मंगलवार, 1 जनवरी 2019

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दुर्गा दत्त त्रिपाठी पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख



 हिन्दी के प्रख्यात कवि, कहानीकार, पत्रकार और लेखक दुर्गादत्त त्रिपाठी का जन्म 19 मई 1906 को बरेली में हुआ था । उनके पूर्वज मूलतः अल्मोड़ा जिले के चौसर के निवासी थे । किन्तु कालान्तर में वे मुरादाबाद जनपद के चंदौसी नगर में आ गये । आपके पिता श्री गोविन्द दत्त त्रिपाठी रेल कर्मचारी थे । आपके पितामह श्री गोपाल दत्त त्रिपाठी अध्यापक थे, उन्नति करते- करते इंस्पैक्टर ऑफ स्कूल्स हो गये । वह भी एक अच्छे कवि थे । उनके नाना श्री हरदेव पंत आगरा के महाराजा के राजगुरू थे ।

    आपकी प्रारम्भिक शिक्षा काशी में हुई । सैन्ट्रल स्कूल काशी से एडमीशन परीक्षा कक्षा 10 उत्तीर्ण की । उनके पश्चात् रामजस इंटर कालेज, तथा रामजस कालेज आनन्द पर्वत दिल्ली से इंटरमीडिएट तथा बीए की परीक्षा उत्तीर्ण कर महात्मा गाँधी की 'पढ़ना छोड़ो' आज्ञा पर पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस के स्वयं सेवक बन गये ।

      इसी दौरान वह फिल्मों में काम करने के विचार से द्वितीय महायुद्ध के समय कलकत्ता चले गये और वहाँ कुछ समय तक रहे । वहाँ उनकी भेंट जाने-माने फिल्म निर्देशक श्री देवकी कुमार बोस से हुई । वे त्रिपाठी जी की योग्यता से बहुत प्रभावित हुए । उन्होंने त्रिपाठी जी को अपने यहाँ हिन्दी उच्चारण विभाग में सहयोगी के रूप में सवेतन काम दिया और फिल्म 'रामानुज में सवेतन भूमिका भी दी । कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने हिन्दी की 'मतवाला' और अंग्रेजी की 'मॉर्डन रिव्यू' जैसी स्तरीय पत्रिकाओं का संपादन भी किया । कलकत्ता प्रवास के दौरान ही उनके पिता श्री का देहान्त हो गया । इस प्रकार अपने पिताश्री की दिवंगति से त्रिपाठी जी पर अकस्मात् अपने परिवार का भार आ पड़ा । उघर द्वितीय महायुद्ध अपने पूरे जोरों पर था । लेखकों पर ब्रिटिश सरकार भाँति-भांति के अत्याचार कर रही थी । पुलिस आये दिन उनकी तलशियाँ लेती और उनकी पाण्डुलिपियाँ उठाकर ले जाती । उन सब प्रतिकूल परिस्थितियों को देखते हुए वे विवश कर मुरादाबाद लौट आये। कलकत्ता से वापस आने के उपरान्त उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अपने समय के प्रसिद्ध हिन्दी मासिक महारथी में सहायक सम्पादक पद पर लगभग 3 वर्ष तक कुशलता पूर्वक कार्य किया । 

   आजीविका की दृष्टि से सम्पादन कार्य में त्रिपाठी जी ने यह अनुमव किया कि उससे उनकी और उनके परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं हो सकेगी इस स्थिति में उन्होंने अपने पिताश्री की भांति रेल विभाग में ही नौकरी की । वे वहाँ गार्ड के रूप में सन 1961 तक सेवारत रहे ।

    हिन्दी साहित्य के प्रति उनकी रुचि विद्यार्थी जीवन से जागरूक हो चुकी थी। काशी में शिक्षा प्राप्ति के दौरान अध्यापक के रूप में हास्य रस के सुविख्यात कवि कृष्णदेव गौड़,बेढब बनारसी और ब्रज भाषा के सुकवि श्री भगवान दीन 'दीन' का उन्हें स्नेह प्राप्त हुआ । पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र, विनोद शंकर व्यास, लक्ष्मीनारायण मिश्र, कमलापति त्रिपाठी उनके सहपाठी तथा मित्र रहे थे । काशी में ही श्री जयशंकर प्रसाद, श्री रामनाथ 'सुमन' ,पंडित जनार्दन झा द्विज, पंडित शिवपूजन सहाय, शिवदास गुप्त 'कुसुम', आदि स्थापित साहित्यकारों की महत्वपूर्ण संगति में रहे । इसके अतिरिक्त उन्हें पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला', पं. सुमित्रानंदन पंत, श्री भवानी प्रसाद मिश्र, पं. अनूप शर्मा 'अनूप, श्री अमृत लाल नागर, डॉ. इलाचन्द्र जोशी, आचार्य चतुरसेन शास्त्री आदि साहित्य - महारथियों का भी सान्निध्य प्राप्त हुआ था । 'महारथी' पत्रिका में कार्य करते हुए वह हिन्दी के महान कथाकार जैनेन्द्र कुमार तथा भगवती प्रसाद वाजपेयी के सम्पर्क में आये । इन समस्त साहित्यकारों के सनिध्य का प्रभाव उनकी लेखन एवं रचनात्मक शैली पर पड़ा । उन्होंने न केवल काव्य विधा में लेखन किया अपितु वह एक सिद्धहस्त कहानीकार उपन्यासकार एवं निबन्धकार भी थे । उनकी प्रकाशित कृतियों में गाँधी संवत्सर (महाकाव्य) शकुन्तला (खण्ड काव्य), तीर्थ शिला (काव्य संग्रह), अमर सत्य (उपन्यास) तथा मंटो मिला था (उपन्यास), स्वर्ग( महाकाव्य), सन्धि और विच्छेद(खण्ड काव्य),निर्बलता का शाप ( महाकाव्य) , कल्पदुहा ( काव्य) उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपने  शंकराचार्य, आरोहा, आसव, अनुजा,  सौम्या, कृतम्भरा, भूयसी, श्रेयम्वदा,  मधुलिपि, पत्रांक, रक्त ग्रन्थि, वृन्दा, मामिका, यज्ञशेप, कलापी, प्रेयति, सघस्का,त्वदीया,उर्वरा, वेशिका, छन्दा, कदित्सा,कन्था, गतिका, स्वरन्यास, प्रत्यय, प्रकाम, उपनाह, गेया, शरण्या, प्रत्यक्ष, मुहूर्त, युगीन, निबन्ध गीत, गीतिका, वेणुजा, निशार्क, प्रेयम्वदा, परिचित और प्रशस्तियाँ, अनुश्रतियाँ ( सभी काव्य ), उत्तरदायी,जहां बंटवारा नहीं होता, बर्लिन की रक्तरेख (सभी उपन्यास) क्रमगत, विश्वास का लक्ष्य, जीने का सहारा, उतरा हुआ मद, अन्तरे अनेक टेक एक( सभी कहानी संग्रह) कृतियों की भी रचना की । इनमें से अधिकांश अप्रकाशित हैं ।

     श्री त्रिपाठी जी की दिल्ली और उत्तर प्रदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी एवं कविता प्रायः प्रकाशित होती रही है । मुरादाबाद से प्रकाशित 'अरुण' और 'प्रदीप'  से आपका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। आपका निधन 30 जनवरी 1979 को हुआ।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

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