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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद कर साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---जूता चोर


......... अपेक्स से कई फोन काल्स आ चुकीं थीं "भाईसाहब आप कहीं जूते बदल कर तो नहीं पहन गये ? यहां पर एक डाक्टर के जूतों की जगह दूसरे किसी के जूते रखें हैं,,।

     राहुल ने अपने जूतों को एक बार फिर गौर से देखा जूते बदले बदले से लगे  वह अपने मित्र अश्रि्वनी को देखने अस्पताल गया था । एक घरेलू झगड़े में उसको गोली लगी थी । पुलिस केस होने के कारण उन्हें मिलने नहीं दिया जा रहा था हालत बहुत गंभीर थी ।

            अश्विनी जी राहुल के प्रिय मित्रों में से एक हैं

पिछले दिनों उनके भाई की भी सौतेले भाइयों ने इसी प्रकार हत्या कर दी थी..... इसी से राहुल को उनसे मिलने की बहुत बेचैनी हो रही थी.... अचानक पुनः फोन आने से राहुल की तंद्रा भंग हुई......

दिमाग में एक आइडिया आया कि वह डॉक्टर जिसके जूते हैं शायद अश्रि्वनी से मिलने में मदद कर सके ।.....

       परन्तु ये क्या डाक्टर ने तो जूते बदले जाने पर अस्पताल में हंगामा ही काट दिया ..... जूते बदले जाने को तो वह चोरी करना ही समझ बैठा और उसी धुन में लगा सुनाने उल्टी-सीधी अश्वनी के जितने तिमारदार थे उनसे भी उसने दुर्व्यवहार किया कहा जूतों के पैसे आपके बिल से काट लिये जायेंगे पुलिस में रिपोर्ट करूंगा अलग से.........वरना जिसने जूते बदले हैं जूते दिलवाओ .... प्रवीण ओझा जी बार बार कॉल करके भी असली बात संकोच के कारण बता नहीं पा रहे थे खैर......... राहुल शाम को गया और जूते बदलकर अपने जूते पहन आया....दर असल एक जैसे जूते होने के कारण और दुखद घटना के चलते हड़बड़ी में यह घटना अनायास ही घट गयी थी..... डॉक्टर ने फोन पर  राहुल को भी बहुत लताड़ लगाई .... राहुल हतप्रभ सा अवाक सोच ही  नहीं पाया कि ऐसा कैसे कर गया  ...... अश्वनी से मिलना तो दूर डॉक्टर से पीछा छुड़ाना ही भारी हो गया परंतु राहुल के साथ वाले वरिष्ठ प्रभावशाली अधिकारियों ने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया और अस्पताल के स्वामी को ही आड़े हाथों ले लिया अस्पताल का स्वामी एक योग्य व्यक्ति था वह धन से ही धनी नहीं था दिल से भी धनी था उसने डॉक्टर के व्यवहार के लिए माफी मांगी डॉक्टर को सबक सिखाने की बात भी की जब डाक्टर पर मालिक की लताड़ पड़ी तब डॉक्टर की  समझ में आ गया ...उसे अहसास हो गया की उसने छोटी सी बात को व्यर्थ में ही इतना तूल दे दिया है .......

.......अचानक तभी डॉ अरुण का पैर फिसला और वह सीढ़ियों से गिर गया गंभीर चोट आई हड्डी टूटने के कारण बहुत सारा ब्लड बह गया अनायास ही स्थिति गंभीर हो गई डॉक्टर  को B+  ब्लड की जरूरत पड़ी ...... माइक पर आवाज गूंजने लगी किसी सज्जन का ब्लड बी पॉजिटिव है तो कृपया वह इमरजेंसी वार्ड  में तुरंत पहुंचें..........

     .... ऑपरेशन हुआ डॉ अरुण को ब्लड भी चढ़ाया गया जब डॉक्टर अरुण को होश आया तो  उसने तुरंत जानना चाहा कि उसे ब्लड किसने दिया ........ अगले  कुछ क्षणों में वह पश्चाताप में डूब गया उसकी आंखों में आंसू थे......... जानकर की इमरजेंसी में उसे ब्लड किसी और ने नहीं बल्कि राहुल ने दिया था .... डॉक्टर अरुण ने रात को ही फोन किया परंतु फोन नहीं उठा...... सुबह बार-बार फोन करने पर राहुल ने फोन उठाया...

फोन पर डॉक्टर अरुण  था जो राहुल से बार-बार अपने दुर्व्यवहार के लिए माफी मांग रहा था ........ 

  ................ हमें अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखनी चाहिए परिस्थितियां कितनी भी गंभीर हों धैर्य नहीं खोना चाहिए .....!! 

अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद 244001,  मोबाइल फोन नम्बर 82 188 51 541

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ''राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" की ओर से 14 अक्टूबर 2020 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की मासिक काव्य गोष्ठी 14 अक्टूबर 2020 को जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में संपन्न हुई । अध्यक्षता  योगेंद्र पाल विश्नोई  ने की। मुख्य अतिथि  रघुराज सिंह निश्चल  तथा विशिष्ट अतिथि केपी सरल  थे। सरस्वती वंदना रश्मि प्रभाकर ने प्रस्तुत की तथा मंच संचालन अशोक विद्रोही ने किया। 

 गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा-

जन्म मृत्यु आकर सिरहाने खड़ी

किन्तु जीवन का संघर्ष जारी रहेगा


रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने पढ़ा-

पंचशील के रथ से पहले, तुमने हाथ मिलाया।

विश्वास घात कर तुमने , अपने उर पर तीर चलाया।। 


अशोक विद्रोही  ने ओजपूर्ण कविता पढ़ी-

हम तेरे वीर जियाले मां, आगे ही बढ़ते जायेंगे।

एक रोज परम पद पर, माता तुझको बैठायेंगे ।।


रश्मि प्रभाकर ने कहा-

आंखों में उमड़े सपनों की, 

            जब हृदय तंत्र से ठनती है ।

तब जाकर निर्भीक लेखनी

              से एक कविता बनती है।।


वरिष्ठ कवि रघुराज सिंह निश्चल का कहना था -–

कहां तक चुप रहूं, कुछ भी न बोलूं।

 असत सत को निगलता जा रहा है।।


प्रशांत मिश्र ने कहा-

नैनो के नीर से जख्मों का

 दर्द कम नहीं होता।


केपी सरल ने पढ़ा-

नीड़ छोड़ शावक उड़े ,सभी मोह विसराय

काया  त्यागे जीव जो ,वापस कभी न आय।।


अरविंद कुमार शर्मा आनंद की ग़ज़ल थी----

जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।

सात ग़म के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

अंत में  योगेंद्र पाल विश्नोई ने आभार अभिव्यक्त किया। 











::::::::::प्रस्तुति::::::

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ... नन्हा मुखिया

 


.... छोटी रेखा कब से टकटकी लगाए सड़क पर देख रही थी ।... आज भैया को पगार मिलने वाली थी 3 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला... मां छुटकू के साथ बुखार में तप रही थी ... टिंकू भी बार-बार भूख से रोए जा रहा था ।.... सड़क दुर्घटना में गोपाल की मौत हो गई थी तब से नन्हे ही जो कि 8 साल का था  घर का  मुखिया था .....आज उसे पगार मिलने वाली थी... और घर जाने की छुट्टी भी । घर में पैसे आते ही महीने भर का राशन आ जाता था ।

         सहसा सेठ दीनदयाल की फैक्ट्री का बड़ा सा दरवाजा जैसे ही खुला 7 से 11 साल तक के बच्चों की टोली शोर करती हुई बाहर निकली... कहना नहीं होगा सभी बंधुआ बाल मजदूर थे ! जो पगार मिलने व महीने बाद घर जाने की खुशी में पंछियों की तरह चह चहाते हुए अपने अपने घरों के लिए उस क़ैद खाने से बाहर निकले थे........ परंतु यह क्या अचानक पुलिस अफसरों के साथ बलराज प्रधान आगे बढ़ा और सभी बच्चों को पुलिस ने गिरफ्त में ले लिया..

