प्रीति चौधरी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रीति चौधरी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना -----


शरद 

पूर्णिमा रात 

अमृत बरसाता चाँद 

आती उनकी 

याद 


चाँद 

तूँ मेरा 

पहुँचा दें  संदेश 

पिया रहते 

परदेश 


रोती

विरह में 

सजनी उनकी,नीर 

नयनों से 

बहाती 

✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -तंग मानसिकता

 


'माँ जी,देखो गुड़िया दादी कहना सीख गयी ' रुचि ने उत्साहित  होकर सासुमाँ को बताया।

'ठीक है, ठीक है ...   तू ही सुन इसे।मुझे समय से पता चल जाता तो इसकी जगह  पोता खेलता। गर्भ के पहले ही महीने में उस गाय के दूध से गोली लेनी होती है जिसके नीचे बछड़ा हो ......बस। अब ये तीन साल की हो गयी है,जल्द ही खुशखबरी दो मुझे और हाँ इस बार मुझे पहले ही बता देना .......तीसरे महीने पर चेक भी करा लेगे लड़का  हुआ तो ठीक ,नही तो .......। दूसरी  पोती का मुंह  नहींं देखना मुझे।

अक्सर रुचि सासु माँ की यही बातें सुनती थी .........।

रुचि ने चुपके से गुडि़़या के कान में कहा,गुडि़़़या तेरे साथ खेलने के लिये 6 महीने बाद बहन या भाई  आने वाला है।

अपनी सासु माँ से आँख बचाकर रुचि अपने मुंह पर हाथ रख बाथरूम की तरफ भागी।

गुडिया अपनी दादी को देख मुस्कुरायी और आगंन में खेलने लगी ।

अब बाथरूम से आती आवाज उसकी दादी तक नही जा रही थी....    

 ✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा --------गहरे निशान

 


 " माँ, मैं ठीक हूँ, सब बहुत प्यार करते हैं मुझे।आप चिंता न करें----- ।" रागिनी ने यह कहकर फोन रख दिया।परन्तु माँ को कुछ ठीक नहीं लग रहा था।माँ जो ठहरी ------रागिनी की आवाज में छिपे दर्द को भांप लिया  था ।

      आज रागिनी शादी के बाद से पहली बार भाई दूज पर मायके आई। अचानक माँ की नज़र रागिनी के बाजू पर पड़े  गहरे नीले  निशान पर  गई  जिसे रागिनी छिपाने की कोशिश कर रही थी---। यह क्या हुआ -- -माँ ने घबराकर पूछा ? " कुछ नहीं माँ बस बैड से गिर गई थी "। "ऐसे  कैसे गिर गई-------माँ ने फिर पूछा "।जैसे वर्षों  से तुम गिरती रहीं हो माँ बस वैसे ही-------मैं भी --------।।

✍️प्रीति चौधरी, अमरोहा

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----नए ज़िलाधिकारी

 


आज रोहित जल्दी कलेक्ट्रेट आ गया ,नए ज़िलाधिकारी के आगमन की तैयारी जो  करनी थी ।रोहित कलेक्ट्रेट में  एक सम्मानित पद पर कार्यरत था ,नए ज़िलाधिकारी के 

आगमन की तैयारी वही कर रहा था ।उसने सुना था कि नए ज़िलाअधिकारी सख़्त है इसलिए वह पूरी कोशिश कर रहा था कि कोई कमी न रह जाए।

सब तैयारी हो गयी थी.........

ज़िलाधिकारी की गाड़ी कलेक्ट्रेट पर आ गयी थी ....

रोहित फूलों का बुके लेकर गाड़ी की ओर दौड़ा ।

‘योर मोस्ट वेलकम सर ’ रोहित ने कहा ।

जैसे ही उसने ज़िलाधिकारी को देखा ,उसे उनका चेहरा जाना पहचाना लगा.....

वह स्मृतियों में खो गया .....रमेश ...क्या ये रमेश है....जो सरकारी स्कूल में पढ़ता था जिसकी माँ हमारे यहाँ काम करने आती थी और जो मेरी कॉन्वेंट स्कूल की पुरानी किताब भी पढ़ने के लिए ले जाता था ......नहींं ,नहींं ....ऐसा नही हो सकता.......

अचानक उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा ,वह चौक गया। ज़िलाधिकारी महोदय.........जी... मैं वही रमेश हूँ ,रोहित जी ...सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला .....आपकी किताब .........

कैसे है आप ,बहुत सालों बाद मुलाक़ात हुई......

रोहित अभी तक पुरानी स्मृतियों में खोया था.........

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी -----आत्मविश्वास


दिशा अपनी माँ सुधा को घर का काम करते देखती,सब की छोटी छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखना ,इसी में उसकी माँ का पूरा दिन निकल जाता।’’माँ आप शादी से पहले के अपने रूटीन के बारे में बताओ, आप क्या क्या करती थी।’’दिशा ने अपनी माँ से उत्सुकता से पूछा।सुधा ने बताना शुरू किया ‘’मैं घर के बच्चों में सबसे छोटी ,सबकी लाड़ली थी।ग़लत बात तो मुझे बर्दाश्त ही नही थी ।कई बार तो कालेज में मैंने लड़कियों पर फबतियाँ कसने वाले लड़कों की धुनाई भी करी।मेरे व्यक्तित्व को दबंग बनाने में तुम्हारे नाना जी का बहुत बड़ा हाथ था ।वह हमेशा कहते थे कि लड़कियों को सब काम आना चाहिए ,घर में जब नयी साइकिल आयी तो सबसे पहले मुझे ही  चढ़ा दिया उसपर ,बोले चला ............मैंने ख़ूब मना किया कि मुझसे नही चलेगी पर कहने लगे कि ऐसा कोई काम नही जिसे मेरी बहादुर बेटी न कर सकें।कुछ ही दिनो में मैं बहुत अच्छी साइकिल चलाना सीख गयी।फिर तो तेरी नानी घर का सारा सामान मुझसे ही मंगवाती।बिटटो ये ला दे ,वो ला दे ।पूरा दिन मैं साइकिल पर सवार रहती।’’दिशा और  सुधा दोनो बातों में खो गये।दिशा को जब उसके पापा ने कई आवाज़ लगायी तब वो भागी भागी बाहर गयी।’’जी पापा ‘’दिशा ने हाँफते हुए कहा।’आ देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ’कमल बेटी को घर से बाहर ले आया ।’अरे पापा ,नयी ....स्कूटी...माँ आओ देखो पापा मेरे लिए क्या लाए है।’’दिशा ने सुधा को आवाज़ लगायी।स्कूटी को देखते ही सुधा की आँखे चमक गयी क्योंकि जब वो पड़ोस की रुचि को स्कूटी से सारे काम करते देखती तो उसका भी  मन करता ।छोटे छोटे काम के लिए उसे कमल को कहना  जो पड़ता था।’!चलों ये आपने अच्छा किया ,मैं भी सीख लूँगी।’’सुधा ने उत्तेजित होकर कमल से कहा।’’ये दिशा के लिए है ,अब उसे ट्यूशन जाने के लिए ज़रूरत पड़ेगी।तुम घर का काम ही सही से कर लो वही बहुत है,तुमसे  स्कूटी नही चलेगी ।कही गिर गिरा गयी,हड्डी टूट गयी तो बस ...........तुम्हारे बस का नही है इसे चलाना।सुबह से कुछ नही खाया है ,तुम जल्दी खाना लगाओ।’’कमल ने आलोचनात्मक मुस्कराहट के साथ ये बात कही।सुधा चुपचाप अन्दर खाने की तैयारी में जुट गयी ।’’माँ एक बार मैं सीख लूँ फिर आप को सीखा दूँगी स्कूटी’’ दिशा ने धीरे से कहा।’’नही बेटा तेरे पापा सही कहते है मुझसे नही चलेगी  स्कूटी,कही चोट लग गयी तो बस,तू पापा को ये खाना देकर आ।’’सुधा के कहें इन शब्दों से दिशा सोच में पड़ गयी कि शादी से पहले और अब के माँ के व्यक्तित्व में हुए इस बदलाव का ज़िम्मेदार कौन है ?पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते करते उसकी माँ स्वयं को भूल चुकी थी ।अब दिशा अपनी माँ को पहले की ही तरह आत्मविश्वास से भरी हुई बनाने का प्रण ले  चुकी थी।

 ✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----ममता का अहसास


माँ अपनी गोद में नवजात शिशु को लिटाकर, उसे आँचल में छुपाकर स्तन पान कराते हुए अत्यंत आनंदित हो रही थीं कि तभी अपने आगंन में खूँटे से बँधी गाय पर उसकी नज़र गयी जो दूध देते हुए चुपचाप खड़ी अपने बछड़े को देख रही थी और बछड़ा दूध पीने के लिए उसके पास आने का भरसक प्रयास कर रहा था।वह उठी और उसने बछड़े की रस्सी खोल दी..........
                                            
✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा



शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी का गीत ----अधर ये मौन रहेंगे , पर नयन तुमसे सब कहेंगे । रिक्त अंतस में एक रोज़, तुमको उतर जाना है


बहुत कुछ कहना है तुमसे

फ़ुरसत से बताना है

दिल में दबी कुछ बातों को

चुपके से सुनाना है


आँखो से निकले नहीं जो

आँसू जम गये हैं भीतर

बैठो पास तुम एक रोज़

मुझे उनको पिघलाना है

बहुत कुछ कहना है तुमसे


परतें खुलेंगी ,वो बरसों से

इंतज़ार में है एक दोस्त के

अपनी छुअन से एक रोज़

तुमको उन्हें सहलाना है

बहुत कुछ.......


अधर ये मौन रहेंगे

पर नयन तुमसे सब कहेंगे

रिक्त अंतस में एक रोज़

तुमको उतर जाना है

बहुत कुछ कहना है तुमसे

फ़ुरसत से बताना है

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ------ निःशब्द अहसास


चाँद निकल आया...............

आसपास से आवाज़ आ रही थी,सब   विवाहित जोड़े पूजा करने अपनी अपनी छत पर थे।रागिनी अब भी एकटक चाँद को देख रही थी ।पहला करवाचौथ .........

शादी के जोड़े में वह दुल्हन की तरह सजी हुई राज का इंतज़ार कर रही थी ।हाथों में मेहंदी ,आँखो में काजल ,माथे की बिंदिया ,चूड़ियों की खनखन उसके मन को गुदगुदा रही थी ।आज उसने तैयार होने में कोई कसर नही छोड़ी .......

चाँद की रोशनी में रागिनी चाँद जैसी  ही लग रही थी...बहुत ख़ूबसूरत.......

चाँद को देखते हुए उसके लबों पर मुस्कराहट और आँखो में हया तैर रही थी .....

कार के हॉर्न की आवाज़ सुनते ही वह झट से नीचे आयी।राज फ़ाइल हाथ में लिए तेज़ी से कमरे की तरफ़ चले गये ।’बहुत भूख लगी है रागिनी ,खाना लगा दो ....

आज मीटिंग देर तक चली।’राज हाथ धोते धोते बता रहा था।’खाना तैयार है ,आज करवाचौथ है ,पहले चाँद को जल दे आते हैं ।’रागिनी जल्दी से लोटा लेकर छत की ओर चल दी ।

आउच...........रागिनी चिल्लायी ......

उसके पैर से ख़ून निकल रहा था .....

‘देखकर नही चल सकती तुम ।लगता है कुछ बहुत गहरा  चुभ गया है ।’राज रागिनी के पैर को देख रहा था।

‘सचमुच कुछ बहुत गहरा ही चुभा है ।’रागिनी ने मन में सोचा।

उसकी आँखो का काजल फैलता जा रहा था।

 ✍️प्रीति चौधरी

  गजरौला,अमरोहा

बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा --- अंतिम ख़त

     
प्रिय रवि,
            आज नन्हें स्पर्श से एक अद्भुत अनुभूति हुई तब सहसा स्वयं में ममता का समावेश होते देखा।उन नन्ही उँगलियो की पकड़ तुम्हारे प्रेम बंधन से भी अधिक मज़बूत थी ।दीदी का केन्सर अंतिम स्थिति पर है .....
वह चाहती है कि उनके सामने ही.......
तुम्हारी प्रेयसी यहाँ जब आयी थी ,तुमसंग जीवन साथ बिताने के स्वप्न इन आँखो में थे परंतु मेरे अंदर की नारी कब माँ बन गयी है मुझे पता ही नही चला ।मैंने उसे अपनी ममता की छांव देने का निर्णय कर लिया है ।मुझे माफ़ कर देना।तुम्हारे लिए सदा सुंदर जीवन की कामना करती हूँ।
अंत में बस यही कहूँगी कि  यह किरण हमेशा अपने रवि की रहेगी।                     
                                    सिर्फ़ तुम्हारी
                                    किरण

✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----- गुलाबी साड़ी


गुलाबी साड़ी बहुत फबती थी माधुरी पर........जब भी वह गुलाबी साड़ी पहनती राजेश तो उन्हें ही देखते रहते।राजेश माधुरी के पति थे जो अब रिटायर हो चुके थे और पत्नी माधुरी के साथ शांताकुंज के निजनिवास में रहते थे।जिस दिन माधुरी गुलाबी साड़ी पहन लेती वह भूल जाते कि अब वह रिटायर हो चुके है ,उन्हें ऐसा लगता जैसे माधुरी नयी नवेली दुल्हन है और उन्हें वही दिन याद आ जाते जब वह माधुरी के साथ शहर में अकेले आए थे जबकि उनका बेटा अमन भी अब शिक्षा दीक्षा पूर्ण कर दिल्ली में उच्च कम्पनी में कार्यरत था और वही अपनी बीवी के साथ रहता था ।पर राजेश की दुनिया तो माधुरी में बसी थी ।कितनी सुंदर लगती हो तुम आज भी .......और गुलाबी साड़ी में तो तुम्हारा गोरा रंग ऐसे चमकता है जैसे गुलाब को दूध में भीगो दिया हो ।’इस उम्र में भी आप ......रहने दो ।पोते खिलाने की उम्र में ये बातें शोभा देती है क्या........’माधुरी पति राजेश को कहती रहती कि आपका ध्यान बस मुझपर ही रहता है।समय का लेकिन कुछ नही पता ........राजेश को दिल का दौरा पड़ा....माधुरी अकेली रह गयी ।बेटा अमन अपनी माँ को दिल्ली ले आया।अमन अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता था ....समय गुज़रता गया ।’माँ आज शाम को मेरे दोस्त की बहन की शादी है ।सब चलेंगे आप तैयार हो जाना।’अमन कहते हुए ऑफ़िस चला गया ।’सब हो गये तैयार ,लुकिंग वेरी ब्यूटिफ़ुल डियर........’अमन ने अपनी पत्नी को देखते ही कहा।माँ ...चलो बैठो कार में ....
कार में बैठ माधुरी की आँखे भीग गयी ,वह चुपचाप अपनी हल्के रंग की गुलाबी साड़ी को देख रही थी जो
कुछ सुनने का इंतज़ार कर रही थी .........
गुलाबी साड़ी में तो तुम्हारा रंग................
पर यह कहने वाला तो बहुत दूर जा चुका था............
                                                               
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला ,अमरोहा

बुधवार, 2 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी ---- अधिकारी बहु


