पापा, अभी कितना और चलना है, घर कब पहुँचेंगे, नन्हीं मुनिया ने राकेश से पूछा।
पहुँच जायेंगे बिटिया, जल्दी पहुँच जायेंगे, कहते कहते राकेश का स्वर भर्रा गया था।
तीन दिन हो गये चलते चलते, मुनिया अब परेशान होने लगी है, अभी और कितने दिन लगेंगे, राकेश की पत्नी संतोष ने पूछा।
मुनिया की माँ, अभी तो कई दिन लगेंगे, लेकिन जब घर से निकल आये हैं तो परेशानियां तो सहनी ही पड़ेंगी। वहाँ भी तो परेशान ही थे। न नौकरी रही, न आमदनी, ऊपर से मकान मालिक रोज मकान खाली करने को धमका रहा था। राकेश ने संतोष को समझाया।
हुम्म: वो तो अच्छा हुआ, मैंने मोटे मोटे रोट और मठरियां बनाकर साथ में रख ली थीं चार पाँच दिन का काम तो चल ही जायेगा, यहाँ तो रास्ते में कहीं कोई दुकान या ढाबा भी खुला हुआ नहीं मिल रहा, संतोष बोली।
लॉकडाउन को चालीस दिन हो चुके थे। पास की जमापूँजी खत्म हो चुकी थी। किसी से कोई सहायता की उम्मीद न थी। न रेलें चल रही थी न बसें। जी कड़ा करके उसने पैदल ही घर वापसी का निर्णय ले लिया। सिर पर बड़ी सी अटैची, पत्नी के पास भी एक गठरी थी और पाँच साल की नन्हीं मुनिया भी पैदल पैदल चल रही थी।
शाम हो चली थी। रास्ते में एक छोटा सा मंदिर देख कर राकेश बोला, आज की रात यहीं गुजार लेते हैं।
मंदिर बंद था। दोनों ने नल पर हाथ मुँह धोकर खाना खाया, मुनिया को खिलाया और चबूतरे पर लेट कर बतियाने लगे।
ऐसे ही चलते रहे तो दो दिन और लगेंगे गाँव पहुँचने में, राकेश बोला।
हूँ; घर तो पहुँच जायेंगे, लेकिन अब करेंगे क्या। नौकरी तो चली गयी, संतोष ने पूछा।
अरे, अपना पुश्तैनी काम करेंगे। गाँव में अपना मकान दुकान सब कुछ है, पिताजी अकेले काम करते हैं उनसे अब इस उम्र में इतना काम नहीं होता। वही काम सम्हालेंगे। वो तो कहते रहते थे, लल्ला अब मुझसे काम नहीं होता, तुम आकर काम संम्हालो, ये तो हमारी ही मति मारी गयी थी। पढ़ लिखकर बड़े शहर में नौकरी करने की। शहर की तड़क भड़क की जिंदगी जीने की। लेकिन शहर और गाँव का अंतर अब समझ आ रहा है। इतने साल जिस मालिक की नौकरी की उसने चार दिन भी न लगाये हमें बाहर करने में। तनख्वाह भले ही अच्छी मिलती थी, लेकिन बड़े शहर के बड़े खर्चों में सब फुर्र हो जाती थी। सरकार को भी हर साल टैक्स भरते थे, उसने भी हमारी सुध न ली।।
यहाँ, अपना काम होगा, किसी की नौकरी नहीं। चार पैसे कम मिलेंगे , कम खा लेंगे, गम खा लेंगे, लेकिन ऐसे दर दर भटकने की नौबत तो नहीं आयेगी।
बातें बातें करते करते दोनों सो गये, और भविष्य के सपनों में खो गये।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 2
मोबाइल नं. 9456641400
कोविड-19 के कारण लॉक डाउन में रहते-रहते अब आदत सी पड़ गयी है । सभी घरों में बंद हैं । सभी काम बन्द हैं । पर्यावरण स्वत: शुद्ध होने लगा है । समाज में अपराध थम गये हैं । असामाजिक तत्व भी तो आखिर इंसान हैं । मौत से उन्हें भी डर लगता है । कोरोना के भय ने आतंकियों के भय को मात कर दिया है ।
लॉक डाउन में छूट क्या दी ! सरकार ने तीन महीने से प्यासे लोगों के लिए सबसे पहले मदिरालय खोल दिये । मंदिर इसलिए नहीं खोले कि वह तो भगवन भजन आप घर बैठे भी कर लेते हो ।
अरे ! टी वी पर यह क्या समाचार आ रहा है ? लॉक डाउन से पहले की तुलना में लॉकडाउन के दौरान अपराधों में बहुत कमी आयी है । मैंने सोचा - " कोरोना के भय ने चोर-डकैतों और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों पर अंकुश लगा रखा है ।"
मगर लॉकडाउन के दौरान "कोरोना वारियर्स अर्थात् डॉक्टर, नर्स और पुलिस" पर हमला, पत्थरबाजी और बदतमीजी के अपराध ही घटित हुए ।
अब सरकार ने ग्रीन जोन के लोगों के लिए अपने ही शहर में आने-जाने में और काम-काज में काफी छूट दे दी है । मेरा सिर घूम गया ।
लॉक डाउन में मैं अपने शहर व प्रदेश से काफी दूर अपने बेटे के घर दूसरे शहर व प्रदेश में फंँस जाने के कारण निश्चिन्त होकर रह रहा था । घर पर ताला लगाकर आया था । पड़ौसी से घर का ध्यान रखने को कह आया था ।
अभी टी वी समाचार में देखा कि शराब पीकर किसी ने आत्महत्या कर ली । महिलाएं शराब के विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं ।
अब जब लॉक डाउन में छूट दी गयी है तो मुझे भी अपने बंद घर की चिन्ता होने लगी है । क्योंकि सरकार ने सभी को अपने कामधंधो को करने में छूट जो दे दी है ।
भगवान मेरे घर का ताला सही सलामत रहे ।
सुना था कि अच्छाई का फल अच्छा ही मिलता है मगर आज ये भी असत्य प्रतीत होता है।जिन सम्बन्धो को लेकर वह मान करती थी,आज उनकी कृतज्ञता ने उसे चूर चूर कर दिया।
