गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा-----वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्


कितना सुन्दर होगा तुम्हारा साथ प्रियतम !हम बहुत दूर चले जायेंगे ।

कहीं भी,जहाँ हमारे प्रेम को किसी की नजर न लगे ।विवाह के एक दिन पूर्व मेहंदी से रंगी हथेलियों वाली उर्मि अपने मनभावन लड़के के साथ घर से भागने की योजना बना रही थी । घर वाले उसके पसंद के लड़के से विवाह के विरुद्ध थे ।यौवनावस्था और धनसम्पन्नता ,उस पर अप्रतिम सौन्दर्य !तीनों एक साथ ।बुद्धि का नाश  तो स्वाभाविक था । प्रेमी की योजना के अनुसार कुछ रुपये पैसे के साथ उसको चुपचाप निकलना था । विवाह के घर में व्यस्तताओं में उलझे ,उसका मोबाइल अचानक कहाँ गया ?किससे पूछे ?अब वह उसे कैसे सूचना देगी ? अरे !डायरी में भी लिखा है उसका मोबाइल नंबर कहीं।पहला पन्ना पलटा ,फिर दूसरा ,और फिर क्रम से.......कई.....।अरे ....मिल गया ..लेकिन.... ऊपर ... सबसे ऊपर..लिखा था.." वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्।....अक्षीणो वित्ततः,क्षीणो वृतस्तु हतो हतः ।

कक्षाओं में शिक्षकों ने यही तो कहा था,फिर क्यों ?उर्मि काँप उठी। मानो कोई दुस्वप्न देखा हो ।उस आदर्श वाक्य को बार-बार पढा़ और पढा़ ....फिर उसके मन से वह कुत्सित योजना ओझल होती गई सदा के लिए।एक आदर्श वाक्य की शक्ति थी यह ....कि एक चरित्र की रक्षा हुई।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

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