गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ----न्याय

   
... ... कैदियों की गाड़ी कचहरी में आकर रुकी। पुलिस वालों ने खींच कर हरपाल सिंह को बाहर निकाला और जज के सम्मुख पेश किया ..... जज साहब ने कहा, आप पर आरोप है कि आपने दरोगा जी की रिवाल्वर छीनी और उन पर हमला किया । क्या आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है!
      .... .. मंगलू की नई-नई शादी हुई थी बहू को विदा करा के लाने की खबर दरोगा के कान में पड़ी ....... कमला सुंदर तो थी  परन्तु गरीबी में सुंदरता भी अभिशाप बन गई ......। वह भी एक मजदूर थी। काम पर आते जाते दरोगा की बुरी नजर उस पर पहले से ही थी ... बस फिर क्या था एक कांस्टेबल को भेजकर मंगलू को थाने में बुलाया। मंगलू दलित जाति से था ..... दरोगा जानता था यह बेबस लाचार मेरा क्या कर लेगा।  फरमान सुना दिया ... "मैं शाम को तुम्हारे घर आऊंगा समझ लो अच्छी तरह से ....! वर्ना किसी केस में रख दूंगा ... जेल में सड़ते रहोगे ...!"
    बिरादरी में शाम को कानाफूसी होने लगी - दरोगा आने वाला है। हरपाल सिंह को जल्दी से  खबर करनी होगी! .. एक  वह ही है जो इस संकट से हमें बचा सकता है। उसके रग रग में अन्याय से लड़ने के लिए विद्रोह भरा था। हरपाल सिंह को जैसे ही खबर मिली तो उसने बिरादरी के लोगों को बुलाया और कहा "डूब मरो सब चुल्लू भर पानी में !! .... आज इसके साथ हो रहा है कल को तुम्हारे साथ होगा .. !! .. क्यों नहीं करते विरोध!" "..... लेकिन धीरे-धीरे सब के सब खिसक लिये ....  रात को जैसे ही दरोगा बलवान सिंह घर में घुसा ..... हरपाल सिंह उस पर टूट पड़ा .... लाठी से दरोगा का हुलिया ... बिगाड़ दिया .... फिर रिवाल्वर  छीन कर भाग गया ......
 ऑर्डर ! ऑर्डर !! सुनकर हरपाल सिंह की तंद्रा भंग हुई! "कुछ कहना है सफाई में! कोई गवाह है तुम्हारे पास  !!" ......! ! ! दूर दूर तक कोई नहीं ...
      .... और जज साहब ने निर्णय सुना दिया ... आरोपी हरपाल सिंह को जनता के रक्षक और कानून के रखवाले दरोगा बलवान सिंह पर हमला करने का दोषी पाया जाता है और उसे दस साल की कड़ी सजा सुनाई जाती है।

 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद
82 188 25 541




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