       ‘’अधिकारी बहु ढूँढी है तेरे लाड़ले ने, देख लेना एक कप चाय भी बनाकर नही देगी। पैसे की कोई कमी तो है नही जो कमाऊँ बहु ला रहा है। पढ़ा लिखाकर राजेश को अफसर बनाया ताकि एक सुन्दर सुशील सेवा करने वाली बहु ला सके, पर यहाँ तो सब किये धरे पर पानी फेर दिया उसने। कांता मैं तो जा रही हूँ गाँव, तू ही स्वागत कर अपनी बहु रानी का ’’बडबड़ाते हुए दुलारी मौसी अपना कपड़ो का थैला उठाकर चल दी।’’ पर....  मौसी रुक जाती, मैं अकेली क्या क्या कर लूँगी। ’’कांता ने दुलारी मौसी को रोकने की बहुत कोशिश की पर वो नही रुकी।
         राजेश ,रिटायर कर्नल शेखावत सिंह और कांता का इकलौता बेटा था। अपनी माँ के देहांत के बाद दुलारी मौसी को ही शेखावत सिंह अपनी माँ समान मानते थे। दुलारी मौसी ने बहुत लाड़ प्यार से राजेश को पाला था। हालाँकि शेखावत सिंह और कांता दोनो ही खुले विचारों के थे परंतु दुलारी मौसी अपने उसूलों पर अडिग थी इसलिए जब उन्हें पता चला कि राजेश ने अपने साथ की किसी अधिकारी से शादी कर ली है तो वह गुस्सा होकर अपने गाँव चली गयी।  राजेश जिस जिले में  डिप्टी कलेक्टर थे वहीं साक्षी कर अधिकारी थी। दोनो की मुलाक़ात हुई वे एक दूसरे को पसंद करने लगे और उन्होने शादी कर ली।आज राजेश साक्षी को लेकर घर आ रहा था। दुलारी मौसी की कही बातें कांता को परेशान कर रही थी कि कही सच में बहु...........!! जबकि राजेश ने फ़ोन पर सब बातें अपने माँ पिताजी को बता दी थी कि साक्षी के पेरेंट्स दो साल पहले कार दुर्घटना में चल बसे, वह अकेली है। दोनो की पोस्टिंग घर से दूर होने के कारण शेखावत सिंह ने ही कहा था कि शादी करके आ जाओ फिर यही सबकी दावत कर देंगे। कांता इसी सोच में ही डूबी थी कि अचानक कार घर के दरवाज़े पर आकर रुकी। ’बहु आ गयी कांता, शेखावत सिंह ने कांता को आवाज़ लगायी। गाड़ी से उतर कर साक्षी ने दोनो के पैर छुए। जीती रहो, शेखावत सिंह ने आशीर्वाद दिया। सब अंदर आकर ड्रॉइंग रूम में बैठ गए। सभी ने खूब बातें की। बहु तो बहुत सुन्दर है, आदत पता नहीं कैसी होगी..... कांता मन ही मन मे सोच रही थी। फिर वह चाय बनाने के लिए रसोई में गयी तो पीछे पीछे साक्षी भी चली आयी।  ’’चाय मैं बनाती हूँ माँ जी‘’ साक्षी ने विनम्रता से अपनी सासु मां कांता से कहा। ’’तुम ........!!! अरे नहीं... तुम रहने दो, तुम एक  अधिकारी हो, तुम चाय .......... रहने दो। मैं ही बना देती हूँ। ’’कांता के मन में अब भी मौसी जी की कही बातें चल रही थी। ’माँ जी अधिकारी मैं बाहर वालों के लिए हूँ, इस घर की तो मैं बहू हूँ और मैं जब तक यहाँ रहूँगी घर का काम तो मैं ही करूँगी।’ ऐसा कहकर साक्षी ने चाय का भगोंना गैस पर रख दिया। माँ जी एक बात कहनी थी .............., साक्षी धीरे से कहकर चुप हो गयी। कांता ने साक्षी की तरफ़ देखकर कहा ‘’हाँ बताओ।’’ मेरे मम्मी पापा नही हैं, बहुत याद आती है उनकी। क्या यह घर मेरे ससुराल के साथ साथ मेरा मायका नही हो सकता। मैं आपकी बहू नही बेटी बनकर रहना चाहती हूँ माँ।’’ कहते कहते साक्षी का गला रूँध गया। क्यों नही ‘मेरी बच्ची, मैं हूँ तेरी माँ ‘कांता ने उसे अपने गले से लगा लिया। ’’भई माँ बेटी का मिलन ही होता रहेगा या चाय भी मिलेगी ‘’ शेखावत सिंह ने चुटकी ली। यह सुनकर कांता और साक्षी ज़ोर ज़ोर से हसने लगी ।बहु के रूप में बेटी पाकर कांता फूली नहीं समा रही थी। इस सुंदर रिश्ते की ख़ुश्बू से पूरा घर महक गया।                         
                                   
✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ---------सन्नाटा

सन्नाटा..........दूर तक फैला था उस घर में......न पति पत्नी में नोक झोंक ,न बच्चों के खिलौने टूटने की आवाज़,बड़ें बूढ़ों के खाँसने की आवाज़ भी नही आती थी........
एक दिन चुपके से मैंने झाँक कर देखा कि उस घर में तीन लोग थे जो अपने अपने काम में व्यस्त थे ।उस घर में जो आदमी था वह लैपटॉप के सामने बैठे कोई महत्वपूर्ण गुत्थी सुलझाने में इतना व्यस्त था कि फ़ोन पर बात करते करते हुए भी लैपटॉप पर उँगलिया तेज़ी से चल रही थी।बच्चा मज़े से विडीओ गेम में दुश्मनो पर गोलियाँ दाग़ रहा था और मैडम किटी पार्टी की तैयारी में नाख़ून चमका रही थी कि तभी मैडम का फ़ोन बजा ....नेल पोलिश ख़राब होने के डर से स्पीकर पर डाल दिया ,जिससे आवाज स्पष्ट आ रही थी
‘’मैडम मैं वृद्धाश्रम से सोनू बोल रहा हूँ ।माँ, बाबू जी आप को बहुत याद करते हैं,,,,,,,।
 बस फिर क्या था मुझे उस घर की शान्ति का राज समझते देर नहीं लगी।मैं चुपचाप घर आ गई और देखा कि बच्चे अपने दादा दादी  के साथ खेल में व्यस्त थे।
                       
 ✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा। ------अंग्रेजी टीचर


     वो रिक्शे से कालिज के गेट के सामने उतरी ,साफ़ सुथरी पर बिलकुल सादी सी साड़ी पहने वो तेज़ी से प्रिन्सिपल ऑफ़िस की तरफ़ चल दी।व्यक्तित्व ऐसा कि किसी का ध्यान ही नही गया कि कब वो कालिज गेट से लम्बे कोरिडोर को पार करते हुए प्रिन्सिपल ऑफ़िस पहुँच गयी।कुछ ऐसा विशेष था भी नही  उसमें, जो किसी का ध्यान जाता।
कक्षा दस के विद्यार्थी अपनी नयी अंग्रेज़ी की मैडम का इंतज़ार ही कर रहे थे कि वह  तेज़ी से कक्षा में आयी ,बच्चे तो खड़े भी नही हुए।पता नही कौन है .........’गुड मॉर्निंग स्टूडेंट्स ,आइ एम योर इंग्लिश टीचर’।आवाज़ ऐसी कि जैसे शहद भरा हो ।बच्चे कब उस मधुर आवाज के साथ बहते चले गये उन्हें पता ही नही चला।
प्रिन्सिपल मैडम राउंड पर आयी .......जिस कक्षा से सबसे अधिक शोर की आवाज़ आती थी  ,वह  कक्षा मंत्रमुग्ध सी होकर नयी अंग्रेज़ी टीचर से इतना मन लगाकर पढ़ रही थी ।यह देख प्रिन्सिपल मैडम मन ही मन मुसकायी और याद करने लगी वह दिन ,जब पहली बार  अंग्रेज़ी टीचर से वह साक्षात्कार के दिन मिली थी।
               
✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----पहला प्यार

 
प्यार तो हो ही जाता है जैसे उसे भी हो गया था ....तभी तो जया को देखने के लिए वह कालेज के दरवाज़े पर खड़ा रहता ।जया कालेज के दरवाज़े से सहेलियों के साथ हँसती हुई निकल जाती ....और वह उसे देखता रहता। जया थी भी बहुत सुंदर....सफ़ेद बर्फ़ सी रंगत ,गहरी आँखे,लम्बे बाल .......चेहरे की मासूमियत सुंदरता में चार चाँद लगा देती।सूरत और सीरत दोनो में ही जया सबसे अलग थी।जया ने उसे कभी नही देखा पर उसका दिल तो जैसे ......जया के लिए ही धड़कता था।
जया का कालेज जब पूरा हुआ .....उसका रिश्ता एक अमीर घर में तय किया गया .....दुल्हन बनी जया ऐसी लग रही थी जैसे किसी देश की राजकुमारी हो।जो अपने राजकुमार के इंतज़ार में पलकें बिछाये है......
अरे .....बारात वापस लौट गयी ,पर क्यों........जया के पिता जी ने तो पगड़ी भी रख दीं थी  कि जल्द ही दहेज की रक़म पूरी कर देंगे पर...........
इसके बाद जया तो जैसे टूट ही गयी थी .....सुंदर चेहरा मलीन होता जा रहा था..........
इस ज़माने में बुरे लोग है तो अच्छे भी है -दादी कहती जा रही थी ...जया एक बहुत अच्छे लड़के का रिश्ता आया है तेरे लिए ।लड़का इसी शहर का है ,सुना है पढ़ा हुआ भी उसी कालेज का है जिसमें तू पढ़ती थी......
उसे अंततः अपना पहला प्यार मिल ही गया।

