आज भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करती रागिनी तेज कदमों से चली जा रही थी। आखिर आज उसने तलाक के कागज़ो पर साइन कर ही दिये। अपने हाथ में एक पुरानी डायरी पकड़ वह चलती जा रही थी........उसे खुद नहीं पता था कि कहाँ जाना है। एकदम वह रुकी उसने देखा , सामने समुंदर था जिसमें लहरें उठ और गिर रही थी । वह वहीं पास में एक पत्थर पर बैठ गयी।उसने डायरी खोली और रोते हुए उसमें लिखे पन्नों को फाडने लगी। समुंदर ने उन पन्नों को कब अपने मे समा लिया उसे पता ही नही चला।आज वह बहुत रोई उसे लग रहा था जैसे सब खत्म हो गया। रोते रोते उसने अपना चेहरा हाथोंं से ढक लिया । जब लहरों के बहने की तेज आवाज़ हुई तब उसने अपने चेहरे से हाथोंं को हटाया। उसने देखा रात हो गयी थी , लहरें उठान पर थी पर एकदम ही शान्त हो समुंदर मे मिल गयी। रागिनी उठी उसे कुछ दिखा वह झुकी और उसने उसे हाथ में उठाया । उस वक़्त चाँद उसके सामने था ।अरे ये क्या ........ उसके हाथ में तो वही डायरी के पन्ने थे जो उसने फाड़े थे , पर ये क्या ............उसने देखा , पन्नों पर लिखी बरसो की स्याही मिट चुकी थी ।
✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला , अमरोहा
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