सुबह के आठ बजे थे।कबूतरों ने आना शुरू कर दिया था।लेकिन आज छत पर दाना पानी नहीं था।कबूतरों ने उत्सुकतावश इधर उधर देखा।
नीचे आंगन में ,कपड़े में लिपटा हुआ,किसी का मृत शरीर रखा था।कबूतरों ने उसे फौरन पहचान लिया।अरे !यह तो वही इंसान है,जो उनको रोज दाना खिलाता था। उनमें आपस में कुछ खुसर पुसर हुई और धीरे धीरे छत पर कबूतरों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई।सब शांत बैठे थे और उनकी आंखों में आसूं स्पष्ट देखे जा सकते थे।
आंगन में भी दो चार लोग आ चुके थे, लेकिन शोर शराबा बढ़ता जा रहा था।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
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