अभी तक मौसम की पहली बारिश नहीं हुई थी। सूर्य देवता जब भी आते पूरे गुस्से से आते थे और उन्हें देख कर सारी धरती कांपती हुई सी प्रतीत होती थी। पशु-पक्षी-पौधे सभी सूर्य देवता की फैंकी हुई आग से जल रहे थे और मनुष्यों के तो बुरी तरह से पसीने छूट रहे थे। मानव द्वारा निर्मित सभी हथियार सूर्य देवता के प्रकोप के आगे विफल हो चुके थे। सब तरफ त्राहि-त्राहि मचने लगी, परन्तु इंद्र देवता का दिल नहीं पसीजा जिससे बारिश हो जाती। बेबस हो कर लोग प्रार्थना और धार्मिक अनुष्ठानों की तरफ झुक गए और मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारों, स्कूलों-कालेजों, संस्थानों एवं घरों-गली-मोहल्लों सभी में हवन, यज्ञ और प्रार्थनायें होने लगीं।
ऐसे ही एक गाँव के सरकारी स्कूल में भी प्रधानाचार्य द्वारा सुबह विशेष तौर पर इंद्र देवता को खुश करने एवं बारिश लाने के लिए प्रार्थना-सभा का आयोजन किया गया और सभी बच्चों को एक कतार में खड़ा कर प्रार्थना करवानी शुरू कर दी गयी। सभी बच्चे प्रार्थना में मग्न थे, परन्तु दो बच्चे चुपचाप खड़े हुए थे। न तो उन्होंने हाथ जोड़ रखे थे और न ही वे कुछ बोल रहे थे। प्रधानाचार्य की नज़र उन पर पड़ गयी। प्रार्थना के बाद प्रधानाचार्य ने उन्हें बुलवाया और पूछा, “बेटा, तुम लोग प्रार्थना क्योँ नहीं कर रहे थे?”
एक बोला, “वो..., मास्टर जी..., हमारी प्रार्थना सुन कर अगर बारिश आ गयी तो हमारी सारी गली-मोहल्ले में पानी भर जाएगा। फिर न हम स्कूल आ पाएंगे और न हमारे बापू काम पर जा सकेंगे।”
“और हमारी छतें भी टपकनी शुरू हो जाएंगीं...,” दूसरे ने कहा।
प्रधानाचार्य को लगा कि जैसे शायद इसी वजह से बारिश नहीं हो पा रही थी।
✍️ पंकज शर्मा, 19, सैनिक विहार, जंडली, अम्बाला शहर- 134005 (हरियाणा) मोबाइल 09416860445,
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