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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के छह दोहे


राम कृष्ण के देश में, रामायण कमजोर।

अपराधी चौपाइयां, चोर मचाएँ शोर।। 1।।


पहले ओछी बात पर,देते थे मुंहतोड़।

राजा अब डरने लगे, या है कुछ गठजोड़।।2।।


जाति-धर्म के नाम पर, जिन्हें चाहिए वोट।

सीधी सच्ची बात में, दिखता उनको खोट।।3।।


तुलसी बाबा की करें, जो जन नीची बात।

 जनमानस की आस्था, को देते आघात।।4।।


नेत्रहीन सत्ता हुई, दरबारी सब मौन।

मानस के अपमान का, बदला लेगा कौन।।5।।


कृष्णम् भारतवर्ष में, कैसा आया वक्त।

जलती मानस और चुप, रामचंद्र के भक्त।।6।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 21 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के सात दोहे ....


शीशे पर चलना पड़ा,तलुवे लहूलुहान।

होठों पर ओढ़े रहे, फिर भी हम  मुस्कान।। 1।।


जीवन अपने आप से,हारा एक जवान।

जहर न पीता वह अगर,बिछड़ रही थी जान।।2।।


अपनी सच्ची शान थी, छोटी सी पहचान।

 जिसके पीछे पड़ गए,मानव कई महान।।3।।


माथे पर चोटें लिखी,गहरे पड़े निशान।

देव पुरुष सब मौन थे,बहरे सबके कान ।।4।।


हमको देखो ध्यान से,लोगे खुद को जान।

ऐरे गैरे हम नहीं,जिंदा हिंदुस्तान ।।5।।


रोते रोते सीखना,है जो तुमको गान।

आंखें मेरी देखना,पूरा अनुसंधान।। 6।।


जिसने समझा वक्त पर, यहाँ वक्त का मोल।

उसे बनाया वक्त ने, दुनिया में अनमोल।। 7।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 7 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम के सत्रह दोहे ....


हर रिश्ते के मूल में,छिपा हुआ यह सार।

रचा बसा उपयोग में, रिश्तों का संसार।। 1।।


उपयोगी जब तक रहे, हम थे सबके  खास।

बूढ़े घोड़े को यहाँ ,कौन डालता घास।। 2।।


उपयोगी रहना सनम, चाहो जो तुम मान।

उपयोगी का ही जगत, करता है गुणगान।।3।।


दुर्दिन आ जाएँ कभी, मानो उन्हें बहार।

भूखे रहकर भी सदा, मारो तेज डकार।।4।।


यहाँ किसी के सामने, रोना है अभिशाप।

रोने से पैदा हुए, पुण्य पेट से पाप।।5।।


कम बोलो ज्यादा सुनो, जो चाहो मनमीत।

बड़बोले ही हारते, हाथ लगी हर जीत।। 6।।


सोचा समझा देर से, पकड़े कुछ दिन बाद।

अगर नहीं सच बोलते, होते नहीं विवाद।।7।।


कुछ अपना प्रारब्ध था, कुछ थे उसके श्राप।

किसके खाते में लिखें, अनजाने के पाप।। 8।।


कृष्णम मन में राम के, कुछ तो था संताप।

अनजाने  होता नहीं,मर्यादा से  पाप।।9।।


सहनशक्ति का रूप है, माँ सीता का नाम।

इसीलिए जग बोलता, जय जय सीताराम।। 10।।


तेइस आया द्वार पर,बाइस गया सिधार।

जो जैसा करता यहां,वैसी जय जयकार।। 11।।


सूर्य देव घर में पड़े,ठंड हुई बरवंड।

नए साल पर दे रही,लाचारों को दंड।। 12।।


सर्दी में आते सदा,नए साल हर साल।   

होली पर आओ कभी,हो जाओगे लाल।। 13।।


आए हो तो प्रेम से,रहना पूरे साल।

नए साल इस बार कुछ,करना नहीं बवाल।। 14।।


अगर किया कुछ आपने,अबकी बार बवाल।

कर देंगे हम पीट कर,गाल तुम्हारे लाल।। 15।।


घर में जैसे आ गया,कोई नटखट लाल। 

पलक बिछाकर हम करें,स्वागत नूतन साल।। 16।।


जन गण मन मोहक बने,हो सबका उत्कर्ष।

सबको मंगलमय रहे,कृष्णम् यह नव वर्ष।। 17।।



✍️ त्यागी अशोका कृष्णम

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के दोहे ......आलोकित हो जिंदगी, दीवाली सी रोज



