एकफ़ासला    प्यार    में    बढ़ाने  से 
कुछ  न  पाओगे  तुम ज़माने  से 
इन   बहारों   से    पूछकर  देखो 
फूल   खिलते   हैं    मुस्कुराने से
रात -दिन  तुमको याद  करते हैं 
मिल भी' जाओ  कभी बहाने से
एक  दिन   तो पता   चलेगा  ही 
झूठ   छिपता  नहीं   छिपाने  से
क्या महक पाएगी कभी बगिया 
काग़ज़ी   फूल   को  लगाने   से
ज़िन्दगी   प्राणहीन   सी  लगती   
एक  उनके   ही   रूठ   जाने से 
सिर्फ़ इतना  'प्रणय' बतादो तुम 
क्या    मिलेगा  तुम्हें   सताने  से
दो
हमें तो  प्यार उनसे  है  मुहब्बत  जिनके'  मन में है
न  भाते हैं  हमें  वे  जन अदावत  जिनके मन में है
गरीबों  के  जो  दुख  हरते  नहीं  उनसे   बड़ा कोई 
उन्हें  ईश्वर  भी  चाहेगा   इबादत  जिनके मन में है
हमेशा  झूठ  पर  बुनियाद  जो घर  की खड़ी  करते        भरोसा क्या करें उन पर सियासत जिनके  मन में है
नहीं  उम्मीद  तुम  रखना   मधुर  व्यवहार की उनसे 
शरारत   ही  करेंगे  वो   शरारत   जिनके  मन  में है
खपा दी उम्र सब अपनी  मगर फिर  भी  नहीं  माने 
मनाते भी उन्हें कब तक शिकायत जिनके मन में है
जो  सज्जन  हैं  न भटकेंगे  कभी  भी  नेक  राहों  से 
करेंगे  बात  सब  उनकी   शराफ़त  जिनके  मन में है
'प्रणय' तुम मान से  उनको भले  ही सिर  पे बैठाओ 
किसी के  हो  नहीं  सकते  बग़ावत जिनके मन में है
तीन
आरज़ू दिल  की'  तू  छुपा  तो' नहीं 
प्यार  करना  कोई   सज़ा   तो' नहीं 
दर्द    देकर  किसी  को'  खुश  होगा 
ऐसे'   साँचे   में'   वो  ढला  तो  नहीं 
इतनी   पाकीज़गी    है   चेहरे    पर
वो   मुहब्बत  का   देवता   तो  नहीं
क्या   हुआ  ग़म   ये   राम  ही  जाने 
सामने  उसने'  कुछ   कहा  तो नहीं
किस तरह जाके' मिलते हम उससे
उसके' घर  का हमें   पता  तो' नहीं
कितना'  बेसुध सा लग  रहा  है  वो 
क्या  किसी ने  उसे  छला  तो  नहीं 
उससे'  मिलने   के बाद  फिर अपने 
दिल में' कोई  'प्रणय' बसा  तो नहीं 
चार
लग  रही  द्वार  पर  आज  साँकल वही 
घर  तो' खाली  पड़ा , है  धरातल  वही 
जिसकी  छाया  तले  धूप   से  मैं  बचा 
मेरी' माँ  का  मिला  आज आँचल वही
प्यार  से  देख   लो  पास   आकर  मुझे 
जो  बरसता  बहुत   मैं  हूँ'  बादल वही 
जब  विरह  ने मिलन की जगाई  अगन 
बज  उठी  प्यार  में   मीत  पायल  वही
हर समय  हर  घड़ी  दिल ने' चाहा जिसे  
दोस्त  बनकर   मेरा  कर  रहा  छल वही 
देखकर  जिसको  मन  हो   गया  बावरा 
आँख  में लग  रहा  उनकी' काजल वही 
किस तरह प्रेम का फूल खिलता 'प्रणय'
मिल  रहा  द्वेष   का  रोज  दलदल  वही 
पांच
याद   ने   तुम्हारी   आ   रोज   ही    सताया है 
दर्द    को    सदा  हमने   गोद    में   झुलाया है
भ्रम   न  पालना   मन में ,  इससे'  टूटते  रिश्ते 
प्यार  में   सदा   भ्रम   ने   फ़ासला बढ़ाया   है 
क्या बताएं हम तुम को भावनाएं इस दिल की 
हमने'  तो  दुखी जन  को बस गले  लगाया  है 
ज़िन्दगी भी'सुख -दुख का खेल खेलती रहती 
वक़्त ने   यहाँ   ऐसा   जाल   सा    बिछाया है 
चाँद   जब  से'   देखा   है  चाँदनी   कहे उससे 
प्यार    से   तुम्हें   दिल  ने  आइए    बुलाया  है 
ऐ  पिता तुम्हीं   से तो  हर  खुशी मिली मुझको 
हर    कदम   पे  कष्टों   से   आपने   बचाया  है 
खिल उठीं  सभी   कलियाँ ,मस्त हो उठे भँवरे 
इस 'प्रणय' ने' जब जब भी प्रेम  गीत  गाया है 
छह 
ज़रा  पास   आ  मुस्कराओ  कभी 
हमें  भी  मुहब्बत  सिखाओ कभी