जिंदगी के मध्य मे ही माता पिता के वैकुण्ठ चले जाने के बाद शान्ति ने अपने दोनो भाई को बडा किया।अच्छी शिक्षा दिलवायी,बडे का मन पढाई मे न था तो स्नातक के बाद दुकान करवा दी , छोटा शुरू से ही पढने मे रूचि लेता था ।एम ए करते ही प्रतियोगी परीक्षा पास कर आयकर विभाग में नोकरी पा गया।सबकुछ ठीक ही चल रहा था।भाइयों की शादियाँ भी हो गई ।शान्ति को पता न लगा कि समय बदल रहा हैं वह उसी लय मे बही जा रही थी। अपनी भतीजी को संतान की तरह समझती रही थी क्योंकि उनका पालन पोषण शिक्षा सबकी व्यवस्था उसी ने की थी।एकदिन प्रियंका को उसने लैपटॉप पर गलत फिल्म देखते हुए पकड लिया।वह उसे बैठाकर जिंदगी की ऊँच नीच समझा रही थी कि उसकी भाभी ने पदार्पण किया और अपनी बेटी को बहकाने का आरोप लगा दिया।भाई से अपनी बात कहकर अपना पक्ष रखना चाहा मगर भाभी की चमकती आँखें देखकर भाईकी सच स्वीकार करने की हिम्मत नही पडी।बात बहस बढ गयीं शान्ति चिल्लाते हुए बोली,"रातो को जागने के लिए,डाक्टर के यहाँ जाने के लिए मै थी?""अब....आगे बात पूरी भी न हुई कि भाभी बोली,"तो क्या हुआ आपका फर्ज न था,रहती हो तो कर दिया कंही दूर होतीं तो क्या करती"।फर्ज का कर्ज तो उतारना होता है।
अपनी जिंदगी के बीस वर्षों के कर्मों का फल या पूर्व जन्म के दुष्कर्मो का दंड।
अपने भाई की कृतज्ञता के आगे वह कुछ न सोच सकी।
आज अचानक जब मोनिका को फेसबुक पर हंसते मुस्कुराते हुए अपने नातियों के साथ देखा। तो मन बहुत खुश हो गया ।
जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते है जब किसी दूसरे के जीवन की झांकी हमें बहुत कुछ सिखा जाती है। मोनिका की जीवन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी,याद आए वो दिन जब हम दोनों स्कूल से लेकर कालेज की पढ़ाई तक एक दूसरे की सच्ची दोस्ती निभाने में कौई कसर नहीं छोड़ते थेैं। बचपन से साथ खेल कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा और दोनों के घरों में तैयारियां होने लगीं थीं कि अब इन्हें पराए घर जाना है । मोनिका ब्रह्ममण परिवार की चार भाई बहनों में सबसे बड़ी संतान थी, खूबसूरत भी थी , पैसे की भी कमी न थी तो घर और वर दोनों सुयोग्य मिलने में कौई परेशानी तो होनी ही नहीं थी। सुयोग्य वर ढूंढने में रिश्तेदारों ने भी कौई कसर न छोड़ी , लेकिन सब कुछ अच्छा होने के बावजूद बात नहीं बन पाती थी , क्योंकि वर और कन्या की कुण्डली में पंडित जी कौई न कौई कमी निकाल ही देते थे।इस बीच मेरी शादी माता पिता ने अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा के अनुसार बिना कुंडली मिलान के कर दी।लेकिन मोनिका की कुंडली उसके घरवाले और रिश्तेदारों के कारण नहीं मिल पा रही थी । उम्र निकलती जा रही थी मोनिका अब अपना ध्यान पढ़ाई पर लगाने लगी थी और उसकी पी एच डी भी पूरी हो गयी थी।
एक दिन एक रिश्ता ऐसा भी आया कि लड़के वालों को उसकी छोटी बहन पसंद आ गयी और उसकी कुंडली भी लड़के से मिलान कर गयी। परिवार वालों ने मोनिका के भाग्य को कोसना शुरू कर दिया था, अब मोनिका की सहनशक्ति जवाब दे गयी थी और फिर उसने वो फैसला लिया जो परिवार वालों के खिलाफ, था ,, पहुंच गयी थी एक दिन सिध्दार्थ के घर जो उन दिनों छुट्टी में घर आया हुआ था,।हम सब के साथ उसने स्कूल से लेकर कालेज तक की पढ़ाई की थी और कभी कभी मजाक में कह देता था , मोनिका क्या मुझसे शादी करोगी?और मोनिका जिसे अपने परिवार और खूबसूरती पर नाज था मुंह बना कर कह देती थी ,इतने काले लड़के से कौन करेगा शादी ,मेरी तुम्हारी कुंडली तो यहीं मिलान नहीं करती,आगे तो भगवान ही मालिक होगा और वो अपना सा मुंह लेकर चुप हो जाता था । पढ़ने में और अन्य क्रियाकलापों में होशियार था ग्रेजुएशन करने के तुरंत बाद उसका चयन आर्मी में सेकंड लेफ़्टिनेंट के पद पर हो गया था,पर अब तक शादी नहीं की थी पूछने पर हंस कर कहता किसी से कुंडली मिलती नहीं जब मिल जाएगी तो कर लूंगा। अचानक मोनिका को सामने देख कर वो भी अपने घरपर, भौचक रह गया था , मोनिका ने बिना किसी औपचारिकता के सीधा सवाल किया था"सिध्दार्थ क्या मुझसे शादी करोगे?? सिध्दार्थ को समझ नहीं आया कि वो सपना है या हकीकत, अचकचा गया और बोला ....वो.. कुंडली....का मिलान.....बात पूरी से पहले ही मोनिका ने उसका हाथ पकड़ कर कहा "वो मैं मिला लूंगी बस तुम्हारी हां की जरुरत है।"सिध्दार्थ के मुंह से हां निकलते ही मोनिका ने घरवालों से पूछा शादी आप लोग करेंगे या मैं कोर्ट में कर लूं और फिर घरवालों ने अपनी बदनामी के डर से न चाहते हुए भी साधारण तरीके से शादी कर दी थी। अाज वहीं मोनिका अपनी छोटी बहन से भी ज्यादा सम्पन्न और सुखी थी क्योंकि उसने अपनी कुंडली खुद मिलायी थी।
✍️ मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कोर्ट रोड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412840699
आज पूरे ऑफिस में हँसी ठहाके गूंज रहे थे सबको जैसे हँसने की वजह मिल गई हो और लाजिमी भी है क्योंकि कई तो जिंदगी की भूल भुलैया में ऐसे उलझे कि ठहाके की तो छोड़िए सपने में मुस्कराना तक भूल गए थे मगर आज शिवानी शर्मा की वजह से सभी के चेहरे खुश नजर आ रहे थे; ऐसा नहीं था कि वे सभी खुश थे बस दूसरों का उपहास उड़ाने वाली हँसी ही सजी थी l
"मै तो यह कहता हूँ कि शिवानी जी को हो क्या गया है अरे अच्छी खासी जॉब दोनों बच्चे सेटल और उम्र पचपन .......क्या आवश्यकता थी इस उम्र में यह स्वांग रचने की ?"श्री विनोद शर्मा ने तम्बाखू चबाते हुए कहा l
"वही तो ....देखो न लोग क्या कहेंगे ?"इस बार मंजू श्री जो शिवानी की हमउम्र थीं ने चिंता व्यक्त की l
"मगर फिर भी उन्हौने जो किया सो किया उनको गिफ्ट तो देना ही होगा l"अवधेश जी ने अपने मन की बात कही l
"सच कहूँ बिल्कुल दिल नहीं कर रहा l"लता देवी ने मूँह बनाते हुए कहा l
"अरे विवाह किया ही तो पंद्रह साल पहले ही कर लेतीं कम से कम अच्छा पति तो मिल जाता ...कहाँ खुद पचपन की और मियाँ ढूँढे हैं अठत्तर के l"विनोद जी ने बमुश्किल हँसी को दबाते हुए कहा l
विनोद जी के शब्दों ने शिवानी के बढ़ते कदमों को रोक लिया उनकी मानसिकता देखकर वह सन्न नहीं हुईं क्योंकि उन्होने यह फैसला इन सब बातों पर विचार करने के बाद ही लिया था l
"क्या विवाह का मतलब सिर्फ देह सुख ही विनोद जी ?"शिवानी का स्वर सुन सभी भौचक्के रह गए और इधर उधर बगलें झांकने लगे l विनोद जी को तो काटो तो खून नहीं l
"सहारा ...मित्रता ..सुख- दुख बाँटना मन की बात कहने के लिए किसी सहारे की किसी अपने की आवश्यकता होती है या नहीं ....अगर मै विवाह दैहिक सुख के लिए ही करती तो पति की म्रत्यु के तुरंत बाद भी कर सकती थी मगर बच्चों की परवरिश की भी जिम्मेदारी थी न ;पता ही नहीं चला वक्त कैसे बीत गया ?"शिवानी का गला रूँध गया और आँखे भर आई देखकर सभी नजरें चुराते से दिखाई देने लगे l
"मुझे हक है मेरी जिंदगी के फैसले लेने का ....मुझे हक है सिर्फ मुझे l वैसे आज बहुत दिनों बाद ऑफिस में खिलखिलाते हुए चेहरों से रूबरू हुई हूँ इसलिए मिठाई तो बनती है l"शिवानी ने मिठाई के डिब्बे को खोलकर विनोद जी को देते हुए कहा l
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
आज बहुत दिन बाद बुधिया को जाम का नशा चढ़ा मन ही मन सोच कर परेशान "आखिर महामारी के चलते इस लॉक डाउन मा जब सब कुछ बन्द हुई गवा तो फिर ई ससुरा मदिरालय खुल कइसे गवा... खैर कउनो बात नाही कुछ तो खुला "। आनन्दsss
सुबह नशा उतरा और बुधिया फिर परेशान," जब कंस्ट्रक्शन का काम चल ही नही रहा तो हम का करेंगे यहां भिखारी की तरह पड़े पड़े। ना ढंग का भर पेट खाना न रहना ऊपर से शहर का अइसन बुरा व्यवहार हमको निकाल दिया खोली से.... का ऊ मकान मालकिन अनपढ़ है,मालूम नही का लॉक डाउन चल रहा। कैसे अब हम घर वालों को पैसा भेजेंगे कैसे मुनवा की पढ़ाई हुई है। काहें नाही समझत ई लोग काहे नाही समझत ई सरकार। नाही-नाही अब हमका जाई के पड़ी हम ना इहां रहिबै "।
ठीक तभी अपने मन की उधेड़ बुन मे बुधिया को पता चला कि जो मजदूर परिवार उनके साथ लाचारी मे फसा हुआ था उस पर एक और मुसीबत गिर पड़ी। वो मजदूर जो भोजन की व्यवस्था करने खाने का सामान जुटाने गया था। देश मे आपातकालीन स्थिती के चलते मृत लौटा उस मजदूर परिवार की औरत रोए जा रही थी दोनों बच्चो को सुबह से कुछ भी खाने नही मिला था। उसके मजदूर आदमी का अब कैसे अंतिम संस्कार किया जाए ये भी समझ नही आ रहा था। बुधिया ने जैसे तैसे पैसे मांग कर जुटाए और अंतिम संस्कार कर भोजन सामग्री उस परिवार तक ला कर दी। और फैसला किया चाहे भले गाँव मे ही कम खा-पहन जी लेंगे पर शहर के इस अमानवीय वातावरण मे नही लौटेंगे। बेशक कम मे रहेंगे पर अपने परिवार वालों को ऐसे हाल में नही छोड़ेंगे।
अब विभिन्न तरीकों से मजदूरों द्वारा सरकार से गुहार लगाई जा रही थी कि उन्हें उनके घर भिजवा दिया जाए उनकी यह गुहार सरकार तक पहुँची और उन सबको उनके गांव तक पहुँचाने के लिए ट्रेन भी चली पर यहां भी बुधिया परेशान उसे जाने के लिए स्पेशल चार्ज देना था जो के उसके पास नही था तभी उसकी मदद संग के सभी मजदूरों ने मिल कर की और वह अपने स्टेशन पर पहुँचा पर अफसोस वहां भी किस्मत का मारा बुधिया धक्के ही खाने मजबूर। गाँव वालों ने पूरा गाँव घेर कर बन्द कर डाला ताकी कोई बाहर का गाँव मे न आए और गाँव महामारी से सुरक्षित रहे। बुधिया को फिर परिवार से दूर वहां के सेनेटाइज किये हुए स्थान पर क्वारन्टाईन हो कर रहना पड़ा और अब तक बुधिया महामारी से संक्रमित हो चला था जिसको प्रशासन की गाड़ी ले जा चुकी थी और इलाज हेतु जिला अस्पताल में रखा गया जहां उसकी हालत बिगड़ती गई अंततः उसे अब छूना परिवार से मिलना सब मना हो गया और परिवार से मिलने कुछ कहने की सारी तंमन्नाए उसके साथ स्वाहा हो लीं।
रहा तो सिर्फ बुधिया का परिवार जो उस के सहारे ही पल रहा था....