शुभ शुभ शुभ शुभ कामना, शुभचिंतक संदेश।

आई शुभ दीपावली,जगमग सब परिवेश।।


धनतेरस दीपावली,आई भाई दूज।

गोवर्धन के साथ में ,मिलकर सबको पूज।। 


लाई है दीपावली,अंधकार का नाश।

हारे मन की जीत है,विश्वासों के ताश।।


रौशन दीपों से हुआ, नगर गली हर गांव।

उखड़े उखड़े आज हैं,अंधकार के पांव।।


खील बताशे साथ में,खांड खीर के भोज।

आलोकित हो जिंदगी, दीवाली सी रोज।।


महलों में झालर लगीं, रौशन कुटिया द्वार।

लाये धन की बदलियां, दीपों का त्यौहार।। 


धन वैभव यश कामना, दीवाली के साथ।

कृपा से प्रभु राम की, मिलें सभी पुरुषार्थ।।


अष्ट सिद्धि निधियाँ मिलें, नव, सुख  हाथों हाथ।

धन देवी का आगमन,शुभ चरणों के साथ।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल 

उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 15 अगस्त 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के सात दोहे


प्राण समर्पित कर दिए, राष्ट्र-धर्म के काज।

सीमा-रेखा की रखी, सेना ने ही लाज।। 1।।


धर्म और मजहब अलग, अलग हमारी जात।

राष्ट्र-धर्म के नाम पर, किंतु एक जज्बात।। 2।।


दिल में ऐसी भावना, भर देना करतार।

जननी जैसा ही रहे, जन्मभूमि से प्यार।। 3।।


भारत भू से प्यार के, किस्से कई हजार।

शत्रु वक्ष पर लिख गयी, राणा की तलवार।। 4।।


भारत भू का भाल है, केसरिया कश्मीर।

नजर हटा लो दुश्मनों, वरना देंगे चीर।।5।।


बिस्मिल से बेटे मिले, भगत सिंह से लाल।

उन्नत जिनसे हो गया, भारत माँ का भाल।। 6।।


खूब बजाओ तालियां,देश हुआ आबाद।

साल पिछत्तर हो गये, हमें हुए आजाद।। 7।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 30 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के कुराकावली (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के ग्यारह दोहे .....


तपते सूरज दूर हट, बन मत रिश्तेदार।

सावन आया द्वार पर, ठंडी लिए फुहार।। 1।।


सावन बाबू साल भर, कहाँ रहे दिन रात।

लुटे-पिटे से लग रहे, साथ नहीं बरसात।। 2।।


पागल बदली खूब रह, इसके-उसके साथ।

थक जाए तब थामना, मुझ सावन का हाथ।। 3।।


सावन तू तो आलसी, करे सिर्फ आराम।

मुझ बदली को कर दिया, बेमतलब बदनाम।। 4।।


सुन ले बादल काम की, एक हमारी बात।

अगर बरसना, तो बरस, मत कर काली रात।। 5।।


पोखर में पानी नहीं,गुम दादुर के गान।

सावन अब तू ही बता, क्या तेरी पहचान।। 6।।


सुनरी बदली बावली,जा कर अपना काम।

बिन सावन किस काम की,उससे तेरा नाम।। 7।।


चोली चूनर झूलकर,मना रही है तीज।

खुश हो झोंटे दे रहे,तहमद और कमीज।। 8।।


सावन के रंग में रंगी,भीगी मस्त बहार।

बनी ठनी पुरवा दुल्हन,गाती गीत मल्हार।। 9।।


झोंटे खाती झूल के,यादें थामें हाथ।

पटरी पर बैठी मगर,मन साजन के साथ।। 10।।


प्यार भरी हर बात में,तानों की बौछार।

रूठे सावन के लिए,तीजो का श्रृंगार।।11 ।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 21 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के आठ दोहे


