गुरुवार, 23 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघु कथा--------घाटे का सौदा


रामप्रकाश जी ने किसी को,तीन साल पहले अस्सी हज़ार रुपए,व्यापार के सिलसिले में दिए थे।किसी कारण वो डील कैंसिल हो गई लेकिन अब वो व्यक्ति उनके रुपए नहीं लौटा रहा था । रामप्रकाश जी अपनी ओर से हर संभव प्रयास करके थक चुके
थे।एक दिन अचानक उनको याद आया । उनके साथ हाईस्कूल में दिनेश सिंह नामका लड़का पदा करता था।आजकल वो सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक है।उन्होंने जानकारी प्राप्त कर फोन पर उससे बात की,और अपनी समस्या के बारे में उसे बताया।वो रामप्रकाश जी को एकदम पहचान गया और उसने आश्वस्त किया कि कल तक आपके रुपए आपको मिल जाएंगे।
    अगले ही दिन किसी ने उनका दरवाज़ा
खटखटाया।कोई नौजवान खड़ा था।बोला । 'मुझे विधायक जी ने भेजा है।आपके रुपए
मिल गए है।' रामप्रकाश जी को इतनी जल्दी कार्यवाही की उम्मीद नहीं थी।वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे।इसी बीच उस नौजवान ने अपनी जेब से एक कागज निकाल कर रामप्रकाशजी की ओर बढ़ाया "आजकल पार्टी के लिए फंड इकट्ठा हो रहा है,विधायक जी ने आपकी एक लाख रुपए की रसीद कटवा दी है। अस्सी हज़ार आपके आ चुके है
अब केवल बीस हज़ार आपको देने हैं " रामप्रकाश जी अवाक से खड़े थे।मानो सोच रहे हो, मै किस घाटे के सौदे में फंस गया।

डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

बुधवार, 22 जुलाई 2020

यादगार आयोजन :मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में शनिवार 22 जुलाई 2017 को नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में ‘सम्मान समारोह एवं पावस-राग’ का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में शनिवार 22 जुलाई 2017 को नवीन नगर स्थित ‘हरसिंगार’ भवन में नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में ‘सम्मान समारोह एवं पावस-राग’ के रूप में मनाया गया जिसमें देहरादून से पधारे सुविख्यात साहित्यकार एवं चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘कविकुम्भ’ के यशस्वी संपादक श्री जयप्रकाश त्रिपाठी एवं कवयित्री श्रीमति रंजीता सिंह के मुख्य आतिथ्य में लखनऊ से पधारे वरिष्ठ नवगीतकार मधुकर अष्ठाना को प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, अंगवस्त्र, सम्मान राशि व श्रीफल नारियल भेंटकर ‘‘माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन-सम्मान’’ से सम्मानित किया गया।

     कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी द्वारा लिखित एवं संगीतवद्ध सरस्वती वंदना- ‘शारदे माँ शारदे माँ, ज्ञान का वरदान दे माँ/ज्योति की सरिता बहा दे, नवसृजन का दान दे माँ’ की सुमधुर संगीतमय प्रस्तुति से हुआ। तत्पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित स्थानीय एवं अतिथि साहित्यकारों ने माहेश्वर तिवारी के रचनाकर्म की 6 दशक लम्बी स्वर्णिम यात्रा पूर्ण होने पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से चर्चा करते हुए बधाई दी। साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के संयोजक  योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने कार्यक्रम के संदर्भ में अपने वक्तव्य में कहा कि-‘मुरादाबाद के साहित्यिक पर्याय श्रद्धेय दादा तिवारी जी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होना एक बड़ी उपलब्धि है, इसी परिप्रेक्ष्य में गतवर्ष भी वरिष्ठ रचनाकार डॉ0 राजेन्द्र गौतम(नई दिल्ली), श्री यश मालवीय (इलाहाबाद), जयकृष्ण राय तुषार(इलाहाबाद), हरिपाल त्यागी(नई दिल्ली) एवं  ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’(मुरादाबाद) को सम्मानित किया गया था। इस वर्ष लखनऊ निवासी नवगीत के बड़े हस्ताक्षर मधुकर अष्ठाना को उनके दीर्घ एवं उल्लेखनीय सृजन के लिए सम्मानित किया जा रहा है।’

इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि साहित्यकारों एवं स्थानीय साहित्यकारों द्वारा चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘कविकुंभ’ के जुलाई, 2017 अंक का भव्य लोकार्पण किया गया। पत्रिका की संपादक रंजीता सिंह ने इस अवसर पर पत्रिका के संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि ‘कविकुंभ पत्रिका अपनी तरह की अलग साहित्यिक पत्रिका है जिसमें समसामयिक साहित्यिक संदर्भों पर प्रतिष्ठित साहित्यकारों से गंभीर विमर्श भी है और स्थापित व नवोदित रचनाकारों की महत्वपूर्ण कविताएं भी हैं। कविकुंभ पत्रिका आज के समय में एक आवश्यक साहित्यिक पत्रिका है।’

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र-‘पावस-राग’ में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी द्वारा अपनी संगीत की छात्राओं-  संस्कृति, कशिश, साक्षी, उर्वशी, प्रीति, राशि, यश, लकी एवं तबला वादक श्री राधेश्याम की संगत में कीर्तिशेष शास्त्रीय गायिका किशोरी अमोनकर के वर्षागीत ‘ओ ! बदरा’ की प्रभावशाली प्रस्तुति के साथ-साथ माहेश्वर तिवारी जी के नवगीतों को भी संगीतवद्ध कर प्रस्तुत किया गया-

‘डबडबाई है नदी की आँख

बादल आ गए

मन हुआ जाता अँधेरा पाँख

बादल आ गए’

..........

‘बादल मेरे साथ चले हैं

परछाई जैसे

सारा का सारा जग लगता

अँगनाई जैसे’

इसके पश्चात कार्यक्रम के तृतीय सत्र में वर्षा ऋतु पर केन्द्रित काव्य-पाठ का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित कवियों ने समसामयिक संदर्भों के साथ-साथ वर्षा ऋतु के विभिन्न पहलुओं के चित्र भी अपनी-अपनी कविताओं में उकेरे। इस अवसर पर काव्य-पाठ करते हुए अतिथि रचनाकार लखनऊ से पधारे नवगीतकार श्री मधुकर अष्ठाना ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

‘जल रहे हम यहाँ वर्तिका की तरह

चाहतें हो गईं द्वारिका की तरह

धार में आँसुओं की बही बाँसुरी

हम तड़पते रहे राधिका की तरह’

देहरादून (उत्तराखण्ड) से पधारे  जयप्रकाश त्रिपाठी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘आज सारे लोग जाने क्यों पराए लग रहे हैं

एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए लग रहे हैं

बेबसी में क्या किसी से रोशनी की भीख माँगें

सब यहाँ बदनाम रात के साए लग रहे हैं’

देहरादून (उत्तराखण्ड) से ही पधारीं कवयित्री रंजीता सिंह ने अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की-

‘ज़िन्दगानी की कड़ी धूप में चलकर देखो

हाँ, ग़ज़ल और निखर जाएगी जलकर देखो

सख़्त हालात में तप जाओगे कुंदन की तरह

वक़्त की आँच पे कुछ और पिघलकर देखो’