रात के एक बजे का समय था। गहरी काली स्याह अंधेरी ...रात ...गांव के पीपल के पेड़ पर असंख्य जुगनू चम चम चमक रहे थे । मानो पूरे पेड़ पर सितारे जड़ें हों ...
गुलशन चबूतरे पर बैठा बड़ी गहरी सोच में डूबा हुआ उसे देखे जा रहा था तभी उसने अंधेरे में एक साया आते हुए देखा ..वह एक वृद्ध स्त्री थी जिसने अपने आप को एक काले लबदे से ढक रखा था ... धीरे-धीरे वह चबूतरे के किनारे -किनारे से गोपाल कुम्हार के घर की ओर बढ़ गई ... लौटते हुए गुलशन ने उसे टोका ,,किसे ढूंढ रही हो,,?..ठिठक कर बोली ,,यहां हरिशंकर का घर था !,,
,,वह तो कई साल पहले बेच कर दूसरे मुहल्ले में चला गया,,दो दिन पहले भी उसे इसी तरह जाते हुए गुलशन ने देखा था । गुलशन सोच में पड़ गया आखिर यह कौन स्त्री है जो बंजारन सी दिखाई देती है और रात के अंधेरे में गोपाल के घर की ओर जाती है ।कुछ दिन बाद मंदिर पर बहुत भीड़ लगी थी ,,...चोर! -चोर! बच्चा चोर !,,!का शोर मच रहा था ...गांव वालों ने एक स्त्री को घेर रखा था ...उस स्त्री के शरीर पर गोदना गुदा था मोटे-मोटे मनकों की कई मालाएं गले में पहन रखीं थीं, देखने में ही सपेरन मालूम पड़ती थी । लोगों ने रात उसे पंडित हरिशंकर के घर के पास से पकड़ा था। भीड़ उसको मारने पीटने को तैयार थी.. आगे बढ़कर गुलशन ने जानने की कोशिश की कि माजरा क्या है गहन पूछताछ पर पता लगा वह सपेरन है परंतु अपने आप को पंडित हरिशंकर की मां बता रही थी .,,.अरे वही हरि शंकर पंडित जो इंटरकालेज में संस्कृत साहित्य पढ़ाते हैं ।,,कोई मानने को तैयार नहीं था ... लालपुर में सपेरों के डेरे पड़े हैं वहीं से यह आई है स्त्री की उम्र साठ- बासठ साल होगी हरिशंकर ने देखते ही पहचानने से साफ मना कर दिया....तभी नब्बे साल के किसन लाल ने पहचान लिया ,, हां ये सही कह रही बीस साल पहले इसे सांप ने काट लिया था इस की मौत हो गई थी। मरने के बाद इसे नदी में बहा दिया गया था सपेरों ने निकाल कर इसे ज़िंदा कर लिया ,, ,,सुना था सपेरे ज़हर उतार कर जिंदा कर लेते हैं आज देख भी लिया,, । परन्तु हरिशंकर ने मानने से इंकार कर दिया।
दो ही महीने गुजरे थे कि हरिशंकर के छोटे बेटे दिनेश को सांप ने काट लिया और डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया ,,ब्लैक कोबरा ने काटा है ,,इंजेक्शन का भी असर नहीं हुआ,, हार कर लोगों ने कहा ,,सपेरन को ही बुलाकर लाओ ""क्या हरज है ,,?,,क्या पता ज़हर उतार ही दे ?,,हरिशंकर की पत्नी दहाड़े मार-मार कर रो रही थी.... आखिर कुछ लोग सपेरन को बुला लाये ... सपेरन ने चीरा लगाया ...बंध बांधे ..और मुंह से खून की चुस्की लगा दी.. तीन घण्टे बाद बालक को होश आने लगा ... परन्तु सपेरन की हालत बिगड़ने लगी अब हरिशंकर और उसकी पत्नी सपेरन को मां मानने को तैयार थे और ... जोर-जोर से बिलख रहे थे......
सुबह होते होते सपेरन ने दम तोड़ दिया .. परन्तु मरते हुए उसे सन्तोष था कि वह अपने पोते को बचा सकी .... सचमुच एक मां ही ऐसा कर सकती है ।
हरिशंकर ने विधि-विधान से अपनी मां का अंतिम संस्कार किया ।
✍️अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 8218825541
लॉक डाउन की लंबी अवधि में,वो भी बिना किसी रोजगार के ,शहर में रहना ,तीन बच्चो के पेट भरना ये सब समस्याओं को देख मोहन ने वापस गांव की तरफ लौटना उचित समझा । कमला भी अब उसकी हां में हाँ मिलती उसके पीछे चल दी ।किसी तरह मोहन गांव पहुँच गया । पहले दिन तो चचेरे तहरे भाइयों के घर से भोजन की व्यवस्था की गई । रामकली अम्मा जो बच्चों को जन्म के बाद नहलाती थी सबेरे ही जग भर छाछ दे गईं। कमला आज फिर से उस दिन को स्मरण करके पानी पानी हो गई जब घर वालों के लाख कहने पर भी पति के पीछे शहर को चल दी । मोहन को पता था कि दस हजार में गुजारा ही हो पायेगा फिर भी कमला की ऊंची नाक का गुस्सा नहीं उतर सका।रोने लगी ,सिसकी भर कर बोली कि मैं भी जैसे रखोगे चटनी से खा लूंगी पर भैंस गोबर को हाथ भी न लगाउंगी ।
पत्नी का दीवाना मोहन उसको ले गया ।अम्मा रोकती रही ,बापू भी गुजर गए पर कमला गांव नही आई ,मोहन को एक दिन की छुट्टी मिली सो अंतिम संस्कार के दिन ही आया ।बड़े भैया ने सब
काम सम्हाल दिया ।तीन बच्चे हो गए पर उसने एक दो बार गांव की तरफ रुख किया । आज इतने दिनों बाद भी गांव के लोगों का व्यवहार बदला नहीं जबकि शहर की उन तंग गलियों में वह चार साल रहा पर दुःख के दिनों में कभी गली मोहल्ले के लोगों ने उसकी खबर नहीं ली ।
इन्हीं विचारों में मग्न मोहन का पूरा दिन बीत गया ।कमला ने घर की सफाई की ।जाले झाड़े। पानी से घर आंगन तर किया ।पुरानी चीजों को फिर सजाया ।उसका बदला व्यवहार देख मोहन को उस पर प्यार आया । कमला को पास बुलाया और बोला 'अम्मा से माफी मांग लो , आज फिर हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे ।अम्मा की सेवा करेंगे तुम भाभी का हाथ बंटाना ओर मैं भैया का । यही हमारी भूलों का पश्चाताप होगा ।
मानसी त्यागी बहुचर्चित, सुप्रसिद्ध लेखिका है। अभी कल की ही बात है, अपनी किताब "नारी सशक्तिकरण" के लिए साहित्य अकादमी से नवाजी गई हैं।
मानसी के पति आलोक सफल व्यवसाई हैं। व्यवसाय के क्षेत्र में उन्होंने कई बार अवार्ड लिया है।
मानसी के मोबाइल पर एक कॉल आता है
.... हैलो , हेलो मैम....जी बताएं, कौन?
