गुरुवार, 30 सितंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष राजेंद्रमोहन शर्मा श्रृंग का गीत ---भ्रष्टाचारी फल-फूल रहे हर ओर यहाँ / ईमानदार की कोई कदर नहीं होती/ हर ओर यहाँ पर आज झूठ का शासन है / सच्चाई आँखें ढक अँधियारे में रोती....। यह गीत हमने लिया है उनके गीत संग्रह -'मैंने कब ये गीत लिखे हैं ' से । उनकी यह कृति श्रेष्ठ प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2007 में प्रकाशित हुई ।

 


ओ राजनगर के नेताओ कुछ सोचो तो 

जनता पिसती जाती है आज गरीबी में 

हो रहा आज जीना दूभर है जनता का 

तुम मस्त हो रहे फिर भी आज अमीरी में


रेशमी वस्त्र पहनो बैठो सिंहासन पर

 शोभा न कभी ये जनप्रतिनिधि को देता है 

 हम भूखे-नंगे तड़पें दो-दो दानों को

  तुम ऐश करो ज़ेबा न तुम्हें ये देता है 

  हमने ही तुम्हें बनाया और मिटा सकते 

  ये शक्ति छिपी मुट्ठीभर इसी फ़कीरी में


हर भारतवासी नाच रहा महँगाई के संकेतों पर 

नारियाँ दे रहीं ताल आज है महँगाई के गानों को 

दुधमुँहे बिलखते आज दूध बिन घर-घर में 

पर माता-पिता विवश हैं उन्हें रुलाने को

ओ गाँधी के मानस पुत्रो कुछ सोचो तो 

क्यों असंतोष है आज़ादी की पीढ़ी में


भ्रष्टाचारी फल-फूल रहे हर ओर यहाँ 

ईमानदार की कोई कदर नहीं होती 

हर ओर यहाँ पर आज झूठ का शासन है

सच्चाई आँखें ढक अँधियारे में रोती

ओ कर्णधार भारत की जनता के सोचो

 क्यों भ्रष्टाचार पनपता है हर सीढ़ी में


✍️ राजेन्द्रमोहन शर्मा 'श्रृंग'

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