बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' के पांच दोहे


सेवक बनकर राम का, किया राज का काज।

भाई हो तो भरत सा, कहता सभी समाज ।।

भाई हो तो भरत-सा, जिसका निश्छल प्यार ।

कुश आसन पर बैठकर, करता था दरबार ।।

जनसेवा करता रहा, सरयू तट के पास ।

भाई हो तो भरत-सा, तजा महल का वास।।

राज-काज करता रहा,धारण कर सन्यास।

भाई हो तो भरत-सा, त्यागे भोग-विलास।।

राजा होकर भी सदा, भोगा था वनवास ।

भाई हो तो भरत-सा, बना राम का दास ।।


✍️ ओंकार सिंह ओंकार 

1-बी-241बुद्धिविहार, मझोला,

मुरादाबाद 244103

उत्तर प्रदेश, भारत

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