शुक्रवार, 12 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की लघुकथा ----चार बनाम एक

 


सांझ ढल चुकी थी, गहराते अँधेरे के बीच सुनसान सड़क पर सुधा तेज कदमों से चली जा रही थी। रोज की तरह कुछ लड़के गिद्ध दृष्टि लगाए मानों उसी का रास्ता देख रहे थे। थोड़ी दूरी बनाते हुए वह लड़के उसके पीछे पीछे चलने लगे। उसके कदमों की चाल और तेज हो गयी।

अचानक पीछे से एक कार आयी और उसके आगे आकर रुक गयी। 

कार में से एक अधेड़ सा चेहरा निकला और बोला: कहाॅं जाना है,आइए मैं छोड़ देता हूँ।

सुधा सोच में डूब गयी, अजनबी है, कार में अकेला है, न जाने इसके मन में क्या है; क्या जाने ये भी ; फिर पीछा करते चार लड़के पास आते दिखे; 

फिर सोचा ये तो अकेला है, अधेड़ है, इससे निपटना तो आसान है, अभी चार मुस्टंडों से तो बचूँ। तुरंत सुधा ने निर्णय कर लिया, और दरवाजा खोल कर कार में बैठ गयी।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG -69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद।

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