         "मैंने बहुत बार समझाया सेठ दीनदयाल को बाल मज़दूरीअब अपराध है परन्तु उसकी समझ में कब आता है अब भुगतो !" बलराज प्रधान ने अपनी जीत पर खुश होते हुए गर्व से कहा !

     ..... सेठ जी तो मोटी रकम देकर जेल जाने से बच गये ...परन्तु....

      .......गोपाल के घर आज भी चूल्हा नहीं जला !!

उधर बच्चों से छीने गए रुपए प्रधान और पुलिस ने आपस में बांट लिये ......

       ..... अचानक झोपड़ी से रेखा और दो छोटे बच्चों की चीखें हवा में गूंजने लगी मां दुधमुंहे बच्चे को सूखी छाती से लगाये ही सिधार गयी थी !

      ..... प्रधान की बैठक में शराब के दौर अब भी जारी थे.......!!

अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर ,मुरादाबाद।   मोबाइल फोन नम्बर  82 188 25 541

बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा -- रामराज

..........कल इंटरव्यू है अस्पताल में 25 वैकेंसी  हैं।

 " कैसी तैयारी कर रखी है ?"प्रमोद जी ने पूछा

"तैयारी तो खूब अच्छी की है..... परंतु...!"मनीष के स्वर में लाचारी और झिझक थी ।

"परंतु क्या ?"

"पैसा चल रहा है !" और वह भी 5 लाख से ज्यादा !

"फिर"??

"मंत्री जी से सिफारिश लगवाई है.....

 बहुत सुना था अब रामराज है".... "शाम को फोन पर बताएंगे ....क्या हो सकता है? "मनीष ने पूरी व्यथा कथा कह डाली....!

       ..... शाम को मंत्री जी से फोन पर बात हुई उन्होंने कहा "मुबारक हो काम हो जाएगा.... बड़ी मुश्किल से तैयार हुए  हैं...इंटरव्यू वाले 10 मांग रहे थे तुम्हारी मेरिट अच्छी है इसलिए मैंने साफ कह दिया 8 से ज्यादा नहीं मिलेंगे !.... अब मिठाई की तैयारी करो ....! तुम्हारी नौकरी पक्की ...!!"

      मनीष के तो होश ही उड़ गए । दुनिया घूमती हुई नजर आने लगी  !  फिर सोचने लगा आखिर किस्मत भी तो कोई चीज है !

.......... इंटरव्यू बहुत शानदार रहा..... परंतु मनीष की हालत आठ लाख जुटाने की नहीं थी..... सेठ धनराज के लड़के मनोज ने भी इंटरव्यू दिया था.. परंतु वह इंटरव्यू फेस नहीं कर पाया..!. मेरिट में भी वह सबसे नीचे था...........

     ..... मंत्री जी का फोन आया मनीष की हिम्मत नहीं हुई  ...... बात करने की....... !!

....मंत्री जी से अच्छा तो ठेकेदार संजय था जिसने 5 की डिमांड की थी....!

       .....ये क्या ?.... परिणाम आ चुका था.. मनोज घूम घूम कर मिठाई बांट रहा था.......और......मनीष बार-बार अखबार पलट कर देख रहा था उसका कहीं नाम नहीं था..........!!

                 

,✍️अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर,  मुरादाबाद

82 18825 541

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' को राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति द्वारा किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, की ओर से हिंदी दिवस 14 सितंबर 2020 को आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में  साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप श्री विद्रोही को मान-पत्र, अंग वस्त्र, सम्मान राशि एवं श्रीफल भेंट किए गए। 

अध्यक्षता  के पी सरल ने की तथा मुख्य अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय  रहीं। माँ शारदे की वंदना डॉ प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत की गई । संचालन राम सिंह निशंक ने किया।

    इस अवसर पर हिंदी दिवस को समर्पित एक संक्षिप्त काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया । गोष्ठी में सम्मानित साहित्यकार अशोक विद्रोही ने हिंदी की महिमा का गुणगान करते हुए कहा-

अपने ही घर में कोई ,पाए ना सम्मान

यो हिंदी का हो रहा ,राज्यों में अपमान।

राज्यों में अपमान ,सुनो नेता गण प्यारे

हिंदी को अनिवार्य करो ,राज्यों में सारे।।

,विद्रोही, फिर पूरे कैसे होंगे सपने

परदेसी सी हिंदी घर में होगी अपने।।


हिंदी देती रोज ही, नए-नए उपहार

कविता में अभिव्यक्त हों ,नित्य हृदय उदगार।

नित्य ह्रदय उदगार ,कवि दुनिया में जाते,

व्यंग, छंद और गीत ,सभी हिंदी में गाते।।

"विद्रोही ,,मां का गौरव ,ज्यों होती बिंदी

भारत की पहचान और गौरव है हिंदी।।


हिंदी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,

चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।

रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,

हिंदी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।

,विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,

भारत माता के  माथे, यूं सजती हिंदी।।


डॉ प्रेमवती उपाध्याय  ने कहा-

जन्म से प्राणों में रमती 

हिंदी उसका नाम है

 सृष्टा का उद्घोष करती 

हिंदी उसका नाम है

देश का अभिमान है

यह और गौरव गान है

यमक रूपक में बिहंसती

हिंदी उसका नाम है!


केपी सरल जी ने कोरोना पर कहा-

अश्वमेध का अश्व विश्व में,  निर्भय होकर घूम रहा है

सीमाओं का बंधन तोड़े ,

चरागाह को ढूंढ रहा है

 

युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा ---

माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।

इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।

जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।


प्रशांत मिश्र ने कहा-

सूरज ने बदली से कहा

इतना क्यों बरसती हो।।


जे .पी. विश्नोई ने कहा-

यह साल कुछ ऐसा भी

न अचारों की सुगंध 

न बर्फ की चुस्की 

न गन्ने का रस 

न मटके की कुल्फी

  

काव्य गोष्ठी में  संजय विश्नोई ,शुभम कश्यप,  प्रवीण राही, अनिता विश्नोई, नेपाल सिंह पाल, मनोज मनु, विवेक निर्मल, रघुराज सिंह निश्चल, रामसिंह निशंक, जेपी विश्नोई, रामेश्वर वशिष्ठ, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई आदि ने  भी रचना पाठ किया।श्री राम सिंह निशंक द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।











मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----नन्ही परी


टर्र्रर्न....टर्र्रर्न....टर्र्रर्न...........
ट्रर्र्नर्न...... फोन की घंटी बजे चली जा रही थी...... राजेश को काम समेटते हुए ये बहुत बुरा लग रहा था
हमेशा फालतू के फोन आते रहते हैं.... क्लोजिग में व्यवधान उसे कतई पसंद न था.... बार-बार फोन की घंटी बजे जा रही थी चलते-चलते अकाउंट में कुछ गलती हो जाए तो ?..?........ वह लगातार फोन को इग्नोर करता रहा.......!!
     ..... उधर वरुणा ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी "हे प्रभु किसी तरह ये फोन उठा  लें.".... बीसयों बार फोन कर चुकी थी..... परंतु होनी को तो कुछ और ही मंजूर था कहते हैं विपत्ति मैं सब उल्टा पुल्टा हो जाता है........
          ...... राजेश को क्या पता था  उसकी दुनिया ही उजड़ी जा रही है.....!! ... उसकी इकलौती फूल सी बच्ची.!!... परी सी बेटी रानू .!... जिंदगी और मौत के बीच में झूल रही थी... उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई भी नहीं था.....!!
     ...... अंततः राजेश बिना फोन सुने ही अपने ऑफिस से निकल गया उस समय मोबाइल फोन नहीं थे... रास्ते में भयंकर जाम लगा था.............
परंतु राजेश का दिल एक अनहोनी आशंका से..... यूं ही धड़का जा रहा था....... जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला हो....!
         ...... घर पहुंच कर देखा दरवाजे पर ताला लटका था ।पड़ोसियों ने देखा तो फौरन राजेश से कहा .... "फोरन सिविल अस्पताल चले जाओ; रानू ने कुछ खा लिया है.;.... हालत बहुत गंभीर है..."
राजेश को जैसे ...अप्रत्याशित एक जोरदार घूंसा सीने में लगा हो ...मोटरसाइकिल अस्पताल की ओर मोड़ दी ... भैया ,भाभी , दूसरे मकान से सारे केसारे घर वाले अब तक पहुंच चुके थे अस्पताल में बहुत भीड़ थी जान पहचान के तमाम लोग पूरा अस्पताल भरा था...!!
     .... राजेश को देखते ही.. रानू जोर-जोर से चीखने लगी ""पापा मुझे बचा लो ! ..सॉरी पापा!!....""
"पापा बहुत दर्द हो रहा है ! पेट में बहुत जलन हो रही है ..!... मेरे अच्छे पापा  !  अपनी रानू को बचा लो !!"
पापा!! ..... पापा ...!!!
        ..... प्राइवेट अस्पतालों ने किसी ने भी एडमिट नहीं किया..... रानू का हाई स्कूल का मैथ का पेपर था... बड़े उत्साह से चहकते हुए मम्मी से कहा ,"मम्मी ! मेरा पूरा पेपर अच्छा हुआ है पूरे पूरे नंबर आएगें..."!
वरुणा ने साल्व करते हुए चेक किया ...... तीन प्रश्न गलत पाये.... लगी चिल्लाने "तुझे शर्म नहीं आती.!"..."कर दिए गलत!". "हो जाएगी फेल.!... क्या मुंह दिखाएंगे हम किसी को ?? " जेठ की लड़की सोना देख कितनी होशियार है हमेशा टॉप करती है !!.".."और एक तू है हमेशा खेल में लगी रहती है एग्जाम की ठीक से तैयारी की होती तो ऐसा क्यों होता..!". और आव देखा न ताव..चटाक!!... गाल पर एक जो़र का लगा दिया...
     ...... बाल मन सहन न कर सका गेहूं में रखने वाली सल्फास की 3 गोलियां पानी से गटक गई....
परंतु  सोचती थी मेरे पापा दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं मेरे लिए कुछ भी कर सकते हैं मुझे जरूर बचा लेंगे...... उसे क्या पता था ??... क्या होने वाला है..... ?? राजेश के जिगर का टुकड़ा जो थी वह.....!बड़े नाज़ों से पाली जा रही थी.... बेचारी अबोध बालिका!!!
       ..... रानू के जन्म के समय कॉम्प्लिकेशन होने के कारण वरुणा का गर्भाशय भी निकाल दिया गया था.... राजेश ने जमीन आसमान एक कर दिया डॉक्टरों की टीम लाकर खड़ी कर दी नगर के विधायक जी आ गए!.... राजेश हमेशा सबकी मदद के लिए तत्पर रहता था समाज में उसे सब बहुत प्यार करते थे आज उस पर संकटों का पहाड़ टूट पड़ा था.... एक छोटी सी घटना ने इतना बड़ा रूप ले लिया था ...!!! सब हत प्रभ थे ...सब बेबस..
         सारे प्रयास बेकार गए जहर अपना असर दिखा रहा था.. धीरे धीरे रानू की देह से उसके प्राण निकल रहे थे ... शरीर ठंडा पड़ता जा रहा था माहौल बेहद गमगीन और बोझिल हो चला था.... थोड़ी ही देर में अस्पताल में मातम पसर गया और मच गया कोहराम.....!
        .... मैथ में गलत हुए तीन प्रश्न... दांव पर लगी एक अबोध फूल सी बच्ची की जान......!

               
 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541



बुधवार, 9 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------ बिन बुलाए मेहमान


     .... "कितनी देर से डोर बेल बज रही है देखते क्यों नहीं कौन आया है?"
     "अरे भटनागर साहब आइए" !
'"भाभी जी बिटिया की शादी है यह रहा कार्ड राही गेस्ट हाउस में आप सभी का बहुत-बहुत आशीर्वाद चाहिए कुछ भी हो जाय समय से आ जाना" !!
      " बिल्कुल भाई साहब बिटिया की शादी हो और हम ना पहुंचे ? भला हो सकता है यह?"
             
 "अंकल जी नमस्ते!,, खाना खाते हुए ही  विकल ने मुझे नमस्ते की ।
,,नमस्ते बेटा,,,! और कौन-कौन आया है? मैंने भी विकल की नमस्ते का जवाब देते हुए पूछा ।,, अंकल सभी आए हैं मम्मी पापा भैया !!
       ......और बताओ कैसे हो? आपस में बातें करते करते सब लोग खाना खाने लगे वैसे तो सभी जगह शादियों में खाना अच्छा ही होता है परंतु यहां और भी ज्यादा उच्च कोटि के व्यंजन दिखाई पड़ रहे थे सभी लोग रुचि अनुसार भोजन का रसास्वादन कर भोजन कर रहे थे ।
       अंत में आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम ले खाने को संपूर्णता प्रदान कर सभी पड़ोसी लिफाफा देने के लिए भटनागर साहब को खोजने लगे परन्तु भटनागर साहब का कहीं पता नहीं था।अब महिलाएं श्रीमती भटनागर को ढूंढने लगी परन्तु वह  भी कहीं दिखाई नहीं पड़ीं ।
    ....जहां दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह  भोज का आयोजन करते हैं वहां अक्सर इस प्रकार की समस्या आती ही है ... सामने एक टेबल पर सभी के लिफाफे लिए जा रहे थे सभी लोगों ने अपने लिफाफे वहीं दे दिए  .... लिफाफे गिनने पर बैठा व्यक्ति एक दूसरे संभ्रांत व्यक्ति के कान में फुसफुसा रहा था कार्ड तो एक हजार ही बांटे थे अब तक ढाई हजार लिफाफे आ चुके हैं  सचमुच किसी ने सही कहा है शादियों में कन्याओं का भाग काम करता है ..... वरना भला ऐसा कहीं हुआ है की 1000 कार्ड बांटने पर ढाई हजार से ज्यादा लिफाफे आ जाएं ....तभी वहीं चीफ कैटर( जिसको कैटरिंग का ठेका दिया था) आया और उन्ही दोनों लोगों से धीरे धीरे परन्तु आक्रोश में कह रहा था "यह बात बहुत गलत है  ! साहब जी ! मुझे 12 सौ लोगों का भोजन प्रबंध करने के लिए कहा गया था आपके यहां ढाई हजार से ज्यादा लोग अब तक भोजन कर चुके हैं सारा खाना समाप्त हो गया है अब मेरे बस का प्रबंध करना नहीं है मैंने खुद खूब बढ़ाकर इंतजाम किया था परंतु इतना अंतर थोड़ी होता है 100 -50 आदमी बढ़ जाएं चलता है .... मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है अब..... आप स्वयं जानें...
....... रात्रि के 11:00 बज चुके थे घर भी जाना था सब ने अपनी अपनी गाड़ियां निकालीं और घर की ओर चलने लगे.......
.... जब बाहर निकल रहे थे तभी अचानक दूल्हे पर नजर पड़ी दूल्हा गोरा चिट्टा शानदार वेशभूषा में तलवार लगाएं घर वाले भी सभी राजसी पोशाकें पहने जम रहे थे जैसे किसी राजघराने की शादी हो.... सभी लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे "कुछ भी हो भटनागर साहब ने घराना  तो बहुत अच्छा ढूंढा."..... "हां भाई साहब बहुत शानदार शादी हो रही है"!!
   ..... निकलते निकलते मन हुआ द्वार पूजा तो देख लें परन्तु गाड़ियां धीरे धीरे बाहर निकल रहीं थीं..... चलते चलते उड़ती नज़र लड़की के पिता के स्थान पर मौजूद व्यक्ति पर पड़ी तो लगा वह भटनागर साहब नहीं थे.........फिर सोचा हमें कहीं धोखा लगा होगा....
...... परंतु राही होटल से निकलने के बाद कुछ आगे चलकर एक और होटल पड़ा उसका नाम भी राही ही लिखा  हुआ था...... यह देखकर माथा कुछ ठनका सोचते सोचते घर पहुंच गए सभी पड़ोसी लोग  आपस में बातें कर रहे थे कि भटनागर साहब क्यों नहीं मिले ?ऐसा कहीं होता है कि मेहमानों से मिलो ही नहीं ! यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लग रही थी.....
........अगले दिन भटनागर साहब गुस्से में सबसे शिकायत कर रहे थे कि "आप लोगों में से कोई भी नहीं पहुंचा.!!!.... भला यह भी कोई बात हुई  सारा खाना बर्बाद हुआ..!!!.... सभी पड़ोसी लोग एक दूसरे का मुंह देख कर मामले को समझने का प्रयत्न कर रहे थे...... आखिर सब लोग किसकी  दावत में शामिल हो गए और व्यवहार के लिफाफे किनको।   थमा कर चले आये......
      ‌.... चौंकने का समय तो अब आया जब अखबार में पढ़ा "राही होटल में शादी में खाना कम पड़ जाने के कारण बरातियों ने हंगामा काटा !! प्लेटें फेंकी .....नाराज़ होकर दूल्हे सहित बरात बिना  शादी किए लौटी !!! ...सभी पड़ोसी स्तब्ध थे.......
                 