काशीपुर (उत्तराखंड) से पधारी कवयित्री डॉ. ऋचा पाठक ने काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए कहा-

‘ईश्वर मुझसे हार गया

मैंने अपनी ज़िम्मेदारी

इतनी उम्र निभायी सारी

अब जब उसकी बारी आई

फौरन पलटी मार गया’

सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने नवगीत प्रस्तुत किया-

‘खिड़की, शायद तुमने

रात खुली रहने दी

चुपके से सिरहाने तक

बादल आ गए’

सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘सूरज पहले खुद तपता है

फिर धरती खूब तपाता है

तब जाकर के कोई बादल

ठंडक-सी लेकर आता है’

वरिष्ठ शायर डॉ. कृष्ण कुमार ‘नाज़’ ने ग़ज़ल पेश करते हुए कहा-

‘न मैं तुमको समझ पाया, न तुम मुझको समझ पाए

अधूरे ख़्वाब लेकर हम बहुत आगे निकल आए

जिसे सीने पे रखकर लोग सबकुछ भूल जाते हैं

वो पत्थर कौन-सा है, कोई हमको भी ये बतलाए


वरिष्ठ कवयित्री श्रीमति विशाखा तिवारी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-


‘मेघ पल


सावनी बौछारों के साथ


जब मैं मिली पहली बार


भींग गई भीतर तक’


वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजीव सक्सेना ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-


‘टूटी हैं पतवारें


दूर हैं किनारे’


अब किस पर भरोसा करें


नदी पर या नाव पर


ज़िन्दगी है दाँव पर’


नवगीतकार श्री योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने गीत प्रस्तुत किया-


‘बारिश के परदे पर पल-पल


दृश्य बदलते हैं


कभी फिसलना, कभी संभलना


और कभी गिरना


पर कुछ को अच्छा लगता है


बन जाना हिरना


बूँदें छूने को बच्चे भी


खूब मचलते हैं’


वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय ‘अनुपम’ ने मुक्तक प्रस्तुत किया-


‘जो सुखद है वह सदा सुखकर नहीं होता


कर्म हरपल भाग्य का सहचर नहीं होता


प्रश्न सबका है, नहीं उत्तर किसी पर भी


चाहते हैं जो वही अक्सर नहीं होता’


वरिष्ठ शायर डॉ. स्वदेश भटनागर ने ग़ज़ल पेश की-


‘ख़ुद से ख़ुद पूछ तू पता अपना,


दूर तक ख़ुद में लापता हो जा


हो गया जिस्म तर्जुमा गुल का,


ख़ुशबुओं का तू तर्जुमा हो जा’

कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘न जिसमें प्यार हो माँ का उसे आँचल नहीं कहते

नहीं जो याद में बहता उसे काजल नहीं कहते

गरजते हैं बिना बरसे मगर जो लौट जाते हैं

जिया की प्यास भड़काए उसे बादल नहीं कहते’

वरिष्ठ साहित्यकार श्री वीरेन्द्र सिंह ‘ब्रजवासी’ ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘गैया को मैया कहने से

कुछ सम्मान नहीं होगा

जब तक उसके खान-पान पर

सबका ध्यान नहीं होगा’

वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक विश्नोई ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘भारतवासी की अपनी इक पहचान है

अपनी सेना पर हमें अभिमान है

मत छेड़ो उड़ जाओगे

हर धड़कन तूफान है’

साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘फिर कहीं गोली चली, फिर कहीं लगी आग

सैकड़ों घरों के आज बुझने लगे चिराग

शासन से जवाब माँगती पीड़ित जनता

खोलो अपनी बंद आँखें, मत गाओ राग’

वरिष्ठ गीतकार आनंद कुमार ‘गौरव ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘काश ऐसी कोई पहल कर दे

गीत कर दे मुझे ग़ज़ल कर दे

ज़िन्दगी से लगाव कुछ तो बने

नफ़रतें प्यार में बदल कर दे’

इसके साथ ही सर्वश्री धीरेन्द्र प्रताप सिंह, समीर तिवारी, डॉ. मीना कौल, माधुरी सिंह आदि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय ‘अनुपम’ ने की तथा संचालन संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने किया। आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।



यादगार आयोजन : मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा की ओर से साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी के जन्मदिवस 22 जुलाई 2016 को सम्मान समारोह और काव्य गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा की ओर से साहित्यकार माहेश्वर तिवारी जी के जन्मदिवस को विशेष आयोजन के रूप में शुक्रवार 22 जुलाई 2016 को उनके निवास पर मनाया गया।  रचनाकारों की षष्ठिपूर्ति को उत्सव के रूप में मनाए जाने की परंपरा तो रही है लेकिन रचनाकर्म की षष्ठिपूर्ति को उत्सव के रूप में मनाए जाने का संभवतः यह प्रथम प्रयास था। इस अवसर पर दिल्ली से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राजेन्द्र गौतम व श्री हरिपाल त्यागी, इलाहाबाद से पधारे श्री यश मालवीय व श्री जयकृष्ण राय तुषार तथा मुरादाबाद से वरिष्ठ गीतकार श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' को "माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन सम्मान" से सम्मानित किया जाना अभूतपूर्व रहा। इस अवसर पर युवा शायर भाई ज़िया ज़मीर ने विशेष रूप से दादा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित एक नज़्म पेश की तथा दादा को प्रेम कराकर भेंट की। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा श्रीमती बालसुंदरी तिवारी द्वारा दादा के चार गीत संगीतवद्ध कर प्रस्तुत किये गए। सम्मान व वक्तव्य सत्र, संगीत सत्र, पावस राग काव्य गोष्ठी सत्र के रूप में तीन सत्रों में लगभग चार घंटे तक चले आयोजन की अध्यक्षता श्री डी.पी.सिंह ने की तथा संचालन योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' व डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' ने किया।

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -----मृगतृष्णा


​वो कभी खिलखिलाना तो छोड़िये , कभी मंद-मंद मुस्कराया भी तो नहीं . जब छोटा था तब बड़ा आदमी बनाने के लिए दिन रात पढ़ाई में जुटा रहता था। उसने अपने पिताजी को परिवार चलाने के लिए हाड तोड़ ममेहनत करते हुए जो देखा था लेकिन उस सकूं को कभी वह समझ ही नहीं पाया और न ही महसूस। उसके माता पिता थोड़े में गुजारा अवश्य करते थे मगर जिंदगी को कभी छोटी छोटी खुशियों से और सुखद क्षणों का आनंद लेने से कभी खुद को दूर नहीं किया .
​    उसके कमरे में किताबों का ढेर और उन पर स्याही से लिखे अक्षर जिनमें दुनियां भर की जानकारी थी सिवाय प्रेम और सकूं के ,उनके साथ रहने का आदी हो गया था वह. हंसना और खिलखिलाना तो वह जैसे भूल ही गया .सबसे दूरी और धीरे धीरे खुद से भी दूर हो गया . खुद को भूलकर ही मुकाम हासिल किया जाता है ,उसने ऐसा सुना था और इसके लिए उसने कभी आत्मसाक्षात्कार  ही नहीं किया . उसने कभी फूलों से बात नहीं की और न ही आकाश में मस्त परिंदों की परवाज को निहारा . न कभी लहरों की अठखेलियों पर नजर दौड़ाई और न ही कभी रात में शीतलता लुटाते चाँद की चाँदनी को देखा . वह किताबों के ढेर में खुद एक मशीन का ढ़ेरनुमा बन गया .
​उसको तरक्की मिली, दौलत शोहरत सब कुछ मिली जिसकी उसको तमन्ना थी .पहले किताबों के पेज पलटता रहता और अब नोटों को गिनने में मशगूल हो गया .धीरे धीरे अपने परिवार की मात्र जरूरत बनकर रह गया ।
​आज बहुत दिनों बाद यानी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर उसके मन को कुछ अजीब सी सूझी ,बैठ गया बीते कल का हिसाब किताब करने . नोटों और खुद के सिवाय कुछ भी नहीं था जी जन्दगी का वास्तविक पलड़ा नितांत अकेला और सूखा सा था पेड़ से टूटी शाख की तरह .

