जब भी देखा गौर से, इक नया घोटाला मिला
कहीं पर काली दाल,कहीं दाल में काला मिला
शासकों के जुर्म को, चुपचाप सब सहते रहे
गूंगे थे कुछ,और कुछ की, जुबान पर ताला मिला
जिन्होनें बच्चों को दिलाए, जूते महंगे, ब्रांडेड
उन सभी माता पिता के,पांव में छाला मिला
अंधियारे से झोपड़ी,चुपचाप ही लड़ती रही
बंधुआ मजदूर सा किसी,महल में उजाला मिला
अपनी कृपा बरसाने को,वह हर समय तैयार था
मांगने वाला ही अक्सर,हमको ढीला ढाला मिला
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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