प्रेम के टुकड़े हुए हैं
काम के उन्माद में
साधुओं के रूप में
भेड़िये छलने लगे हैं
नग्न रिश्ते हो रहे हैं
वासना के कूप में
क्यों भरोसा बुलबुलों को
हो रहा सय्याद में
लग रहे माँ-बाप दुश्मन
गैर लगता है सगा
सभ्यता का क़त्ल करके
दे रहे खुद को दगा
कंस बैठा हँस रहा है
आजकल औलाद में
हो रहे लिव इन रिलेशन
के बहुत अब चोंचले
भुरभुरी बुनियाद पर मत
घर करो तुम खोखले
सात फेरों की शपथ अब
हो नहीं परिवाद में
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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