मैम बधाई,मै सूरज बोल रहा हूं....
आपके सम्मान में हमने कल एक कार्यक्रम आयोजित किया है।
आप आए और अपने अनुभव को युवा पीढ़ी के साथ साझा करे....मैम आप अपने पति को भी लाए,सम्मान हमने आपके पति से दिलवाने को सोचा है।
कल सुबह 9 बजे मैम ।
जी भाई ,बिल्कुल,मै समय पर आ जाऊंगी।
रात होते ही खुशी से झूम रही मानसी ने अपने पति से कहा..... आप सुनकर खुश हो जाएंगे,कल मेरा सम्मान समारोह है। और यह सम्मान आपके द्वारा ही देने का निर्णय लिया गया है।
आप साथ चलेंगे ना.....
आलोक- मैंने कई बार कहा, यह लिखना बंद करो ₹25000 की पुरस्कार से ज्यादा खुश ना हो। मेरे साथ काम कर लेती तो अच्छी खासी आमदनी हो जाती, पर लिखने की ज़िद...
मुझे फुर्सत नहीं है मेरा कल एक बिजनेस डील है...
और हां याद रखना समय पर घर आ जाना। कल रात मेरे 4-5 दोस्त घर आएंगे,खाना बनाकर रखना .....स्वादिष्ट
। आलमिरे में ऊपर के हिस्से में शराब की बोतल है,वो भी ग्लास में हमें देना।
अब सो जाओ,मुझे जल्दी काम पर जाना है....उदास मानसी
समझ नहीं पा रही थी क्या कहे क्या नहीं....पूरी रात यही सोचती रही "नारी सशक्तिकरण "पर लिखी किताब और उसका सम्मान सब बेमानी सा लग रहा है.............
प्रवीण राही
नगरपालिका वाले नालियों के ऊपर ढके गए पत्थर आकर तोड़ रहे थे । पूरे बाजार में तोड़फोड़ का यही दृश्य था । एक पत्रकार ने अधिकारियों से पूछा "अब तोड़ने के बाद आप क्या करेंगे ?"
वह बोला "हम क्या करेंगे ? हमें कुछ नहीं करना है । अब यह दुकानदार जानें कि वह क्या करेंगे । "फिर कुछ सेकंड के बाद उसके दिमाग में कुछ आया और कहने लगा " दुकानदार अब इस पर फोल्डिंग लोहे का जाल बनवा लें।"
पत्रकार ने प्रश्न किया "नाला आपका है। आपकी संपत्ति है । उस पर क्या करना चाहिए ,यह निर्णय भी आपका होना चाहिए और खर्च भी आपका ही होना चाहिए ?"
अधिकारी ने कहा "अगर कोई लोहे का जाल न बनवाना चाहे तो न बनवाए । उसकी मर्जी । हम उसे बाध्य थोड़े ही कर रहे हैं।"
पत्रकार ने फिर प्रश्न किया "अगर किसी ने लोहे का जाल नहीं बनवाया और नाली खुली रही तथा उसमें कूड़ा कचरा गिरता रहा अथवा कोई व्यक्ति दिन में ही नाली में गिर गया ,तब उसका दोष किस पर आएगा ?"
अधिकारी झल्ला उठा " इसीलिए तो हम कह रहे हैं कि लोहे का जाल बनवा लो।"
पत्रकार ने फिर से प्रश्न किया" लोहे का जाल तो केवल दिन में ही पड़ेगा। जब व्यापारी दुकान बंद करके चला जाएगा, तब नालियाँ खुली रहेंगी। हादसा उसके बाद भी कभी भी हो सकता है ।"
अधिकारी ने क्रुद्ध होकर पूछा "तो आप क्या चाहते हैं ? "
पत्रकार ने शांत भाव से कहा "नालियों के स्थान को सड़क में शामिल कर लिया जाए । दोनों ओर से दो-दो फीट जगह सड़क की बढ़ जाएगी । यातायात सुगम हो जाएगा । समस्या का स्थाई हल निकलेगा।"
अधिकारी ने उपेक्षा के भाव से पत्रकार को देखा और कहा "यह मेरे हाथ में नहीं है। मैं केवल तोड़ सकता हूँ।"
✍️रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99 97 61 545 1
घर पर रहकर प्यारे बच्चे,
बोर नहीं अब होना तुम |
नित नई मिठाई खाकर,
मन ही मन खुश हाेना तुम |
कभी जलेबी कभी रसगुल्ला,
कभी रसमलाई खुल्लमखुल्ला |
नई इमरती फिर बस बालूशाही ,
जी भर खाओ मिलकर भाई |
आलू टिक्की और पानी पूरी
इडली डाेसा फिर गर्म कचौड़ी |
प्यारे मिल जुल खाओ तुम,
जी भर मौज मनाओ तुम |
लॉकडाउन का पालन करना,
सभी सुरक्षित घर में रहना |
दाे गज दूरी सबकाे समझाना,
बस याद रहे काेराेना काे हराना |
✍🏻सीमा रानी
अमराेहा
मोबाइल फोन नंबर 7536800712
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काश, श्याम बादल बन जाऊँ
नील-गगन में दूर-दूर तक
सैर- सपाटा मैं कर आऊँ
जब देखूँ यह सूखी धरती
उमड़- घुमड़ कर शोर मचाऊँ
बूँदें बनकर पानी लाऊँ
छम-छम कर बरसूं हर्षाऊँ
शुष्क धरा की प्यास बुझाऊँ
ला हरियाली हरा बनाऊँ
काश श्याम बादल बन जाऊँ
✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
मोबाइल 9456222230
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मुश्किल बहुत 'कमल' होता है।
बच्चों पर भी कविता लिखना।।
बच्चे कितने सीधे-साधे,
सरल हृदय होते मतवाले।
पढ़ना-लिखना,खेल-खिलौने,
काम करें ये अज़ब निराले ।
बात-बात में ये हैं रूठें,
चलता रहता कहना- सुनना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।
शादी-ब्याह रचाते बच्चे,
गुड्डों के सँग खेले गुड़िया ।
ये वो क्या सब मिलकर खायें,
भाती है काते की बुढ़िया ।
पल में रोना,पल में हँसना,
सँग-सँग खेलें भय्या-बहना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।
मत पूछो,मैं अपना बचपन,
भूल कहाँ आया हूँ, माधो!