प्रात काल के योग से, दूर रहें सब रोग।
गुणकारी गुरु मंत्र सा, संजीवन रस योग।।

जीवन को सुंदर बना, करके साधन योग।
वेदों की शिक्षा यही, कहते सुनते लोग।।

भूले से करना नहीं, मन तन से खिलवाड़।
एक बार की चूक से, मिले दुखों की बाढ़।।

काया को कमजोर की, सारे सुख निर्मूल।
चुभते उसको फूल भी, जैसे शूल बबूल।।

एक-एक का योग भी, कहलाता है योग।
भोग हुआ जब योगमय, मिटे सभी दुर्योग।।

सबके मन में रम रहे, रोग भोग संभोग।
जिसका जैसा योग हैं, उसका वैसा भोग।।

जो मन चाहे भोगना, कुल वसुधा के भोग।
तन को मन में ढाल ले, मन से कर ले योग।।

दिया हुआ भगवान का, तन सुंदर उपहार।
कृष्णम् नियमित योग से, लाना नित्य निखार।।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल (उ०प्र०)


रविवार, 1 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के दोहे


उखड़ी-उखड़ी साँस है, सपने चकनाचूर।

भारी बोझा पीठ पर, लाद चला मजदूर।।


भूख प्यास के गाँव में, देख रहा मधुमास।

मजदूरों की पीर का, है किसको आभास।।


तपती-जलती रेत में, रखे जमाकर पाँव।

मेहनतकश की आंख में, उम्मीदों का गाँव।।


मालिक की दुत्कार को, लिखा भाग्य में मान।

धारण की मजदूर ने, होठों पर मुस्कान।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 20 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम का आलेख --- गीतों के सम्राट रामावतार त्यागी मानवता के संवाहक


नाम : रामावतार त्यागी, जन्म1935, स्थान : कुरकावली, तहसील संभल, जिला तत्कालीन मुरादाबाद, देहावसान : 12 अप्रैल 1985 नई दिल्ली, शिक्षा: स्नातकोत्तर हिंदी ,दिल्ली विश्वविद्यालय

    नया खून, मैं दिल्ली हूं, आठवां स्वर, गुलाब और बबूल वन, महाकवि कालिदास रचित मेघदूत का काव्य अनुवाद करने वाले, समाधान, चरित्रहीन के पत्र , दिल्ली जो एक शहर था, राम झरोखा ,व्यंग्य स्तंभ और गद्य रचनाएं रचने वाले, समाज, समाज  कल्याण, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स में संपादन कार्य करने वाले, अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ पढ़ाई जाने वाले, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ,हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, बलवीर सिंह, देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र की कवि कुल पीढ़ी के ज्वालयमान नक्षत्र।

खड़ी है बांह फैलाए हुए हर और चट्टानें / गुजरती बिजलियां अपनी कमानें हाथ में ताने/ गजब का एक सन्नाटा कहीं पत्ता नहीं हिलता / किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता । हो, या जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है अथवा विचारक है ना पंडित हैं ना हम धर्मात्मा कोई, बड़ा कमजोर जो होता वही बस आदमी हैं हम। जैसे सैकड़ों अमर गीतों के रचयिता गीत कवि रामावतार त्यागी के साहित्यिक अवदान के बारे में तो पूरा काव्य जगत मुझसे कहीं बहुत अधिक....बहुत अधिक ही जानता है, पहचानता है और मानता है। संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत ने उनके गीतों की विशेष रूप से सराहना करते हुए उनकी प्रतिभा का लोहा भी माना है, किंतु रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी में ना जाने क्या-क्या तलाशने में लगे रहे काव्य जगत से जुड़े लोग उनके व्यापक और विराट व्यक्तित्व के बारे में शायद दो चार पायदान ही चल पाए हो।

