रविवार, 14 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत 12 व 13 मार्च 2021 को दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन

 



प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उनकी रचनाएं, चित्र तथा उनसे सम्बंधित सामग्री प्रस्तुत की गई। इन पर चर्चा के दौरान साहित्यकारों ने कहा कि कैलाश जी प्रणय के उन्मुक्त गायक थे।उनके सृजन का आधार प्रेम और श्रृंगार का आदर्श रूप था । उनके गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव मिलता है। उनकी रचनाओं में प्रेम का मर्यादित रूप देखने को मिलता है ।


कार्यक्रम संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कैलाश चन्द्र अग्रवाल के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 8 दिसम्बर 1927 को मुरादाबाद में जन्में कैलाश चन्द्र अग्रवाल के प्रारम्भिक गीतों का प्रतिनिधि संकलन वर्ष 1965 में "सुधियों की रिमझिम में" स्थानीय आलोक प्रकाशन मंडी बांस के माध्यम से पाठकों को प्राप्त हुआ, जिसमें उनकी 1947 ई. से 1965 ई. तक की काव्य यात्रा के विभिन्न पड़ाव समाहित है। चौसठ गीतों  के इस संकलन के पश्चात कवि की यात्रा वर्ष 1981 में 'प्यार की देहरी' पर पहुंची। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनके सन 1965 के पश्चात रचे गए 81 गीत संगृहीत हैं । वर्ष 1982 में उनका मुक्तक संग्रह 'अनुभूति' प्रकाशित हुआ, जिसमें वर्ष 1971 से 1981 तक लिखे गए 351 मुक्तक संगृहीत हैं। यह यात्रा आगे बढ़ी और वर्ष 1984 में 'आस्था के झरोखों' से होती हुई वर्ष 1985 में "तुम्हारे गीत -तुम्ही को" गीत संग्रह के माध्यम से हिन्दी साहित्य की गीत विधा के भंडार को भरने तथा छन्दोबद्ध काव्य रचना करने की प्रेरणा देती रही ।वर्ष 1989 में गीत संग्रह "तुम्हारी पूजा के स्वर" पाठकों के सम्मुख प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा आया । इसमें आपके जनवरी 1986 से फरवरी 1988 तक रचे गये 71 गीत संगृहीत है। अंतिम सातवीं कृति के रूप उनका गीत संग्रह 'मैं तुम्हारा ही रहूंगा' पाठकों के समक्ष आया। इसका प्रकाशन सन 1993 में हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ।इसमें उनके अप्रैल सन 1989 से मार्च 1992 के मध्य रचे 71 गीत संगृहीत हैं। कुल मिलाकर 441 गीतों और 351 मुक्तको के माध्यम से हिन्दी काव्य के भंडार में अपना योगदान दिया है । इसके अतिरिक्त डॉ रामानन्द शर्मा और डॉ महेश दिवाकर के सम्पादन में  रीति शोधपीठ द्वारा 'कैलाश चन्द्र अग्रवाल : जीवन और काव्यसृष्टि' पुस्तक प्रकाशित हुई । उन्होंने बताया कि कैलाश चंद अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य भी हो चुके हैं। वर्ष 1992 में कंचन प्रभाती ने कैलाश चंद अग्रवाल के काव्य में प्रणय तत्व शीर्षक से डॉ सरोज मार्कंडेय के निर्देशन में लघु शोध कार्य किया ।तत्पश्चात वर्ष 1995 में उन्होंने डॉ रामानंद शर्मा के निर्देशन में रुहेलखंड के प्रमुख छायावादोत्तर गीतिकार एवं श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीति काव्य का अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण कर पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2002 में गरिमा शर्मा ने डॉ मीना कौल के निर्देशन में स्वर्गीय कैलाश चंद अग्रवाल (जीवन सृजन और मूल्यांकन )शीर्षक से लघु शोध कार्य किया। वर्ष 2008 में श्रीमती मीनाक्षी वर्मा ने डॉ मीना कौल के ही निर्देशन में स्वर्गीय श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीतों का समीक्षात्मक अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण किया। उनका निधन 31 जनवरी 1996 को हुआ ।।

  महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि 



प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रणय की अभिव्यक्ति के अपने ढंग के अनूठे रचनाकार हैं ,उनके गीतों की रचनाभूमि उनकी निजी और मौलिक भूमि है ठीक उसी तरह जैसे उनके मुक्तकों की रचना दृष्टि और भावभूमि अपनी है किसी ख़य्याम की रूबाइयों की छाया से मुक्त हिंदी के मात्रा या छान्दस विधान में बंधी रची । उनके गीत लक्षणा या व्यंजना की जगह अभिधामूलक हैं ।सहज संप्रेषणीय ।

