मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर मुरादाबाद स्थित आवास पर बसंत पंचमी की पूर्व संध्या 31 जनवरी 2017 को 'बसंत-काव्योत्सव' का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर श्री मंसूर उस्मानी ने की। मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी तथा विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय 'अनुपम' रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी एवं उनकी शिष्याओं- कशिश भारद्वाज, संस्कृति राजपूत, सलोनी भारद्वाज आदि द्वारा प्रस्तुत संगीतवद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उन्होंने राग- देशकार व जैजैवंती के अतिरिक्त महाकवि निराला की कालजयी रचना 'सखी बसंत आया' की संगीतमय प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में उपस्थित कवियों द्वारा काव्यपाठ किया गया।
प्रख्यात गीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा -
यह बसंत कैसा
हँसलोना है
खिसिर-खिसिर हँसता है
खुलकर बतियाता है
रस है, पर भरा हुआ
महुआ का दोना है
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी का कहना था -
मैं हूँ खामोश मगर बोल रहा है मुझमें
ऐसा लगता है कोई और छुपा है मुझमें
मुझसे दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए
शहर तो यह भी कई बार लुटा है मुझमें
चर्चित व्यंग्य कवि डॉक्टर मक्खन मुरादाबादी ने कहा -
राजतंत्र की कुर्सी से
चिपकी हर आत्मा
मुझे पापिन दिखाई देती है
मै राजनीति के पड़ोस से भी
होकर नहीं गुजरता
क्योंकि राजनीति मुझे
अपने ही बच्चों को
खा जाने वाली
साँपिन दिखाई देती है
अशोक विश्नोई ने कहा -
कुछ भी करें, देश में अपनी आज़ादी है
कौन कहता है घोटालों से बरबादी है
जिनका मन गंदा है वो कुछ भी कहते हों
अपनी रंगी हुई देह को ढके हुए खादी है
डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' ने कहा–
पेड़ जो खोखले पुराने हैं
हम परिन्दों के आशियाने हैं
ज़िन्दगी तेरे पास क्या है बता
मौत के पास तो बहाने हैं
डॉ. अजय 'अनुपम' ने कहा -
शौक पर रंग आ रहा होगा
दर्द पलकें झुका रहा होगा
अश्क गिरते ग़लत दिखे तुमको
इश्क़ मोती लुटा रहा होगा
डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -
रिझाने के दिन आ गए
लुभाने के दिन आ गए
आपसे हमें प्यार कितना
जताने के दिन आ गए
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा -
राजनीति में देखकर,
छलछंदों की रीत
कुर्सी भी लिखने लगी,
अवसरवादी गीत
ओमकार सिंह 'ओंकार' ने कहा -
फूल खिलते हैं हसीं
हमको रिझाने के लिए
ये बहारों का है मौसम
गुनगुनाने के लिए
मंगलेश लता यादव ने कहा -
आए हैं ॠतुराज बसंत
हम सब स्वागत करने आए हैं
पत्ता-पत्ता फूल-फूल उन्हें देखकर
झूम-झूम और लहर-लहर हरषाए हैं
हेमा तिवारी भट्ट का कहना था -
आया बसंत सखि आया बसंत
हर्ष अनंत सखि लाया बसंत
डॉ. अर्चना गुप्ता का स्वर था -
रंग बसंती जब खिलते हैं
नयनों से सपने झरते हैं
कली महकती हवा बहकती
गीत मधुर कविमन रचते हैं
डॉ. पूनम बंसल का गीत था -
मौसम ने भी ली अंगड़ाई
चहुंओर मस्ती है छाई
छमछम करती नटखट गोरी
पनघट से गागर भर लाई
लो बसंत ॠतु आई आई
ज़िया ज़मीर ने कहा -
नन्हे पंछी अभी उड़ान में थे
और बादल भी आसमान में थे
किसलिये कर लिए अलग चूल्हे
चार ही लोग तो मकान में थे
अंकित गुप्ता 'अंक' ने कहा -
जब उरूज पर एक दिन,
पहुंचा उसका नाम
बाज़ारों में लग गए,
ऊँचे-ऊँचे दाम
डॉ. स्वदेश भटनागर का कहना था -
मेरे घर के बुज़ुर्ग कहते हैं
देवता नेकियों में रहते हैं
शिशुपाल मधुकर ने कहा -
खुद ही बाड़ खेत को अपने
कब खा जाए पता नहीं
बनकर पहरेदार लुटेरा
कब आ जाए पता नहीं
बालसुन्दरी तिवारी ने कहा -
सुनो शायद
आ गए ॠतुराज
पहने पीले फूलों का ताज
स्वागत में तैयार है
पूरी धरती
समीर तिवारी ने कहा -
शाल बन भीगे नई छितारा गई
पर हवाओं में उदासी छा गई
कार्यक्रम का संचालन युवा कवि अंकित गुप्ता 'अंक' ने किया तथा आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।
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