उन बागों, चौबारों को मैं--
छोड़ चला आया हूँ, साधो!
गिल्ली-डंडा,दौड़- भाग सब,
धमा-चौकड़ी, का क्या कहना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।
अब बच्चों में खोज रहा हूँ,
कैसा अचरज,अपना बचपन।
जोगी में जोगा को देखूँ,
पार हो गया अब तो पचपन।
बच्चों में अपनी दुनिया है ।
धूप-छाँव में सब कुछ सहना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।
✍️जितेन्द्र कमल आनंद
मंगल भवन, सांई विहार कालोनी,
रामपुर 244901
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 73006-35812
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गोलू आओ, मोलू आओ,
मोनीचंद बतोलू आओ,
प्रेम एकता भाईचारा,
सारी दुनियाँ में फैलाओ।
घर से दूध जलेबी लाओ,
सबके साथ बैठकर खाओ,
कम मिलने पर जोभी रूठे,
सारे मिलकर उसे मनाओ।
रंग - बिरंगी नाव बनाओ,
पानी में उनको तैराओ,
सिर्फ दोस्ती रखो सभी से,
कुट्टी करके मत दिखलाओ।
सोओ जल्द शीघ्रउठ जाओ,
नहीं समय को व्यर्थ गंवाओ,
खोया समय नहीं लौटेगा,
सदा सत्य को गले लगाओ।
मात-पिता को सीस नवाओ,
खा पीकर विद्यालय जाओ,
ध्यान लगाकर करो पढ़ाई,
नहीं गुरु की हंसी उड़ाओ,
अश्वथ,फ्योना तुमभीआओ,
अन्वी, अस्मी को भी लाओ,
देखो कोयल कुहुक रही है,
मीठे स्वर का साथ निभाओ।
गोलू आओ-----------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9719275453
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तितली रानी ज़रा बताओ,
कौन देश से आती हो।
रस पी कर फूलों का सारा,
भला कहाँ छिप जाती हो।
इधर उधर उड़ती रहती तुम,
मन को बड़ा लुभाती हो।
अपने सुन्दर पंखों पर तुम,
लगता है इठलाती हो।
सब फूलों पर बैठ बैठ कर,
अपनी कला दिखाती हो।
पास मगर आने में सबके,
तुम थोड़ा सकुचाती हो।
पीले काले लाल बैंगनी,
कितने रंग सजाती हो।
मुझको तो लगता है ऐसा,
होली रोज़ मनाती हो।
✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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मान कहना आदरणीय आपका
घर से बाहर न हम निकलेंगे
हम है देश के अनुशासित बच्चे
सीख आपकी सब मानेंगे
कोरोना को हराने के लिए
लोकडाउन का पालन हम करेंगे
देश हित में जो करना होगा
उससे कभी न पीछे हटेंगे
रखो भरोसा,संकट के बादल
हमको डरा न पायेंगे
स्वयं प्रभा,दीक्षा के ज़रिए
पढ़ते नितदिन हम जायेंगे
कर रहे ख़ुद को तैयार
किसी मुसीबत से न घबरायेंगे
दहशत कोरोना के जो भी फैले
मनोबल को हमारे तोड़ न पायेंगे
योग,मनन ,चिंतन से
आंतरिक शक्ति को अपनी बढ़ायेंगे
मज़बूत इरादे देख हमारे
दाँतों तले उँगली लोग दबायेंगे
करते है वादा आपसे
देश का अपने सिर न झुकायेंगे
बन मिसाल दुनिया के समक्ष
अपने देश का मान बढ़ायेंगे
✍️प्रीति चौधरी
(शिक्षिका)
राजकीय बालिका इण्टर कालेज
हसनपुर(अमरोहा)
मोबाइल -9634395599
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एक था कौवा एक थी चील
बीच में उनके एक थी झील .
दोनों में हो गईऐसी दोस्ती
जिसके चर्चे गूंजे बस्ती बस्ती .
कौवा का नाम था राजू
चील कहलाती थी काजू .
दोनों दिन भर साथ में रहते
खूब धमाचौकड़ी दोनों करते .
जब शाम को दोनों बिछड़ते
आँखों से उनके आंसू उमड़ते .
अपनी दोस्ती पर खूब इतराते
हँसते गाते दोनों धूम मचाते .
एक दूजे के काम में आते
दोनों दोस्ती खूब निभाते .
होमवर्क मिलजुलकर करते
माता पिता की आज्ञा मानते .
दोनों मम्मी पापा संग हाथ बांटते
शाम को फिर दोनों खेलने जाते .
✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
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मम्मी- पापा ! हमें बताओ,
क्या होता है आयुष क्वाथ?
इसको पीकर रहो सुरक्षित
सभी कह रहे एक ही बात ।।
राजा बेटा, रानी बिटिया,
प्रश्न तुम्हारा, मन भाया।
आयुष क्वाथ वहीं था बच्चों
दादी ने जो पिलवाया।।
तुलसी पत्र, सोठं या अदरक
काली मिर्च, दालचीनी ।
उन्हें पकाकर पानी में ,
वह दवा छानकर है पीनी ।।
ये ही आयुष क्वाथ है बच्चों,
रखे स्वस्थ इम्यूनिटी सिस्टम ।
इम्युनिटी मजबूत अगर तो,
नहीं बीमार पड़ेंगे हम ।।
इसी दवा को कहते काढ़ा,
नाम इसी का आयुष क्वाथ।
थैंक्यू मम्मी, थैंक यू पापा!