हिन्दू महाविद्यालय, मुरादाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानन्द शर्मा ने कहा कि  कैलाश चंद्र अग्रवाल जी ने अपनी गीतों की रचना में अपने अनुभूत सुख दुख को ही वाणी दी है यद्यपि इनमें प्रणयानुभूति प्रमुख है, जो जीवन और परिस्थितियों के अनुरूप निरंतर और भव्य स्वरूप प्राप्त करती रही है। उनके गीत उदात्त और मंगलमय हैं।
प्रख्यात साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा -  कैलाश जी प्रणय के उन्मुक्त गायक हैं।उनकी प्रणय-भावना मार्मिक और विशुद्ध अनुभूति पर आधारित है। प्रणय-भावना के साक्षात्कार उन्होंने अपने जीवन से बटोरे हैं। वस्तुतः उनकी प्रणय-भावना उनके मानस-मन्थन की उपज है उनकी प्रणय-भावना प्रणय की साहसिक अभिव्यक्ति है, उसमें पौरुष का सशक्त स्वर है तथा वह निराडम्बर और सपाट-बयानी में विश्वास रखती है ।
केजीके महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप  ने कहा मुरादाबाद मंडल के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार कैलाश चन्द्र अग्रवाल अपनी कालजयी रचनाओं के साथ, प्रेम और श्रृंगार के आदर्श रूप को अपने सृजन का आधार बनाते हैं, साथ ही यथार्थ का चित्रण उनके गीतों व मुक्तकों में देखने को मिलता है । उनका कवि हृदय सिर्फ प्रेम का ही चितेरा नहीं है बल्कि उनके साहित्य में जन चेतना व लोक कल्याण की भावना भी देखने को मिलता है । वह जन मन को सुरभित करने वाले जीवन संघर्ष के प्रति आस्था रखने वाले कवि हैं । उनकी कविता में -आँसू की वेदना है ,पीड़ा है , कामायनी का आनन्द है तो पंत जी की ग्रन्थि का अनुनय ग्रन्थिबन्धन है ,निराला जी की तरह शक्ति पाने  का मार्ग भी है।
आर्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,पानीपत में हिन्दी प्राध्यापिका डॉ कंचन प्रभाती ने कहा कि  कैलाश जी के गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव है। 'कविता' सीधे उनके जीवन से फूटकर आयी है। यह उनके जीवन की अनिवार्यता थी, विवशता थी, यानी उनके जीने की शर्त, जो प्रीति का रूप धारण करके विविध रूपों में फूट पड़ी। वे वास्तव में वे जन-मन को सुरभित करने वाले तथा जीवन-संघर्ष में आस्था वाले कवि थे।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि कैलाश जी के मुक्तक परिवार, व्यक्ति और समाज की मर्यादा के लिए मानक है। छन्द, भाषा, भाव, गति, यति, का दोष कैलाश जी की रचनाओं में नहीं है।
भाषा की प्रांजलता आकर्षण भरी है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि प्रेम को स्वर देने वाले कवि थे श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल।  उनकी अधिकांश रचनाएं विभिन्न परिस्थितियों में प्रेम की व्याख्या करती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। उनका प्रेम वासना से बिल्कुल अलग है। वह कोई प्रतिदान नहीं मांगता है। उन्होंने प्रेम के शाश्वत स्वरूप को भी उद्धृ‍त करते हुए प्रेम को भक्ति के साथ जोड़ते हुए प्रेम के आध्यात्मिक पक्ष को भी दर्शाया है। उनकी रचनाओं में कथ्य बिल्कुल स्पष्ट है, भाषा अत्यंत सरल व सुग्राह्य है, शब्दों का चयन, शिल्प व छंदबद्धता के दृष्टिकोण से परिपूर्ण हैं।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि   कीर्तिशेष  कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रेम और समर्पण के शाश्वत स्वर थे। जितना अच्छा उनका छंद प्रबन्ध है उतना मधुर कंठ के स्वामी भी थे  भाषा का प्रयोग सहज सुगमबोधजन्य था । वे प्रणय पुजारी के रूप में एकनिष्ठ व्यक्तित्व थे उनकी रचनाएं मानवीय प्रेम से ईश्वरीय प्रेम की अलौकिक भाव सम्वेदनाओं का मर्म आभासित  कराती हैं ।गीतों में करुण वेदना की रागात्मकता का अक्षुण्य दर्शन सर्वत्र व्याप्त है।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि  कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रणय गीतों के संवाहक थे ।वह बहुत ही मृदुभाषी सादगी पसन्द रचनाकार थे।मेरा उनसे परिचय स्मृति शेष श्री दिग्गज मुरादाबादी के माध्यम से हुआ था।फिर कटघर में उनकी अध्यक्षता में मुझे रचना पाठ करने का अवसर मिला , तब मैनें जाना कि अधीर जी के गीतों का कितना बड़ा फ़लक है ।
वरिष्ठ कवि आमोद कुमार अग्रवाल ने कहा कि  कैलाश चन्द्र अग्रवाल के गीतों मे जो घनीभूत वेदना परिलक्षित होती है वह वैसी ही है जैसी मीरा के मन में श्रीकृष्ण के प्रेम की थी। उनकी रचनाओं से स्पष्ट है कि उनके लिए प्रेम वही है जो सामान्य जन के दुख की चिन्ता करता हो।
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि उनकी  काव्य साधना में वियोग की पीड़ा और कर्तव्य की अभिलाषा के संवेदनशील स्वर हैं। श्रंगार का वियोग पक्ष आपने जिस मार्मिकता के साथ लिखा है ,वह हृदय की वास्तविक वेदना को प्रकट करता है । प्रेम के संबंध में आपका एक-एक मुक्तक सचमुच प्रेम को समर्पण की ऊँचाइयों तक ले जाता है । उनके गीतों में सामाजिक चेतना का स्वर भी मिलता है । 
 चर्चित साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा - कीर्तिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल  प्रेम और भक्ति के गीतों के समृद्ध रचनाकार थे। कविता को केवल लिखना और कविता को अपने भीतर जीकर लिखना, दो अलग-अलग बातें हैं। उनके  गीतों और मुक्तकों से गुज़रते हुए यह कहा जा सकता है कि कैलाश जी कविता को अपने भीतर जीकर लिखने वाले बड़े रचनाकार थे।
अफजलगढ़ (बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी ने कैलाश चंद अग्रवाल की कृति 'प्यार की देहरी पर ' के संदर्भ में कहा कि प्यार एक रुमानी, पवित्र. कोमल. करुण भावना है, ..इन्हीं भावों को दृष्टिगत करते हुए यह गीत संग्रह रचा गया है । उन्होंने प्यार को साधना से युग्म करते हुए भक्ति मार्ग का उत्प्रेरक प्रदर्शित किया है। प्यार एक ऐसी भावना है जिसे मौन रहकर ही महसूस किया जा सकता है।प्यार परवशता का पर्याय है। उनकी प्यार जनित काव्य रचनाएँ हृदय तल को स्पर्श करती चलती हैं, मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती चलती हैं, और जीवन के प्रीत पूर्ण अनेक आयामों का दिग्दर्शन कराती चलती हैं।
साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट  ने कहा कि कीर्ति शेष श्री अग्रवाल जी विशुद्ध प्रेम के कवि हैं,वह प्रेम प्रेयसी के प्रति हो,देश के प्रति हो अथवा ईश्वर के प्रति।उनके गीतों में समर्पण,निष्ठा व पवित्रता का भाव है। उनके गीत प्रणय गीतों में एक अलग छाप पाठक के मन में छोड़ते है और एक दृश्यचित्र सा आंँखों के सामने उत्पन्न होता है।
रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि उनके गीतों और मुक्तकों में मर्यादापूर्ण प्रेम की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति नई पीढ़ी के रचनाकारों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करती है ।अपने कालजयी गीतों और मुक्तकों के द्वारा स्मृतिशेष कैलाश चंद्र जी युगों- युगों तक हम सबके प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।
युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष कैलाश चंद्र अग्रवाल जी,  प्रेम को साकार, मनोहारी व बहुकोणीय अभिव्यक्ति देने वाले  सशक्त रचनाकार हैं।  उनका प्रेम मात्र प्रेमी-प्रेमिका के चारों ओर विचरने वाला तत्व नहीं अपितु, इस शाश्वत सत्य को जीवन की अन्य संवेदनाओं से भी सीधे-सीधे जोड़ता है। उसमें प्रेम का श्रंगारिक स्वरूप मुखर है तो आध्यात्म, देशभक्ति, सामाजिक चेतना जैसे विषय भी इस केन्द्र के विभिन्न कोणों से मुखरित हुए हैं।
युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि यहाँ पेश किए गए गीतों को पढ़ कर लगता है कि कैलाश जी ने अपने गीतों में श्रृंगार रस को ख़ास जगह दी है और ये काम उन्हों ने बा-ख़ूबी अंजाम दिया है। प्रेम के अलावा इन गीतों में करुणा, भक्ति, देश-प्रेम के फ़लसफ़े का भी अच्छा-ख़ासा दख़्ल है। कई जगह फ़लसफ़े में बहुत गहराई है, कहीं-कहीं कुछ कम भी। भाषा में रवानी है, भाषा-धन की कहीं भी कमी नज़र नहीं आती, लफ़्ज़ कहीं अटकते नहीं। इस तरह पाठक इन गीतों की धारा में बहता चला जाता है। इस बिना पर ये कहा जा सकता है कि कैलाश जी मुरादाबाद के गीतकारों की जमात में पहली सफ़ के गीतकार हैं।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि उनकी रचनाओं में प्रेम का मर्यादित रूप देखने को मिलता है । भावनाओं को जिस कुशलता के साथ अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है ,वह आने वाली पीढ़ियों के लिये मार्गदर्शक सिद्ध होगीं ।उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम के श्रगांर एवं विरह पक्ष का सामंजस्य जिस अलौकिक रूप से प्रस्तुत किया है ,वह पाठक के ह्रदय तल को स्पर्श करने में समर्थ है ।
युवा रचनाकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि उन्होंने साहित्य का केवल सृजन ही नही किया अपितु अपनी रचनाओं को जीवन में आत्मार्पित और अंगीकृत किया है। वह विशुद्ध प्रेम के पुजारी रहे है जिनके गीत और कविताओं को श्लेष मात्र की वासना छू तक नही पायी है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सभी अलंकारों का प्रयोग बहुत ही कुशलता पूर्वक किया है ।
डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृति शेष आदरणीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जी से मेरा परिचय कीर्ति शेष श्रद्धेय महेंद्र प्रताप जी के निवास पर आयोजित होने वाली 'अंतरा' काव्य गोष्ठी में हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि उनके श्रीमुख से उनके मधुर गीत सुनने का अवसर अनेक बार मिला. श्री मदन मोहन व्यास जी के साहित्यिक हास्य से पूर्ण संवाद, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी के ठहाकों और प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी की सारगर्भित टिप्पणियों से वातावरण अति सुन्दर और ज्ञानवर्धक बन जाता था. सौभाग्य से उस गोष्ठी में मुझे भी काव्य पाठ करने का अनेक बार अवसर मिला. अब यादें ही शेष हैं.
नजीब सुल्ताना ने कहा कि  आदरणीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जैसी महान हस्ती  का परिचय इस साहित्यिक पटल के माध्यम से हम नए रचनाकारों को कराने के लिए बहुत-बहुत आभार। यह हमारा सौभाग्य है कि हम मुरादाबाद की महान विभूतियों के बारे में इस मंच के जरिए जान रहे हैं।
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि मुरादाबाद की सांस्कृतिक साहित्यिक धरोहर के बारे में हम जान पा रहें हैं साहित्यिक मुरादाबाद का यह सर्वोत्तम प्रयास शत प्रतिशत सार्थक और सराहनीय है। इस माध्यम से हम इस वैचारिक गोष्ठी के सहभागीदार और साक्षी बने हुए हैं । 
जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा कि 'साहित्यिक मुरादाबाद' अथाह ज्ञान और प्रेम का सागर है। मेरी जन्मभूमि, जिसके बारे में मैं खुद अनजान थी .. इतने बड़े-बड़े रचनाकार वहाँ हुए हैं, उनसे अवगत कराया जा रहा है। बहुत आभार। जितना मैंने पढ़ा और जाना उससे इस विषय पर यही कह सकती हूँ कि स्मृति शेष कविवर कैलाश चंद्र अग्रवाल  जी  बहुत उच्चतम कोटि के कवि ,रचनाकार, साहित्यकार थे।
कवि अशोक विद्रोही ने कहा कि उनका रचनाकर्म  हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है। उनका प्रत्येक गीत मन को स्पर्श करता है।
मनोज अग्रवाल ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद द्वारा स्मृति शेष श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल (जो कि मेरे ताऊ जी थे)के विषय में दो दिवसीय परिचर्चा का सफल आयोजन किया गया।उनकी रचनाओं एवम् व्यक्तित्व के विषय में अनेक साहित्यकारों के विचार जानने का अवसर मिला!इस आयोजन की सफलता का श्रेय डॉ मनोज रस्तौगी के अथक परिश्रम एवम् प्रयास को ही जाता है,इसके लिए उन्हें साधुवाद।
अंत में स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के सुपुत्र अतुल चन्द्र अग्रवाल द्वारा आभार अभिव्यक्ति से कार्यक्रम का समापन हुआ ।

