मंगलवार, 1 जनवरी 2019

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दयानन्द गुप्त पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख



मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त का जन्म प्रबुद्ध आर्य समाजी डा रामस्वरूप के यहाँ राजा की हाट झाँसी में 12 दिसम्बर 1912 को हुआ था। परन्तु आपके जीवन का अधिकांश भाग मुरादाबाद में ही व्यतीत हुआ। आपकी माता जी श्रीमती रामप्यारी थी ।

      हरदोई में हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने जनपद के चन्दौसी नगर स्थित एसएम इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की । तदुपरान्त आपकी प्रतिभा का निखार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुआ जहाँ से आपने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात् लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि की उपाधि प्राप्त की । सन 1936 में मुरादाबाद नगर में अधिवक्ता के रूप में आपने अपने को प्रतिष्ठित किया।   वर्ष 1977 में जब वह लगभग 65 वर्ष के थे तो उन्होंने अंग्रेजी साहित्य से  स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की । जीवन के अंतिम दो वर्ष में वह  अंग्रेजी साहित्य के भूले बिसरे कवि और लेखक एडमिन म्यूर पर शोध कार्य में संलग्न थे।
     
    अध्ययनकाल से श्री गुप्त का रुझान साहित्य की ओर था । लखनऊ तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रवास काल में वे प्रख्यात साहित्यकार श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' के सम्पर्क में आये और यह सम्पर्क घनिष्ठता में परिवर्तित होता हुआ मैत्री में बदल गया।
हिन्दी साहित्य के अतिरिक्त पश्चिमीय भाषाओं के साहित्य का भी आपने अध्ययन किया । इसीलिए आपकी शैली में उसकी छाया स्पष्ट दिखाई पड़ती है।
वर्ष 1941 में आपने मुरादाबाद में हिन्दी परिषद की स्थापना की । हिन्दी परिषद की स्थापना के पश्चात् आपकी प्रतिभा निखरती रही परिणामस्वरूप आपकी कहानियों का पहला संग्रह 'कारवां' वर्ष 1941 में प्रकाशित हुआ । इस संग्रह में उनकी 12 कहानियां संगृहीत हैं। इसका प्रकाशन पृथ्वीराज मिश्र ने अपने अरुण प्रकाशन से किया था। इस संग्रह की भूमिका सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने लिखी थी। लगभग दो वर्ष पश्चात सन 1943 में उनके 52 गीतों का संग्रह 'नैवेद्य'  नाम से प्रकाशित हुआ। इसका प्रकाशन इलाहाबाद से हुआ था। इसी वर्ष अरुण प्रकाशन द्वारा उनका दूसरा कहानी संग्रह 'श्रंखलाएं' प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में उनकी 17 कहानियां हैं।  वर्ष 1956 में 'मंजिल' कहानी संग्रह अग्रगामी प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ । इस संग्रह में कोई नई कहानी नहीं है बल्कि पूर्व में प्रकाशित दोनों संग्रहों की चुनी हुई बारह कहानियां हैं। आपकी लेखनी 'नाटक' विधा में भी चली। वर्ष 1946 में आपका एक नाटक 'यात्रा का अन्त कहाँ' प्रकाशित हुआ। 'माधुरी', 'सरस्वती', 'वीणा', 'अरुण' आदि उच्च कोटि की मासिकों में आपकी रचनाएँ विशेष सम्मान के साथ छपती रहीं । दयानन्द गुप्त की रूझान पत्रकारिता की ओर भी था। वर्ष 1952 में उन्होंने अभ्युदय' साप्ताहिक का प्रकाशन व संपादन भी किया ।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे दयानन्द गुप्त
दयानन्द गुप्त एक साहित्यकार होने के साथ-साथ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी थे ।अपनी किशोरावस्था में आपने महात्मा गाँधी के आह्वान पर हाई स्कूल पास करने के उपरान्त वर्ष 1930 में आन्दोलनों में लेना शुरू कर दिया था। सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल रहे।
सर्वहारा वर्ग के नेता भी रहे
सन 1945 में मजदूर आंदोलन में भाग लिया। अनेक श्रमिक संगठनों से आप जुड़े रहे। सन् 1951 में जिनेवा में हुए अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। हालांकि आपको राजनीतिक विचारधारा कांग्रेसी थी। वर्ष 1972 से 1980 तक मुरादाबाद नगर की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर रहते हुए आपने संगठन का नेतृत्व किया।

शिक्षा जगत में भी रहा अपूर्व योगदान
वर्ष 1952 में आपने नगर में वर्षों से बन्द चली आ रही बल्देव आर्य संस्कृत को पुनः आरम्भ किया। जिसमें संस्कृत की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी। उसी वर्ष बल्देव आर्य कन्या विद्यालय की स्थापना की जो बाद में बल्देव आर्य कन्या इंटर कालेज हो गया। वर्ष 1960 में दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की स्थापना की। इसके अतिरिक्त आपने अपने पैतृक ग्राम सैदनगली में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की भी स्थापना की।
25 मार्च 1982 की अपराह्न वह इस संसार से महाप्रयाण कर गये।

:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें