सारा जंगल दहल उठा है,
हाथी की चिंघाड़ से,
अब डरने की बात नहीं है,
शेरों की हुंकार से।
किसकी हिम्मत जो टकराए,
आज तेज तर्रार से,
एक सूंड़ में जा उलझेगा,
कांटों वाली तार से।
कबतक डरते रहें बताओ,
उस शेरू सरदार से,
ताकत की बू में ना करता,
बात कभी जो प्यार से।
ऐसा चांटा आज पड़ेगा,
मुंह पर उस मक्कार के,
दिन में तारे दिख जाएंगे,
हाथी के प्रहार से।
चलो साथियों आज शेर को,
लाते बांध निवाड़ से,
लाकर दूर उसे बांधेंगे,
हाथी के दरबार से।
हाथी राजा का जयकारा,
बोलो मिलकर प्यार से,
रहे सुरक्षित अपना राजा,
जंगल के गद्दार से।
आता नाहर पड़ा दिखाई,
मस्त - मस्त रफ्तार से,
भूल गए सारा जयकारा,
डरने लगे दहाड़ से।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
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बाबा बाजा बजा रहे थे
नयी नयी धुन बना रहे थे
आज गीत था नया बनाया
उसकी सरगम बजा रहे थे
सुन कर बाबा की सरगम को
छोटू आया तुरत उधर को
और देख कर दादा जी को
वह भी बोला सा रे गा मा।
कभी धौंकनी चला रहा था।
कभी सुरों को दबा रहा था
जब कोई भी धुन ना निकली
याद आ गयी उसको अम्मा
जिद पकड़ी दादा से उसने
मुझे सिखाओ लगा मचलने
दादा ने उँगली रखवायी
और बजायी सा रे गा मा।
खुशी खुशी वह लगा उछलने
दादाजी भी लगे चहकने
बच्चों का भी क्या बहलाना
रोज सिखायी सा रे गा मा।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
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थरर थरर तन थर्राए
इम्तिहान के दिन आए
सारे साल कुछ नही पढ़ा
समय खेल में दिया गंवा
घरर घरर मन घबराए
इम्तिहान के दिन आए
सोच सोच दुख होता रे
ना जाने क्या होगा रे
सरर सरर सर चकराए
इम्तिहान के दिन आए
डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेसीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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हम बच्चों की टोली
खेले जमकर होली।
ऊंच- नीच का भेद न जानें
जमकर करें ठिठोली।
रंग अबीर गुलाल उड़ाकर
मिलकर सारे मौज मनाते।
पिचकारी, गुब्बारे भर -भर,
बड़े बड़ों को खूब थकाते।
एक दूजे से बैर भुलाकर,
प्रेम भाव से गले लगाते।
कचरी ,पापड़, गुजिया खाकर,
दही बडे़ ,गोल गप्पे खाते।
प्रेम एकता रीत बढ़ाने
आती है यह होली।
रेखा सूरत भोली।
है बच्चों की भोली।
रेखा रानी, विजयनगर, गजरौला, जनपद अमरोहा
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बचपन के दिन याद आते हैं
गुजरे पल छिन याद आते हैं
गुल्लक में जोड़े वो थोड़े
पैसे गिन गिन याद आते हैं
गुल्ली डंडा और कबड्डी
साथी कमसिन याद आते हैं
स्कूल हो या मैदान खेल का
अब तक उन बिन याद आते हैं
शादी ब्याह में नाच कूद का
ताक धिनाधिन याद आते हैं
खड़िया पेन्सिल की नोंकों में
कैल्शियम विटामिन याद आते हैं
धर्मेंद्र सिंह राजौरा
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तक धिना -धिन ,तक धिना धिन ।
नाचे भोलू ढोल बिना फिर ।
पैरो में घुघंरू ,कमर में ठुमका ।
नाच हो गया उनका पक्का ।
दर्शक बन गई बच्चों की टोली ।
देखते -देखते शाम भी हो ली ।
घर की अब याद सताई ।
पेट में चूहों ने दौड़ लगाई ।
भोलू जी को छोड़ भागे ऐसे ।
कोई आगे कोई पीछे ।
डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद
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