शिक्षा वह जो मनुज को, रखे कूप मण्डूक।
दी जाती खम ठोक के, हुई बड़ी है चूक।।1।।
लगता शायद हो चुका, भाईचारा नष्ट।
ध्यान सभी का तब गया, लगे सताने कष्ट।।2।।
आता रहता है सदा, नफ़रत को ही ताव।
तार-तार इसने किया, सामाजिक सद्भाव।।3।।
धुले कहाँ हैं आजतक, अभी पुराने घाव।
समरसता फिर लूटकर, धन्य हुए अलगाव।।4।।
माँ दुर्गा कल्याणिनी, सिद्ध करो सब काम।
सभी बढ़ाएँ देश का, गौरव बिना विराम।।5।।
दुनिया में बस कोख ही, सर्वश्रेष्ठ है काव्य।
लिखे पुत्र से भाग्य को, बेटी से सौभाग्य।।6।।
जिनके अब हो ही चुके, लाइलाज सब रोग।
बचा सकें केवल उन्हें, योग और संयोग।।7।।
वर्तमान भटकाव में, धुँधला जहाँ भविष्य।
युवा बने कब तक रहें, उस भाषा के शिष्य।।8।।
होती अच्छी अति नहीं, जितनी लो कर देख।
स्वच्छ भाव ही लिख सके,पढ़ने लायक लेख।।9।।
ओछे फिर-फिर पीटते, बस अपना ही ढोल।
जब निकली आवाज तो, खुली ढोल की पोल।।10।।
चीते आए देश में, लगे भड़कने लोग।
शायद ऐसे द्वेष से, मिटते कुछ के रोग।।11।।
नफ़रत नफ़रत जाप से, कर सबको बदनाम।
फिर होता मिलकर इसे, फैलाने का काम।।12।।
यदि अपने ही पास में, रसद न हो भरपूर।
मंज़िल फिर है भागती, यात्राओं से दूर।।13।।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद -244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल:9319086769
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