 ✍️  अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ----न्याय

   
... ... कैदियों की गाड़ी कचहरी में आकर रुकी। पुलिस वालों ने खींच कर हरपाल सिंह को बाहर निकाला और जज के सम्मुख पेश किया ..... जज साहब ने कहा, आप पर आरोप है कि आपने दरोगा जी की रिवाल्वर छीनी और उन पर हमला किया । क्या आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है!
      .... .. मंगलू की नई-नई शादी हुई थी बहू को विदा करा के लाने की खबर दरोगा के कान में पड़ी ....... कमला सुंदर तो थी  परन्तु गरीबी में सुंदरता भी अभिशाप बन गई ......। वह भी एक मजदूर थी। काम पर आते जाते दरोगा की बुरी नजर उस पर पहले से ही थी ... बस फिर क्या था एक कांस्टेबल को भेजकर मंगलू को थाने में बुलाया। मंगलू दलित जाति से था ..... दरोगा जानता था यह बेबस लाचार मेरा क्या कर लेगा।  फरमान सुना दिया ... "मैं शाम को तुम्हारे घर आऊंगा समझ लो अच्छी तरह से ....! वर्ना किसी केस में रख दूंगा ... जेल में सड़ते रहोगे ...!"
    बिरादरी में शाम को कानाफूसी होने लगी - दरोगा आने वाला है। हरपाल सिंह को जल्दी से  खबर करनी होगी! .. एक  वह ही है जो इस संकट से हमें बचा सकता है। उसके रग रग में अन्याय से लड़ने के लिए विद्रोह भरा था। हरपाल सिंह को जैसे ही खबर मिली तो उसने बिरादरी के लोगों को बुलाया और कहा "डूब मरो सब चुल्लू भर पानी में !! .... आज इसके साथ हो रहा है कल को तुम्हारे साथ होगा .. !! .. क्यों नहीं करते विरोध!" "..... लेकिन धीरे-धीरे सब के सब खिसक लिये ....  रात को जैसे ही दरोगा बलवान सिंह घर में घुसा ..... हरपाल सिंह उस पर टूट पड़ा .... लाठी से दरोगा का हुलिया ... बिगाड़ दिया .... फिर रिवाल्वर  छीन कर भाग गया ......
 ऑर्डर ! ऑर्डर !! सुनकर हरपाल सिंह की तंद्रा भंग हुई! "कुछ कहना है सफाई में! कोई गवाह है तुम्हारे पास  !!" ......! ! ! दूर दूर तक कोई नहीं ...
      .... और जज साहब ने निर्णय सुना दिया ... आरोपी हरपाल सिंह को जनता के रक्षक और कानून के रखवाले दरोगा बलवान सिंह पर हमला करने का दोषी पाया जाता है और उसे दस साल की कड़ी सजा सुनाई जाती है।

 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद
82 188 25 541




गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----अंत बुरे का बुरा...


 सिमलेश ...!.. तुम यहां !!!     तुम्हें तो वहीं रहना था... दादी के पास कौन है??.. पवन ने विसफारित नेत्रों से देखते हुए सिमलेश से पूछा....
......तुम्हारी चिट्ठी को देख कर ही तो मैं आई हूं अम्मा कहां है ? कैसी तबीयत है उनकी ?
उत्तर में विस्मय से सिमलेश ने कहा...
चिट्ठी....!.. कौन सी चिट्ठी ? हमने कब चिट्ठी भेजी.....?? जरूर कोई गड़बड़ हुई है.... !! खतरे को भांपते हुए पवन ने उन्हें कहा !!
 ....   तभी अम्मा  कमरे से बाहर आते हुए आश्चर्य से बोली आज बहुत बुरा हुआ ....निश्चय  ही तेरी दादी की जान को खतरा है रात बहुत हो गई है चलो अब सुबह देखेंगे....!!
    सुबह 6:00 बजे गांव से एक आदमी आया जिसने बताया दादी का मर्डर हो गया है...... डकैतों ने सब कुछ लूट कर दादी को मार डाला .......!!!
       दादी जो कि मुनसन के नाम से मशहूर थीं ..अवस्था 90 साल बड़ी सी हवेली, 1oo बीघा जमीन के अलावा घर में सोने, चांदी, हीरे ,जवाहरात का खजाना भरा था एक संदूक चांदी के रुपयों से ही भरा था ...मुनसन के अपनी कोई औलाद नहीं थी इसलिए उसने ससुराल वालों पर भरोसा न करके अपने भतीजे पवन के बेटे राकेश को गोद ले लिया था और उसी के नाम वसीयत लिख दी थी परंतु वह सब लोग शहर में रहते थे उनकी देखभाल के लिए राकेश की दादी और बुआ सिमलेश मुनसन के पास रह कर सेवा करते थे बगल में ही जेठ के लड़के शमशेर का मकान था जिसके बेटे महेश और देवेश हमेशा बुढ़िया की जान के दुश्मन बने रहते थे मौके की तलाश में रहते थे कि कब बुढ़िया अकेली मिले और उसका गला दबा दें और सारा माल साफ कर दें उन्होंने छल से  एक चिट्ठी लिखी और सिमलेश को वहां से हटा दिया और रात में पहुंच गए 90 साल की बुढ़िया पैरों पर गिर कर खूब रोई गिड़गिड़ाई .... मेरे प्राण छोड़ दो परंतु महेश दिनेश को दया नहीं आई... जरा सा गला दबाने से आसानी से बुढ़िया केप्राण निकल गए सारा माल खाली कर दिया और पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी कि डाकू आए थे  रात को डाकू लूट कर ले गए और बुढ़िया को मार गए
    पुलिस के सुआ मोर पोस्टमार्टम में स्पष्ट हो गया कि मुनशन की हत्या गला दबाकर की गई
महेश और देवेश को पुलिस पकड़ कर ले गई घर में बहुत भीड़ थी काफी लोगों के बीच में वसीयत पढ़ी गई वसीयत में 50 बीघा जमीन मुनसन ने महेश और देवेश के नाम लिख रखी थी जांच कराई गई वसीयत असली थी यह देखकर महेश और देवेश के नाम लिखी थी जानकर महेश और देवेश को बहुत ही दुख हुआ
 सब किया कराया मुंनशन के जेठ के लड़के शमशेर  का था अब पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं हो सकता था
कोर्ट द्वारा महेश और देवेश को आजन्म कारागार की सजा सुनाई गई शमशेर के अंतिम समय में उसके पास दोनों बेटों में से कोई भी ना था पश्चाताप में बड़ी ही मुश्किल से प्राण निकले !!!
.....किसी ने सच ही कहा है ....
अंत बुरे का बुरा......

