बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---- भूत


   .... चलते चलते पांव तक गये थे परंतु जंगल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था उबड़ खाबड़ जिम कॉर्बेट पार्क का पहाड़ी रास्ता हमारे दोनों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे ....रात के 11:00 बज चुके थे दूर-दूर तक फैले जंगल में हम टॉर्च की रोशनी में तीन लोग चलते चले जा रहे थे ...प्यास से गला सूख रहा था... पानी का नामोनिशान नहीं... दूर-दूर तक ऊंचे ऊंचे साल के वृक्ष ...कुछ दूर चलने पर पेड़ों के नीचे पड़े पत्तों में आग लगी हुई नजर आई ....हे  भगवान ! अब क्या होगा !!  कहां जाएं !!! 
       जैसे-तैसे  रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े रात का स्याह अंधेरा और भी गहरा हो गया था दिलीप ,जगदीश और मैं..
       हम पांडेगांव से सीताबनी के लिए सुबह 10:00 बजे निकले थे ....सीताबनी !! वही स्थान जहां सीता जी धरती में समा गई थीं ...परंतु लगातार चलने के बाद भी दूर-दूर तक सीताबनी का कहीं पता नहीं था जबकि हमें बताया गया था कि हम शाम 5:00 बजे तक सीताबनी पहुंच जाएंगे.. हम रास्ता भटक गए थे .!!...साथ में खाने पीने का सामान  था।  टॉर्च   !! और चाय व खिचड़ी बनाने का सामान..... लगातार जलाने से टॉर्च भी धीमी पड़ने लगी थी ....हर प्रकार की आशा निराशा में बदलने लगी थी ...धीरे-धीरे जानवरों की आवाजें आने लगी और घने जंगल में पेड़ भी ऐसे नहीं थे जिन पर चढ़ा जा सके सीधे खड़े रहने वाले साल के वृक्ष .... कुछ आगे बढ़े तो पत्थर आने लगे तभी अचानक जगदीश की चीख निकल गई ...ओ..!!!!!!...ओह...!!....  जगदीश आगे चल रहा था हमें लगा शायद सांप ने डस लिया !!
 मैंने पूछा क्या हुआ??... जगदीश ने चीखते हुए कहा... पानी.. !पानी..!!
    ... हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था मानो.. कोलंबस को धरती मिल गई हो !!
               आगे और भी बड़े-बड़े पत्थर आ गए जिनके  बीच से स्वच्छ मीठे जल की नदी बह रही थी.. हम लोग थक तो चुके ही थे और प्यासे भी थे... जी भर के हम तीनों ने पानी पिया और निश्चय किया कि आज रात यहीं रुकेंगे सुबह होने पर रास्ते की खोज करेंगे ।
      विशाल पत्थरों पर हमने अपने अपने बैग अलग-अलग रखें मानो यही हमारी सैया हों .. लकड़ियां बीन कर आग जलाई..
चाय बनाई और चुस्कियां लेने लगे.. पानी बहुत ठंडा था... पैर पानी में रखे तो ।।थकान मिट गई ...इकट्ठा की गई लकड़ियां खत्म हो गई तो और लकड़ी इकट्ठे करने चले पर !! ये क्या जगह-जगह वहां मानव खोपड़ियां .. कंकाल हड्डियां बिखरी पड़ीं थीं .... डर भी लग रहा था... तभी एक लालटेन इसीओर आती दिखाई पड़ी .. परंतु ये क्या ? जैसे ही हमने कहां सुनो भाई ! लालटेन वाला व्यक्ति बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ पहाड़ी पर भागता हुआ चला गया ....
    लगातार आग जलाते हुए और जागते हुए हमने वह रात गुज़ारी तरह-तरह के जानवरों की आवाजें आ रही थीं कई जानवर हिरनों के झुंड और हाथी ! पानी पीने आते और पानी पीकर लौट जाते रात्रि के अंतिम पहर में पंछियों की आवाजें भी आने लगीं ! सब कुछ बड़ा विचित्र था अद्भुत!!!
  .........जंगल बहुत रहस्यमय दिखाई पड़ रहा था
      सुबह होते ही एक व्यक्ति नदी में पानी भरने आया परंतु जैसे ही हमने कहा "सुनो भाई !"वह घड़ा फेंक कर भागने को हुआ ... दिलीप ने कड़क आवाज में कहा" खबरदार! भागना मत! "वह  बोला "कौन हो आप लोग "? यहां क्या कर रहे हो"?
      हमने कहा "हमें सीताबनी का रास्ता पूछना है"! तब उस व्यक्ति ने बताया "सीताबनी यहां से 10 किलोमीटर दूर है" हम सन्न रह गए!!!
        अब हमने मेन सड़क पर आकर बस पकड़ी और सीताबनी देवी के दर्शन कर घर वापस लौट गए बस में लोग ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहे थे "रात पाठ कोट के गधेरे पर
श्मशान में तीन-तीन भूत थे" मंगल ने स्वयं अपनी आंखों से देखा !"
             वास्तव में वह जगह जहां हमने रात गुजारी शमशान घाट था... पाठ कोट के गधेरे का शमशान !!
      लोगों की बात सुनकर हम तीनों ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे... लोग हमें मूर्ख बता रहे थे !!..."इन लोगों को सच्ची घटना पर भी विश्वास नहीं!!! मूर्ख हैं जिस दिन भूतों से पाला पड़ेगा तब जानेंगे ! ".....
   ‌                 
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

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