शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा --वचनौषधि

 


छोटे से अस्पताल के उस डाक्टर की कोई खास पहचान नहीं थी पर मरीजों के इलाज करने का उसका अनोखा अन्दाज मेरे दिल को छू गया ।ससुर की तबीयत जब काफी बिगड़ने लगी तो मैं अपने मोहल्ले के अस्पताल में दिखाने ले गई ।डर भी था कुछ पर जो भी जाँच की गई उसे डॉक्टर साहब ने सामान्य ही बताया ।ससुर जी को खाँसी थी ।मैं उन्हें खाँसने को मना कर रही थी तो डॉक्टर साहब ने मुझे रोका ।वे बोले घबराने की जरूरत नहीं आप सही जगह हैं ।ससुर जी को एक सप्ताह के लिये एडमिट कर लिया गया ।कम अनुभव और मन्द स्मित वाले उस डॉक्टर की सकारात्मक बातें और मशखरी ससुर जी को नवीन ऊर्जा से भर देती।दूसरे बड़े अस्पतालों में जो लाभ बीस दिन में न मिला उससे अधिक दो दिन में मिला ।प्रत्येक मरीज से यही कहते थे ,बहुत सुधार है अब बस कल तुम्हें घर भेज देंगें ।छठे दिन ससुर जी घर ले चलने की जिद करने लगे ।घर पर सब यही कहते थे कि बडे़ अस्पतालों ने मना कर दिया और दवाई लगी तो मोहल्ले के डॉक्टर की ।उधर ससुर जी अखबार में नजर गड़ाए बुदबुदा रहे थे ,....."अरे वचनौषधि लग गई ,दवाई किसने खाई " ।मैं मन ही मन उनका समर्थन कर रही थी ।  

✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद

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