मैले कुचैले चिथड़ों में लिपटा हुआ.... एक नन्हा सा लड़का उम्र यही कोई दस या ग्यारह वर्ष रही होगी..... डेली आ जाता था दरवाज़े पर...... मैं भी दया और सहानुभूति भाव से उसे रोजाना दस या पांच रुपए दे देती थी । जब मैं उसे कुछ भी देती तो वह काफ़ी देर तक ऊपर को घूरता सा रहता था..... मुझे बहुत ही अजीब लगता था, आख़िर मैंने पूछ ही लिया कि "मैं रोज़ाना तुम्हें कुछ तो देती ही हूं और फिर भी तुम चुपचाप ऊपर की ओर ताकते रहते हो"।
वह मुस्कुराया.... और बोला-- मांजी, मैं ऊपर वाले से कहता हूं कि जिसने मुझे दिया है तू! उसे और दे... ।यह सुनकर..... मैं सोचती रही कि वह कहां 'अदना' है....., जो अपने लिए कुछ भी नहीं मांगता हमारे लिए मांगता है।
✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश,भारत।
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