 ✍️ अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------धरती का स्वर्ग


         डल झील में शिकारे की सैर सचमुच एक आलौकिक आनंद का अनुभव कराती है दूर-दूर तक फैली हुई झील ...पानी में तैरते हुए अनेकों शिकारे ...झील में ही तैरती हुई अनेक दुकानें, कुछ फूलों से लगी हुई नावें और दूर-दूर बड़े ही भव्य दिखाई देने वाले पानी की सतह पर तैरते हुए हाउसबोट जैसे वास्तव में धरती पर स्वर्ग उतर आया हो... राहुल का परिवार दो शिकारों में
सैर कर रहा था एक में राहुल उसकी पत्नी  अनीताऔर पौत्र यश, दूसरे में भूमिका पीयूष उसके बेटी , दामाद और... उनके बच्चे ऋषि,अपाला ! यह पल बड़े अनमोल और अविस्मरणीय थे ।
झील के बीच में टापू पर पार्क की भी सैर की  ... नियत समय पर वापस आकर शिकारे फिर से पकड़ लिये ..... जब ड्राई फ्रूट्स की दुकान वाली नाव पास से गुजरी उससे अखरोट बादाम पिस्ता की खरीदारी की गई ।
..... अब निश्चय किया गया कि रात किसी हाउसवोट में गुजारी जाए ....!  हाउसवोट में नहीं ठहरे तो   कश्मीर घूमने का क्या आनंद...? शानदार हाउसबोट किराए पर लिया और अलग-अलग कमरों में चले गए हाउसबोट पर सभी कुछ था 3 बैडरूम ,एक ड्राइंग रूम, किचन, बालकनी , लेट्रिन बाथरूम अटैच, थोड़ी देर में सभी के लिए कॉफी आई फिर खाना खाया फिर सब मिलकर बातें करने लगे......
    ....सोने के लिए जाने ही वाले थे कि अचानक गोली चलने की आवाज आई...!! सभी लोग डर गए .....यह तो ध्यान ही नहीं रहा था!! यहां आए दिन आतंकवादी गतिविधियां होती रहती हैं...! "अब रात के 12:00 बजे भागकर भी कहां जा सकते हैं.."....हाउसबोट जहां पर खड़ा था वहां 80 फीट गहरा पानी था और चारों ओर पानी ही पानी.... पर्यटकों की यह टोली बुरी तरह आतंकित और घबराई हुई थी ....हाउसवोट में जो सर्विस स्टाफ था उन्होंने आश्वस्त किया "डरने की कोई बात नहीं....! यहां पर यह सब होता रहता है!! परंतु पर्यटकों को कोई कुछ नहीं कहता.... क्योंकि उन्हीं से यहां वालों की  रोजी-रोटी चलती है....!!!!"" यह सुनकर भी राहुल और पीयूष का मन नहीं माना.... भूमिका और अनीता दोनों ही बहुत ज्यादा डर गई थी तीनों बच्चे सहम गए थे.....!!इसलिए सोने के लिए कमरों में जाने के बाद भी किसी को नींद नहीं आई ....!! हर आहट पर डरावने ख्याल डरा रहे थे ...... बाहर झील पर चांदनी तो बिखरी ही थी...... बिल्डिंग और हाउस फोटो की लाइटिंग भी जल में प्रतिबिंबित होकर अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं....... निश्चय ही यह यात्रा इन लोगों के लिए रहस्य ,रोमांच और आतंक कि भावों को समेटे हुए थी !! जहां आने वाले हर पल मैं अनहोनी आशंकाओं का भय व्याप्त था ...!! 
        सुबह होते ही इन लोगों ने हाउसबोट छोड़ दिया  आज पहाड़ी पर शंकराचार्य के मंदिर जाना था  बिना समय गंवाए यह लोग एक गाड़ी बुक कर शंकराचार्य मठ शिवजी के मंदिर पहुंचेऔर फिर शुरू हुई 85 सीढ़ियों की दुर्गम चढ़ाई ....अच्छी खासी भीड़ थी वहां पर शिव जी के भक्तों की ...इन्होंने भी दर्शन किए परंतु दिल को चैन नहीं था ....बहुत प्रयास करने के बाद बहुत घूम-घूम कर ढूंढने पर एक सरदार जी का ढाबा मिला जिसमें खाना खाया .... अब और रुकने का मन नहीं था परंतु तत्काल लौट पाना भी संभव नहीं था आज सारे रास्ते बंद थे.... नेहरू टनल पर आतंकवादियों ने मिलिट्री के कुछ ऑफिसर की हत्या कर दी थी ....पूरे शहर में कर्फ्यू जैसी स्थिति हो गई थी !!
कहने को श्रीनगर बहुत सुंदर है ... परंतु आतंकवादियों ने इस स्वर्ग को नर्क में बदल दिया था ....इन लोगों ने तब गुलमर्ग की राह पकड़ी पहले टैक्सी फिर काफी रास्ता घुड़सवारी से तय किया वहां स्नोफॉल होने लगा नजारे बहुत खूबसूरत थे....
परंतु दिल तो श्रीनगर की घटना से दहल रहा था ..... सड़क मार्ग बिल्कुल बंद कर दिया गया था..... अब एक ही रास्ता बचा था कि दिल्ली के लिए फ्लाइट  पकड़ें कड़ी मशक्कत और कोशिशों के बाद अगले दिन की फ्लाइट मिली बीच में एक रात अभी बाकी थी.... ! इन्हे चिंता हो रही थी किस होटल में रात गुजारी जाए क्योंकि श्रीनगर में  एक भी हिंदू होटल नहीं.. ... जहां सुकून मिल सके !!
.....कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने वाला था ही  दहशत के मारे इन लोगों का बुरा हाल था फिर भी रात तो  गुजारनी ही थी एक अच्छा सा होटल देखकर दो कमरे लिए गए और यह लोग एक मुस्लिम होटल में स्टे को विवश हो गए
रात में फिर से गोलियां चलने की आवाज आती रही वैसे भी श्रीनगर में सड़कों पर जगह-जगह मिलिट्री की पोस्टें बनी हुईं थीं जैसे कि युद्ध का मोर्चा लेने के लिए बनाई गईं हों.... शहर में कर्फ्यू जैसी स्थिति थी राहुल और पीयूष एक टैक्सी लेकर परिवार के साथ समय से पहले ही हवाई अड्डे निकल गए ...
रास्ते में एक जगह बहुत सारी मिलिट्री और पुलिस खड़ी थी लोगों की भीड़ भी जमा थी.... राहुल ने नीचे उतरकर जब देखा तो घटना देख कर उसके रोंगटे खड़े हो गए ....... दो पति पत्नी का गोलियों से छलनी शरीर बीच सड़क में पड़ा हुआ था... पटनीटॉप में जिस होटल में यह लोग ठहरे थे उसी में राहुल का परिवार भी रुका था यह बगल के रूम में ही तो ठहरे थे देखते ही राहुल के होश उड़ गए और तुरंत टैक्सी में वापस आ गया ड्राइवर से बोला तेजी से निकालो.......
         ....काफी समय उनको एयरपोर्ट पर फ्लाइट की प्रतीक्षा  करनी पड़ी!!
    अंततः हवाई जहाज ने इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर लैंड किया ...... सभी को लगा जैसे अपने स्वर्ग में लौट आयें हों ..!!
    राहुल ने चैन की सांस लेते हुए कहा  हमारा असली स्वर्ग तो वास्तव में कश्मीर नहीं ......यही है !!!
           
अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -------मुंडेर की धूप

     
    ... "बुढ़िया कब तक जियेगी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है... इसकी पेंशन और मकान का लालच न होता तो कब की निकाल कर बाहर कर देती" ! मधु की आवाज सुनकर सुहास के कानों में जैसे किसी ने पिघला शीशा उड़ेल दिया हो.......
वह सुबक उठी...!! . ऐसा अक्सर होता रहता था... ऐसा नहीं है कि मनोज को पता न हो
.......सुहास ने पूरा जीवन ही होम कर दिया था इन्हें बड़ा करने और पैरों पर खड़ा करने में...  उसने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसा दिन भी आएगा  । माता-पिता की दुर्घटना में मृत्यु के बाद अपने सपनों को तिलांजलि देकर पांच भाई बहनों की जिम्मेदारी स्वय ही संभाल ली थी ।
तीन भाई और दो बहन ..सबसे छोटा मनोज तो दो ही साल का था उस   समय ...... 
     ....सुहास  दूसरे नंबर की थी किराए का मकान....
          ********************
          शाम 7:00 बजे का समय दिया था उसने----- होटल मानसिंह में रुका था-बद्री
       अब मिलने का कोई औचित्य नजर नहीं आता... फिर भी वह क्या कहना चाहता है
 यह तो देखना ही था ।
         सूहास का रिटायरमेंट हुए 10 साल हो गए थे 70 साल की वृद्धा को आज युवती होने का एहसास हो रहा था । इसलिए बन  संवर के तैयार हो गई ।
     एक समय था दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे .... शादी का प्रस्ताव बद्री ने ही रखा ! सुहास ने साफ कह दिया यह संभव नहीं.. ‌‌ मेरे ऊपर बहुत जिम्मेदारी है!!
फिर बद्री को कनाडा में जॉब मिल गई......
    गाड़ी निकलवाई और 6:00 बजे ही होटल मानसिंह के कमरा नंबर 205 पर दस्तक दी..... सोचा था कोई स्त्री दरवाजा खोलेगी ! परंतु 75 साल के बद्री दत्त जोशी ने ही दरवाजा खोला उम्र कहां से कहां पहुंच गई थी परंतु चेहरे के हाव-भाव मुस्कुराहट वैसे के वैसे ही थे ....!!!
..."कनाडा से कब लौटे?"
"कल 12:00 बजे ही तो लौटा"
  'कैसे हो?..." तुम्हारी पत्नी कहां है?... 'बच्चे कितने हैं?"सुहास ने एक ही सांस में कई प्रश्न पूछ लिये
बाप रे एक साथ इतने प्रश्न????
..."मेरी छोड़ो अपनी सुनाओ" पति कहां है?".... बच्चे कितने हैं?"बंद्री ने पूछा... "         "कैसा परिवार और बच्चे ?" जब शादी ही नहीं की... सुहास के स्वर में गहरी उदासी थी..!!! मैं जैसे  पहले थी वैसे ही अब हूं...
    "अपनी सुनाओ"!
"मैंने भी नहीं की" शादी"!
.... क्यों?
"प्रस्ताव तो रखा था...!!
.... किस से करता ! तुम जो नहीं मिली !!
     "तुमने क्यों नहीं की शादी??"
......."पहले तो बड़ी दीदी की शादी नहीं हुई"....!! फिर....!. दीदी की  हो गई तो... तो....!!
.....सबकी जिम्मेदारियां पूरी करते-करते समय कब उड़ता चला गया... पता ही नहीं चला...!
फिर तुम जो नहीं थे !! कहते-कहते सुहास का स्वर भारी हो गया..!!
  ... अचानक वातावरण बोझिल हो गया दोनों एक दूसरे को गहराई से देखते ही रह गए.... न कोई गिला शिकवा ना कोई संवाद.. न कोई विवाद !
भावों और संवेदनाओं का ज्वार ऐसा उठा .... आंखों से .... आंसुओं का   ...सैलाब ! दोनों डूब कर एक दूजे में समां गये ...!!!!
                       
  अशोक विद्रोही
  82 188 25 541
  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी --------जंगल..पहाड़..टीट की देवी