     मैं जो उसी कुल गांव और गोत्र और कुरकावली के उसी खानदान में जन्मा जिसमें  रामावतार त्यागी (ताऊ जी) का अवतरण हुआ। मेरी आयु लगभग 9-10 वर्ष की रही होगी। सन 70 और 80 के दशक में तब ताऊ जी का किसी शादी - विवाह के अवसर पर गांव में आना-जाना हुआ करता था अथवा वह किसी साहित्यिक यात्रा पर जब इधर से निकलते थे चाहे वह मुरादाबाद हो, बदायूं हो, चंदौसी हो,  बरेली या शाहजहांपुर जाते थे तो निश्चित रूप से कुरकावली अवश्य आया करते थे। उनको अपनी जन्मभूमि किसी तीर्थ स्थान की तरह लगती थी। उनके समय के अनेक ख्याति प्राप्त सुकवि उनके साथ कुरकावली आकर दालान पर रात्रि प्रवास कर चुके थे । जाने कितने छपने और छापने वाले महान संपादक और कवि उनके घर की बनी बाजरे की रोटी, देसी घी पड़े साग से खाकर धन्य हो गए । पता नहीं, क्यों मुझे बचपन से ही उनके कवि होने से बेहद लगाव था। उनके अस्तित्व से मैं कुछ ज्यादा ही प्रभावित था । वह जब गांव आकर उठने बैठते, मेरे दादाजी बाबूराम त्यागी जो उन्हीं की उम्र के थे उनके पास आया करते थे तब उनके सभी खानदानी भाई चारों ओर खाटें बिछा कर बैठ जाया करते थे। उनको देखा करते और सुना करते थे। मैं जो बहुत अधिक गाने- बजाने में रुचि रखता था, पिताजी से डरकर किसी कोने में खड़ा होकर उनकी बातें सुना करता था। मुझे याद है कि उस समय 'जिंदगी और तूफान', महावीर अधिकारी जी के उपन्यास पर आधारित फिल्म आ  चुकी थी और उसमें उनके गीत का तहलका पूरे विश्व में मच चुका था तब गांव आने पर उन्होंने सभी को अपने अन्य गीत सुनाने के बाद 'जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है' बहुत मन के साथ सुनाया था। मेरी स्मृतियों में सुरक्षित है जब बहन शारदा की बारात हापुड़ के चमरी गांव से आई थी तो विदाई के समय बारातियों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने यूं ही खड़े होकर अपने कुछ गीत सुनाए थे , जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे----

 किसी गुमनाम से गांव में पैदा हुए थे हम

 नहीं है याद पर कोई अशुभ शाही महीना था 

रजाई की जगह ओढी पुआलो की भवक हमने

 विरासत में मिला जो कुछ हमारा ही पसीना था

 रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

  रामावतार त्यागी के खरेरे खरे और खुरदरी व्यक्तित्व में यदि सच और कृतज्ञ भाव न होता तो वह एक अहंकारी व्यक्ति के रूप में जाने और पहचाने जाते । उनका अकड़पन उनका खरेरा पन ही उनके व्यक्तित्व को अनेक लोगों से कोसों दूर.... बहुत दूर ऊपर की ओर ले जाता है। मुझे भली-भांति याद है कि जब कभी भी उनका गांव आना होता था तो वह गांव के अपने सभी पुराने यार- दोस्तों से बिल्कुल गंवई अंदाज में मिलाजुला करते थे। कोई बनावट नहीं, कोई बड़प्पन का दिखावा भी नहीं। तहमद अर्थात लुंगी बांधे हुए गांव के बीचो-बीच कुंए की  मन पर बैठकर घंटों हास परिहास करना वह भी ठेठ ग्रामीण भाषा और शैली में  मजाक करना, जस्सू बाबा  की चौपाल पर  बैठकर घंटों हुक्का ताजी करवा कर पीने वाला व्यक्ति गणमान्य होते हुए कितना सामान्य है। यह आंखों पर मोटा चश्मा लगाए और हवाई चप्पल पहने हुए हाफ शर्ट पहने हुए गांव की शैली में हंसने हंसाने और प्यार में  गरियाने वाला व्यक्ति देश का जाना माना  स्थापित गीतों का शहंशाह रामावतार त्यागी है ।