                             
प्रीति चौधरी
 गजरौला ,अमरोहा

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघु कथा---सिसकियाँ


        तुमसे टाइम से तैयार भी नही हुआ जाता ,बताया था न कि शाम को पार्टी में जाना है।बिलकुल गँवार औरत ही पल्ले पड़ गयी है............चटाक चटाक ..........ज़ोरदार आवाज़ .......
उसने अपनी आँखो को गहरे काजल से सज़ा लिया पर चेहरे पर उँगलियो के निशान अब भी दिख रहे थे ।जिन्हें छुपाने के लिए मेकअप का एक कोट और लगाना पड़ा।
आ गए आप लोग ,हम सब आप दोनो का ही इंतज़ार कर रहे थे ।आप दोनो को इस पार्टी में बेस्ट कपल के लिए चुना गया है ।बहुत बहुत बधाई .........
चारों तरफ़ बधाई देने के लिए भीड़ जमा हो गयी और सिसकियाँ कही गले में ही रूँध गयी।
                   
प्रीति चौधरी
गजरौला
ज़िला-अमरोहा

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----जय माँ गंगे

    
  ‘’माँ देखो न आज गंगा कितनी स्वच्छ और निर्मल है। लॉकडाउन से पहले गंगा में कितनी गन्दगी दिखाई देती थी, पर आज गंगा को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है काश हर समय गंगा इतनी ही साफ और स्वच्छ रहे। माँ, गंगा को भी हम माँ समझते हैं न। इन दिनों गंगा माँ अपने को इतनी साफ सुथरी देख कर बहुत खुश होगी। ’’चुनमुन ने चहकते हुए अपनी माँ दीपा से कहा।" चुनमुन आज लोकडाउन खुलने के बाद अपनी नानी से मिलने मेरठ जा रही थी। अक्सर वह इस रास्ते से गुज़रते थे। बरेली से मेरठ आते जाते ब्रजघाट आते ही गंगा के दर्शन हो जाते थे। गंगा को इतना साफ़ चुनमुन ने कभी नही देखा था, इसलिए वह बहुत खुश थी।’ माँ क्यों करते है लोग अपनी माँ समान गंगा को गंदा। चुनमुन ने अपनी माँ दीपा से पूछा।’’ अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण बेटा। वैसे और भी बहुत से कारण है जैसे नगरों और फैक्ट्रियों के गंदे पानी को नालों द्वारा गंगा में बहा दिया जाता है।पता नही कैसे लोग है बेटे, जो अपनी माँ समान गंगा को गंदा करते है। इसे दूषित करते रहते है ।’’दीपा ने गहरी साँस लेते हुए कहा। जैसे ही गंगा के बिलकुल पास से गाड़ी गुज़री दीपा ने एक दम एक रुपए का सिक्का पर्स से गंगा में डालने के लिए निकाला ।चुनमुन हर बार अपनी माँ को यह करते देखती थी और ख़ुद ही सिक्का डालने की जिद्द करती थी परंतु आज उसने हाथ जोड़कर कहा कि- माफ़ कर दो माँ गंगे,माफ़ कर दो।दीपा सकपका गयी वह अपनी ग़लती समझ गयी थी  ।उसने सिक्का पर्स में रख लिया और हाथ जोड़कर कहा -जय माँ गंगे ,जय माँ गंगे।
         
  प्रीति चौधरी(शिक्षिका)
  राजकीय बालिका इण्टर कालेज हसनपुर
  ज़िला अमरोहा