गुरुवार, 26 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---काफिर ही सही


रुखसार ने फोन कॉल रिसीव की तो एक जानी पहचानी आवाज एक लम्बे अरसे बाद सुनकर उसकी हृदय गति तेज हो गई ........। अब्दुल गफ्फार! जी ...आज ...अचानक.. "रुखसार सिसकते हुए कहने लगी" ।

    हाँ मैं ....हाँ मैं ,तुम्हारा अब्दुल जो कभी तुम्हें और इस वतन की मिट्टी को मनहूस कहकर  हमेशा के लिए छोड़ गया था आज मुझे मेरी करनी का फल मिल गया है । मेरी दूसरी पत्नी व तीन बच्चे तालिबान सैनिकों ने बंधक बना लिए हैं ।सारी सम्पत्ति जब्त कर ली है । किसी तरह जान बचाकर तुम्हें फोन किया है ,बस तुम ही कुछ कर सकती हो .... कहते कहते फफक पडा़ वह । 

      यह क्या अब्दुल ने नौ साल बाद फोन किया ...वह भी अपने स्वार्थ के लिए । हाय किस्मत , मैं तो कुछ और समझ बैठी... पर हाँ कुछ तो करना होगा मुझे तुम्हारे लिए ...तुम्हारे बच्चों के लिए।तुमने सही कहा था कभी कि काफिर हूँ मैं ..तो काफिर ही सही । 

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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