हमारी शायरी सुनकर
या हमारी कविता पढ़कर,
अगर किसी का ज़हन नहीं बदला
मौहब्बत ने नफरत की
और, नेकी ने बदी की जगह नहीं ली,
तो ये सब हमारे खुद के दिल बहलाने का
ही एक ज़रिया हो सकता है
इससे किसी और का बसेरा नहीं होता,
सोच बदलने से भी नया दिन निकलता है,
सिर्फ सूरज के चमकने से ही सवेरा नही होता।
कब तलक खाली जेब भूखे पेट ,
डिग्री हाथ मे लेकर
हम आपके गीत गायेंगे
हम कोई साधु तो हैं नहीं
जो गंगा तट पर जा कर धूनी रमायेंगे
वैसे सचमुच युग बदल गया है,
अब साधु महात्मा जंगल या
हिमालय की कन्दराओं में जाकर
एकान्त में
तपस्या नहीं करते ,
अब आप सन्यासी वाले कपड़ेे पहन कर
सियासत भी कर सकते हैं"
और बिजनेस भी
आप भी ज़माने के इस बदलाव को
स्वीकार कर लीजिए,
विज्ञापनों और भाषणों से
अपना पेट भर लीजिए।
✍️ आमोद कुमार
दिल्ली
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