हुआ यह कि एक सरकारी संस्थान था और उसमें पदासीन गेंदा बाबू रोजाना एक घंटा लेट आते थे । संस्थान के प्रभारी ने इस बात को तो सहन किया क्योंकि उसकी बुद्धि कहती थी कि इन छोटी-छोटी बातों में टॉंग अड़ाना अच्छी बात नहीं होती। लेकिन जब से जाड़ा शुरू हुआ गेंदा बाबू एक घंटा लेट तो आते ही थे, अब उन्होंने आने के बाद कोई कार्य करने के स्थान पर धूप में कुर्सी डालकर बैठना और मूॅंगफली खाने का कार्य और आरंभ कर दिया ।
हफ्ते-दो-हफ्ते तो प्रभारी ने चीजों को नजरअंदाज किया लेकिन एक दिन उसकी चेतना जागृत हो गई अथवा यूं कहिए कि साठ वर्ष का होने से पहले ही उसकी बुद्धि सठिया गई और उसने गेंदा बाबू को टोक दिया -"यह आप कार्य करने के स्थान पर रोजाना धूप में कुर्सी डालकर मूंगफली खाने का कार्य नहीं कर सकते । आपको कार्य के लिए वेतन दिया जाता है।"
बस प्रभारी के इस भारी अपराध को गेंदा बाबू न तो क्षमा कर पाए और न ही सहन कर पाए। तत्काल उन्होंने अपने मौलिक अधिकारों की दुहाई लगाई तथा संस्थान के सभी सहकर्मियों को एकत्र कर लिया। संस्थान-प्रभारी के विरुद्ध हाय-हाय के नारे लगने लगे ।
गेंदा बाबू ने सबके सामने खड़े होकर जोरदार भाषण दिया । अपने भाषण में उन्होंने कहा कि यह पूंजीवादी व्यवस्था है तथा निजीकरण की ओर बढ़ता हुआ प्रयास है, जिसमें किसी गरीब का धूप में बैठना और मूंगफली खाना व्यवस्था को सहन नहीं हो पा रहा है । गेंदा बाबू ने सबको बताया कि ईश्वर ने सेंकने के लिए ही धूप बनाई है तथा मूंगफली खाने की ही वस्तु है । अतः धूप में मूंगफली खाना हर कर्मचारी का मौलिक अधिकार है। इससे उसे रोका नहीं जा सकता।
प्रभारी ने अब एक और बड़ी भारी गलती कर दी । उसने अनुशासनहीनता के आरोप में गेंदा बाबू को निलंबित कर दिया। प्रभारी की इस कार्यवाही ने आग में घी डालने का काम किया । वैसे तो मामला सुलझ जाता। थोड़ा-बहुत गेंदा बाबू कार्य करते रहते और थोड़ी-बहुत धूप सेंकते हुए मूंगफली भी खाते रहते। लेकिन कठोर कार्यवाही से मामला एक संस्थान के हाथ से निकल कर जिले-भर के सभी संस्थानों तक फैल गया ।
मौलिक अधिकारों का प्रश्न अब मुख्य हो चला था । कार्य तो संस्थानों में होता ही रहता है, कभी कम-कभी ज्यादा । लेकिन धूप सेंकना और मूंगफली खाना -यह तो ईश्वर प्रदत्त मौलिक अधिकार है । इससे किसी को वंचित कैसे रखा जा सकता है -अब यह तकनीकी प्रश्न सबके सामने था । आंदोलन जोर पकड़ने लगा । जिले-भर के सभी संस्थानों के समस्त स्टाफ ने जिले के 'वेतन वितरण अधिकारी' को पत्र लिखकर जिले-भर के सभी संस्थानों के समस्त कर्मचारियों को निलंबित करने की मांग कर डाली और कहा कि रोज-रोज के शोषण और उत्पीड़न को सहने की अपेक्षा अच्छा यही है कि एक बार में ही सब को निलंबित कर दिया जाए ।
अब मामला गंभीर था। 'जिला वेतन वितरण अधिकारी' ने पूरे जिले के समस्त संस्थानों के कर्मचारियों की भीड़ को देखते हुए आनन-फानन में निर्णय लिया और संबंधित समस्याग्रस्त संस्थान के प्रभारी को पत्र लिखकर चौबीस घंटे के अंदर अपने संस्थान में असंतोष को समाप्त करने का अल्टीमेटम दे डाला -"अगर आप अपने संस्थान में कर्मचारियों के असंतोष को दूर नहीं करते हैं तो आप के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाएगी ।"
'जिला वेतन वितरण अधिकारी' के कठोर पत्र को पढ़कर समस्याग्रस्त संस्थान का प्रभारी चक्कर खाकर गिर पड़ा । उसकी समझ में दो मिनट में यह बात आ गई कि जाड़ों के दिनों में धूप इसीलिए निकलती है कि सब लोग उसका सेवन करें तथा मूंगफलियां तो खाने के लिए ही बनाई जाती हैं । यह एक प्रकार से परमात्मा का अलिखित आदेश है । उसने तुरंत अपनी भूल को सुधारा और गेंदा बाबू से कहा -"आपने हमें जो गहरा आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया है, वह तो हमें नौकरी से रिटायरमेंट के करीब आते-आते भी कहीं से नहीं मिल पाया था । अब हम अपने चक्षु खोल सके हैं और आप धूप के सेवन तथा मूंगफली खाने के लिए स्वतंत्र हैं।" यह सुनकर गेंदा बाबू ने प्रभारी से कहा कि आप चिंता न करें, हम धूप के सेवन और मूंगफली खाने के अतिरिक्त भी कुछ न कुछ कार्य संस्थान के लिए अवश्य करेंगे। आखिर हमें वेतन वितरण अधिकारी के कर-कमलों से वेतन इसी कार्य के लिए तो प्राप्त होता है ।
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,
रामपुर
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल 99 97 61 5451
 

 
धन्यवाद साहित्यिक मुरादाबाद
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