यह था उनका विराट व्यक्तित्व जिसमें गांव जीवन उफान मारता था । भले ही देश की राजधानी के विशाल सभागारों और ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं  में उनके गीत गूंजते थे लेकिन उनके भीतर पूरा एक गांव  जिंदा था जिसमें खेत थे, खलिहान थे, बाग थे, दालान थे, कहकहो का एक पूरा संसार था तभी तो प्यार, तकरार, झूठ , मनुहार वाले उनके तेवर थे। तभी तो वह कह भी दिया करते थे  

 मैं तो छोड़ मोह के बंधन अपने गांव चला जाऊंगा 

तुम प्यारे मेरे गीतों का गुंजन करते रह जाओगे 

उनकी हठ में प्रेम था और प्रेम में हठ... इस हद तक कि वह जिसको अपने जीवन में सर्वाधिक प्रेम करते थे उसी से संबंध विच्छेद कर देने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ लेकिन पश्चाताप में उन्होंने ऐसे हृदय विदारक विच्छेदनों को किसी उपासना से कम, किसी तीर्थ से कम अपने जीवनपर्यंत नहीं माना लोगों ने रामावतार त्यागी  के दूसरे विवाह के बारे में तो सुना ही होगा और साथ में उनसे जुड़ी अथवा जोड़ी गई बहुत सी बातें भी सुनी होंगी पर यह कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने प्रथम विवाह का सम्मान जीवन पर्यंत पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। मेरा आशय उनकी पहली पत्नी और हमारी ताई जी कांति त्यागी से है, जब तक वह जीवित रही रामावतार त्यागी जी ने कुरकावली के अपने घर ,जमीन, गांव एवं उनसे जुड़े रिश्तो के ऐश्वर्य से कभी भी छेड़छाड़ नहीं की। घर की संपूर्ण संपत्ति, यश और कीर्ति पर क्रांति ताई जी का ही हक जीवन पर्यंत  रहा। 

  रामावतार त्यागी बहुत संकोची एवं शर्मीले व्यक्ति भी थे। उस समय घर की आर्थिक परिस्थितियां उच्च शिक्षा के पक्ष में नहीं थी। जमीदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे किंतु वह पढ़ना चाहते थे। पिताजी का अध्यादेश यह था कि अब घर का अपने हिस्से का काम रामावतार तुझे भी करना है, इसका वह स्वयं विरोध नहीं कर पाए किंतु अपने चाचा जी भीमसेन त्यागी जी के द्वारा रोने धोने का कारण पूछने पर उनको ही अपनी व्यथा कथा सुनाई। चाचा जी भीमसेन जी के द्वारा पिताजी के समक्ष यह आश्वासन देने के उपरांत ही कि रामावतार के हिस्से का काम मैं कर लूंगा, के उपरांत ही गीतों की सुपरफास्ट राजधानी एक्सप्रेस को आगे बढ़ने की हरी झंडी मिल पाई । वह रिश्तो में बहुत ईमानदार और वफादार थे। बात उन दिनों की है जब उनका मुंबई आना- जाना हुआ करता था। वह मुंबई में थे अपने गीतों के सिलसिले में और चाचा भीमसेन जी का कुरकावली में घोड़े तांगे से गिरकर एक्सीडेंट हो गया था। दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में छोटे चचेरे भाई ओमवीर के हाथों में चाचा जी ने अपनी अंतिम सांस ले ली थी और ओमबीर सिंह को पिताजी का शव अस्पताल प्रशासन ने किसी कारण से देने से मना कर दिया था तब वह जैसे ही दिल्ली पहुंचे  अपना आपा खो बैठे।  इससे पहले शायद किसी ने उनका यह रूप पहले नहीं देखा था। उन्होंने अस्पताल के प्रशासन को जमकर लताड़ लगाई और वहीं जमीन पर बैठ गए और तब तक नहीं उठे जब तक तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर, ललित माकन आदि जैसे लगभग आधा दर्जन कैबिनेट  मंत्री मौके पर नहीं आ गए । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विशेष सम्मान के साथ उनके चाचा जी की अंत्येष्टि संपन्न हुई और उसमें पूरे समय तक सभी उपस्थित रहे मंत्रीगण । ऐसे अड़ियल व्यक्तित्व के स्वामी भी थे रामावतार त्यागी। 

