रामलाल अंजाना का जन्म 20 जून 1939 को ग्राम व पोस्ट खुनक जिला बदायूं में हुआ था। वह मार्च 1982 में मुरादाबाद आए थे और यहीं की होकर रह गए। उनके पिता का नाम हीरालाल और माता का नाम प्रेमवती था।
बचपन में स्कूल की शिक्षिका द्वारा पिटाई किए जाने पर उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था और उनमें शिक्षा के प्रति अरुचि हो गई। परिजनों के काफी प्रयासों के पश्चात जब वह पढ़ने को स्कूल नहीं गए तो उनके माता-पिता ने उन्हें उनके नाना के पास भेज दिया। उनके नाना की परचून की दुकान थी साथ ही वे सिलाई का कार्य भी करते थे । वह वहीं पर सिलाई का कार्य सीखने लगे। एक दिन गांव में रामायण पाठ हुआ। वहां उन्होंने एक किशोर बाबूराम द्वारा रामायण की चौपाइयों का गायन सुना, जिसे सुनकर उन्हें लगा कि यदि वे भी पढ़े लिखे होते तो रामायण को इसी तरह पढ़ सकते थे। बस, यहीं से उनके मन में पढ़ने लिखने की इच्छा जागृत हो गई और उन्होंने चुपचाप अपने बराबर के लड़कों तथा गांव के पढ़े लिखे लोगों से पढ़ना लिखना सीख लिया। धीरे-धीरे वह पूरी तरह किताबें पढ़ने लगे। पहाड़े और अंग्रेजी अक्षरों का भी उन्हें ज्ञान हो गया।
एक साल गांव के कई लड़कों का प्रवेश शहर के स्कूल में होना था। जून का महीना था। अनजाना जी के मामा और गांव के ही जगनराम पाली श्रीकृष्ण इंटर कालेज बदायूं में अध्यापक थे। अनजाना जी के नाना की दुकान में काफ़ी जगह थी जिन लड़कों का प्रवेश होना था, उनकी परीक्षा ली जा रही थी। सबसे पहले सामूहिक इमला बोला गया, फिर एक-एक करके कापियों की जांच की गई। किसी-किसी का तो हर शब्द गलत था और किसी-किसी की कुछ कम गलतियां थीं। अनजाना जी मशीन की कुर्सी पर बैठे एकटक देख रहे थे। इधर-उधर दुकान के भीतर-बाहर बहुत से बच्चे और लोग खड़े इस दृश्य का आनंद ले रहे थे। अनजाना जी अपनी गांव की शैली में बोल पड़े। इतने आसान इमले में इतनी सारी गलतियां हैं। ये क्या पढ़े-लिखे हैं। इनके मामा जो अध्यापक थे, वे बोले कि क्या तुम लिख लोगे। अनजाना जी कहने लगे और क्या नहीं लिख लेंगे। हम तो इससे भी कठिन लिख लेंगे। मामा समझे कि झूठ बक रहा है। यह बिना पढ़ा कैसे लिख लेगा। अनजाना जी कहने लगे, लाते क्यों नहीं कोई कठिन सी किताब, इमला बोलने के लिए। अनजाना जी के मामा साहित्य-सरिता मिडिल की किताब उठा लाये और पेंसिल दी गई, अनजाना जी फटाफट लिखते चले गए, जिसमें कोई भी गलती नहीं थी। फिर उन्हें सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने को दिया गया, उसे भी जितना बताया गया, बेहिचक पढ़कर सुना दिया। यह देखकर सब दंग रह गए। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति कोई करिश्मा कर रही है। सभी आश्चर्यचकित थे, सोच रहे थे कि जिसे पढ़ाने की हर कोशिश बेकार हो गई थी, वह विद्वानों की तरह से सत्यार्थप्रकाश को पढ़ रहा है। इसने कब और कहां पढ़ना लिखना सीख लिया। इसी प्रकार गणित के प्रश्न सभी को गुणा-भाग के दिए गए, इनसे कहा गया कि तुम भी इन्हें हल करो। अनजाना जी बोले कि यह लोग तो लिखकर सवाल हल करेंगे, हम ऐसे ही जवाब बताएंगे और सही उत्तर बता दिए। इस प्रकार उन्हें हर परीक्षा में सबसे आगे देखकर उनके मामा ने फैसला लिया कि इसे दसवीं कक्षा में प्रवेश करा दिया जाए। इस पर श्री जगनराम पाली ने सलाह दी कि यदि इसे पढ़ाना ही है तो नींव मजबूत होनी चाहिए। इसलिए आठवीं कक्षा में प्रवेश कराओ। अनजाना जी का जुलाई से कक्षा आठ में सीधे-सीधे टीचर्स-वार्ड में प्रवेश करा दिया गया। इसके बाद उनका मन पूरी तरह पढ़ाई में रम गया और उन्होंने इंटर तक की परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लीं। काफी समय बाद उन्होंने बी कॉम की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली।