​राशि सिंह
​मुरादाबाद उत्तर प्रदेश



मुरादाबाद मंडल के धामपुर जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल की लघुकथा-----मास्क



"मां मैं तुम्हारे लिए मास्क ले आया। लगा रखो मुंह पर, देखो टीवी में बताया था न।" बेटे ने मां को मास्क देते हुए कहा ।
" ठीक किया बेटा। सुरक्षा व बचाव जरूरी है। कोरोना से बचने के लिए।" मां ने खुशी जाहिर करते हुए कहा।
" वाह जी, आपने तो कमाल कर दिया। मुंह पर मास्क होगा तो, मां जी ज्यादा टोका टाकी नहीं करेगी।" बहू भी प्रसन्न नजर आई।
 लॉकडाउन के दौरान बेटे ने घर में रहते हुए मां और बहू के बीच हुई टोका टाकी को कई बार सुनकर भी अनसुना कर दिया था।
                       
  डॉ अनिल शर्मा अनिल
धामपुर-246761,
जिला -बिजनौर, उत्तर प्रदेश
संपर्क-9719064630

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---- भूत


   .... चलते चलते पांव तक गये थे परंतु जंगल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था उबड़ खाबड़ जिम कॉर्बेट पार्क का पहाड़ी रास्ता हमारे दोनों ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे ....रात के 11:00 बज चुके थे दूर-दूर तक फैले जंगल में हम टॉर्च की रोशनी में तीन लोग चलते चले जा रहे थे ...प्यास से गला सूख रहा था... पानी का नामोनिशान नहीं... दूर-दूर तक ऊंचे ऊंचे साल के वृक्ष ...कुछ दूर चलने पर पेड़ों के नीचे पड़े पत्तों में आग लगी हुई नजर आई ....हे  भगवान ! अब क्या होगा !!  कहां जाएं !!! 
       जैसे-तैसे  रास्ता बनाते हुए आगे बढ़े रात का स्याह अंधेरा और भी गहरा हो गया था दिलीप ,जगदीश और मैं..
       हम पांडेगांव से सीताबनी के लिए सुबह 10:00 बजे निकले थे ....सीताबनी !! वही स्थान जहां सीता जी धरती में समा गई थीं ...परंतु लगातार चलने के बाद भी दूर-दूर तक सीताबनी का कहीं पता नहीं था जबकि हमें बताया गया था कि हम शाम 5:00 बजे तक सीताबनी पहुंच जाएंगे.. हम रास्ता भटक गए थे .!!...साथ में खाने पीने का सामान  था।  टॉर्च   !! और चाय व खिचड़ी बनाने का सामान..... लगातार जलाने से टॉर्च भी धीमी पड़ने लगी थी ....हर प्रकार की आशा निराशा में बदलने लगी थी ...धीरे-धीरे जानवरों की आवाजें आने लगी और घने जंगल में पेड़ भी ऐसे नहीं थे जिन पर चढ़ा जा सके सीधे खड़े रहने वाले साल के वृक्ष .... कुछ आगे बढ़े तो पत्थर आने लगे तभी अचानक जगदीश की चीख निकल गई ...ओ..!!!!!!...ओह...!!....  जगदीश आगे चल रहा था हमें लगा शायद सांप ने डस लिया !!
 मैंने पूछा क्या हुआ??... जगदीश ने चीखते हुए कहा... पानी.. !पानी..!!
    ... हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था मानो.. कोलंबस को धरती मिल गई हो !!
               आगे और भी बड़े-बड़े पत्थर आ गए जिनके  बीच से स्वच्छ मीठे जल की नदी बह रही थी.. हम लोग थक तो चुके ही थे और प्यासे भी थे... जी भर के हम तीनों ने पानी पिया और निश्चय किया कि आज रात यहीं रुकेंगे सुबह होने पर रास्ते की खोज करेंगे ।
      विशाल पत्थरों पर हमने अपने अपने बैग अलग-अलग रखें मानो यही हमारी सैया हों .. लकड़ियां बीन कर आग जलाई..
चाय बनाई और चुस्कियां लेने लगे.. पानी बहुत ठंडा था... पैर पानी में रखे तो ।।थकान मिट गई ...इकट्ठा की गई लकड़ियां खत्म हो गई तो और लकड़ी इकट्ठे करने चले पर !! ये क्या जगह-जगह वहां मानव खोपड़ियां .. कंकाल हड्डियां बिखरी पड़ीं थीं .... डर भी लग रहा था... तभी एक लालटेन इसीओर आती दिखाई पड़ी .. परंतु ये क्या ? जैसे ही हमने कहां सुनो भाई ! लालटेन वाला व्यक्ति बड़ी तेजी से दौड़ता हुआ पहाड़ी पर भागता हुआ चला गया ....
    लगातार आग जलाते हुए और जागते हुए हमने वह रात गुज़ारी तरह-तरह के जानवरों की आवाजें आ रही थीं कई जानवर हिरनों के झुंड और हाथी ! पानी पीने आते और पानी पीकर लौट जाते रात्रि के अंतिम पहर में पंछियों की आवाजें भी आने लगीं ! सब कुछ बड़ा विचित्र था अद्भुत!!!
  .........जंगल बहुत रहस्यमय दिखाई पड़ रहा था
      सुबह होते ही एक व्यक्ति नदी में पानी भरने आया परंतु जैसे ही हमने कहा "सुनो भाई !"वह घड़ा फेंक कर भागने को हुआ ... दिलीप ने कड़क आवाज में कहा" खबरदार! भागना मत! "वह  बोला "कौन हो आप लोग "? यहां क्या कर रहे हो"?
      हमने कहा "हमें सीताबनी का रास्ता पूछना है"! तब उस व्यक्ति ने बताया "सीताबनी यहां से 10 किलोमीटर दूर है" हम सन्न रह गए!!!
        अब हमने मेन सड़क पर आकर बस पकड़ी और सीताबनी देवी के दर्शन कर घर वापस लौट गए बस में लोग ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहे थे "रात पाठ कोट के गधेरे पर
श्मशान में तीन-तीन भूत थे" मंगल ने स्वयं अपनी आंखों से देखा !"
             वास्तव में वह जगह जहां हमने रात गुजारी शमशान घाट था... पाठ कोट के गधेरे का शमशान !!
      लोगों की बात सुनकर हम तीनों ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे... लोग हमें मूर्ख बता रहे थे !!..."इन लोगों को सच्ची घटना पर भी विश्वास नहीं!!! मूर्ख हैं जिस दिन भूतों से पाला पड़ेगा तब जानेंगे ! ".....
   ‌                 
अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की कहानी ----- पानी बचाओ


