जब भी सोचती हूँ कि तुम्हारे बारे में कुछ लिखूं
हर वक़्त शब्दों की कमी पड़ जाती है, पता नहीं क्यों ? अनायास ही आभास हुआ, तुम ही तो मेरे शब्दकोश थे।
तुम्हारे विलुप्त होने से वह भी विलुप्त हो गए।
मैं अवाक बैठी देखती रही, तुम तिरंगे में लिपटे ,पूरे हुजूम के साथ चलते चले गए।
किसे अपनी व्यथा सुनाऊँ,किसे अपने आँसू दिखाऊं। यहाँ तो हर कोई इनका मोल लगाने को तत्पर है।
✍️ वैशाली रस्तोगी, जकार्ता (इंडोनेशिया)
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