सेवक बनकर राम का, किया राज का काज।
भाई हो तो भरत सा, कहता सभी समाज ।।
भाई हो तो भरत-सा, जिसका निश्छल प्यार ।
कुश आसन पर बैठकर, करता था दरबार ।।
जनसेवा करता रहा, सरयू तट के पास ।
भाई हो तो भरत-सा, तजा महल का वास।।
राज-काज करता रहा,धारण कर सन्यास।
भाई हो तो भरत-सा, त्यागे भोग-विलास।।
राजा होकर भी सदा, भोगा था वनवास ।
भाई हो तो भरत-सा, बना राम का दास ।।
✍️ ओंकार सिंह ओंकार
1-बी-241बुद्धिविहार, मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत
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