  ..."पैर मन मन के भारी हो रहे हैं"! ...
."अब नहीं चला जाता!! ".. ..." दाज्यू! अब तो चाय होनी चाहिए!!" 10 साल के कन्नू ने कहा... तभी जगदीश ने थैले में से चाय बनाने के लिए स्टोव ,माचिस और सामान निकाला ...
      जंगल में अंधेरा घिर आया था ... घने..
बीहड़  में.. अद्भुत दृश्य था बड़ा रहस्यमय
पक्षी और जानवर अपने- अपने ठिकानों पर चले गए थे थोड़ी देर पहले बहुत कोलाहल था परंतु अब तो उस निर्जन वन में 4 प्राणी थे जो सुबह 10:00 बजे टीट की देवी पर प्रसाद चढ़ाने के लिए घर से निकले थे 20 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा !... पहाड़ पर कोई सड़क नहीं ... सिर्फ पगडंडी ऊपर से दुर्गम चढ़ाई......रास्ते में तरह-तरह की बाधाएं.... यद्यपि रास्ते में काफल ;हिसालु'; किल्मोड़ा के फलों से पेड़ लदे हुए थे और हम सभी उन फलों का रसास्वादन करते हुए चल रहे थे यात्रा बहुत सुंदर लग रही थी एक जगह बैठकर आम के अचार के साथ घर से लाए हुए पराठे खाए... झरने का शीतल जल पिया और आगे बढ़ गए फिर आया "जोंक वाला जंगल" जहां जमीन पर ,पेड़ों पर, पत्तियों पर,....सभी जगह जोंको से  भरी पड़ी थी शरीर पर चिपकी और खून चूसना शुरू जूतों के मौजों में घुस जाती और पता भी नहीं चलता साथ में नमक लेकर चल रहे थे दिलीप पंत के पैरों में जब जोर की चुभन महसूस हुई तो उसने जूता  ऊतारा देखा एक बहुत बड़ी जोंक  फूल कर मोटी हो गई थी- खून चूसते हुए ! बड़ी मुश्किल से उससे पीछा छुड़ाया नमक लगाकर मुझे भी कई जगह पर जोंक हमारे सभी के शरीर पर कई जगह खून चूस चुकी थीं.... मार्ग में आगे
    उसके बाद सीधी चढ़ाई की पगडंडी आई जरा सा पैर फिसला और हजारों फिट नीचे गहरी खाई में समा जाएंगे... परंतु फिर भी पहाड़ के सभी दृश्य बहुत खूबसूरत थे कभी-कभी साइड से दूर जंगल में हिरन और लकड़बग्घे  दिखाई दे जाते थे बहुत रोमांचक था....... "लो बन गई चाय!!!" जगदीश की आवाज पर मेरी तंद्रा भंग हुई...
.........सड़क के किनारे चाय की चुस्की लेते हुए जगदीश ने दिलीप पंत से कहा इतने बीहड़ बन में भी  "माई "अपनी भेड़ों के साथ अकेली ... "उस झोपड़ी में रहती है "!! "डर तो उसे बिल्कुल लगता ही नहीं" ! "वहां शेर भी आता है" ...."सब देवी की माया है" "शेर तो दुर्गा जी का वाहन है".... तभी अचानक पेड़ों के पीछे जोर की आहट हुई !!  फिर कन्नू के चीखने की आवाज आई....."दद्दा !जल्दीआओ" !! .... जल्दीआओ !!...आग!!!!!
.... हम तीनों डर गए तभी अंधेरे में तेज प्रकाश दिखाई दिया ....जलने की गंध भी बहुत तेज आ रही थी....!!!  हमने देखा कि वहां आग लगी है ...
     "आग कैसे लगी ?? ... स्टोव जलाने के बाद कन्नू माचिस ले गया था... बीड़ी की लत !!
"कन्नू ने बताया "मैंने जलती हुई तिल्ली पत्तों पर फेंक कर देखी थी "सोचा था  बुझा  दूंगा परंतु आग बड़ी तेजी से बढ़ती चली गई "दद्दा मुझे माफ कर दो अब ऐसा नहीं होगा".... जगदीश ने दो-चार झापड़ जड़ दिए..
      आग ने विकराल रूप धारण कर चुकी थी हम चारों ने मिलकर बुझाने का प्रयत्न किया मगर नहीं बुझा सके .....
      इन चीड़ के पेड़ों की छाल में तेल भी होता है इसलिए तेजी से आग बढ़ती चली गई!!
.... हम लोगों को ..."काटो तो ...
खून नहीं !."..ऐसी हालत हो गई वो तो अच्छा था कि रात के 7:00 बजे थे गहरा अंधेरा छा चुका था दूर-दूर तक निर्जन जंगल देवदार और चीड़ के बड़े-बड़े पेड़ छत्तर फैलाएं सीधे खड़े थे जड़ों में ढेरों पत्ते बिखरे हुए थे जिन पर शैतान कन्नू के बच्चे ने अपना यह दुर्लभ प्रयोग कर डाला ...एक तिल्ली माचिस की रगड़ी और फेंक दी ......... हम तीनों ने मिलकर बुझाने का बहुत प्रयास किया पानी भी नहीं था मिट्टी से ही कोशिश की ...परंतु आग काबू में नहीं आई ...अंत में हम ने निश्चय किया कि जल्दी जाएं..... टीट की देवी पर प्रसाद चढ़ाएं ... और सुबह अंधियारे में ही वापस घर लौट जाएं.... क्योंकि आग बढ़ती ही जा रही थी ..डर लग रहा था... पूरे जंगल को ही अपने आगोश में ना ले ले...
 ..... हम लोग पूरी तरह से थके हुए थे 15 किलोमीटर की यात्रा कर चुके थे... अभी 5 किलोमीटर की यात्रा और करनी थी... जल्दी-जल्दी दौड़ जैसी चाल में तेज चलने लगे ...अब जान बचाने की पड़ी थी एक तो आग का डर .. दूसरे जंगली जानवरों का.... तीसरे बुरी तरह थक चुके थे... हिम्मत जुटाकर ऐसे चलने लगे जैसे पैरों में स्प्रिंग लग गए हों ****
         सामने जो पर्वत की चोटी दिखाई दे रही थी वहीं पर टीट की देवी का मंदिर था और मंदिर भी क्या था पहाड़ की चोटी पर एक नुकीले पत्थर की नोक  पर रखी हुई एक विशालकाय पत्थर की चट्टान ......उसी के नीचे कुछ मूर्तियां रखीं थीं । उसी स्थान का नाम टीट की देवी था... आस्था का केंद्र!
        ... जल्दी जाकर हमने झरने के पानी में लोटे से जल्दी-जल्दी स्नान किया
इतनी ऊंची चोटी पर पानी की धार!... सब कुछ अद्भुत और अकल्पनीय था .... उस पर इतना ठंडा पानी !.. ... बाप रे  !  कंपकंपी छूट रही थी.. जैसे तैसे हम उसी समय मंदिर चले गए...  माता की स्तुति की ...आरती करके प्रसाद चढ़ा कर नीचे जहां माई रहती थी एक कमरा और था जिसे धर्मशाला का नाम दिया गया था उसी में  हम आ गए  ।
     कल क्या होगा?? वन विभाग के लोग आएंगे? मैं ,दिलीप पंत ,जगदीश पांडे और कन्नू 4 लोग थे जो इस अरण्य अग्निकांड के लिए जिम्मेदार थे ... हम लोग जब दर्शन करने के लिए घर से चले थे तो कन्नू की मां ने कहा "यह तो आपका सामान उठा कर ले जाएगा ...कृपया इसको भी साथ ले जाओ बहुत दिनों से कह रहा है देवी माता के दर्शन करने के लिए"! वैसे भी लोग कहते हैं तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा ...इस करके हमने कन्नू को साथ ले लिया था !
        टीट की देवी के पहाड़ की चोटी से नैनीताल की लाइटें साफ दिखाई देती थी नींद नहीं आ रही थी ....
     ...जंगल की आग बहुत दिन तक चलती रहती है अगर एक बार लग जाए तो  बहुत सारी वन संपदा का विनाश कर देती है कितने ही जानवरों के, परिंदों के घर नष्ट हो जाते हैं ....
....... भोर के4:00 बजे होंगे हम जल्दी उठे फिर उसी बर्फीले पानी में किसी तरह स्नान किया फिर माता के दर्शन किए और तुरंत चल दिए ..... अंधेरे में हम निकल जाएंगे तो कोई जान भी नहीं पाएगा कि कौन आया था ..तभी रास्ते में वन विभाग के कुछ ऑफिसर और सिपाही वनरक्षक आते हुए हमें मिले और हमसे  पूछताछ करने लगे .... जंगल में आग कैसे लगी?? ...." आपको कुछ पता है कि कौन आया ?? कौन दुश्मन आया यहां पर ??  ...हमने साफ   झूठ बोल दिया" हमें कुछ पता नहीं!! हम तो  यहां देवी के स्थान पर 2 दिन से आए हुए थे ""!
      ....खैर वह संतुष्ट ना होते हुए भी आगे चले गए और हम उस रास्ते की पगडंडी पर तेजी से घर की ओर बढ़ चले दिल धक-धक कर रहा था उनसे बचने के बाद जान में जान आई...... परंतु ये क्या ???  ठीक जहां पर ...जंगल में आग लगी हुई थी उसी जगह पर ...एक बड़ा सा चीता बीच रास्ते में  बैठा हुआ था .... हम वहीं ठिठक कर खड़े हो गए हाथ जोड़ कर टीट की देवी माता को सच्चे मन से याद किया हे! मां दया करो तभी चमत्कार हुआ ! चीता रास्ते से चला गया !... घनघोर घटाएं... घिर आईं ... बारिश का मौसम होने लगा  हम लगभग दौड़ने से लगे ... और थोड़ी ही देर में मूसलाधार बारिश होने लगी .... हम रोमांचित और भावविभोर हो रहे थे हे ! मां !! तूने हमारी  सुन ली ...अब आग बुझ जाएगी !... जंगल बच जाएगा !! जीव जंतु बच जाएंगे !!! हम चारों को भीग रहे थे और जोर जोर से गा रहे थे ......
  "अम्बे ! तू है जगदंबे काली !! जय दुर्गे खप्पर वाली तेरे ही गुण गाएं ......!!!!!
     ‌    ‌ ..... आज भी जब याद आती है तो  रोंगटे खड़े हो जाते हैं ...ऐसी आग भी कभी नहीं देखी ..... और चमत्कार भी....

