बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी -----आत्मविश्वास


दिशा अपनी माँ सुधा को घर का काम करते देखती,सब की छोटी छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखना ,इसी में उसकी माँ का पूरा दिन निकल जाता।’’माँ आप शादी से पहले के अपने रूटीन के बारे में बताओ, आप क्या क्या करती थी।’’दिशा ने अपनी माँ से उत्सुकता से पूछा।सुधा ने बताना शुरू किया ‘’मैं घर के बच्चों में सबसे छोटी ,सबकी लाड़ली थी।ग़लत बात तो मुझे बर्दाश्त ही नही थी ।कई बार तो कालेज में मैंने लड़कियों पर फबतियाँ कसने वाले लड़कों की धुनाई भी करी।मेरे व्यक्तित्व को दबंग बनाने में तुम्हारे नाना जी का बहुत बड़ा हाथ था ।वह हमेशा कहते थे कि लड़कियों को सब काम आना चाहिए ,घर में जब नयी साइकिल आयी तो सबसे पहले मुझे ही  चढ़ा दिया उसपर ,बोले चला ............मैंने ख़ूब मना किया कि मुझसे नही चलेगी पर कहने लगे कि ऐसा कोई काम नही जिसे मेरी बहादुर बेटी न कर सकें।कुछ ही दिनो में मैं बहुत अच्छी साइकिल चलाना सीख गयी।फिर तो तेरी नानी घर का सारा सामान मुझसे ही मंगवाती।बिटटो ये ला दे ,वो ला दे ।पूरा दिन मैं साइकिल पर सवार रहती।’’दिशा और  सुधा दोनो बातों में खो गये।दिशा को जब उसके पापा ने कई आवाज़ लगायी तब वो भागी भागी बाहर गयी।’’जी पापा ‘’दिशा ने हाँफते हुए कहा।’आ देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ’कमल बेटी को घर से बाहर ले आया ।’अरे पापा ,नयी ....स्कूटी...माँ आओ देखो पापा मेरे लिए क्या लाए है।’’दिशा ने सुधा को आवाज़ लगायी।स्कूटी को देखते ही सुधा की आँखे चमक गयी क्योंकि जब वो पड़ोस की रुचि को स्कूटी से सारे काम करते देखती तो उसका भी  मन करता ।छोटे छोटे काम के लिए उसे कमल को कहना  जो पड़ता था।’!चलों ये आपने अच्छा किया ,मैं भी सीख लूँगी।’’सुधा ने उत्तेजित होकर कमल से कहा।’’ये दिशा के लिए है ,अब उसे ट्यूशन जाने के लिए ज़रूरत पड़ेगी।तुम घर का काम ही सही से कर लो वही बहुत है,तुमसे  स्कूटी नही चलेगी ।कही गिर गिरा गयी,हड्डी टूट गयी तो बस ...........तुम्हारे बस का नही है इसे चलाना।सुबह से कुछ नही खाया है ,तुम जल्दी खाना लगाओ।’’कमल ने आलोचनात्मक मुस्कराहट के साथ ये बात कही।सुधा चुपचाप अन्दर खाने की तैयारी में जुट गयी ।’’माँ एक बार मैं सीख लूँ फिर आप को सीखा दूँगी स्कूटी’’ दिशा ने धीरे से कहा।’’नही बेटा तेरे पापा सही कहते है मुझसे नही चलेगी  स्कूटी,कही चोट लग गयी तो बस,तू पापा को ये खाना देकर आ।’’सुधा के कहें इन शब्दों से दिशा सोच में पड़ गयी कि शादी से पहले और अब के माँ के व्यक्तित्व में हुए इस बदलाव का ज़िम्मेदार कौन है ?पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते करते उसकी माँ स्वयं को भूल चुकी थी ।अब दिशा अपनी माँ को पहले की ही तरह आत्मविश्वास से भरी हुई बनाने का प्रण ले  चुकी थी।

 ✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

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