 

शनिवार, 13 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ---------शुद्ध इच्छा

 


सूरज एक कारखाने में दिहाड़ी पर मजदूरी कर जैसे तैसे अपने परिवार को पाल रहा था। उसके घर के पड़ोस में एक मंदिर था।रोजाना शाम को 8 बजे आरती होती थी।सूरज नियम से,रोजाना आरती में शामिल होता था।आरती के लिए पैसे वालोंं को,या फिर उन लोगो को ही बुलाया जाता था,जिन्होंने कुछ ना कुछ दान दिया होता था।

   आज उसका जन्मदिन था।उसकी तीव्र इच्छा थी कि आज आरती मैं करूं।वो भीड़ को चीरता हुआ बिल्कुल आगे जा कर खड़ा हो गया लेकिन पुजारी जी ने हमेशा की तरह किसी बड़े आदमी को आरती के लिए बुला लिया।जैसे ही आरती शुरू हुई,पता नहीं क्या हुआ,उस आदमी के पैर लड़खड़ाने लगे और वो जमीन पर गिर पड़ा।सूरज ने लपक कर आरती के थाल को,गिरने से पहले ही थाम लिया और आरती करनी शुरू कर दी ।

   आरती के बाद सूरज के चेहरे पर अलग सी चमक थी।श्रद्धा और विश्वास उसकी आंखों से टपक रहा था।उसकी शुद्ध इच्छा पूरी हो गई थी।

,✍️ डॉ पुनीत कुमार, टी 2/505, आकाश रेसीडेंसी, मधुबनी पार्क के पीछे, मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------कर्ज


"अले ..अले मेला छोता छा बाबू ...कैछे हचेगा ....मेला नूनू वेवी ...।"दिया की सास अपने हाल में ही जन्मे पोते को पालने में झुला रहीं थी और बातें कर रहीं थीं तोतली आवाज में यह सब देखकर दिया भी बहुत खुश हो रही थी ।