  अशोक विद्रोही
  82 12825 541
  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---- भूत


   .... चलते चलते पांव तक गये थे परंतु जंगल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था उबड़ खाबड़ जिम कॉर्बेट पार्क का पहाड़ी रास्ता हमारे दोनों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे ....रात के 11:00 बज चुके थे दूर-दूर तक फैले जंगल में हम टॉर्च की रोशनी में तीन लोग चलते चले जा रहे थे ...प्यास से गला सूख रहा था... पानी का नामोनिशान नहीं... दूर-दूर तक ऊंचे ऊंचे साल के वृक्ष ...कुछ दूर चलने पर पेड़ों के नीचे पड़े पत्तों में आग लगी हुई नजर आई ....हे  भगवान ! अब क्या होगा !!  कहां जाएं !!! 
       जैसे-तैसे  रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े रात का स्याह अंधेरा और भी गहरा हो गया था दिलीप ,जगदीश और मैं..
       हम पांडेगांव से सीताबनी के लिए सुबह 10:00 बजे निकले थे ....सीताबनी !! वही स्थान जहां सीता जी धरती में समा गई थीं ...परंतु लगातार चलने के बाद भी दूर-दूर तक सीताबनी का कहीं पता नहीं था जबकि हमें बताया गया था कि हम शाम 5:00 बजे तक सीताबनी पहुंच जाएंगे.. हम रास्ता भटक गए थे .!!...साथ में खाने पीने का सामान  था।  टॉर्च   !! और चाय व खिचड़ी बनाने का सामान..... लगातार जलाने से टॉर्च भी धीमी पड़ने लगी थी ....हर प्रकार की आशा निराशा में बदलने लगी थी ...धीरे-धीरे जानवरों की आवाजें आने लगी और घने जंगल में पेड़ भी ऐसे नहीं थे जिन पर चढ़ा जा सके सीधे खड़े रहने वाले साल के वृक्ष .... कुछ आगे बढ़े तो पत्थर आने लगे तभी अचानक जगदीश की चीख निकल गई ...ओ..!!!!!!...ओह...!!....  जगदीश आगे चल रहा था हमें लगा शायद सांप ने डस लिया !!
 मैंने पूछा क्या हुआ??... जगदीश ने चीखते हुए कहा... पानी.. !पानी..!!
    ... हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था मानो.. कोलंबस को धरती मिल गई हो !!
               आगे और भी बड़े-बड़े पत्थर आ गए जिनके  बीच से स्वच्छ मीठे जल की नदी बह रही थी.. हम लोग थक तो चुके ही थे और प्यासे भी थे... जी भर के हम तीनों ने पानी पिया और निश्चय किया कि आज रात यहीं रुकेंगे सुबह होने पर रास्ते की खोज करेंगे ।
      विशाल पत्थरों पर हमने अपने अपने बैग अलग-अलग रखें मानो यही हमारी सैया हों .. लकड़ियां बीन कर आग जलाई..
चाय बनाई और चुस्कियां लेने लगे.. पानी बहुत ठंडा था... पैर पानी में रखे तो ।।थकान मिट गई ...इकट्ठा की गई लकड़ियां खत्म हो गई तो और लकड़ी इकट्ठे करने चले पर !! ये क्या जगह-जगह वहां मानव खोपड़ियां .. कंकाल हड्डियां बिखरी पड़ीं थीं .... डर भी लग रहा था... तभी एक लालटेन इसीओर आती दिखाई पड़ी .. परंतु ये क्या ? जैसे ही हमने कहां सुनो भाई ! लालटेन वाला व्यक्ति बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ पहाड़ी पर भागता हुआ चला गया ....
    लगातार आग जलाते हुए और जागते हुए हमने वह रात गुज़ारी तरह-तरह के जानवरों की आवाजें आ रही थीं कई जानवर हिरनों के झुंड और हाथी ! पानी पीने आते और पानी पीकर लौट जाते रात्रि के अंतिम पहर में पंछियों की आवाजें भी आने लगीं ! सब कुछ बड़ा विचित्र था अद्भुत!!!
  .........जंगल बहुत रहस्यमय दिखाई पड़ रहा था
      सुबह होते ही एक व्यक्ति नदी में पानी भरने आया परंतु जैसे ही हमने कहा "सुनो भाई !"वह घड़ा फेंक कर भागने को हुआ ... दिलीप ने कड़क आवाज में कहा" खबरदार! भागना मत! "वह  बोला "कौन हो आप लोग "? यहां क्या कर रहे हो"?
      हमने कहा "हमें सीताबनी का रास्ता पूछना है"! तब उस व्यक्ति ने बताया "सीताबनी यहां से 10 किलोमीटर दूर है" हम सन्न रह गए!!!
        अब हमने मेन सड़क पर आकर बस पकड़ी और सीताबनी देवी के दर्शन कर घर वापस लौट गए बस में लोग ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहे थे "रात पाठ कोट के गधेरे पर
श्मशान में तीन-तीन भूत थे" मंगल ने स्वयं अपनी आंखों से देखा !"
             वास्तव में वह जगह जहां हमने रात गुजारी शमशान घाट था... पाठ कोट के गधेरे का शमशान !!
      लोगों की बात सुनकर हम तीनों ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे... लोग हमें मूर्ख बता रहे थे !!..."इन लोगों को सच्ची घटना पर भी विश्वास नहीं!!! मूर्ख हैं जिस दिन भूतों से पाला पड़ेगा तब जानेंगे ! ".....
   ‌                 
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

शनिवार, 18 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघु कथा----------- भूमिका

               
      ......... बचाओ! बचाओ! बचाओ! मम्मी !! जल्दी आओ!!.. भैया गिर रहा है भैया गिर गया !!!
     काफ़ी देर से आवाज आ रही थी ....तभी कॉलोनी के गेट से भागता हुआ बांच मेन आया ... समझ नहीं आ रहा था आवाज कहां से आ रही है... सहसा दो मंजिले की छत से लटकता हुआ एक बच्चा दिखाई दिया... उसके ऊपर उसकी वांह पकड़े हुए एक बच्ची दिखाई दी ..... जो लगातार चीख रही थी बच्चे को पकड़े हुए बच्ची खुद लटक चुकी थी उसका हाथ पकड़े- पकड़े बच्ची का हाथ थक गया था हाथ से बच्चा अब छूटने ही वाला था... बस कुछ ही पलों में दोनों बच्चे नीचे गिर पड़ेंगे....
       वाचमेन ने लपक कर सीढ़ी लगाई और दोनों बच्चों जो कि भाई बहन थे .... चढ़ कर संभाल लिया...हे भगवान तूने अनर्थ होने से बचा लिया तभी बच्चों की मम्मी अनीता  जो कि बाथ रूम में थी भी दौड़ कर पहुंच गई....!!
     ,, भूमिका!,, बेटी तूने आज बचा लिया !!हे प्रभू ! तेरी माया वरना चार साल की बच्ची की औकात ही क्या ?  इतनी ताकत कहां !"
सब उसी का प्रताप है ।
      भूमिका ने अपने भाई अंकुर को बचा लिया था !!
   आज उस घटना को 35 साल हो गए दोनों बच्चे बड़े होकर डॉक्टर बन चुके हैं दोनों के बच्चे हैं..... परंतु जीवन में कुछ घटनाएं पत्थर की लकीर की तरह छप जाती हैं
आज भी उस घटना को सोच कर ही अनीता का मन कांप जाता है ... ज़रा सी बच्ची ने कितना साहस दिखाया इसलिए अनीता आज भी उसकी हिम्मत को दाद देती है .....
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 अशोक विद्रोही
 82 18825 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

बुधवार, 15 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा----- मृतक आश्रित

   धीरे-धीरे यह खबर पूरे गांव में आग की तरह फैल गई और देखते ही देखते सैकड़ों लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई हो गई.... हरिओम के पिता को रात को बैठक पर बाहर सोते हुए किसी ने गोली मार  दी !   
     ....शोर मच गया मास्टर को गोली मारी ! पुलिस  भी आ गई हरिओम ने कहा" हमारी तो किसी से दुश्मनी भी  नहीं  है !!"
  पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार भी हो गया गांव में तरह-तरह की बातें हो रही थी....
  ....... ,,अरे हरिओम ने खुद अपने पिता को गोली मारी,,...,,बस अब सरकारी नौकरी मिल जाएगी ‌,,  पुलिस जांच उसके चाचा ने दरोगा होने के कारण.. सब जुगाड़ करवा दिया....
       कुछ दिन बाद ही तो रिटायरमेंट था एक महीना मात्र... 6 महीने भी नहीं बीते... धूमधाम से शादी हो गई... आजकल पिता के स्थान पर नौकरी पर जा रहा है .

अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद