शनिवार, 13 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------कर्ज


"अले ..अले मेला छोता छा बाबू ...कैछे हचेगा ....मेला नूनू वेवी ...।"दिया की सास अपने हाल में ही जन्मे पोते को पालने में झुला रहीं थी और बातें कर रहीं थीं तोतली आवाज में यह सब देखकर दिया भी बहुत खुश हो रही थी ।

"सुनो बहु ।"

"जी माँ जी ।"

"अगले हफ्ते इसका नामकरण करा ही देते हैं ।""

"जी माँ जी ।"

"अले ...अले ऐसे क्यों रो रहा है मेरा लाल ..क्या नाना नानी को बुला रहा है ...हाँ ..हाँ आ जाएंगे ...आ जायेंगे और बहुत सारी चीजें लायेंगे ...बहुत सारे कपड़े ...खिलौने हाथों के खडु आ  गले की चैन भी लेगा ....बदमाच कहीं का ...।"सास की पुनः लालची लालसा को देखकर दिया की मुस्कान गायब हो गयी ।शादी को अभी एक ही साल हुआ है और ऊपर बाले की कृपा से साल भीतर ही दिया की झोली भी भर दी ।

दिया सोच में डूब गयी कि लड़की का बाप कभी कर्ज से मुक्ति नहीं पाता शादी के बाद कभी रीति _रिवाज तो कभी परम्पराओं के नाम पर माँग ही लेते हैं लालची ससुरालीजन ।कभी पहली बार गौर पूजन कभी करबा चौथ तो कभी अन्य पूजाओं के बहाने माँगते ही रहते हैं ।

"सुना बहु छोटू क्या _क्या माँग रहा है नाना से ?"

"हाँ माँजी सुन रही हूँ ।"कहते हुए दिया ने एक गहरी साँस ली 

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें