शुक्रवार, 12 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --------व्यथा

 


सेवानिवृत्त हुए रमा को चार वर्ष बीत चुके थे।मगर उसके जख्म आज भी हरे थे।कक्षा दस पास करते ही गांव के चाचा के चपरासी लड़के से विवाह हो गया।पति का सरकारी नौकरी के कारण  बडा मान था। शहर मेंं आकर रहने के कारण सामान मेंं लिपटकर आये अखबार पढ़ते देखकर  भोला (पति) ने उसकी लगन देखकर इंटर का फार्म भरवा दिया।।घर बच्चे सब के साथ उसने इंटर, बी ए,एम ए की परीक्षा सफलता पूर्वक पास की।गांव से आने वाले दोनों का मजाक उड़ाते मगर वे अपनी दुनिया में खुश थे।एक दिन अखबार मेंं पद देखकर आवेदन किया , जिस दिन नियुक्ति पत्र मिला उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।पति के हाथ मेंं देकर बोली,"आप ही इसे खोलेंं।सब आपके कारण ही सम्भव हुआ"।भोलानाथ ने भी खुशी खुशी लिफाफा खोला मगर कार्यालय का नाम पढ़ते ही पत्र हाध से छूट गया क्योंकि रमा उसीके दफ्तर में उसकी अधिकारी नियुक्त हुई थी।।रमा बोली,"वह यह ज्वाइन नहीं करेगी"।मगर भोलेनाथ के जोर देने पर उसने कार्यभार ग्रहण किया।पति जिसे वह स्वयं से ज्यादा सम्मान देती थी, वह कमरे के बाहर बैठते थे।हर घंटी पर दौडे़़  आते।उसके लिए असहनीय था। कईबार उसने त्याग पत्र देने को कहा मगर हर बार भोलेनाथ उसे समझा देते थे।मगर उसदिन कृषि अधिकारी के हाथ पर पानी छलक जाने पर उनकी भोलेनाथ पर पडी डाँट भी वह असहाय होकर देखती रही।वह बार बार माफी मांंगता रहा।

अगले दिन भोलेनाथ ने छुट्टी ले ली बोला,"तुम जाओ मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही"।"तो मै छुट्टी ले लेती हूँ"।

नहीं तुम जाओ आज कमिश्नर सर की मीटिंग हैं"। वह बेमन से दफ्तर पहुंच गयी मगर बार बार पति का उदास चेहरा सामने आ रहा था। अपने साथी सहेली से बात करके उसने निश्चित कर लिया कि अब वह भोलेनाथ से त्याग पत्र दिलवा देगी और व्यापार करवा देगी जिससे ऐसी असहनीय परिस्थितियों से हमेशा के लिए बच सके।अभी मीटिंग समाप्त कर वह बाहर ही निकली थी कि एस पी साहब का फोन आया कि आप तुरन्त घर पहुंचे।वह गाड़ी मेंं बैठकर खैर मनाती रही घर के बाहर भीड़ देखकर वह डर गयी। गाड़ी से उतरते ही पुलिस ने बताया ," मैडम आपके पति ने आत्महत्या कर ली"।वह जम सी गयीं।बच्चे उससे लिपट गये।वह बस इतना ही कह पायी,"मेरे आने का इंतजार तो कर लेते,"।गांव से हर व्यक्ति ने उसे ही दोषी बनाया।वह असहाय हो गयी थी और अपना जीवन भी समाप्त कर देना चाहती थी।मगर बच्चों के जीवन का यक्ष प्रश्न उसके सामने था सो खुद को समेटकर फिर खडी हुई और पूरी सेवा करने के बाद रिटायर भी हो गयी।मगर एक प्रश्न वह हर रोज पति से करती है कि काश एकबार बात तो कर लेते"?।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

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