शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---सिसकती सड़क


आज पहली बार अवसर मिला था  अवनि को अपने मंगेतर के साथ घूमने फिरने का।दो महीने शेष हैं शादी में । अमनदीप  आधुनिक विचारों का अठ्ठाईस वर्ष का युवक जो अवनि को अपने कल्पना लोक में लेकर विचरण करता है ।आज अवनि उसके आग्रह को टाल न सकी ।मन के किसी कोने में दबी हुई उसकी भी इच्छा साकार रूप लेने लगी । वह न जाने क्यों आज इतनी ढीठ हो रही थी ।मां और पिता जी को भी उसने समझा दिया कि वह एक घंटे में वापस आयगी । बाइक पर प्रेमिका के साथ लम्बी ड्राइव पर जाने का सपना आज साकार होता देख अमनदीप खुशी से पागल था । दो प्रेमी ,इतनी नजदीकी में बाबले हो गये ।तेज रफ्तार में उनके दिलों की धडकने तेज हो उठीं।कहाँ जाना है ,इसका  विस्मरण ही हो गया । अचानक अमनदीप को तेज झटका लगा ।अवनि की बाहों का पाश अचानक ढीला हो गया ।सन्ध्या के धुंधले कुहरे में अवनि चीख पड़ी ।बाइक फिसल कर सड़क के किनारे पर चली गई ।अमनदीप के माथे से लहु वह निकला ।अवनि की रुह काँप उठी ।मेरे मनभावन, यह कहकर वह रोती हुई अमनदीप से लिपट गई ।

दुपट्टे को माथे पर बाँधकर उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया।

किसी तरह घर पर फोन लगाया और मां को सब बात बताई ।भाई और पिता गाड़ी लेकर पहुंच गये ।अस्पताल में अमनदीप के सिरहाने बैठी अवनि मन ही मन अपनी अनुशासन हीनता और नासमझी के लिये स्वयं को दोषी मानने लगी । काश!कि उसने अमनदीप को समझाया होता। ईश्वर आपको धन्यवाद।आपने मेरी लाज बचा ली । अपनी सिसकियों के बीच आज अवनि। सड़कों की मनहूसियत में मनुष्यों के कृत्यों का विश्लेषण करने लगी ।सिसकती  सड़क ,मानो अभी भी उससे क्षमा याचना कर रही थी ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद

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