    गर्मी का मौसम चल रहा है । मैं सुबह पांच बजे उठा और ताजी हवा लेने के लिए टहलने निकल पड़ा । थोड़ी दूर ही चला था । मैं देखता हूं कि एक महिला अपने घर में लगे नल से पानी निकाल कर पूरे आंँगन को धोती हुई दरवाजे तक आ पहुंँची है ।
      जब और थोड़ा आगे पहुंँचा तो देखा कि एक महिला के घर के पास सड़क पर लगी सरकारी पानी की टंकी से पानी बाल्टी में लेकर अपने घर के दरवाजे के सामने सड़क पर खूब धुलाई कर रही है । पानी मुफ्त का है न ।
      आगे और सड़क पर मैं पहुंँचा ही था, मैं देखता हूंँ कि एक दुकानदार; जिसने दुकान अपने घर में खोल रखी है; वह नाली की सफाई पानी बहा-बहा कर कर रहा है ।
          मैं सोच रहा था कि आज मुझे सब पानी बहाने वाले ही क्यों नज़र आ रहे हैं ! सरकार समाचार -पत्रों और पोस्टरों  के माध्यम से जनता को कितना जागरूक कर रही है कि "जल है तो कल है" और "पानी की एक-एक बूंँद कीमती है, इसे व्यर्थ न बहाओ।" टी० वी० और रेडियो के माध्यम से भी समझाया जा रहा है कि विश्व में पीने के पानी की बहुत कमी हो रही है।
     मगर लोग हैं कि सोचते हैं कि मेरे अकेले के करने से क्या पानी की बचत हो जायेगी!
       मैं अपने मन-मस्तिष्क में यह सब उधेड़बुन करता हुआ आगे पहुंँचा तो देखता हूंँ कि एक युवक अपनी बाइक को पानी का पाइप लगाकर मसल-मसल कर नहला रहा है।
       मैं सोच रहा था कि क्या यह सब जीवन में जरूरी नहीं है ? हां, जरूरी तो है फिर पानी की बचत कैसै हो? यह सब प्रतिदिन न करके सप्ताह में एक बार करने पर दोनों काम बन सकते हैं । सफाई भी हो जायेगी और रोज़-रोज़ पानी भी खर्च नहीं होगा ।
     यह सब देखता-सोचता मैं चौराहे पर पहुंँच गया । जहांँ पर नगरपालिका का लगा हुआ बहुत सुंदर फब्बार सुबह को बंद मिला । मगर शाम को तो यह भी चलकर रंग-बिरंगी रोशनी में नहाता हुआ सड़क पर लोगों को आकर्षित करता है। भले ही इस सड़क पर नगरपालिका ने पीने के पानी की कोई व्यवस्था न की है ।
     मैं जब टहलने जाता हूं तो दूध लाने के लिए छोटी बाल्टी साथ ले जाता हूं । दूध की डेयरी का दूध शुद्ध लगता है क्योंकि वह हमारे सामने दूहा हुआ होता है । और उतना ही शुद्ध होता है जिसे हम हज़म कर पायें ‌। विशुद्ध चीजों को हज़म करने की आदत तो पेट को भी नहीं रही ।
     हां, घर पर देने आने वाले दूधिये से तो अच्छा ही है । उसका तो यह भी पता नहीं रहता कि दूध मिलावटी पानी वाला है या कृत्रिम दूध है?
       हां तो मैं जब डेयरी पर दूध लेने पहुंँचा तो देखा कि मालिक अभी भैंस को पानी का पाइप लगाकर स्नान करा रहे हैं । भैंसें बांँधने की जगह तो बिल्कुल चकाचक पानी से धुली हुई लग रही है ।
       मेरे दिमाग में एकदम कौंधा कि अब पोखड़-तालाब तो हैं नहीं कहीं जो गाय-भैंस जाकर वहांं नहा-धो लें । इनकी भी मजबूरी है । अगर रोजाना साफ-सफाई नहीं रखेंगे तो पशु बीमार हो सकते हैं।
      मैंने दूध लिया और घर को लौट पड़ा । मैं सोच रहा था कि पानी जीवन में कितना जरूरी है । कहांँ बचायें ?
      पिछले दिनों की बात याद आयी । अखबार में पढ़ा था कि कहीं की सड़क बिल्कुल उधड़ गयी थी । जिस पर परिवहन चलने के कारण इतनी धूल उड़ती थी कि आसपास की फसलें धूल से अट गयीं और पास के गांँव के लोगों का जीना दूभर हो गया । तब वहां पर सरकार ने रोजाना पानी के टैंकरों से छिड़काव करवा कर धूल को न उड़ने का इंतजाम तब तक किया जब तक वह सड़क नहीं बन गयी । बैठे-बिठाए पानी का अनावश्यक खर्च बढ़ा ।पानी की बचत होने से रही ।
    अब कोरोना ने पानी का खर्च और बढ़ा दिया है । पानी से हाथ धोते रहो । बाहर जाओ तो आकर नहाओ । चलो कोई बात नहीं मौसम गर्मी का है । पर घरवाली कपड़े बदलवाती है । यह अब धुलेंगे । पानी का खर्च तो बढ़ा ही साथ में बाशिंग पाउडर का खर्च भी बढ़ गया और धोने का परिश्रम अलग । अरे! साहब वाशिंग मशीन को चलाने में भी तो बिजली का खर्च बढ़ा या नहीं बढ़ा ?
   यह सब सोचते हुए मेरे पैर स्वत: अपने दरवाजे तक पहुंच गये । मेरा आज का टहलना तो जैसे पानी की भेंट चढ़ गया ।
        _
राम किशोर वर्मा
रामपुर



           

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविन्द कुमार शर्मा आनन्द की लघुकथा- साहित्य के चौर्य