समझ गए हम सारी बात।।
✍️ डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर, उत्तर प्रदेश
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कोरोना के जाल में
बच्चे हैं किस हाल में
इस की झांकी देखिए
जंग है बाकी देखिए
लंबी छुट्टी में भी घर में
रहने को मजबूर हुए
नानी के घर जाने के सब
सपने चकना चूर हुए
ऊब गए सब बच्चे नित
अब धमा चौकड़ी करते हैं
कभी खेलते कैरम, लूडो
कभी खेल में लड़ते हैं
पूछ रहे हैं प्रश्न पहेली
सूरज चंदा तारों पर
रंग बिरंगी तितली परियों
फूलों और बहारों पर
बन जाते हैं रेल खेल में
सीटी कभी बजाते हैं
दौड़ कभी ऊपर जाते हैं
छत पर पतंग उड़ाते हैं
किंतु कभी कोरोना पर जब
मिल वह बातें करते हैं
प्रश्न करें दादी से क्यों सब
कोरोना से डरते हैं
दादी कहती यह बीमारी
नई चीन से आई है
महामारी बनकर इसने
दुनिया की नींद उड़ाई है
दादी कोरोना से कह दो
अपने घर वापस जाये
और यदि है नहीं ठिकाना
डूब नदी में मर जाए
✍️ अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर - 8218825541
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जन्मदिवस पर सबसे अच्छा,
पौधा हो उपहार।
उजड़ रहे हैं चहुँ दिशि उपवन,
बहुत विकट लाचारी।
ऐसे में तुम पर भी बच्चो,
आई ज़िम्मेदारी।
हरा भरा कल लाने को अब,
हो जाओ तैयार।
जन्मदिवस पर सबसे अच्छा,
पौधा हो उपहार।
आदत में अब कर लो शामिल,
क्यारी सदा सजाना।
हरियाली से ही जीवन है,
जन-जन को समझाना।
तुम ले जा सकते हो भू को,
इस संकट से पार।
जन्मदिवस पर सबसे अच्छा,
पौधा हो उपहार।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुहल्ला डिप्टी गंज
मुरादाबाद।
मो० 8941912642
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कोरोना तू जा जा जा।
खा के जहर कहीं मर जा।।
बहुत हो चुका तेरा राज।
बंद घरों में हैं हम आज।।
लॉबी, कमरा, बालकनी।
बस इतनी दुनिया अपनी।।
बंद हुआ है मौज मजा।
कोरोना तू अब तो जा।
कब हम बाहर जायेंगे।
यारों सँग बतियायेंगे।
फिर कब पिक्चर देखेंगे।
इंटरवल में खायेंगे।
डोसा,बर्गर या पिज्जा।
कोरोना तू अब तो जा।
घर यदि खुल भी जायेंगे।
गले न हम लग पायेंगे।
लंचबॉक्स इक दूजे के,
छूने से कतरायेंगे।
बहुत दे चुका हमें सजा।
कोरोना तू अब तो जा।
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं,
आपी को फिर सबक सिखाऊं।
कैसे मुझपर हुक्म चलातीं,
बात न मानू चपत लगातीं।
मैं भी उनपर हुक्म चलाऊँ,
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
सुबह सवेरे मुझे जगाती,
कुल्ला मंजन खूब कराती।
सर्दी में भी हैं नहलाती,
मग भरकर फिर दूध पिलातीं।
चाहे मैं जितना चिल्लाऊं,
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
शाला से जब घर आता हूं,
आपी को हँसते पाता हूं,
खुश होकर के मुझे चिढ़ातीं।
मुझसे कहतीं पानी लाऊं,
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
मुन्ना कहकर मुझे बुलातीं,
काफी देर में खाना लातीं।
खाना खाकर हाथ धुलातीं,
फिर कहती है सबक सुनाऊं।
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
अम्मा कहती आपी एक दिन,
हम सबसे जायेगी छिन।
प्यारा सा दूल्हा आयेगा,
आपी को संग ले जाएगा।
जब से अम्मा यह बतलाई,
मुझे रात भर नींद न आई।
चाहे आपी रोज सताये,
मुझे छोड़कर कहीं न जाये।
चाहे मुझ पर वह चिल्लाए,
या फिर मै उसपर चिल्लाऊं।
चाहे जितना बड़ा हो जाऊं,
आपी से छोटा कहलाऊं।
अलग पले दादा -दादी का
साथ न मिल पाया,
चाचा -चाची बुआ सभी
का मेहमानी साया,
एक अकेली आया है बस
रिश्ते नहीं रहे,,
रंग -बिरंगे फूल- तितलियां
सब मॉनिटर पर,
आभासी दुनिया में जीते
हम ऐसे अवसर,
धूप सुनहरी क्या, वह छत
वह अंगने नहीं रहे,,
भेंट चढ़ गई प्रदूषण की
होली - दीवाली,
क्या खुशियां त्योहारी सब
लगता खाली खाली,
वह त्योहारी रंग-बिरंगे
सपने नहीं रहे,,
लगे हमारे बचपन में अब
सुर्खाबों के पर,
केवल शिष्टाचार ओढ़
जीना होता अक्सर,
बचपन से बतियाते दो पल
सच्चे नहीं रहे,
हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,,...
✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मोबाइल फोन नम्बर 63970 93523
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खेल खेलना बंद किया है।
घर के अंदर बंद किया है ।।
खाने में शकरंद दिया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
पढ़ना-लिखना बंद किया है ।
बातें करना चंद किया है ।।
गाने को बस छंद दिया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
कब तक खेलें घर में घुसकर ।
कितना देखें टी वी पिक्चर ।।
कैसा यह अब दण्ड दिया है।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
चीन ने भी न सोचा होगा ।
बच्चे-बूढ़ों का क्या होगा?
सब कुछ उसने खण्ड किया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
कब तक तेरा रोना होगा ।
सत्यानाश जल्द ही होगा ।।
तूने क्या पाखण्ड किया है ?