  रामावतार त्यागी को विसंगतियों  और विरोधाभासो  से युक्त व्यक्तित्व यूं ही नहीं कहा क्षेमचंद सुमन जी ने। उसके पीछे एक बहुत बड़ा और मजबूत आधार है। एक ओर जहां साहित्य जगत में उनके अकड़पन तुनक मिजाजी और अड़ियल रवैए को लेकर जीवन पर्यंत विवादों और चर्चाओं का बाजार गर्म रहा वहीं दूसरी ओर उनके भीतर बैठा एक प्रेम करने वाला  गीतकार अपने गीत रचता दिखाई देता रहा। कुछ इस प्रकार----

आंख दो टकरा गई हो 

जब किसी के लोचनो से 

हो गया हो मुग्ध जो भी

रूप के कुछ कम्पन्नो से

मौन जीवन वाटिका में प्यार के तर्वर तले

 मिल गए हो प्राण जिसको राह में आते वनों से

 उन मिलन के दोस्तों का नाम केवल जिंदगी 

रात की तड़पनो का नाम केवल जिंदगी


 इसी के साथ प्रेम की प्रेम की प्राणघातक पीड़ा जिस  हृदय मे अपना विजय ध्वज शान से फैला रही हो उसी ह्रदय के  रोशनदानो से आम जनों शोषितो वंचितों के लिए कितना गहरा दर्द था-----

 सौगंध हिमालय की तुमको

 योग का इतिहास बदल दो

यह भूखे कंगाल सिकुड़ते रातों में

दिया गया नूतन विधान जिनके हाथों में

 इससे तो पतझड़ अच्छा 

ऐसा मधुमास बदल दो 

सौगंध हिमालय की तुमको

 युग का इतिहास बदल दो

   ..कहने को और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, सुना जा सकता है, लिखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है  रामावतार त्यागी के विराट और अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में । मैं उन जैसे महान रचनाकार के बारे में क्या कह सकता हूं केवल बालस्वरूप राही के शब्दों के साथ अपने विचारों को विराम देना ही उचित समझता हूं। उन्होंने शायद ठीक ही कहा था कि आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता ।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

 कुरकावली ,जनपद  संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 30 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम की व्यंग्य कविता------ सुविधाभोगी गठबंधन वाली सरकार

 


वही पिटा-पटाया ढोल बजाना,

 चुनाव से पहले,

 गठबंधन में बँध जाना, 

इक्के, दुक्के, नहले, दहलों का!

जवान लड़के, 

और लड़कियों की तरह,

 एक दूसरे के गले में बाँहें डालना,

 दुलारना, पुचकारना, रिझाना,पटाना

 साथ जीने,

 और मरने तक की कसमें खाना,

और,

 चुनाव के ठीक बाद, 

शुरू होता है तय करना, 

सुख-सुविधाओं का बराबर प्रयोग,

अर्थात

बिलास भोग,

भोग-विलास की शर्तों पर,

 पुत्र रत्न की तरह,

 प्राप्त तो हो ही जाती है सत्ता! 

आप सभी जानते हैं इसके बगैर, 

हिलता नहीं है, 

कहीं कोई भी पत्ता!

पत्ता खड़कता है,

 धीरे-धीरे, 

बंदा  रड़कता है, 

धीरे-धीरे,

धीरे-धीरे, एक दूसरे के प्रति,

 आकर्षण कम होता है,

 कोई ज्यादा पा लेता है,

 कोई सब कुछ खो देता है,

इस तरह,

 जब एक करने लगता है,

 दूसरे के साथ, बलात्कार!

तो 

नाजायज, पेट की तरह,

समय से पहले ही गिर जाती है, 

सुविधा भोगी गठबंधन वाली सरकार,

मेरा पहले भी था,

 आपसे एक ही निवेदन,

 और आज भी है एक ही दरकार!

