ग़ज़ल -----
हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।
रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।
पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।
जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।
गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।
🎤✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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