गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ...जख्म


घर के बाहर ढोल नगाड़े बज रहे थे ।सभी घर परिवार के सदस्य और नाते रिश्तेदार थिरक थिरक कर नाच रहे थे ।पूरा घर नए रंग बिरंगे गुब्बारों से सजाया गया था ।

गाड़ी से बाहर पैर रखने से पहले ही सासू मां ने फूल बिछा दिए मुक्ता के।

वह आश्चर्य चकित हो सबको देख रही थी ।निहाल ,उसके पति भी तो कैसे उसको सहारा देने में लगे हुए थे ।

"परिस्थितियों का गुलाम होता है इंसान भी ।"मुक्ता ने मन ही मन सोचा।

"न ईमान न धर्म और न ही गैरत ।"

उसकी दोनों फूल सी आठ और दस साल की बेटियां भी नाच रहीं थीं ।अचानक सभी की लाडली हो गईं वो ।

"अब इनके उपर का ढक्कन आ गया तो , ये भी प्यारी लगने लगेगी ।"दादी सास ने दांत निपोरते हुए कहा तो सभी हां में हां मिलाने लगे ।ऐसा नहीं था कि वो सब अशिक्षित थे लेकिन सिर्फ कहने भर के कागजी शिक्षित थे शायद ।

मुक्ता की गोद से झट से सासू मां ने पोते को ले लिया और उसकी बलैया लेने लगीं। 

"ये सभी वही लोग हैं जो मेरी दोनों बेटियों के होने पर मेरे पास तक नहीं फटके थे ।"सोचकर मुक्ता का मन घृणा से भर आया उसके जख्म फिर से हरे हो गए ।

दरवाजे पर पहुंचने से पहले ही उसने अपनी दोनों बेटियों को गले से लगा लिया और सुबकने लगी ।

वह यादों के आगोश में चली गई ।

जब दोनों बेटियों के जन्म के बाद वह घर आई थी तब घर में मानो सन्नाटा सा पसर जाता था ।

दूधमुही बेटियों को कोई छूता तक नहीं था । सभी घर में मुक्ता की तरफ मुंह बनाकर बात करते ।निहाल तो बहुत दिनों तक कमरे तक में नहीं आए और आज ......

"अरे बहु चलो तुम्हारी आरती होगी ।"सासू मां चिल्लाई ।

मुक्ता ने दोनों बेटियों को आगे कर कहा ।

"इनकी कर दोगी तो मेरी ही हो जायेगी ।"

सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।निरुत्तर ।

✍️ राशि सिंह

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


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