"सुनो बहु ।"

"जी माँ जी ।"

"अगले हफ्ते इसका नामकरण करा ही देते हैं ।""

"जी माँ जी ।"

"अले ...अले ऐसे क्यों रो रहा है मेरा लाल ..क्या नाना नानी को बुला रहा है ...हाँ ..हाँ आ जाएंगे ...आ जायेंगे और बहुत सारी चीजें लायेंगे ...बहुत सारे कपड़े ...खिलौने हाथों के खडु आ  गले की चैन भी लेगा ....बदमाच कहीं का ...।"सास की पुनः लालची लालसा को देखकर दिया की मुस्कान गायब हो गयी ।शादी को अभी एक ही साल हुआ है और ऊपर बाले की कृपा से साल भीतर ही दिया की झोली भी भर दी ।

दिया सोच में डूब गयी कि लड़की का बाप कभी कर्ज से मुक्ति नहीं पाता शादी के बाद कभी रीति _रिवाज तो कभी परम्पराओं के नाम पर माँग ही लेते हैं लालची ससुरालीजन ।कभी पहली बार गौर पूजन कभी करबा चौथ तो कभी अन्य पूजाओं के बहाने माँगते ही रहते हैं ।

"सुना बहु छोटू क्या _क्या माँग रहा है नाना से ?"

"हाँ माँजी सुन रही हूँ ।"कहते हुए दिया ने एक गहरी साँस ली 

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----स्याही

आज भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करती रागिनी तेज कदमों से चली जा रही थी। आखिर आज उसने तलाक के कागज़ो पर साइन कर ही दिये। अपने हाथ में एक पुरानी डायरी पकड़ वह चलती जा रही थी........उसे खुद नहीं पता था कि कहाँ जाना है। एकदम वह रुकी उसने देखा , सामने समुंदर था जिसमें लहरें उठ और गिर रही थी । वह वहीं पास में एक पत्थर पर बैठ गयी।उसने डायरी खोली और रोते हुए  उसमें लिखे पन्नों को फाडने लगी। समुंदर ने उन पन्नों को कब अपने मे समा लिया उसे पता ही नही चला।आज वह बहुत रोई उसे लग रहा था जैसे सब खत्म हो गया। रोते रोते उसने अपना चेहरा हाथोंं से ढक लिया । जब लहरों के बहने की तेज आवाज़ हुई तब उसने अपने चेहरे से हाथोंं को हटाया। उसने देखा रात हो गयी थी , लहरें उठान पर थी पर एकदम ही शान्त हो समुंदर मे मिल गयी। रागिनी उठी उसे कुछ दिखा वह झुकी और उसने उसे हाथ में उठाया । उस वक़्त चाँद उसके सामने था ।अरे ये क्या ........ उसके हाथ में तो वही डायरी के पन्ने थे जो उसने फाड़े थे  , पर ये क्या ............उसने देखा , पन्नों पर  लिखी बरसो की स्याही मिट चुकी थी । 

  ✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला , अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता ,इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी की लघुकथा ----व्यथा


जब भी सोचती हूँ कि तुम्हारे बारे में कुछ लिखूं 

हर वक़्त शब्दों की कमी पड़ जाती है, पता नहीं क्यों ? अनायास ही आभास हुआ, तुम ही तो मेरे शब्दकोश थे।

तुम्हारे विलुप्त होने से वह भी विलुप्त हो गए।

मैं अवाक बैठी देखती रही, तुम तिरंगे में लिपटे ,पूरे हुजूम के साथ चलते चले गए।

किसे अपनी व्यथा सुनाऊँ,किसे अपने आँसू दिखाऊं। यहाँ तो हर कोई इनका मोल लगाने को तत्पर है। 

✍️ वैशाली रस्तोगी, जकार्ता (इंडोनेशिया)


मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ---- "रेट वेट और क्वालिटी"-


 सुधा आज पहली बार दिल्ली अपनी छोटी बहन सुमन के घर आई थी । घर पर आते ही सुधा ने सुमन की क्लास लगानी शुरू कर दी , जैसे यह समान कहां से लाती है घर खर्च कैसे करती हो फिजूलखर्ची तो नहीं करती हो ।सीधी साधी सुमन अपनी बड़ी बहन सुधा से काफी छोटी थी और उसकी शादी को अभी 3 वर्ष ही हुए थे । सुमन, सुधा की सारी बातों को बड़े गौर से सुन रही थी व बराबर उनके सवालों के जवाब दे रही थी । बातों बातों में सामान की खरीदारी का जिक्र चल पड़ा , सुधा ने सुमन से पूछा तू घर पर किराने और सब्जी कहां से लाती है , तो सुमन ने कहा दीदी मैं यही अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ले लेती हूँ । सुधा ने पूछा जरा बता आलू कितने रुपए किलो है और प्याज कितने रुपए किलो तो सुमन ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया यहां आलू ₹50 किलो और प्याज ₹100 किलो है । सुधा ने रेट सुनते ही सर पकड़ लिया और बोली हे राम ! हमारे यहां तो आलू ₹30 और प्याज ₹60 किलो है । इतनी महंगाई ......डांटते हुए सुधा ने सुमन से कहा ....तुझे कुछ नहीं आता कल मैं सामान लेने खुद जाऊंगी , फिर देखती हूं कैसे महंगा मिलता

है ........

अगले दिन सुधा थैला उठाकर खुद ही सुमन के घर के लिए सामान लेने चली गई , सुधा ने अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ना लेकर पास की एक छोटी सी बस्ती में वहां से सामान खरीदा , तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सारा सामान उसके गांव के रेट के बराबर ही मिल रहा था । उसने फटाफट सामान खरीदा और तुरंत घर आकर सुमन से शेखी मारते हुए बोली..... "देखो बहना .....मैं शहर में भी गांव के बराबर रेट पर समान ले आई हूं" सुमन को भी बड़ा आश्चर्य हुआ , कुछ देर पश्चात जब सुमन ने अपने घरेलू बाट से सभी सब्जियों का तोल करा तो पता चला सभी सामान 250 से 300 ग्राम प्रति किलो कम है यह देख सुधा भी काफी शर्मिंदा हुई कि बस्ती के दुकानदार ने उसे ठग लिया है और उसे पूरा माल नहीं दिया ।

सुधा व सुमन आपस में समान की खरीदारी को लेकर चर्चा करने लगी कि अपार्टमेंट के नीचे बाजार में सामान का वेट और क्वालिटी तो बहुत अच्छी है परंतु रेट बहुत ज्यादा और बस्ती में रेट और क्वालिटी तो अच्छा है परंतु वेट में गड़बड़ी है । अब यदि किसी व्यक्ति को रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही सही चाहिए तो कहां जाए काफी जद्दोजहद के बाद दोनों ने यह फैसला किया की बड़ी मंडी में शायद यह तीनों चीजें ठीक से मिल जाए । यही सोच के साथ अगले दिन सुधा और सुमन दोनों बड़ी मंडी पहुंच गई और वहां पहुंच कर उन्होंने सभी चीजों के रेट ट्राई करें तो उन्हें यह देख बड़ी प्रसन्नता हुई कि यहां पर रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही शानदार है यह सोच सुमन ने थैला निकाला और दुकानदार को देते हुए बोली....... सारी सब्जी 1/ 1 किलो दे दो सुमन की बात सुनकर दुकानदार उनका मुंह देखने लगा और बोला "बहन जी क्यों मजाक करती हो , यहां आपको रेट ,वेट ,क्वालिटी तीनों तभी मिलेंगे जब आप सभी समान 5/ 5 किलो खरीदोगे"

यह सुन सुधा और सुमन दुकानदार पर बिगड़ गई । आसपास के दुकानदार भी वहां इकट्ठा हो गए , उन्होंने सुमन और सुधा को समझाया कि यहां आपको अच्छा सामान कम कीमत पर तभी मिलेगा जब आप कवॅन्टिटी में खरीदेंगे । यह सुन दोनों ने कान पकड़े और वापस अपने अपार्टमेंट आ गई , सुमन को अच्छे से समझ आ चुका था कि रेट , वेट और क्वालिटी तीनो आपको तभी मिल सकते हैं जब आप क्वांटिटी में सामान लेते हैं ।? यही सोचते सोचते वह अपार्टमेंट के नीचे दुकान से सामान लेने चली गई ।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा--- कब तक ---?


सुमन के पीछे कुछ गुंडे लग जाते हैं।वह जैसे तैसे अपनी जान और इज्जत बचाती हुई उनके चंगुल से भाग निकलती है।गुंडे भी उसके पीछे पीछे भागते हैं, कहावत है कि " मरता क्या ना करता" आखिर वह गंगा में छलांग लगा देती है।

       " सुबह अखबार में एक साथ दो हैडिंग दिखाई देती हैं,  "एक लड़की ने गंगा में डूब कर आत्महत्या की ", दूसरी थी " कल से सफाई अभियान के अंर्तगत  होगी गंगा की सफाई "----------।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की लघुकथा ---महिला दिवस

   


मिस्टर तिवारी ने अपने कार्यालय में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मिस मेहता को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। मिस मेहता उस समय हतप्रभ रह गयीं जब कार्यक्रम में महिलाओं का सम्मान करते समय फोन आ जाने पर पत्नी को तिवारी जी खरी-खोटी सुनाने लगे । 

✍️दुष्यन्त 'बाबा' ,पुलिस लाइन, मुरादाबाद,मो0-9758000057

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल) में जन्में (वर्तमान में अम्बाला निवासी )साहित्यकार पंकज शर्मा की लघुकथा --प्रार्थना-


अभी तक मौसम की पहली बारिश नहीं हुई थी। सूर्य देवता जब भी आते पूरे गुस्से से आते थे और उन्हें देख कर सारी धरती कांपती हुई सी प्रतीत होती थी। पशु-पक्षी-पौधे सभी सूर्य देवता की फैंकी हुई आग से जल रहे थे और मनुष्यों के तो बुरी तरह से पसीने छूट रहे थे। मानव द्वारा निर्मित सभी हथियार सूर्य देवता के प्रकोप के आगे विफल हो चुके थे। सब तरफ त्राहि-त्राहि मचने लगी, परन्तु इंद्र देवता का दिल नहीं पसीजा जिससे बारिश हो जाती। बेबस हो कर लोग प्रार्थना और धार्मिक अनुष्ठानों की तरफ झुक गए और मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारों, स्कूलों-कालेजों, संस्थानों एवं घरों-गली-मोहल्लों सभी में हवन, यज्ञ और प्रार्थनायें होने लगीं।

ऐसे ही एक गाँव के सरकारी स्कूल में भी प्रधानाचार्य द्वारा सुबह विशेष तौर पर इंद्र देवता को खुश करने एवं बारिश लाने के लिए प्रार्थना-सभा का आयोजन किया गया और सभी बच्चों को एक कतार में खड़ा कर प्रार्थना करवानी शुरू कर दी गयी। सभी बच्चे प्रार्थना में मग्न थे, परन्तु दो बच्चे चुपचाप खड़े हुए थे। न तो उन्होंने हाथ जोड़ रखे थे और न ही वे कुछ बोल रहे थे। प्रधानाचार्य की नज़र उन पर पड़ गयी। प्रार्थना के बाद प्रधानाचार्य ने उन्हें बुलवाया और पूछा, “बेटा, तुम लोग प्रार्थना क्योँ नहीं कर रहे थे?”

एक बोला, “वो..., मास्टर जी..., हमारी प्रार्थना सुन कर अगर बारिश आ गयी तो हमारी सारी गली-मोहल्ले में पानी भर जाएगा। फिर न हम स्कूल आ पाएंगे और न हमारे बापू काम पर जा सकेंगे।”

“और हमारी छतें भी टपकनी शुरू हो जाएंगीं...,” दूसरे ने कहा।

प्रधानाचार्य को लगा कि जैसे शायद इसी वजह से बारिश नहीं हो पा रही थी।

✍️ पंकज शर्मा, 19, सैनिक विहार, जंडली, अम्बाला शहर- 134005 (हरियाणा) मोबाइल 09416860445,

ई-मेल: - pankaj1919pankaj@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघु-कथा--भंडारा

 


शिवरात्रि का पर्व है ।कांवरियों के लिए भंडारा चल रहा है

"सभी को भोग लगवाइए ।आइए आइए बैठिए ।यहां बैठिए ,और लीजिए "।चारों ओर शोर मच रहा है तभी सतीश माहेश्वरी ,जो कि भंडारे के आयोजक थे, वहाँ आएऔर खान पान की व्यवस्था देखी ।राशन पानी लगभग सब लग चुका था आखिरी खेप ही बची थी ।आधा-आधा बोरी कच्चा राशन बचा था ।दोपहर होने वाली है और शहर से बहुत से प्रतिष्ठित साथियों को उसने बुलावा दे रखा था वे सब आयेंगें तो अवश्य ही ।अगर राशन खत्म हो गया तो उनका आतिथ्य कैसे होगा ?इसलिए कांवरियों के लिए भंडारा बन्द कराना ही सही होगा ।इसलिए यह सोचकर उन्होंने भोजन की व्यवस्था देख रहे सभी कारीगरों को धीरे से संकेत दिया । बाहर शामियाने में विश्राम कर रहे कांवरियों को जल पीकर ही संतोष करना पड़ा ।उधर सतीश माहेश्वरी ने सगर्व मुस्कान बिखेरते हुए सबको विदा किया और कहा ,"आज का भंडारा समाप्त हो चुका है ,माॅफ कीजिए ।" कांवरिए जल ग्रहण कर आगे चल पड़े । कुछ कांवरियों को उन अतिथियों के सामने भी भी तो खिलाना पड़ेगा यह सोचकर शामियाने के पर्दे बन्द करवा दिए गए और सतीश जी उन मेहमानों को फोन करने लगे । 