हमेशा    हमीं     हैं   मनाते    तुम्हें 
हमें भी तो  आकर   मनाओ कभी
सुना है  ये दुनिया   बहुत ही  हसीं 
हमें साथ  चलकर  दिखाओ कभी 
नमी  आँख  की  कह  रही  आपसे 
कि बिछुड़े हुए दिल मिलाओ कभी 
तुम्हारी   छुअन  से   सँवर   जाएंगे 
हमें    तुम  गले  से  लगाओ  कभी 
सभी  पीर - संतो  को  कहते  सुना 
कि कमजोर को मत सताओ कभी 
जो' ग़ज़लें 'प्रणय' की पढ़ी आपने 
उन्हें हमको  गाकर  सुनाओ कभी
सात
करें जो काम   मेहनत  से वो कब  नाकाम होते हैं 
लिखे  उनकी  ही   किस्मत  में सदा ईनाम होते हैं
सिखाया है जो अनुभव ने सुनाते  हैं सुनो तुम भी 
ज़माने   में  छलावे  के  तो  किस्से   आम  होते हैं
सदा अपना  समझकर जो निभाते हैं सभी  रिश्ते
ज़माने   में  वही   अक्सर बहुत  बदनाम  होते  हैं
न जाओ  छोड़कर मुझ को अकेला भीड़ में साथी 
मुहब्बत  के  अलावा   भी बहुत   से काम  होते हैं 
करें जो  नेकियाँ  जग में  जलाएं दीप खुशियों के 
समय का  फेर   है  ऐसा   वही   गुमनाम  होते हैं 
लगा   लेते  गले   से  जो   मुसीबत  में सुदामा को 
वही   मीरा,  वही   राधा   के   देखो  श्याम होते हैं 
जरूरी  है  बहुत   ही  आपसी  विश्वास  जीवन में
अगर   विश्वास  टूटे  तो  बहुत   कोहराम  होते  हैं
आठ
तम को मिटा रहे हम खुद  को जला जला के 
इक बार देख  लो  तुम  हालत हमारी आ  के 
इस  ज़िन्दगी में हमने केवल तुम्ही  को चाहा 
अच्छा नहीं यूँ जाना दिलबर ये दिल दुखा के 
अब क्या बतायें  उनको  कैसी  गुज़र  रही है
बारिश का मस्त मौसम आया बिना पिया के 
असली है या है' नकली यदि जानना तुम्हें हो 
सोने  को  देख  लेना  इक  बार  तुम तपा के 
अच्छा  नहीं  है  मौसम  दुश्मन  है ये ज़माना 
घर से कहीं  भी  जाओ जाना   ज़रा बता के 
दिल  चाहता  यही   है करता   यही  दुआ है 
जीवन कटे   सभी का  इक दूजे को हँसा के
कहना यही 'प्रणय' का कितने भी कष्ट आयें 
जीना नहीं  कभी तुम  अपनी नज़र झुका के 
नौ
रात दिन मैं मिलन को मचलता रहा 
बेवफ़ा  पर   बहाने से  छलता  रहा
क्या  सुनाऊँ  तुम्हें  प्यार की  दास्तां 
मैं  सुबह  शाम सा  रोज ढलता रहा 
आज तक कब मिली रोशनी की किरन 
मैं   अँधेरों  के  घर   में  ही  पलता रहा
वो न आए कभी  पास में आज तक 
मैं विरह की अगन में ही जलता रहा 
जो कदम दर कदम मुझको ठगते रहे 
सँग  उन्हीं  के  हमेशा मैं' चलता रहा 
ठोकरें  तो   लगीं   ज़िन्दगी  में बहुत 
मैं मगर उनसे हर पल सँभलता रहा
दोस्तो  की खुशी  के  लिए  ही  'प्रणय'
मोम के बुत सा पल पल पिघलता रहा
दस
खुशी बाँटो ,न ग़म पालो ,रहो  मिलकर मुहब्बत से 
कभी मिलता नहीं कुछ भी यहाँ पर यार नफ़रत से 
वही मौसम, वही बारिश, वही  है  दिन जुदाई का 
चले आओ सनम अब तो न तोलो प्यार  दौलत से
 न  जाओ छोड़कर  मुझको  तुम्हारा  ही  सहारा है 
उठेगी  फिर  यही आवाज़ दिल की इस इमारत से 
तुम्हारे रूप का जादू गिराता बिजलियाँ दिल पर 
जिये  कैसे  कोई  बोलो  ज़माने  में  शराफ़त  से 
सताने   का    तुम्हारा   ढँग    निराला   है , अनोखा है
निकल जाये न अपना दम कहीं फिर आज दहशत से 
न कपड़ों से, न गहनों से अमीरी  की परख करना 
हमेशा हर  किसी  से पेश  आना आप  इज़्ज़त से 
न   कर   उम्मीद   होगा    फ़ैसला   तेरे   मुकद्दर का 
मिलेगी फिर 'प्रणय'तारीख तुझको इस अदालत से 
✍️ लव कुमार 'प्रणय'
के-17, ज्ञान सरोवर कॉलोनी 
अलीगढ़
उत्तर प्रदेश, भारत
चलभाष - 09690042900
ईमेल  - l.k.agrawal10@gmail.Com