आज सुबह जब आँख खुली, तो मौसम का मिज़ाज़ देख कर दिल खुश हो गया। बड़ा सुहाना मौसम था, साथ में ताज़गी से सराबोर कर देने वाली ठंडी हवा।
एक अनदेखी सी खुशी महसूस हो रही थी। अब एक शायर होते हुए ऐसे खुशनुमा मौसम की खूबसूरती को पन्नों पर न लिखूँ, ऐसा हो ही नही सकता।
मैंने कुछ लिखने को जैसे ही कलम हाथ में ली तो ख्याल आया कि पहले क्यों न अखबार के मेरे पसन्दीदा पृष्ठ 'साहित्यिक समाचार' को चाय की चुस्कियाँ लेते हुए पढ़ लिया जाये। उसके बाद ही कुछ लिखता हूँ।
जैसे ही उस पृष्ठ पर मेरी नज़र पड़ी तो!
"अरे यह क्या?" मैं उस ग़ज़ल को देखकर अवाक रह गया।
इतनी मशहूर ग़ज़ल के लेखक का नाम!!!???
"आखिर यह कैसे?" मेरे अंदर सवालों का एक समुद्र हिलोरें मारने लगा था,  "क्या आज तक मैंने जो ज्ञान प्राप्त किया था, या मुझे जो जानकारी थी, वह गलत थी? या जो मैं देख रहा हूँ वो गलत है?", मैंने खोजबीन शुरू की तो जिस नतीजे पर पहुँचा वह चौंकाने वाला था, "आखिर कोई व्यक्ति, जो कि अपने आपको साहित्य की महान पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ कहता है। वह इतनी नीच हरकत कैसे कर सकता है? आखिर इतनी ओछी मानसिकता कैसे रख सकता है?  जिनके दम से साहित्य जगत को एक नयी बुलंदी और पहचान मिली हो वह उन जैसी महान हस्ती का अपमान करने की कैसे सोच सकता है?"
मुझे यह सब देखकर बड़ा दुख हुआ। मैंने उस अखबार और उसमें छपी ग़ज़ल के बनावटी शायर की निंदा की।
मुझे अंदर से एक बात की संतुष्टि थी कि "मैं अपनी शायरी के हर शब्द को स्वयं लिखता हूँ। कुछ लोगों की तरह चोरी-डकैती या दूसरे शायरों की ग़ज़ल अपने नाम से पेश नही करता। आज एक नई सीख मिली थी कि मुझे अपनी ग़ज़लों को बचा कर रखना होगा। अन्यथा यहाँ चोरों की कमी नही है।"

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
8979216691

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----जय माँ गंगे

    
  ‘’माँ देखो न आज गंगा कितनी स्वच्छ और निर्मल है। लॉकडाउन से पहले गंगा में कितनी गन्दगी दिखाई देती थी, पर आज गंगा को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है काश हर समय गंगा इतनी ही साफ और स्वच्छ रहे। माँ, गंगा को भी हम माँ समझते हैं न। इन दिनों गंगा माँ अपने को इतनी साफ सुथरी देख कर बहुत खुश होगी। ’’चुनमुन ने चहकते हुए अपनी माँ दीपा से कहा।" चुनमुन आज लोकडाउन खुलने के बाद अपनी नानी से मिलने मेरठ जा रही थी। अक्सर वह इस रास्ते से गुज़रते थे। बरेली से मेरठ आते जाते ब्रजघाट आते ही गंगा के दर्शन हो जाते थे। गंगा को इतना साफ़ चुनमुन ने कभी नही देखा था, इसलिए वह बहुत खुश थी।’ माँ क्यों करते है लोग अपनी माँ समान गंगा को गंदा। चुनमुन ने अपनी माँ दीपा से पूछा।’’ अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण बेटा। वैसे और भी बहुत से कारण है जैसे नगरों और फैक्ट्रियों के गंदे पानी को नालों द्वारा गंगा में बहा दिया जाता है।पता नही कैसे लोग है बेटे, जो अपनी माँ समान गंगा को गंदा करते है। इसे दूषित करते रहते है ।’’दीपा ने गहरी साँस लेते हुए कहा। जैसे ही गंगा के बिलकुल पास से गाड़ी गुज़री दीपा ने एक दम एक रुपए का सिक्का पर्स से गंगा में डालने के लिए निकाला ।चुनमुन हर बार अपनी माँ को यह करते देखती थी और ख़ुद ही सिक्का डालने की जिद्द करती थी परंतु आज उसने हाथ जोड़कर कहा कि- माफ़ कर दो माँ गंगे,माफ़ कर दो।दीपा सकपका गयी वह अपनी ग़लती समझ गयी थी  ।उसने सिक्का पर्स में रख लिया और हाथ जोड़कर कहा -जय माँ गंगे ,जय माँ गंगे।
         
  प्रीति चौधरी(शिक्षिका)
  राजकीय बालिका इण्टर कालेज हसनपुर
  ज़िला अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा ----- रिश्ता


"विवाह की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी हैं, बस कुछ गहने और कपड़े 'रुचि' के लिए लेने बाकी हैं", शम्भू नाथ जी मुस्कुरा कर अपनी पत्नी से बोले।
"बहुत अच्छा 'रिश्ता' मिला है हमारी रुचि के लिए, बहुत ही भले लोग हैं। इतने उच्च विचार और अच्छे संस्कारों वाले परिवार में हमारी रुचि बहुत खुश रहेगी", उनकी पत्नी दुर्गा देवी ने खुश होकर कहा।
अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे तभी रुचि के होने वाले ससुराल से फ़ोन आया।
"नमस्कार भाई साहब, कैसे हैं आप और आपके परिवार में सब?" शम्भू जी ने फ़ोन उठाकर स्पीकर पर डालते हुए औपचारिता निभाई।
"अजी हमारे हाल छोड़िये औऱ ये बताइये कि क्या आपकी बड़ी बेटी ने प्रेम विवाह किया है? और वह भी अंतरजातीय? माफ करिए शम्भू नाथ जी हमारे यहाँ आपका 'रिश्ता' नहीं जुड़ सकता", उधर से तीखी आवाज आई और इससे पहले कि ये कुछ बोलते फ़ोन कट गया।

नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------ लाभ


      रात की तेज बारिश और तूफान के बाद अधिकतर  किसान डूबी फसलो को देखकर मातम मना रहे थे।दूसरी ओर किसना निर्विकार भाव से बैठा बीडी फूंक रहा था।सरकारी आदेश से जब जमीन मिली तो सब बहुत खुश थे।पट्टे के कागज जब बी डी ओ ने उनको दिये तो उनके पाँव जमीन पर न पडते थे।।जब लेखपाल ने आकर चक नपवाकर उसकी जमीन बतायी तो किसना के पैरो के नीचे से जमीन निकल गयी क्योकि उसके हिस्से मे बंजर पत्थर भरा टुकडा आया था।वह भारी मन से घर आया।कुछ दिन बाद बीडीओ साब ने आकर बताया कि जिन को जमीन मिली है उनको सरकार फ्री मे खाद बीज देगी ।पट्टे के कागज दिखाकर रजिस्टर मे नाम लिखवा कर ले जाना।किसना हर साल खाद  बीज लाता।बाजार मे बेचकर अपना जुगाड़ करता था।अपनी फसल की लाभहानि चर्चा करते समय वे उसका उपहास उडाते।वह केवल अपने लाभ को देखता क्योंकि न उसे खेत मे मेहनत करनी पडती न नुकसान की चिंता।वह बंजर जमीन उसके लिए केवल लाभ ही थी।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- अंतर्द्वंद्व