 ✍️ मनोरमा शर्मा,  अमरोहा 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---व्यवहार गणित


दूर से आवाज़ आई ...........ताज़ी - ताज़ी सब्जियां लेलो,, बैंगन लेलो, टमाटर लेलो, हरा धनिया लेलो, बींस ले लो...  गेट खोलकर महिला ने देखा ,...कि एक नौ दस वर्ष का  प्यारा सा बच्चा सब्जी बेच रहा है । शिक्षिका होने के नाते  सब्जी खरीदते हुए महिला ने नसीहत देनी शुरू कर दी...  "तुम्हें बाल मजदूरी नहीं करनी चाहिए ,तुम्हें तो पढ़ना चाहिए "।

बच्चे ने बड़ा ही   सुलझा हुआ उत्तर दिया" मैम जी हिसाब- किताब सीख रहा हूं ।"

सचमुच.... अब महिला सोच रही थी कि  यही है इसका व्यवहार  गणित।

✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की लघुकथा ----चार बनाम एक

 


सांझ ढल चुकी थी, गहराते अँधेरे के बीच सुनसान सड़क पर सुधा तेज कदमों से चली जा रही थी। रोज की तरह कुछ लड़के गिद्ध दृष्टि लगाए मानों उसी का रास्ता देख रहे थे। थोड़ी दूरी बनाते हुए वह लड़के उसके पीछे पीछे चलने लगे। उसके कदमों की चाल और तेज हो गयी।

अचानक पीछे से एक कार आयी और उसके आगे आकर रुक गयी। 

कार में से एक अधेड़ सा चेहरा निकला और बोला: कहाॅं जाना है,आइए मैं छोड़ देता हूँ।

सुधा सोच में डूब गयी, अजनबी है, कार में अकेला है, न जाने इसके मन में क्या है; क्या जाने ये भी ; फिर पीछा करते चार लड़के पास आते दिखे; 

फिर सोचा ये तो अकेला है, अधेड़ है, इससे निपटना तो आसान है, अभी चार मुस्टंडों से तो बचूँ। तुरंत सुधा ने निर्णय कर लिया, और दरवाजा खोल कर कार में बैठ गयी।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG -69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद।

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --------व्यथा

 


सेवानिवृत्त हुए रमा को चार वर्ष बीत चुके थे।मगर उसके जख्म आज भी हरे थे।कक्षा दस पास करते ही गांव के चाचा के चपरासी लड़के से विवाह हो गया।पति का सरकारी नौकरी के कारण  बडा मान था। शहर मेंं आकर रहने के कारण सामान मेंं लिपटकर आये अखबार पढ़ते देखकर  भोला (पति) ने उसकी लगन देखकर इंटर का फार्म भरवा दिया।।घर बच्चे सब के साथ उसने इंटर, बी ए,एम ए की परीक्षा सफलता पूर्वक पास की।गांव से आने वाले दोनों का मजाक उड़ाते मगर वे अपनी दुनिया में खुश थे।एक दिन अखबार मेंं पद देखकर आवेदन किया , जिस दिन नियुक्ति पत्र मिला उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।पति के हाथ मेंं देकर बोली,"आप ही इसे खोलेंं।सब आपके कारण ही सम्भव हुआ"।भोलानाथ ने भी खुशी खुशी लिफाफा खोला मगर कार्यालय का नाम पढ़ते ही पत्र हाध से छूट गया क्योंकि रमा उसीके दफ्तर में उसकी अधिकारी नियुक्त हुई थी।।रमा बोली,"वह यह ज्वाइन नहीं करेगी"।मगर भोलेनाथ के जोर देने पर उसने कार्यभार ग्रहण किया।पति जिसे वह स्वयं से ज्यादा सम्मान देती थी, वह कमरे के बाहर बैठते थे।हर घंटी पर दौडे़़  आते।उसके लिए असहनीय था। कईबार उसने त्याग पत्र देने को कहा मगर हर बार भोलेनाथ उसे समझा देते थे।मगर उसदिन कृषि अधिकारी के हाथ पर पानी छलक जाने पर उनकी भोलेनाथ पर पडी डाँट भी वह असहाय होकर देखती रही।वह बार बार माफी मांंगता रहा।

अगले दिन भोलेनाथ ने छुट्टी ले ली बोला,"तुम जाओ मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही"।"तो मै छुट्टी ले लेती हूँ"।

नहीं तुम जाओ आज कमिश्नर सर की मीटिंग हैं"। वह बेमन से दफ्तर पहुंच गयी मगर बार बार पति का उदास चेहरा सामने आ रहा था। अपने साथी सहेली से बात करके उसने निश्चित कर लिया कि अब वह भोलेनाथ से त्याग पत्र दिलवा देगी और व्यापार करवा देगी जिससे ऐसी असहनीय परिस्थितियों से हमेशा के लिए बच सके।अभी मीटिंग समाप्त कर वह बाहर ही निकली थी कि एस पी साहब का फोन आया कि आप तुरन्त घर पहुंचे।वह गाड़ी मेंं बैठकर खैर मनाती रही घर के बाहर भीड़ देखकर वह डर गयी। गाड़ी से उतरते ही पुलिस ने बताया ," मैडम आपके पति ने आत्महत्या कर ली"।वह जम सी गयीं।बच्चे उससे लिपट गये।वह बस इतना ही कह पायी,"मेरे आने का इंतजार तो कर लेते,"।गांव से हर व्यक्ति ने उसे ही दोषी बनाया।वह असहाय हो गयी थी और अपना जीवन भी समाप्त कर देना चाहती थी।मगर बच्चों के जीवन का यक्ष प्रश्न उसके सामने था सो खुद को समेटकर फिर खडी हुई और पूरी सेवा करने के बाद रिटायर भी हो गयी।मगर एक प्रश्न वह हर रोज पति से करती है कि काश एकबार बात तो कर लेते"?।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

गुरुवार, 11 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----बस अब और नहीं!