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
पापा भी आफिस कब जाते ।
जैसे-तैसे खर्च चलाते ।।
तूने सबको झण्ड किया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
✍️ राम किशोर वर्मा
जयपुर (राजस्थान)
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याद बहुत आती है हमको
प्यारे से विद्यालय मेरे ।
कब आयगा समय वो प्यारा
जब आएंगे द्वारे तेरे ।
शिक्षक बन्धु याद है आते
जिनका ज्ञान बड़ा अनमोल
कभी दिखाते हमपर गुस्सा
कभी बोलते मीठे बोल।
अबतो आलस बहुत सताय
पहले उठते रोज सबेरे ।
कब,,,,,,,,,,,,
छूट गए वो प्यारे साथी
जिनसे प्यार जताते थे
कभी लड़ाई कभी मेल से
उनको गले लगाते थे
हे प्रभु !सुनलो विनती हमारी
हम है अवसादों ने घेरे ।
कब,,,,,
माँ-पापा का कभी ना जग में
दिल तुम छोटा करना
तीखे बोलों से तुम उनको
कभी न आहत करना
तुम बच्चों की खातिर ही तो
नयनों में सपने पलते
उन नयनों में घृणा टीस के
मोती न जड़ने देना
अवगुण भी गुण बन जातें हैं
हम जब नम्र बन जाते
आशीर्वादों की छाया में
हम सब सुख में रहते ।
मर्यादाओं का रामराज्य
धरती पर लाना है
धरती है ये रत्न प्रसविनी
इसको हरा बनाना है ।।।।
माँ पापा का कभी ना जग में
दिल छोटा तुम करना
तीखे बोलों से तुम उनको
कभी ना आहत करना।।।।
✍️ मनोरमा शर्मा
जट बाजार
अमरोहा
मोबाइल नं.7017514665
:::::::::::::::::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::::::::::::::;:: डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
ममता और वात्सल्य की
पवित्र दिव्य मूरत
अपनी संतान के लिए
माँ है सबसे खूबसूरत ।
प्रेम, स्नेह से परिपूर्ण,
ईश्वर की कृत सर्वश्रेष्ठ रचना
सर्वप्रथम गुरुकुल,
सर्वप्रथम गुरु,
माँ है हर कार्य में निपुण।
माँ सा समर्पण संभव नहीं
संतान के लिए ही जीती माँ
त्याग माँ के समान
कोई कर सकता नहीं।
सर्वशक्तिशाली माँ खड़ी विरुद्ध
ढ़ाल बन संतान की ओर
आती हर मुश्किलों के ।
माँ तो है वो पावन धरा
जो खुद होकर बंजर
करती सर्वश्रेष्ठ पोषण
प्रत्येक संतान का।
मार्गदर्शन करती संतान का
एक सफल जीवन की ओर ।
कच्ची मिट्टी सी संतान को
देती रूप एक भले मानव का ।
माँ की व्याख्या कर सके
ताकत नहीं किसी कलम में ।
जीवन की तपिश में
अपनी शीतल छाया देती माँ।
मेरे सर्वस्व की पहचान है माँ
ईश्वर का वरदान है माँ।
लगता है तुम यहीं कहीं हो, छिपी हमारे पास।
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
तुमने ही जन्म दिया मुझको, जब आँख खुली तुमको पाया
पहला स्पर्श तुम्हारा था, तुमसे ही संरक्षण पाया
तेरे आँचल का माँ अब भी, होता है आभास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
जीवन का पहला पाठ मुझे, तुमने ही तो बतलाया था
ठोकर खाना गिरना उठना, उठकर चलना सिखलाया था
तेरी उँगली हरदम रहती, थी मेरे ही पास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
खुद आधी रोटी खाती थी, हमको भरपेट खिलाती थी
घर के खर्चों से बचा बचा, सबको कपड़े सिलवाती थी
मेरे वजूद में दिखता है माँ, तेरा ही विश्वास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
अब तो अम्मा तुम बस मेरे, सपनों में ही आती हो
बस यादों में ही आकर तुम, मुझको बड़ा रुलाती हो
काश स्वप्न सच्चे हो सकते, रहे ह्दय मे आस
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
मुझसे ज्यादा बहू तुम्हारी, याद तुम्हें अब करती है
तुम जैसा ही प्यार आज, अपनी बहुओं को देती है
पदचिन्हों पर चले तुम्हारे, बन बैठी है सास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।
जाड़ों की गुनगुनी धूप
जेष्ठ की गर्मी में शीतल हवा
सावन में भीनी भीनी फुहार
संस्कृति की आदर्श
आशाओं की उत्कर्ष
मान -सम्मान से भरपूर
कुरीतियों से बहुत दूर
संस्कृति का वृहद आकार
आँखों में पढ़ने को अखबार
सेवा भाव में एक मिसाल
खुली खिड़की सा दिल
इरादों में बरगद
संस्कारों में बेमिसाल
श्रेष्ठता में सर्व श्रेष्ठ
आशीषों की पोटली
कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।
अनोखी निराली थीं
माँ ।
✍️अशोक विश्नोई
इधर सरकार
पृथकता और स्वच्छता का पाठ पढ़ाती रही
घर के अंदर रहना
और बार बार हाथ धोना सिखाती रही
सनिटाइज करती रही
शहर का कोना कोना
उधर कुछ मजदूरों को पड़ गया
जीवन से हाथ धोना
वे मजदूर थे
घर से,परिवार से बहुत दूर थे
भूख प्यास और भविष्य की चिंता से
उनकी हड्डियां हिल रही थीं
सहायता और सहानुभूति
सिर्फ कागजों पर मिल रही थीं
पारिवारिक मोह में
वे इतना अधिक मगरूर हो गए
पास आने को निकले थे
हमेशा के लिए दूर हो गए
चाहते थे,बिखरते जीवन को
पटरी पर लाना
नहीं जानते थे
बन जाएगा वो अंतिम ठिकाना
उनका ये बलिदान
व्यर्थ नहीं जाना चाहिए
हम सबको मिलकर
उनके,और सही अर्थों में अपने
अस्तित्व को बचाना चाहिए
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड,मुरादाबाद -244001
M -9837189600
ममता का अमूल्य उपहार है मां !!
वात्सल्य की अजस्र जलधार है मां !!
खुद पीड़ा सहकर मां,पीड़ा से बचाती है !
दिन रात जागकर मां,बेटे को सुलाती है !
आंख मूंद ले लाल,सपनों में खो जा रे लाल ,
खुद थककर भी मां ,लोरियाँ सुनाती है !
जीवन है, अमृत की रसधार है मां !!
ममता का अमूल्य उपहार है मां !!
जब बाहर जाता हूँ, मां चिंतित रहती है !
हर आहट पर उठती, दरवाजा तकती है !
सबसे पूछती है, आया क्यों नहीं अब तक ?
जब तक न लौटूं घर,मां जागती मिलती है !
भीगी आंखों का,अधीर इंतज़ार है मां !!
ममता का अमूल्य उपहार है मां !!
जब तक नहीं खाता मैं, वह भूखी रहती है !
सूखी आंतों में वह ,इतनी ताकत रखती है !
खुद सूखा खाती है, मुझे घी दूध पिलाती है !
खुद आंसू पीती है,पर मुझको हंसाती है !
हर्ष और उल्लास का,एक संसार है मां !!
ममता का अमूल्य उपहार है मां !!
प्रेम और अनुराग, मां का आंचल देता है !
धूप और छांव का,सुखद अहसास देता है !
धरती सा धैर्य, स्वर्ग सा आकाश देता है !
तिमिर से पूरित मन को, प्रकाश देता है !
नेह और करुणा का,अमित भंडार है मां !!
ममता का अमूल्य उपहार है मां !!