ( जनपद बिजनौर) निवासिनी राजरानी वर्मा से हो गया। नौकरी के दौरान आपके हृदय में आगे पढ़ने की इच्छा उत्पन्न हुई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1950 में अंग्रेजी विषय लेकर आपने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वर्ष 1953 में शेष सभी विषयों से पुनः हाई स्कूल किया । मुरादाबाद के अनेक नगरपालिका स्कूलों में अध्यापन करते हुए आप वर्ष 1982 में प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद भी कुछ वर्षों तक आपने केजीके इंटर कालेज के प्राइमरी विभाग में शिक्षक के रूप में कार्य किया।                        वर्ष 1940 में जब उन्होंने हिंदी विशेष योग्यता की परीक्षा उत्तीर्ण की उस समय उन्होंने अपने पाठ्यक्रम में निर्धारित कवियों को पूर्ण मनोयोग से पढ़ा। पढ़ते-पढ़ते उनमें कविता के अंकुर फूटने लगे और 'सरस्वती वंदना के रूप में उन्होंने पहली रचना लिखी । उन दिनों 'प्रवासी' जी दीवान का बाजार में रहा करते थे, वहीं एक दुकान पर रोज़ शाम को कुछ शायरों की महफिल हुआ करती थी। 'प्रवासी' जी अक्सर वहाँ जाया करते थे। धीरे-धीरे उनका रुझान उर्दू लेखन की ओर हो गया और वे शायरी करने लगे ।

     आजादी के बाद उनकी साहित्यिक प्रवृत्ति फिर से हिन्दी की ओर हुई और वह हिन्दी में काव्य रचना करने लगे। उनकी काव्य रचनाओं में न केवल आध्यात्म का, श्रृंगार रस का, पुट है वरन देश में व्याप्त सामाजिक विद्रपताओ, विषमताओं, शोषण तथा वर्तमान समस्याओं आदि का भी पुट मिलता है।

उनकी प्रथम काव्य कृति 'प्रवासी पंच सई' अशोक प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 1981 में प्रकाशित हुई थी। इसकी भूमिका डॉ जयनाथ नलिन ने लिखी। इस कृति में उनके 504 दोहे संगृहीत है। दूसरी कृति "मंगला" डॉ प्रेमवती उपाध्याय के सद्प्रयासों से वर्ष 1999 में अशोक विश्नोई ने सागर तरंग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की थी । इस कृति में उनके 57 भक्तिपद संगृहीत हैं। इसकी भूमिका उमेश पाल वर्णवाल 'पुष्पेंद्र' ने लिखी। तीसरी कृति "सीपज" डॉ इंदिरा गुप्ता के सद्प्रयासों से डॉ अजय अनुपम ने साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य सदन द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित की। इस कृति में उनकी 80 हिन्दी ग़ज़लें और 30 उर्दू ग़ज़लें संगृहीत हैं। इसकी भूमिका सुरेश दत्त शर्मा पथिक और डॉ आरिफ हसन खान ने लिखी।

 उनकी रचनाएँ डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल द्वारा संपादित तथा डायमंड पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ गजलें, साहिल झांसवी द्वारा संपादित-हिन्दी-उर्दू की सर्वश्रेष्ठ गजलें, नज्में व मुक्तक 'महकते फूल' अतरंग प्रकाशन, रामपुर द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह 'इन्द्र धनुष, सागर तरंग प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'इकतीस अक्टूबर के नाम, शिव नारायण  भटनागर 'साकी' द्वारा संपादित काव्य संकलन 'उन्मादिनी', तथा डा. सुभाष  चन्द्र सक्सेना व डा. महेश दिवाकर द्वारा संपादित 'प्रणय गन्धा' आदि संकलनों में भी संगृहीत हैं

    इसके अतिरिक्त  समाज उत्थान, दशानन, जाहनवी, मेढ़ संदेश, बृज समाचार, अरुण, नवज्योति, सहकारी युग, विनायक,संकल्पिका, अन्तःकरण, रवि मित्र, आदर्श कौमुदी आदि अनेक पत्र-पत्रिओं व स्मारिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं । आपकी अप्रकाशित कृतियाँ वेदना, गजल मंजूषा, मुक्तक शतक, शतपुष्पी, जलते फूल, चुभती अलियां, बाल मंजरी आदि हैं ।

      प्रवासी जी की साहित्यिक सेवाओं को दृष्टि में रखते हुए स्थानीय संस्था राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति  द्वारा वर्ष १९८२ में राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन जन्मशती समारोह में उनका नागरिक अभिनंदन भी किया गया। इसके अतिरिक्त वर्ष १९८८ में  श्री यशपाल सिंह स्मृति साहित्य शोध पीठ द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया जा  चुका है ।

      आपका निधन वर्ष 2004 में दीपावली के दिन 12 नवम्बर को हुआ ।

    ✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

     8, जीलाल स्ट्रीट

     मुरादाबाद 244001

     उत्तर प्रदेश, भारत

     मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

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