 

     अंजली का वास्तविक नाम अंजू है! ..बहुत ही तीखे नयन नक्श .... बड़ी बड़ी आंखें... आकर्षक  व्यक्तित्व ! ऐसा सांवला रंग कि कोई सांवला कहने की हिम्मत न कर सके !..... परन्तु ये सब अंजू के आकर्षण का कारण नहीं था.....बहुत ही मेहनती ,लगनशील ,आत्मीय ,व्यवहार कुशलता उसमें कुछ ऐसे गुण थे जो उसे दूसरों से अलग पहचान देते थे ! .....उसका अनदेखा अपनापन ,खुलापन, एक ऐसा सम्मोहन जगाता कि जो कोई उससे मिलता उसका हो जाता !    स्टाफ नर्स होने के ये गुण उसे ईश्वरीय देन के रूप मिले थे परन्तु ये गुण ही शायद उसके लिए अभिशाप बन गये..... वह आज मैटर्न बन चुकी है सैलरी होगी 65 हजार .. अंजू की अब तक दो बच्चियां झिलमिल, बुलबुल भी  हो चुकी थीं....
....आज 7 साल हो गये..... 7 साल पहले आज ही के दिन डॉ अनुज की एक एक्सीडेंट  में मृत्यु हो गई थी....... आज सुबह से ही अंजू का मन बहुत भारी हो रहा है.... रह-रह कर उसको डॉ अनुज की ही  याद आ रही है .......... वक्त इतनी तेज रफ्तार से चलता है उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आयेगा कि उसे अपार प्रेम करने वाला विशेष उसे एक दिन ऐसे  दोराहे पर लाकर खड़ा कर...... देगा .....कि उसे अतीत में खो गये अभिन्न मित्र डॉ अनुज की इतनी कमी खलेगी .......... वक्त हवा की तरह...तेज चला.।     वह जब अपने आपको.....शीशे में देखते हुए सोचती है  .....तो बीता हुआ समय उसे डॉ अनुज की यादों में ही ले जाता है........! ..उसे बीते दिनों की याद फिर से सताने लगती है उसे याद आते है वे दिन जब डॉ अनुज के साथ उसकी बात इतनी आगे बढ़ गई थी कि वह दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे ! परंतु यह खबर डॉ अनुज के माता-पिता के पास पहुंची तो उन्होंने इस विवाह से इसलिए इनकार कर दिया कि वे एक बार प्रेम विवाह की परिणिती देख चुके थे ।
     ....और फिर अंजू का विवाह विशेष के साथ हो गया ।  विशेष को इन दोनों की कहानी पता थी....और उसके माता पिता इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे फिर भी खूब सोच समझ के बाद उसने पूरे आग्रह और समर्पण  के साथ अंजू को विवाह प्रस्ताव रखा था.... और इस प्रकार दोनों की शादी सम्पन्न हो गयी थी ।
        हाय री !  विडंबना !! अंजू आज फिर उसी दोराहे पर आकर खड़ी थी... जहां उसको निर्णय लेना था कि वह इस झूठे शादी के रिश्ते को बनाए रखें या तोड़ डाले क्योंकि उसके पति विशेष ने उस पर ऐसे ऐसे घिनोने इल्जाम लगाए.... कि उसकी आत्मा चीत्कार कर उठी ! 
        उसने दोनों बच्चियों को दुख सह कर खुद पाला था ड्यूटी भी निरन्तर की.... शुगर की पेशेंट होते हुए .... गाड़ी अकेले ही खींचना कोई उससे सीखे......इस सब के वावजूद भी उस पर हंटर की तरह जड़े जाने वाले  इल्जामों ने उसका मनोबल बिल्कुल तोड़ दिया.... उसका मन व्यथित था और अब और सहन करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था ।
           उसने विद्रोह कर दिया वास्तविक परिस्थितियों से और ..... स्पष्ट मना कर दिया अब और नहीं  सहेगी......
          विशेष ने उस पर शारीरिक सम्बन्धों के ऐसे ऐसे इल्जाम लगाएं ......कि  बस....! क्या कहना .....      
           उसके पहले के मित्र के साथ ! अन्य मित्रों के साथ ! पड़ोसियों के साथ!  स्टाफ के साथ ! यहां तक कि उसके मित्र डॉ अनुज के पिता का नाम भी अंजू के साथ जोड़ दिया...!
      ....एक पुरुष मित्र  स्टाफ का  6 साल बाद उसके घर आया और सिर्फ 10 मिनट ही बच्चों के साथ रहा  होगा... उसके  साथ भी विशेष ने इल्जाम लगा दिया कि तुम्हारा इसके साथ अफेयर है..... अंजू के ससुराल  वालों ने कभी भी एक पैसे की  कोई सहायता नहीं  की  नैतिक सपोर्ट भी नहीं किया ।
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    .... हार कर उसने निर्णय ले लिया..... तलाक की अर्जी अब अंतिम दौर में आ पहुंची.... तो उसे पूर्व मित्र डॉ अनुज की याद आई .....? जिसका देहांत भी  आज से 7 साल पहले हो चुका था.....  !
   एक ओर जहां दूसरी बेटी को जन्म देते समय अंजू  शुगर बहुत बढ़ जाने के कारण अचेत अवस्था में पड़ी थी .. और उसे विशेष की सबसे ज्यादा जरूरत थी तो ऐसे समय में विशेष उसके पास नहीं था..... बेटी को जन्म दिया तो दूसरी ओर पति बेटे की चाहत के दकियानूसी विचार के कारण वहां से नदारद था ....बस यही उसे बर्दाश्त नहीं हुआ जबकि पति ने कभी भी अपनी कमाई का एक पैसा भी कभी घर में नहीं लगाया ।  घर की कोई भी  जिम्मेदारी नहीं उठाई। ........
आज अंजू को भगवान से बस यही शिकायत है कि कहने को सभी लोग उसे अच्छा कहते है परंतु उसे स्वीकार कोई नहीं करता आखिर क्यों?....
           आज भी क्यों  हमारा समाज पूर्व की तरह दकियानूसी विचारधारा रखता है जो कि बेटी के जन्म पर मंगल गान तो छोड़ो पति तक छोड़ कर चला जाता है भला हो भगवान का कि उसने कम से कम उसे उसकी मेहनत का इतना सिला तो दिया कि एक मजबूत नौकरी तो उसके हाथ में है जिससे अपने बच्चों की गुजर वशर सकती है.... पति के विश्वासघात करने पर उसने मकान तक पति के नाम छोड़ दिया परंतु उसै अब और पति का साथ मंजूर नहीं !
उसने इस पिंजरे से आजादी का मन बना लिया है.....
        विशेष को घर छोडे  हुए 2 साल हो गए हैं ....इस बीच वह अपने घर वालों के साथ उसे मनाने के लिए एक बार  आया भी ! अपनी गलती की माफी भी मांगी कि अब वह फिर से उसके साथ रहने लगे... परंतु आज अंजू का विश्वास उस पर से पूरी तरह उठ गया प्रेम का निरन्तर बहने वाला सोता पूरी तरह सूख चुका हैअब वह उसके साथ रहने को तैयार नहीं।....
         उसने स्पष्ट कह दिया -
"बस अब और नहीं!............"

