बाज़ार से लाता है,
ख़रीद कर खुशियां।
कमाकर लाता है
चंद ख्वाब,
एक पिता ही जनाब।
चुन चुन कंटीले वन से
मधुर फ़ल।
जीवन के भीषण रण से,
स्वर्णिम कल,
छुपाकर लाता है,
चंद ख्वाब
एक पिता ही जनाब
एक एक लम्हा संजोता है,
तब कहीं जाकर,
अपने आंगन में फसल
खुशियों की बोता है।
लहलहाते हैं
तब कहीं जाकर,
चंद ख्वाब,
एक पिता ही जनाब।
स्वेद से सिंचित कर,
सुर्ख़ खूं से रंग भर,
खूबसूरत गुलों को
तब कहीं जाकर,
महकाता, संजोता है
चंद ख्वाब,
एक पिता ही जनाब।
ख़ुद बैठकर फर्श पर
बैठाता है अर्श पर,
फलक तक ले जाता है
चंद ख्वाब
एक पिता ही जनाब।
✍️ रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत
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