      महेश अनपढ़ होते हुए भी अपनी इंसानियतऔर काम के प्रति सजग और ईमानदार था। शायद इसी वजह से पढ़े लिखे लोग भी उसे आदर से नमस्ते करते थे। वह ऑटो चला कर भी अच्छी कमाई कर रहा था।
बिटिया  का विवाह करने के लिए महेश को चार लाख रुपए चाहिए थे। किन्तु उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे होगी इसकी व्यवस्था?
आज ही काम पर जाने से पहले पेपर में महेश ने पढ़ा - "भागता फिरता इसी शहर गाजियाबाद में छुपा प्रख्यात गुंडा 'आकाश दुबे' जिसकी खबर देने वाले को 4 लाख रुपए का इनाम  मिलेगा...।"
देर रात किसी ने महेश की ऑटो को सुनसान रास्ते पर आवाज़ देकर रोका और किसी जगह तक ले जाने को कहा।
महेश ने कहा, "साहब वहां तक 100 रुपए लगेंगे...काफी सुनसान रास्ता है।"
उस आदमी ने कहा - "200 रुपए ले ले, पर जल्दी चल...।"
रास्ते में थोड़ी रोशनी में उस आदमी की शक्ल पर जैसे ही महेश की नज़र पड़ी  उसकी शक्ल सुबह के अखबार वाले उस गुंडे आकाश दुबे से मिलती हुई लगी...अब महेश के मन में चार लाख घूमने लगा-
"पुलिस को बता दूंगा, इसके उतरते ही। भगवान ने मेरी समस्या सरल कर दी" वह सोच रहा था तभी उसकी नज़र ऑटो में उसके  3 साल के बेटे द्वारा लगाए स्टीकर पर गई जिसपर लिखा था..."हर ग्राहक भगवान का रूप है"
बस जरूरत और आत्मा के अंतर्द्वंद्व में आत्मा फिर से महेश पर हावी हो गई...और उसने इस गुंडे को भी अपना भगवान का एक रूप समझा
लेकिन अगले ही पल उसके विवेक ने आवाज दी, "ईनाम के लिए ना सही लेकिन मानवता के लिए समाज के इस दुश्मन को कानून के हवाले करना भी उसका फ़र्ज़ है। समाज के दुश्मनों का सफाया भी तो भगवान का ही काम है।"
और वह जेब से मोबाइल निकाल कर नम्बर
मिलाने लगा..।


प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --कथनी-करनी


      नेता जी सभा को सम्बोधित करते हुए कह रहे थे, ''हमें बहुत कुछ करना है---------अब समय आ गया है कि हम सब एक जुट होकर देश की सेवा में लगें और राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को सदैव बनाये रखें । हमें गरीबी हटानी है, गरीब नहीं --------।''
         भाषण समाप्त होते ही नेता जी की  जीप तेजी से आई और गली के मोड़ पर बैठे दो गरीबों को रौंदती  हुई चली गई । उधर वातावरण में अब भी किसी के बोलने की आवाज़ गूंज रही थी ,'' हमें गरीबी हटानी भाइयों,---------देश को आगे बढ़ाना है ! गरीबों को उनका हक दिलाना है---------।।---------।।

अशोक विश्नोई
  मुरादाबाद
 मो० 9411809222

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की लघुकथा -----पेमेंट


शादी निपट चुकी थी और टैंट वाले , कैटरिंग वाले , मिठाई वाले सभी अपनी - अपनी पेमैंट के लिए वर्मा जी को घेरे हुए थे । वर्मा जी यथा शक्ति सभी को संतुष्ट कर भुगतान (पेमेंट) करते जा रहे थे ।
        अंदर जनाने से बार - बार बुलावा आ रहा था कि बिदाई की कुछ रस्मों के लिए श्रीमती जी को उनकी जरूरत थी और बिटिया भी एक बार उनसे अच्छे से मिल लेना चाहती थी । उनका हृदय भी अपनी प्यारी बेटी से होने वाले वियोग को स्मरण करके व्यथित हो रहा था पर वो फिर भी मुस्कुराहट का आवरण सजाए सभी कार्य निपटा रहे थे ।
       लगभग सभी की पेमेंट  चुकता कर वो घर के अंदर जाने के लिए जैसे ही मुड़े कि अचानक जनवासे में से समधीजी निकल के
सामने आ गए और पूरी बत्तीसी फैला कर बोले  "हुजूर हमारी पेमेंट  कब तक करेंगे  ? "   " हमारी पेमेंट  भी निपटा दें ताकि  बिदाई निर्विध्न संपन्न हो ।"   
           नई-नई रिश्तेदारी की बेशर्मी को नज़रअंदाज कर वर्मा जी ने फौरन घर के भीतर से एक बड़ा बैग लाकर समधीजी के हाथ में पकड़ाया और हाथ जोड़कर कहा  " पूरे पचास लाख हैं ।" समधीजी हँस कर बोले  "अरे हमें पता है हुजूर  , हिसाब - किताब के आप बहुत पक्के हैं ।"   
 "हमें भरोसा है ।"    "आप बस अब बिदा की तैयारी करें ।"  और वर्मा जी इस आखिरी पेमेंट  को निपटा निश्चिंत हो बेटी से मिलने घर के अंदर चल पड़े ।

सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद । 

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ नीयत

                                                                                      नावेद मियां जबसे जलसे में से आये थे। अपने माँ- बाप के प्रति उनमें खास बदलाव दिखाई देने लगा था। अपनी बीवी आसिया से वह कह रहे थे -"देखो आसिया, मेरे पीछे भी मेरे माँ- बाप को किसी तरह की परेशानी नही होनी चाहिये। उनकी हर बात का ख्याल रखना क्योंकि, वालिदैन (माँ -बाप) की खिदमत  से ही हमें जन्नत मिलेगी। मौलाना साहब जलसे में कह रहे थे कि -"अगर किसी ने माँ- बाप का दिल दुखाया तो वह जन्नत की खुशबू भी नही सूंघ सकता "।
नावेद मियां यूं तो पहले से ही माँ- बाप के फरमाबरदार थे लेकिन जलसे से आने के बाद  माँ- बाप काऔर अधिक ख्याल रखने लगे थे । जुमेरात की शाम नावेद मियां के यहां जलसे वाले मौलाना साहब की दावत थी।दावत के बाद मौलाना साहब कमरे में आराम फरमा रहे थे। नावेद मियां भी उनके सामने बैठे हुए थे।  गुफ्तगू शुरू हुई तो फिर वालिदैन के हक़ तक जा पहुँची नावेद मियां बड़े फख्र से मौलाना साहब को बताने लगे कि वह किस तरह अपने माँ- बाप का ख्याल रखते है उन्होंने मौलाना साहब से पूछा कि-" क्या वह अपने माँ बाप का हक़ अदा कर रहे है?"मौलाना ने जवाब दिया -"आप अपने वालिदैन की खिदमत कर अच्छा काम कर रहे है ,खुदा आपको इसका सिला (बदला)देगा लेकिन जहाँ तक हक़ अदा करने की बात है आप उनका हक अदा नही कर सकते"। 
"क्यों?"नावेद मियां ने हैरत से पूछा।मौलाना साहब फिर बोले-"नावेद मियां, अच्छाई- बुराई, अज़ाब- सवाब(  पाप -पुण्य) सब नियत पर होता है। खुदा बन्दे की नियत से ही उसके अमल (कृत्य)का बदला देता है। आप यह सोचकर अपने माँ- बाप की खिदमत कर रहे हैं कि आपको जन्नत में जाना है। लेकिन जब आप नन्हें से बच्चें थे तब आपके माँ- बाप ने आपकी खिदमत जन्नत (स्वर्ग)के लालच या दोज़ख (नरक)के ख़ौफ से नही की थी  बल्कि वह आपको बड़ा होता परवान चढ़ता हुआ देखकर खुश होते थे उनकी नीयत में कोई लोभ, लालच नही था। जबकि लोग अपने बूढ़े माँ- बाप की खिदमत जन्नत के लालच या दोजख में जाने के ख़ौफ से यह सोचकर करते है कि यह चंद सालों   के  ही तो मेहमान है।" बताईये," माँ- बाप का हक़ कौन?कैसे, अदा कर सकता है। माँ- बाप  की नीयत और औलाद की नीयत  में कितना फर्क है। " मौलाना का जवाब सुनकर नावेद मियां ने निदामत से सर झुका लिया और उनकी आंखें गीली हो गईं सोचने लगे, 'वाक़ई हम लोग माँ - बाप का हक़ अदा नही कर सकते।'  लेकिन  अगले ही पल यह सोचकर उनके चेहरे पर संतोष के भाव आ गये की हम वालिदैन की खिदमत तो कर ही सकते हैं।'

