सुनिधि हमेशा अपनी कक्षा के बच्चों को बहुत प्यार करती थी तथा बडे़ मनोयोग से पढा़ती थी। बच्चों के अभिभावक हमेशा उसकी प्रशंसा करते थे। उसका दुर्भाग्य था कि हिंदी और इतिहास विषय से प्रथम श्रेणी की स्नातकोत्तर होने और बीएड होने के बाबजूद वह एक निजी पब्लिक स्कूल में अल्प वेतन भोगी अध्यापिका थी।
सुनिधि को आज उसकी सेवा समाप्ति के लिए नोटिस मिला था। इसका उत्तर एक सप्ताह में उसे प्रधानाचार्या को देने के लिए निर्देशित किया गया था । वह हतप्रभ थी कि एकदम से उसके विरुद्ध इतना सख्त निर्णय कैसे लिया जा सकता है? उसने जो काम किया था उसका वह परिणाम भुगतने को तैयार थी। अधिक से अधिक उससे क्लास छीनी जा सकती थी लेकिन उसकी सेवा समाप्त हो जायेगी यह तो उसके दिमाग में कभी आया ही नहीं था।
सुनिधि की कक्षा में एक छात्रा पलक थी जो पढ़ने-लिखने में बहुत तेज थी। उसकी माँ का जबसे 'कोरोना' से अचानक निधन हुआ वह बहुत शांत हो चली थी। सुनिधि उसको बहुत प्यार से समझाती और पढा़ई लिखाई में मन लगाने पर जोर देती । उसका काम पूरा नहीं हो पाता तब वह किसी न किसी तरह पलक का काम पूरा कराती रहती थी। पेरेन्टस डे में पहले माँ आया करती थी अब उसके पापा कभी आ जाते तो हाथ बांधे खडे़ सुनते रहते थे। माँ की मृत्यु के बाद पलक को सब काम अपने आप ही करना पड़ता था। पिता का पर्याप्त समय न दे पाना उनकी भी मजबूरी थी।
पलक की हिंदी की परीक्षा में उसे अपने "सर्वप्रिय व्यक्ति" पर निबंध लिखना था। उसने पहली लाइन लिखी-
"मेरी भी एक माँ थी जो दुनिया भर में मुझे सबसे प्यारी थी... "
उसकी आंखों से आंसुओं की झडी लग गई। आंसू टप-टप उस की कापी में गिरते गए। उसने जो कुछ लिखा था और जो वह आगे लिखने का प्रयास कर रही थी वह सब आंसूओं से गीला होकर खराब होता जा रहा था। उससे लिखा नहीं जा रहा था। जैसे तैसे उसने अपनी परीक्षा दी। पलक की कापी जब सुनिधि के पास जांचने को आई तो वह पलक की कापी देख कर विचलित हो उठी। कापी में सुनिधि पलक की मनोदशा को अच्छे से पड पा रही थी। 'मां' के विषय में कापी पर कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा होने पर सुनिधि ने जैसे मानो पूरा निबंध पढ़ लिया था। आखिर उसे पलक से विशेष लगाव था। उसकी आंखें नम हो चलीं थीं। उसने पलक को 10 में 10 नम्बर देकर कापी बंद कर दी।
यही एक दुस्साहस उसने किया था। यह उसका खाली पीरियड था। काफी परेशान सी क्लास में अकेली सुनिधि अपनी ऊंगलियां चटखाती। कभी अपने बालों पर हाथ फेरती। कभी उठ कर इधर-उधर चहल कदमी करती। उसे निर्णय करने में अधिक समय नहीं लगा। एक झटके से अपने पर्स से कागज और पेन निकाला और अपना त्यागपत्र लिख कर चपरासी के द्वारा प्रिंसपल को भेज कर वह सीधे अपने घर चली आई।
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '
श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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