 ✍️ अशोक विद्रोही,412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541


मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ----कर्तव्य



 

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा-----टीस


"आपकी शादी को कितने साल हो गये हैं,ताई जी?",

रमा ने आँगन में ताऊजी का हुक्का तैयार कर रही ताई जी से पूछा।

"दो साल बाद पचास पूरे हो जाएंगे।"ताई ने चिलम में कोयले के टुकड़े रखते हुए बेरुखी से जवाब दिया।

"अच्छा....",रमा ने चहकते हुए कहा,"इसका मतलब है कितना प्यार आप दोनों में।वरना आजकल तो... शादियाँ दस साल भी चल जायें तो बहुत बड़ी बात होती है।"

"प्यार का तो पता नहीं बेटा...,पर इतनी लम्बी शादी चलने में.... संस्कार का बहुत बड़ा हाथ है।अगर आजकल की तरह हमें भी केवल अपने लिए सोचने और हिम्मत के साथ गलत का विरोध करने की छूट होती तो शायद मैं तेरा तायाजी के तानाशाही मिजाज को इतना लम्बा न झेल पाती और शादी के कुछ समय बाद ही तलाक ले लेती। दरअसल ये पूरी जिंदगी तो तेरे ताया की जी हुजूरी में निकल गयी।कभी कभी सोचती हूँ.... क्या दूसरा जीवन होता होगा?अगर नहीं, तो यह जीवन तो मैंने खुद के लिए शादी के बाद कभी जिया ही नहीं,इस बात की टीस हमेशा बनी रहेगी "

रमा अचरज से ताई को देख रही थी और ताई भावशून्य आँखों से हुक्के को।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

बुधवार, 10 मार्च 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को *बाल साहित्य गोष्ठी* का आयोजन किया जाता है । 9 मार्च 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ पुनीत कुमार, रेखा रानी, धर्मेंद्र सिंह राजौरा, डॉ शोभना कौशिक, राजीव प्रखर ओर कंचन खन्ना की रचनाएं.....

 


सारा  जंगल  दहल  उठा है,

हाथी     की    चिंघाड़    से,
अब डरने  की बात नहीं  है,
शेरों     की     हुंकार      से।

किसकी हिम्मत जो टकराए,
आज     तेज     तर्रार     से,
एक  सूंड़   में  जा  उलझेगा,
कांटों      वाली    तार     से।

कबतक   डरते  रहें  बताओ,
उस     शेरू      सरदार    से,
ताकत की  बू  में  ना  करता,
बात   कभी   जो   प्यार   से।

ऐसा   चांटा    आज   पड़ेगा,
मुंह   पर   उस   मक्कार  के,
दिन   में   तारे   दिख जाएंगे,
हाथी     के      प्रहार       से।

चलो  साथियों आज शेर को,
लाते     बांध    निवाड़     से,
लाकर      दूर    उसे  बांधेंगे,
हाथी      के     दरबार     से।

हाथी    राजा   का  जयकारा,
बोलो     मिलकर    प्यार   से,
रहे   सुरक्षित   अपना   राजा,
जंगल       के     गद्दार      से।

आता  नाहर    पड़ा    दिखाई,
मस्त   -   मस्त     रफ्तार   से,
भूल   गए    सारा    जयकारा,
डरने      लगे      दहाड़     से।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
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बाबा बाजा बजा रहे थे
नयी नयी धुन बना रहे थे
आज गीत था नया बनाया
उसकी सरगम बजा रहे थे

सुन कर बाबा की सरगम को
छोटू आया तुरत उधर को
और देख कर दादा जी को
वह भी बोला सा रे गा मा।

कभी धौंकनी चला रहा था।
कभी सुरों को दबा रहा था
जब कोई भी धुन ना निकली
याद आ गयी उसको अम्मा

जिद पकड़ी दादा से उसने
मुझे सिखाओ लगा मचलने
दादा ने उँगली रखवायी
और बजायी सा रे गा मा।

खुशी खुशी वह लगा उछलने
दादाजी भी लगे चहकने
बच्चों का भी क्या बहलाना
रोज सिखायी सा रे गा मा।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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थरर थरर तन थर्राए
इम्तिहान के दिन आए

सारे साल कुछ नही पढ़ा
समय खेल में दिया गंवा
घरर घरर मन घबराए
इम्तिहान के दिन आए

सोच सोच दुख होता रे
ना जाने क्या होगा रे
सरर सरर सर चकराए
इम्तिहान के दिन आए

डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेसीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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हम बच्चों की टोली
   खेले जमकर होली।
  ऊंच- नीच का भेद न जानें
  जमकर करें ठिठोली।
  रंग अबीर गुलाल उड़ाकर
  मिलकर सारे मौज मनाते।
  पिचकारी, गुब्बारे भर -भर,
  बड़े बड़ों को खूब थकाते।
  एक दूजे से बैर भुलाकर,
  प्रेम भाव से गले लगाते।
  कचरी ,पापड़, गुजिया खाकर,
  दही बडे़ ,गोल गप्पे खाते।
  प्रेम एकता रीत बढ़ाने
  आती है यह होली।
  रेखा सूरत भोली।
  है बच्चों की भोली।

रेखा रानी, विजयनगर, गजरौला, जनपद अमरोहा
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बचपन के दिन याद आते हैं
गुजरे पल छिन याद आते हैं
गुल्लक में जोड़े वो थोड़े
पैसे गिन गिन याद आते हैं
गुल्ली डंडा और कबड्डी
साथी कमसिन याद आते हैं
स्कूल हो या मैदान खेल का
अब तक उन बिन याद आते हैं
शादी ब्याह में नाच कूद का
ताक धिनाधिन याद आते हैं
खड़िया पेन्सिल की नोंकों में
कैल्शियम विटामिन याद आते हैं

धर्मेंद्र सिंह राजौरा
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तक धिना -धिन ,तक धिना धिन ।
नाचे भोलू ढोल बिना फिर ।
पैरो में घुघंरू ,कमर में ठुमका ।
नाच हो गया उनका पक्का ।
दर्शक बन गई बच्चों की टोली ।
देखते -देखते शाम भी हो ली ।
घर की अब याद सताई ।
पेट में चूहों ने दौड़ लगाई ।
भोलू जी को छोड़ भागे ऐसे ।
कोई आगे कोई पीछे ।

डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद
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