बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----जय माँ गंगे

    
  ‘’माँ देखो न आज गंगा कितनी स्वच्छ और निर्मल है। लॉकडाउन से पहले गंगा में कितनी गन्दगी दिखाई देती थी, पर आज गंगा को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है काश हर समय गंगा इतनी ही साफ और स्वच्छ रहे। माँ, गंगा को भी हम माँ समझते हैं न। इन दिनों गंगा माँ अपने को इतनी साफ सुथरी देख कर बहुत खुश होगी। ’’चुनमुन ने चहकते हुए अपनी माँ दीपा से कहा।" चुनमुन आज लोकडाउन खुलने के बाद अपनी नानी से मिलने मेरठ जा रही थी। अक्सर वह इस रास्ते से गुज़रते थे। बरेली से मेरठ आते जाते ब्रजघाट आते ही गंगा के दर्शन हो जाते थे। गंगा को इतना साफ़ चुनमुन ने कभी नही देखा था, इसलिए वह बहुत खुश थी।’ माँ क्यों करते है लोग अपनी माँ समान गंगा को गंदा। चुनमुन ने अपनी माँ दीपा से पूछा।’’ अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण बेटा। वैसे और भी बहुत से कारण है जैसे नगरों और फैक्ट्रियों के गंदे पानी को नालों द्वारा गंगा में बहा दिया जाता है।पता नही कैसे लोग है बेटे, जो अपनी माँ समान गंगा को गंदा करते है। इसे दूषित करते रहते है ।’’दीपा ने गहरी साँस लेते हुए कहा। जैसे ही गंगा के बिलकुल पास से गाड़ी गुज़री दीपा ने एक दम एक रुपए का सिक्का पर्स से गंगा में डालने के लिए निकाला ।चुनमुन हर बार अपनी माँ को यह करते देखती थी और ख़ुद ही सिक्का डालने की जिद्द करती थी परंतु आज उसने हाथ जोड़कर कहा कि- माफ़ कर दो माँ गंगे,माफ़ कर दो।दीपा सकपका गयी वह अपनी ग़लती समझ गयी थी  ।उसने सिक्का पर्स में रख लिया और हाथ जोड़कर कहा -जय माँ गंगे ,जय माँ गंगे।
         
  प्रीति चौधरी(शिक्षिका)
  राजकीय बालिका इण्टर कालेज हसनपुर
  ज़िला अमरोहा

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