गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' को राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति द्वारा किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, की ओर से हिंदी दिवस 14 सितंबर 2020 को आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में  साहित्यकार अशोक 'विद्रोही' को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप श्री विद्रोही को मान-पत्र, अंग वस्त्र, सम्मान राशि एवं श्रीफल भेंट किए गए। 

अध्यक्षता  के पी सरल ने की तथा मुख्य अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय  रहीं। माँ शारदे की वंदना डॉ प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत की गई । संचालन राम सिंह निशंक ने किया।

    इस अवसर पर हिंदी दिवस को समर्पित एक संक्षिप्त काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया । गोष्ठी में सम्मानित साहित्यकार अशोक विद्रोही ने हिंदी की महिमा का गुणगान करते हुए कहा-

अपने ही घर में कोई ,पाए ना सम्मान

यो हिंदी का हो रहा ,राज्यों में अपमान।

राज्यों में अपमान ,सुनो नेता गण प्यारे

हिंदी को अनिवार्य करो ,राज्यों में सारे।।

,विद्रोही, फिर पूरे कैसे होंगे सपने

परदेसी सी हिंदी घर में होगी अपने।।


हिंदी देती रोज ही, नए-नए उपहार

कविता में अभिव्यक्त हों ,नित्य हृदय उदगार।

नित्य ह्रदय उदगार ,कवि दुनिया में जाते,

व्यंग, छंद और गीत ,सभी हिंदी में गाते।।

"विद्रोही ,,मां का गौरव ,ज्यों होती बिंदी

भारत की पहचान और गौरव है हिंदी।।


हिंदी के हों दोहरे ,छद, बंध, श्रृंगार,

चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार।

रस की पड़े फुहार ,भाव के घन उमड़े हों,

हिंदी अपनाओ !बंद सारे झगड़े हों ।।

,विद्रोही ,मां के माथे ज्यों सजती बिन्दी,

भारत माता के  माथे, यूं सजती हिंदी।।


डॉ प्रेमवती उपाध्याय  ने कहा-

जन्म से प्राणों में रमती 

हिंदी उसका नाम है

 सृष्टा का उद्घोष करती 

हिंदी उसका नाम है

देश का अभिमान है

यह और गौरव गान है

यमक रूपक में बिहंसती

हिंदी उसका नाम है!


केपी सरल जी ने कोरोना पर कहा-

अश्वमेध का अश्व विश्व में,  निर्भय होकर घूम रहा है

सीमाओं का बंधन तोड़े ,

चरागाह को ढूंढ रहा है

 

युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा ---

माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।

इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।

जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।


प्रशांत मिश्र ने कहा-

सूरज ने बदली से कहा

इतना क्यों बरसती हो।।


जे .पी. विश्नोई ने कहा-

यह साल कुछ ऐसा भी

न अचारों की सुगंध 

न बर्फ की चुस्की 

न गन्ने का रस 

न मटके की कुल्फी

  

काव्य गोष्ठी में  संजय विश्नोई ,शुभम कश्यप,  प्रवीण राही, अनिता विश्नोई, नेपाल सिंह पाल, मनोज मनु, विवेक निर्मल, रघुराज सिंह निश्चल, रामसिंह निशंक, जेपी विश्नोई, रामेश्वर वशिष्ठ, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई आदि ने  भी रचना पाठ किया।श्री राम सिंह निशंक द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।











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