‘’अधिकारी बहु ढूँढी है तेरे लाड़ले ने, देख लेना एक कप चाय भी बनाकर नही देगी। पैसे की कोई कमी तो है नही जो कमाऊँ बहु ला रहा है। पढ़ा लिखाकर राजेश को अफसर बनाया ताकि एक सुन्दर सुशील सेवा करने वाली बहु ला सके, पर यहाँ तो सब किये धरे पर पानी फेर दिया उसने। कांता मैं तो जा रही हूँ गाँव, तू ही स्वागत कर अपनी बहु रानी का ’’बडबड़ाते हुए दुलारी मौसी अपना कपड़ो का थैला उठाकर चल दी।’’ पर.... मौसी रुक जाती, मैं अकेली क्या क्या कर लूँगी। ’’कांता ने दुलारी मौसी को रोकने की बहुत कोशिश की पर वो नही रुकी।
राजेश ,रिटायर कर्नल शेखावत सिंह और कांता का इकलौता बेटा था। अपनी माँ के देहांत के बाद दुलारी मौसी को ही शेखावत सिंह अपनी माँ समान मानते थे। दुलारी मौसी ने बहुत लाड़ प्यार से राजेश को पाला था। हालाँकि शेखावत सिंह और कांता दोनो ही खुले विचारों के थे परंतु दुलारी मौसी अपने उसूलों पर अडिग थी इसलिए जब उन्हें पता चला कि राजेश ने अपने साथ की किसी अधिकारी से शादी कर ली है तो वह गुस्सा होकर अपने गाँव चली गयी। राजेश जिस जिले में डिप्टी कलेक्टर थे वहीं साक्षी कर अधिकारी थी। दोनो की मुलाक़ात हुई वे एक दूसरे को पसंद करने लगे और उन्होने शादी कर ली।आज राजेश साक्षी को लेकर घर आ रहा था। दुलारी मौसी की कही बातें कांता को परेशान कर रही थी कि कही सच में बहु...........!! जबकि राजेश ने फ़ोन पर सब बातें अपने माँ पिताजी को बता दी थी कि साक्षी के पेरेंट्स दो साल पहले कार दुर्घटना में चल बसे, वह अकेली है। दोनो की पोस्टिंग घर से दूर होने के कारण शेखावत सिंह ने ही कहा था कि शादी करके आ जाओ फिर यही सबकी दावत कर देंगे। कांता इसी सोच में ही डूबी थी कि अचानक कार घर के दरवाज़े पर आकर रुकी। ’बहु आ गयी कांता, शेखावत सिंह ने कांता को आवाज़ लगायी। गाड़ी से उतर कर साक्षी ने दोनो के पैर छुए। जीती रहो, शेखावत सिंह ने आशीर्वाद दिया। सब अंदर आकर ड्रॉइंग रूम में बैठ गए। सभी ने खूब बातें की। बहु तो बहुत सुन्दर है, आदत पता नहीं कैसी होगी..... कांता मन ही मन मे सोच रही थी। फिर वह चाय बनाने के लिए रसोई में गयी तो पीछे पीछे साक्षी भी चली आयी। ’’चाय मैं बनाती हूँ माँ जी‘’ साक्षी ने विनम्रता से अपनी सासु मां कांता से कहा। ’’तुम ........!!! अरे नहीं... तुम रहने दो, तुम एक अधिकारी हो, तुम चाय .......... रहने दो। मैं ही बना देती हूँ। ’’कांता के मन में अब भी मौसी जी की कही बातें चल रही थी। ’माँ जी अधिकारी मैं बाहर वालों के लिए हूँ, इस घर की तो मैं बहू हूँ और मैं जब तक यहाँ रहूँगी घर का काम तो मैं ही करूँगी।’ ऐसा कहकर साक्षी ने चाय का भगोंना गैस पर रख दिया। माँ जी एक बात कहनी थी .............., साक्षी धीरे से कहकर चुप हो गयी। कांता ने साक्षी की तरफ़ देखकर कहा ‘’हाँ बताओ।’’ मेरे मम्मी पापा नही हैं, बहुत याद आती है उनकी। क्या यह घर मेरे ससुराल के साथ साथ मेरा मायका नही हो सकता। मैं आपकी बहू नही बेटी बनकर रहना चाहती हूँ माँ।’’ कहते कहते साक्षी का गला रूँध गया। क्यों नही ‘मेरी बच्ची, मैं हूँ तेरी माँ ‘कांता ने उसे अपने गले से लगा लिया। ’’भई माँ बेटी का मिलन ही होता रहेगा या चाय भी मिलेगी ‘’ शेखावत सिंह ने चुटकी ली। यह सुनकर कांता और साक्षी ज़ोर ज़ोर से हसने लगी ।बहु के रूप में बेटी पाकर कांता फूली नहीं समा रही थी। इस सुंदर रिश्ते की ख़ुश्बू से पूरा घर महक गया।
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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