बुधवार, 26 अप्रैल 2023

मुरादाबाद जनपद के ठाकुरद्वारा निवासी साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा ....अपना बनता है

   


"यार एक डबल बैड बनवाना था, तुम्हारी कोई जानपहचान वाला हो तो बताओ जो ठीक-ठीक लगा ले और अच्छी चीज दे।" सुरेंद्र ने अपने दोस्त असद से कहा।

 "हाँ-हाँ क्यों नहीं, चलो मेरे साथ आज ही बात करवा देता हूँ।" असद ने अपनेपन से कहा और बाइक स्टार्ट कर ली।

 "देखो ये दुकान अपनी ही समझो, बहुत अच्छी चीज देगा और दाम बिल्कुल बाजिब लगाएगा।" असद ने एक दुकान के बाहर बाइक रोकते हुए कहा।

 "ठीक है यार चलो फिर देख लेते हैं कोई अच्छा सा बैड।" सुरेंद्र ने कहा।

  "तुम जाकर देखो मुझे जरा आगे कुछ काम है, मैं अभी दुकानदार से कह देता हूँ।" असद ने बिना बाइक बन्द किये कहा और तेज़ आवाज में दुकानदार से कहा, "अरे भाई क्या हाल हैं? जरा इन्हें एक अच्छा सा बेड दिखाओ और ठीक-ठीक लगा लेना अपना बन्दा है।"

  सुरेंद्र ने डबलबेड पसन्द कर लिया सौदा भी हो गया और बेड घर आ गया।

 कुछ दिन बाद उनका एक दोस्त दानिश उनसे मिलने आया और पूछने लगा, "अरे सुरेंद्र भाई ये बेड कितने का लाये?

 "बारह हजार का लिया यार, दुकानदार तो पन्द्रह से नीचे नहीं आ रहा था वो तो असद भाई ने उससे कहा कि अपना बन्दा है तब उसने बारह लिए।

 सुरेंद्र की बात सुनकर दानिश जोर-जोर से हँसने लगा।

 "क्या हुआ दानिश! तुम ऐसे हँस क्यों रहे हो?" सुरेंद्र ने हैरान होते हुए पूछा।

 "अपना बन्दा नहीं अपना बनता है बोला होगा असद ने, वह तो कमीशन एजेंट है बोले तो दलाल। यही बेड कल ही मैंने दस हज़ार का अपने भाई को दिलाया है। तुमसे दुकानदार ने दो हजार असद के ले लिए।

 क्या करें उसका बनता है यार...!" दानिश ने कहा और फिर और तेज़ हँसने लगा।


  ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

  ठाकुरद्वारा 

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

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