गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता..... डिजिटल काव्यपाठ


कोरोना काल में

हमारे ठाठ ही ठाठ थे

किसी न किसी

आभासी पटल पर

आएदिन हो रहे

काव्य पाठ थे

याद नही उनको

कितने लोग सुनते थे

लेकिन हर 

काव्य पाठ के बाद

हमको डिजिटल

सर्टिफिकेट मिलते थे

हम उनको

अपने पैसों से प्रिंट करा

महंगे से महंगे

फ्रेम में जड़वाते थे

फिर उनको

अपने घर में सजाते थे

लेकिन

अधिक नही चल पाया

आत्म प्रशंसा का जुनून

इसने कर डाला

हमारी सारी बचत का खून

इतना ही नहीं

इसने हमारे हर कमरे को

हर दीवार को,हर कौने को

भर दिया

और हमको

हमारे ही घर से

बेघर कर दिया


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-10-2022) को   "गयी बुराई हार"   (चर्चा अंक-4575)    पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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