इन तथाकथित,

प्रेमियों को,

बलात्कारियों को,

 विलासी भोगियों को,

 ठिकाने से लगा दो,

अबकी बार फिर एक ईमानदार, 

सरकार बनवा दो


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत




रविवार, 23 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) के साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की रचना --कितने बचकाने हो ?

 


मेरे, 

कंधे, पकड़ कर हिलाते हुए, 

छोटू बोला! 

क्यों पापा?

उम्र के, 

इस पड़ाव पर भी, 

तुम कितने बचकाने हो,

 हां!

हो तो हो! 

तुम बचकाने हो!

 उम्र के इस पड़ाव पर भी,

 और हद यह है, 

कि तुम समझते भी नहीं,  

कि, तुम बचकाने हो!

 तो, 

मैं ही, 

तुम्हें समझाएं देता हूं, 

कान में ही बताएं देता हूं, 

ऊंचा बनने की अप्राकृतिक जिद ने, 

तुम्हें बचकाना बना दिया है,

 और तुम समझते भी नहीं हो! 

कि तुम बचकाने हो,

 उम्र के इस पड़ाव पर भी,

 तुम कितने बचकाने हो!



 ✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

 कुरकावली संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के दोहे .....


शहद कभी तीखी कभी, फूलों में मकरंद ।

कस्तूरी के हिरन सी , अंग अंग में गंध ।।


मुख मंडल के तेज की , लाली सूरज लाल ।

तीरथ जैसी देह है , मन जैसे खड़ताल ।।


 छोटी-छोटी घंटियों , जैसा भोला प्यार ।

 लाल गुलाबी बह रही , सरिता जैसी धार ।।


जब से दर्शन दे दिए , मिटे सभी अवसाद ।

जन्म जन्म के मिल गया , कर्मों का परसाद ।।


हमने तो बस प्यार में , मार दिए थे फूल ।

 उनको ऐसे चुभ गए, जैसे हौ त्रिशूल ।।


किसने उनको कह दिया , पत्थर दिल गम गीन ।

झूठा यह अभियोग है , नहीं आप रंगीन ।।


किस दुश्मन ने है भरे, प्रिय तुम्हारे कान ।

ऐसा क्यों लगने लगा , नहीं जान पहचान ।।


 एक बताऊं मैं तुम्हें , लाख टके का सार ।

मुझसे बातें मत करो , हो जाएगा प्यार ।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम

कुरकावली, सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के प्रख्यात गीतकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की जन्मभूमि कुरकावली में अमृत महोत्सव आयोजन समिति की ओर से गुरुवार 16 दिसम्बर 2021 को राष्ट्रवादी कविसम्मेलन का आयोजन

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल की अमृत महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष एडवोकेट राहुल दीक्षित एवं भू केंद्र शर्मा के निर्देशन और प्रख्यात साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम के संयोजन में  प्रख्यात गीतकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की जन्मभूमि कुरकावली में स्वाधीनता का अमृत महोत्सव कार्यक्रम श्रंखला के अंतर्गत राष्ट्रवादी कविसम्मेलन का आयोजन गुरुवार 16 दिसम्बर 2021  को किया गया।  कार्यक्रम की अध्यक्षता ए के रिसॉर्ट के स्वामी अमित त्यागी ने की। मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक आशुतोष जी थे। 

कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता के चित्र पर माल्यार्पण एवं सिकन्दराराऊ हाथरस से पधारीं कवयित्री उन्नति भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से हुआ । इसके पश्चात उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत रचनाएं प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया । सम्भल की पावन धरा को नमन करते हुए उन्होंने कहा ---

पृथ्वीराज की राजधानी का गुणगान करती हूं,

शंकर जी की इस पावन धरा का मान करती हूं,

श्रीमद् भागवत में है कल्कि अवतार का वर्णन ,

प्रकट होंगे जहां विष्णु उनका यशगान  करती हूं।

  कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए प्रख्यात व्यंग्य कवि त्यागी अशोक कृष्णम का कहना था ---

