गुरुवार, 2 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----जोंक

"अब तो हमीं नजर आयेंगे इनको बिटवा ......।एक समय जब हमरी कौनू औकात  ना थी इनकी नजर में , सब तरफ  जोंकें ही चिपकी रहतीं थी ....अब शरीर में चूसने को कुछ बचा ही नही तो जोंकें भी नहीं दिखतीं .....।  एक हाथ में पानी का गिलास  पकडे और दूसरे  से पंखा झलती हुई अम्मा अन्योक्ति में कहे जा रहीं थीं ...।।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश ,भारत

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