हर रिश्ते के मूल में,छिपा हुआ यह सार।
रचा बसा उपयोग में, रिश्तों का संसार।। 1।।
उपयोगी जब तक रहे, हम थे सबके खास।
बूढ़े घोड़े को यहाँ ,कौन डालता घास।। 2।।
उपयोगी रहना सनम, चाहो जो तुम मान।
उपयोगी का ही जगत, करता है गुणगान।।3।।
दुर्दिन आ जाएँ कभी, मानो उन्हें बहार।
भूखे रहकर भी सदा, मारो तेज डकार।।4।।
यहाँ किसी के सामने, रोना है अभिशाप।
रोने से पैदा हुए, पुण्य पेट से पाप।।5।।
कम बोलो ज्यादा सुनो, जो चाहो मनमीत।
बड़बोले ही हारते, हाथ लगी हर जीत।। 6।।
सोचा समझा देर से, पकड़े कुछ दिन बाद।
अगर नहीं सच बोलते, होते नहीं विवाद।।7।।
कुछ अपना प्रारब्ध था, कुछ थे उसके श्राप।
किसके खाते में लिखें, अनजाने के पाप।। 8।।
कृष्णम मन में राम के, कुछ तो था संताप।
अनजाने होता नहीं,मर्यादा से पाप।।9।।
सहनशक्ति का रूप है, माँ सीता का नाम।
इसीलिए जग बोलता, जय जय सीताराम।। 10।।
तेइस आया द्वार पर,बाइस गया सिधार।
जो जैसा करता यहां,वैसी जय जयकार।। 11।।
सूर्य देव घर में पड़े,ठंड हुई बरवंड।
नए साल पर दे रही,लाचारों को दंड।। 12।।
सर्दी में आते सदा,नए साल हर साल।
होली पर आओ कभी,हो जाओगे लाल।। 13।।
आए हो तो प्रेम से,रहना पूरे साल।
नए साल इस बार कुछ,करना नहीं बवाल।। 14।।
अगर किया कुछ आपने,अबकी बार बवाल।
कर देंगे हम पीट कर,गाल तुम्हारे लाल।। 15।।
घर में जैसे आ गया,कोई नटखट लाल।
पलक बिछाकर हम करें,स्वागत नूतन साल।। 16।।
जन गण मन मोहक बने,हो सबका उत्कर्ष।
सबको मंगलमय रहे,कृष्णम् यह नव वर्ष।। 17।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
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