 भारत माता की रखी वीरों ने ही लाज 

 प्राण निछावर कर दिए देश धर्म के काज

 वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कोरोना के संदर्भ में रचना प्रस्तुत की ---

 मत कहो वायरस जहरीला बहुत

 इंसान ही आजकल कमजोर है

 आगरा के चर्चित कवि दीपक दिव्यांशु ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रचना प्रस्तुत की ---

 भारती के चीर पर जब भी नजर गंदी पड़ी।

हुक्मरानी हस्तियों की आंख जब उस पर गढ़ी।

तो ढाल बनकर मौत की संगीन लेकर निज करों में।

जिंदगी का दान देकर जंग हमने है लड़ी।

      युवा साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने अपनी सँस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा ---

 सूर्य अर्घ्य और गाय की पहली रोटी ,हमें अच्छे से याद है।

 तुलसी पूजा और  चौपालों का सत्संग भी याद है।

 सुजातपुर के कवि प्रदीप कुमार का स्वर था ---

 मिला है नीर गंगा का शहीदों के लहू के संग।

है चंदन से भी पावन मेरे हिंदुस्तान की मिट्टी।

इस अवसर पर स्मृतिशेष रामावतार त्यागी जी के भतीजे राहुल त्यागी ने शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित कृति " हमारे लोकप्रिय गीतकार - रामावतार त्यागी " सभी कवियों को भेंट की । आयोजकों द्वारा सभी कवियों को अंगवस्त्र ,सम्मान पत्र व सम्मान राशि प्रदान कर सम्मानित भी किया गया । कार्यक्रम में मुख्य रूप से पूर्व एमएलसी भारत सिंह यादव, लोकतंत्र सेनानी चौधरी महिपाल सिंह, चौधरी नरेंद्र सिंह, योगेंद्र त्यागी, प्रदीप कुमार त्यागी, प्रेमराज त्यागी, खिलेंद्र सिंह, सुभाष चन्द्र शर्मा आदि उपस्थित रहे ।






























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त्यागी अशोक कृष्णम 

कुरकावली, जनपद सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 30 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम का गीत ....भारत मां सा चेहरा तेरा मन है पाकिस्तानी


नहीं चाहिए हमें किसी का घोड़ा गाड़ी कोठी 

हम तो खुश हैं खाकर दैय‌्या इज्जत की दो रोटी

कितनी कसकर तुझको बांधू करता है शैतानी

मैंने लाख कहीं तुझसे पर तैने  एक न मानी


ताका झांकी इधर उधर की गंदी बातें राजा

मैं हूं घर में अनमनी सी तू भी लौट के आजा

छोटी मोटी बातों पे क्यों छोड़े दाना पानी

मैंने लाख कहीं तुझसे पर तैने एक न मानी


हम हैं तेरी जान के दुश्मन दुश्मन तेरे याडी

कुर्ता लगता तुझे पजामा चुनर लगती साड़ी

दो और दो मत आठ बतावै चार हैं राजा जानी

मैंने लाख कहीं तुझसे पर तैने एक न मानी


जोड़ें और जगोडे मेरे तैने खूब लुटाए

यारों के संग चोरी चुपके जमकर मजे उड़ाए

भारत मां सा चेहरा तेरा मन है पाकिस्तानी

मैंने लाख कहीं तुझसे पर तैने एक न मानी


दो चुल्लू के चक्कर में क्यों पहुंच गया तू दिल्ली 

बिल्ली ने काटा है रास्ता निकल जाएगी किल्ली

उतरिया लाल किले से नीचे तेरी मर जाएगी नानी

मैंने लाख कहीं तुझसे पर तैने एक न मानी


सुन ना पाई मैं तेरी तू समझ ना पाया मुझको

 मैं हूं तेरी पूर्णमासी चंदा भाया मुझको

 तेरा मेरा कैसा झगड़ा कैसी खींचम तानी

मैंने लाख कहीं तुझसे पर तैने एक न मानी


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम‌्, कुरकावली संभल, उत्तर प्रदेश, भारत