रोजी मैडम प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी नई कोठी में आराम से जीवन ब्यतीत कर रहीं थीं। समय काटने के लिए उन्होंने बी०एस०सी०/एम०एस०सी० के छात्र- छात्राओं को 'फिजिक्स' विषय की कोचिंग पढ़ाना शुरु कर दिया था। उनके पास अनेक छात्र और छात्राएं पढ़ने आतीं थीं । उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी।
उन्हें वैसे तो सभी छात्र-छात्राओं से बहुत लगाव था परन्तु सचिन को वह बहुत अधिक पसंद करतीं थीं। सचिन की मेहनत-लगन और व्यवहार से वह बहुत प्रभावित थीं। दिनों-दिन सचिन के प्रति उनका लगाव बडता गया। सचिन ने प्रथम श्रेणी में बी०एस०सी० पास किया था। उसे एम०एस०सी० में यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ था। अब तो उन्होंने ठान लिया था कि सचिन के नाम के आगे 'डाक्टर' लगवाना है।
रोजी मैडम अपनी कोठी में अकेली रहतीं थीं। वह अभी तक अविवाहित थीं। यद्यपि उनके पास घर के काम के लिए नौकर-चाकर थे। फिर भी वह प्राय: अपने निजी कार्य सचिन से ही करातीं थी। धीरे-धीरे वह सचिन के साथ उसकी मोटर साईकिल पर पीछे बैठ कर अपने बैंक के कार्य व बाजार के कार्य के लिए भी जाने लगीं। उन्हें सचिन के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता। लोगों को उनका साथ घूमना अखरने लगा था। सब अपनी-अपनी तरह से बातें बनाने लगे थे। बातें होने लगीं और दूर तक फैलती गई। अचानक एक दिन बिना पूर्व सूचना के रोजी मैडम के बडे भाई व भाभी उनके घर पर आ धमके। काफी दिनों तक उनके मध्य वाद-विवाद चला। उन्होंने सचिन के रोजी मैडम के घर आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने सचिन को आरोपित करते हुए पुलिस से लिखित में शिकायत भी कर डाली। सचिन बहुत डर चुका था।आखिर विवादों से बचने के लिए भारी मन से सचिन हमेशा के लिए शहर छोड़ कर चला गया।
इस बात को काफी वर्ष बीत चुके थे। सचिन ने अकेले ही अपने आप को सम्हाला। अपना संघर्ष जारी रखा।अब उसने अपना छोटा सा परिवार बसा लिया था जिसमें उसकी 'लेक्चरर' पत्नी व एक 15 वर्षीय बेटी जहान्वी थी। सचिन सरकारी विभाग में 'साइंटिस्ट' के पद पर बडा अधिकारी बन चुका था।उसने रोजी मैडम के सपने को साकार करने के लिए नौकरी के साथ-साथ अपनी 'डाक्टरेट' भी पूरी कर ली थी। एक दिन वह अपने परिवार के साथ घूमने जा रहा था। रास्ते में उसे अपना पुराना शहर दिखा तो उससे रहा न गया। उसे अपनी 'रोजी मैडम' के साथ बिताये एक-एक पल याद आने लगे।वह उन्हें कभी नहीं भूला था और न ही कभी भूल पायेगा। सचिन ने अपनी गाडी़ शहर के अंदर रोजी मैडम की कोठी की तरफ मोड़ ली। सचिन आश्चर्य से बोल उठा -"अरे यह क्या, यहां तो सब कुछ बदल चुका है, कोठी की जगह आलीशान तीन मंजिला भवन ! " वह भोंचक सा भवन को एकटक देखता रहा। अगले ही पल वह सब कुछ समझ चुका था। भवन में बडे-बडे अक्षरों में लिखा था-
"सचिन एण्ड रोजी इंस्टीट्यूट आफ साईन्सेज"
सचिन ने स्टेयरिंग पर माथा टिकाया और आंसुओं की झडी़ लगा दी। सचिन की पत्नी और बेटी जहान्वी कभी एक-दूसरे को देखते कभी सचिन को।
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
शानदार अभिव्यक्ति।
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