शहद कभी तीखी कभी, फूलों में मकरंद ।
कस्तूरी के हिरन सी , अंग अंग में गंध ।।
मुख मंडल के तेज की , लाली सूरज लाल ।
तीरथ जैसी देह है , मन जैसे खड़ताल ।।
छोटी-छोटी घंटियों , जैसा भोला प्यार ।
लाल गुलाबी बह रही , सरिता जैसी धार ।।
जब से दर्शन दे दिए , मिटे सभी अवसाद ।
जन्म जन्म के मिल गया , कर्मों का परसाद ।।
हमने तो बस प्यार में , मार दिए थे फूल ।
उनको ऐसे चुभ गए, जैसे हौ त्रिशूल ।।
किसने उनको कह दिया , पत्थर दिल गम गीन ।
झूठा यह अभियोग है , नहीं आप रंगीन ।।
किस दुश्मन ने है भरे, प्रिय तुम्हारे कान ।
ऐसा क्यों लगने लगा , नहीं जान पहचान ।।
एक बताऊं मैं तुम्हें , लाख टके का सार ।
मुझसे बातें मत करो , हो जाएगा प्यार ।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम
कुरकावली, सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
हटाएं