लगभग 18-19 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया। उनकी पत्नी का नाम उर्मिला देवी है। वर्तमान में वह अपने पुत्र के साथ बरेली में निवास कर रही हैं। उनके चार पुत्र रजनीश, राजीव, अवनीश, राजेंद्र कुमार और एक पुत्री रजनी है।
अनजाना जी का सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में ही रहा। उन्होंने लगभग पांच माह तहसील में चपरासी की नौकरी भी की। मंडी में गजक भी बेची, आढ़त पर नौकरी की, रजा टैक्सटाइल्स की ब्रांच ज्वाला फ्रेबरेस रामपुर में नौकरी की। इसके बाद तीस रुपया महीने के वेतन पर विज्ञानंद वैदिक इंटर कॉलेज बदायूं में अस्थाई तौर पर शिक्षक हो गए। इसी बीच मिशन स्कूल में बाबू का पद रिक्त हुआ था। कुछ साल उन्होंने इस पद पर कार्य किया। 1965 में राजकीय सेवा हेतु शिक्षा विभाग के लिए लिपिकों के पद के आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए। उन्होंने भी आवेदन कर दिया और उनकी नियुक्ति आर आई जी एस बरेली के कार्यालय में हो गई। मुरादाबाद मंडल बनने के बाद मार्च 1982 को उनका स्थानांतरण मुरादाबाद हो गया और वे यहीं के निवासी हो गए। जिला विद्यालय निरीक्षक मुरादाबाद के कार्यालय अधीक्षक पद से वह सेवानिवृत्त हुए।
अंजाना जी 9-10 वर्ष की उम्र से ही तुकबंदी करने लगे थे। कबीर-रहीम और निराला जी से बहुत प्रभावित थे। इनका कोई काव्य गुरु नहीं था। बचपन में जो कोर्स की किताबें पढ़ते, उन्हीं के आधार पर लिखा करते थे । वर्ष 1971 में उनका प्रथम काव्य संग्रह "चकाचौंध" प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात वर्ष 2000 में उनके दो काव्य संग्रह "गगन ना देगा साथ" और "सारे चेहरे मेरे" का प्रकाशन हुआ । वर्ष 2003 में उनका दोहा संग्रह "दिल के रहो समीप" प्रकाशित हुआ। वर्ष 2009 में उनकी काव्य कृति "वक्त ना रिश्तेदार किसी का" प्रकाशित हुई। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर मोहन राम मोहन की कृति " मानव मूल्य और रामलाल अनजाना" का प्रकाशन वर्ष 2006 में हुआ।
जनकवि पं. भूपराम शर्मा 'भूप' पुरस्कार समिति, बदायूं द्वारा उन्हें विधानसभा अध्यक्ष श्री केशरीनाथ त्रिपाठी के कर कमलों से रु. 11001/- से सम्मानित भी किया गया। इसके अतिरिक्त 'रचना' बहजोई द्वारा 'लोकरत्न' सम्मान, अ.भा. साहित्य कला मंच, चांदपुर द्वारा 'साहित्य श्री' सम्मान, बदायूं क्लब बदायूं द्वारा नागरिक अभिनंदन, सागर तरंग प्रकाशन, मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2001 के 'सर्वोच्च शब्द' सम्मान से सम्मानित, संस्कार भारती द्वारा संस्कार भारती सम्मान 2001 से सम्मानित, आकार मुरादाबाद द्वारा शब्द श्री सम्मान, परमार्थ संस्था द्वारा शब्द भूषण, आर्य समाज मुरादाबाद द्वारा आर्य भूषण सम्मान, हिन्दी साहित्य संगम द्वारा हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान से विभूषित किया गया।
उनका निधन 27 जनवरी 2017 को हुआ ।
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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