शनिवार, 18 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघु कथा----------- भूमिका

               
      ......... बचाओ! बचाओ! बचाओ! मम्मी !! जल्दी आओ!!.. भैया गिर रहा है भैया गिर गया !!!
     काफ़ी देर से आवाज आ रही थी ....तभी कॉलोनी के गेट से भागता हुआ बांच मेन आया ... समझ नहीं आ रहा था आवाज कहां से आ रही है... सहसा दो मंजिले की छत से लटकता हुआ एक बच्चा दिखाई दिया... उसके ऊपर उसकी वांह पकड़े हुए एक बच्ची दिखाई दी ..... जो लगातार चीख रही थी बच्चे को पकड़े हुए बच्ची खुद लटक चुकी थी उसका हाथ पकड़े- पकड़े बच्ची का हाथ थक गया था हाथ से बच्चा अब छूटने ही वाला था... बस कुछ ही पलों में दोनों बच्चे नीचे गिर पड़ेंगे....
       वाचमेन ने लपक कर सीढ़ी लगाई और दोनों बच्चों जो कि भाई बहन थे .... चढ़ कर संभाल लिया...हे भगवान तूने अनर्थ होने से बचा लिया तभी बच्चों की मम्मी अनीता  जो कि बाथ रूम में थी भी दौड़ कर पहुंच गई....!!
     ,, भूमिका!,, बेटी तूने आज बचा लिया !!हे प्रभू ! तेरी माया वरना चार साल की बच्ची की औकात ही क्या ?  इतनी ताकत कहां !"
सब उसी का प्रताप है ।
      भूमिका ने अपने भाई अंकुर को बचा लिया था !!
   आज उस घटना को 35 साल हो गए दोनों बच्चे बड़े होकर डॉक्टर बन चुके हैं दोनों के बच्चे हैं..... परंतु जीवन में कुछ घटनाएं पत्थर की लकीर की तरह छप जाती हैं
आज भी उस घटना को सोच कर ही अनीता का मन कांप जाता है ... ज़रा सी बच्ची ने कितना साहस दिखाया इसलिए अनीता आज भी उसकी हिम्मत को दाद देती है .....
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 अशोक विद्रोही
 82 18825 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

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