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ---- झूठा प्यार


आखिर पांच साल के लंबे प्रेम  के बाद  आज राहुल शादी कल्पना से हो गई ।कल्पना स्टेज पर खुश नजर नहीं आ रही थी.... क्योंकि उसका प्यार केवल एक दिखावा था । वह राहुल से प्यार नहीं करती थी बल्कि टाइम पास करती थी। परंतु अपने पिता के दबाव में आकर शादी के लिए हां करनी पड़ी । राहुल कल्पना से सच्चा प्यार करता था ...और उसे हर कीमत पर पाना चाहता है । बहुत  ही मुश्किल से  कल्पना राहुल से शादी करने के लिए तैयार हुई  । कल्पना किसी बंधन में बंधकर अपनी जिंदगी को नहीं बिताना चाहती थी। शादी के बाद दोनों कुछ ही दिन खुश रहे होंगे ....कि दोनों में झगड़े होना शुरू हो गए ....कल्पना एक बहुत ही महत्वाकांक्षी लड़की थी ...उसे जीवन में भरपूर ऐशो-आराम  व ठाठ -बाट चाहिए  था। राहुल यह सब करने में असमर्थ था... जिसके कारण दोनों में तनाव रहने लगा। धीरे- धीरे  तनाव  इतना बढ़ गया कि राहुल के लिए असहनीय हो गया । उसने अपने जीवन को खत्म करने की सोची..... परंतु अपने  बूढे माँ -बाप के बारे में सोच कर वह ऐसा  नहीं  कर पाता था।  कल्पना  का आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था ,जब पानी सर से ऊपर गुजर गया तब राहुल ने कल्पना को स्वतंत्र करने की सोची और कमरे में फांसी का फंद बनाकर लटक गया ।.... क्योंकि वह उसे इतना प्यार करता था ....कि उसके बिना वह रह नहीं सकता था और कल्पना उसके साथ रहने को तैयार नहीं थी ।

स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

मंगलवार, 21 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष गौहर उस्मानी की दो ग़ज़लें ---- ये ग़ज़लें ली गईं हैं बीस साल पहले प्रकाशित गजल इंटरनेशनल 2000 से । इसका संपादन मंसूर उस्मानी और हसीब सोज ने किया था ।



:::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ऋषि कांत शर्मा का गीत -----यह गीत उन्होंने मेरी डायरी में 37 साल पहले 27 अप्रैल 1983 को लिखा था । उनका यह गीत लगभग 53 साल पहले वर्ष प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' में भी प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने



::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

सोमवार, 20 जुलाई 2020

संस्कार भारती मेरठ प्रांत की ओर से रविवार 19 जुलाई 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ मनोज रस्तोगी, अशोक विश्नोई, डॉ पूनम बंसल, संजीव आकांक्षी, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ मीना कौल, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ ममता सिंह, डॉ रीता सिंह, मयंक शर्मा , मीनाक्षी ठाकुर, मोनिका शर्मा मासूम, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, विभांशु दुबे विदीप्त, अभिषेक रुहेला, निवेदिता सक्सेना, मुजाहिद चौधरी, इंदु रानी, शुभम कश्यप, इला सागर रस्तोगी, पिंकेश चौहान तपन, अमित कुमार सिंह, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, नृपेंद्र शर्मा सागर, प्रशांत मिश्र, एमपी बादल जायसी और प्रवीण राही की रचनाएं------


कंक्रीट के जंगल में
 गुम हो गई हरियाली है
 आसमान में भी अब
 नहीं छाती बदरी काली है
पवन भी नहीं करती शोर
वन में नहीं नाचता है मोर
 नहीं गूंजते हैं घरों में
अब सावन के गीत
खत्म हो गई है अब
 झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत 
  नहीं होता अब हास परिहास
दिखता नहीं कहीं
सावन का उल्लास
सजनी भी भूल गई
करना सोलह श्रृंगार
औपचारिकता बनकर
 रह गए सारे त्यौहार
आइये थोड़ा सोचिए
और थोड़ा विचारिये
हम क्या थे और
अब क्या हो गए हैं
जिंदगी की भाग दौड़ में
इतना व्यस्त हो गए हैं
गीत -मल्हारों के राग भूल
 डीजे के शोर में मस्त हो गए हैं
यह एक कड़वा सच है
 परंपराओं से दूर हम
 होते जा रहे हैं
आधुनिकता की भीड़ में
 बस खोते जा रहे हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822
-------------------------------

मैंने ,
बहुत प्रयास किया
भावनाओं की सुईं से
शब्दों की तुरपाई
कर सकूं
हाँ , मैने
शब्द-शब्द को
एक साथ रखने का
प्रयास भी किया
ताकि वे शब्द
कविता बन जायें
पर ,
मेरी अभिव्यक्ति
की तुरपाई,
हर बार उधड़ जाती है  ।
मैं भी कवि बन सकूँ,
यह अभिलाषा
दिल ही दिल में
रह जाती है ।।

  अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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कभी गरजते कभी बरसते,
 रंग दिखाते हैं बादल।
संग पवन के उड़ जाते हैं,
खूब छकाते हैं बादल।।

दूर गगन से करें इशारे,
पर्वत पर आराम करें।
लुका छिपी का खेल खेलकर,
 मौसम को बदनाम करें।
विरह डगर में अगन हृदय की,
और बढ़ाते हैं बादल।।

नैनों से जब जब बरसे हैं,
 देख भिगोते यादों को।
चमका कर ये चपल दामिनी,
याद दिलाते वादों को।
सावन की रिमझिम बूंदों का,
 गीत सुनाते हैं बादल।।

कहीं कृषक की आस बने तो,
 कहीं मिलन विस्वास बने।
चातक की भी प्यास बुझाते,
कभी सकल आकाश बने।
सदियों से इस तृषित धरा का,
द्वार सजाते हैं बादल।।

 डॉ पूनम बंसल
   मुरादाबाद
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काम पूरा करो या आधा करो.
काम का शोर पर ज्यादा करो.

अच्छे लगते हो असल किरदार में.
तुम ओढ़ा न कोई लबादा करो.

मांग भर दूंगा सितारों से तेरी.
लिया न हमसे झूठा वादा करो.

सियासत खेल है शतरंजी चालों का.
बचाओ दामन और आगे प्यादा करो.

दौर परेशानी का है सम्हाल कर चलना
खान-पान, रहन-सहन अपना सादा करो.

क्योंकि तुम हाकिम और मैं अदना.
गलतियां सब मुझ ही पे लादा करो.

संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
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समा गया नभ में गीतों का
एक और नक्षत्र

दुनिया भर की पीड़ाओं का
पहले विष पीना
फिर उस विष को हर दिन हर पल
शब्दों में जीना
ख़त्म हो गया लगता स्वर्णिम
गीतों का वह सत्र

गीत ओढ़ना गीत बिछाना
गीतों को गाना
मुश्क़िल है, बेहद मुश्क़िल है
'नीरज' हो पाना
प्रेम पगे वे गीत मिलेंगे
कहीं नहीं अन्यत्र

गीतों की दुनिया का फक्कड़
नायक चला गया
प्रेम और दर्शन का बिरला
गायक चला गया
गीत नगर में गहन उदासी
यत्र-तत्र-सर्वत्र

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
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वक्त के आगे किसी का जोर नहीं चलता
बड़े- बड़े सूरमाओं को हाथ मलते देखा है ।1

खादी पहन देश भक्त होने का दम्भ भरता,
रेशम पहने देश द्रोह की राह चलते देखा है।2

कहीं गरीब  के आँगन में चूल्हा नहीं जलता
कहीं दंगो की आग में गाँव जलते देखा है।3

उम्र भर सूखा रहने  पर शिकवा नहीं करता
भूखे बच्चे की आह से पेड़ फलते देखा है।4

हर पिता अपने अंदर बच्चे सा दिल रखता
आँच के अहसास से लोहा गलते देखा है।5

दिल के पत्थर होने का जो खुद दावा करता
हमने उसकी आँख में आँसू पलते देखा है।6

धन -वैभव ,रूप-रंग पर गर्व नहीं कभी करना
क्षण भंगुर धन की महिमा रूप ढलते देखा है।7

सावित्री सा विश्वास अगर मन में हो जो बसता
कितना भी हो चाहे सख्त वक्त टलते देखा है।8


मीना किसी के साथ भी बहुत नहीं घुलना
अपनो को अपनो के सपने छलते देखा है।9

डॉ मीना कौल
मुरादाबाद
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जब घिरी सावनी साँवली बदलियां
बज उठीं  खन खनन काँच की चूड़ियाँ

छू पवन को चुनर भी लहरने लगी
जुल्फ चेहरे पे ऐसे बिखरने लगी
लग रहा कर रही हों चुहल बाजियाँ

नैन गोरी के जैसे शराबी हुए
शर्म से गाल भी ये गुलाबी हुए
प्रीत लेने लगी मन में अँगड़ाइयाँ

मस्त बौछार में भीगने तन लगा
डूबने कल्पनाओं में ये मन लगा
गीत में भर रही है कलम  शोखियाँ

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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आज घर में कै़द हम ये सोचते हैं।
रौनके़ क्यों कर हैं कम ये सोचते हैं।।

इसमें है कुदरत की कोई बेहतरी ही,
थम गये जो हमक़दम ये सोचते हैं।।

हाल कैसा हो गया जग का ही सारे,
आँख है सबकी ही नम ये सोचते हैं।।

आदमी मगरूर था ताक़त पे अपनी,
हाय टूटा अब भरम ये सोचते हैं।।

दर्द सालों तक रहेगा याद सबको,
कैसे भूलेंगे अलम ये सोचते हैं।।

एक दिन हट जाएगी ग़म की ये बदली,
होगा उसका भी करम ये सोचते हैं।।

देख तांडव मौत का यूँ हर तरफ ही,
क्या लिखे *ममता* क़लम ये सोचते हैं।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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संबंधों की मरुथली को
नेह भरी बरसात चाहिये
शूल चुभे न कभी दुख बनकर
अपनापन सौगात चाहिये ।

पीर परायी आँसू मेरे
कुछ ऐसे अहसास चाहिये ।
महके सौरभ रेत कणों में
हरी भरी इक आस चाहिये ।

चमक दिखाती इस दुनिया में
नहीं झूठी कोई शान चाहिये
मुझको तो सबके चेहरे पर
इक सच्ची मुस्कान चाहिये ।

डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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तरु, नदी, गिरि पर चली तलवार को देखो,
स्वार्थ में हैं जो किए व्यवहार को देखो।

दीप्ति की उजली किरण के साथ रहता जो,
रौशनी के पार्श्व में अँधियार को देखो।

खूब ऊँची बन गईं अट्टालिकाएं ये,
मित्र इनकी नींव औ आसार को देखो।

सब भला ही लग रहा है पार इसमें तो, आँख से कह दो ज़रा उस पार को देखो।

डूबना है शर्तिया मझधार में ऐसी,
टूटती नौका घुनी तलवार को देखो।

रूठ जाता जब कभी बच्चा मनाती है,
उर लगाए मात की मनुहार को देखो।

मयंक शर्मा
मुरादाबाद
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आ गया बरसात का मौसम सुहाना झूमकर,
देख लो सड़कों पे दरिया बह रहा है टूटकर ।

कह रहें सड़कों के गढ्ढे बचके रहना हमनवां,
डूब जाओगे सजनवा  बस तनिक फिसले अगर ।

लबलबाती बिजबिजाती गंदगी की क्या ख़ता,
प्रीत कूड़े ने निभाई नालियों में डूबकर

आपकी सूरत हसीं पर लग गयी कीचड़ मुई,
कार वाले की हिमाकत से लगी तुमको नज़र।

काँपते होंठो की ख्व़ाहिश पर ज़रा सा गौर हो,
चाय पीने को मिले सँग में पकौड़े हों अगर।।

मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद
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आंसुओं को , हंसी को तरसेंगे
लोग अब ज़िंदगी को तरसेंगे

छोड़ हमने दी वो गली लेकिन
आप अब उस गली को तरसेंगे

मोनिका "मासूम "
मुरादाबाद
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दुबका बैठा इन दिनों, दहशत से उल्लास।
कैसे झूला डाल दूँ, अबके सावन मास।।
******
प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।
******
झूले पर अठखेलियाँ, होठों पर मृदु गान।
इन दोनों के मेल से, है सावन में जान।।
******
नापाकी खुजला रहा, चीनी को भी खाज।
दोनों का ही हिन्द से, होगा ठोस इलाज।।
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प्यासी धरती रह गयी, लेकर अपनी पीर।
मेघा करके चल दिए, फिर झूठी तक़रीर।।
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प्यारी कजरी-भोजली, मधुरस गीत-बहार।
करना कभी न भूलना, सावन का श्रृंगार।।
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('कजरी' व 'भोजली' - क्रमशः पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय सावन-गीत।)

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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दिल में आग लिए शब्दों की
         हर दिन कलम चलाएंगे
तोड़ श्रंखला कोरोना की
            इसको मार भगाएंगे
 खुशियों में थे साथ-साथ
         अब दुख में न घबराएंगे
ग़म के मौसम में भी हम
         खुशियों के नग़मे गाएंगे

 लगता है कोरोना दुश्मन
        अंत चाहता इस जग का
 फैल रहा दिन प्रतिदिन जग में
                आतंकी तेवर उसका
 सूझबूझ से महामारी को
               मिलकर आज हराएंगे
तोड़ श्रंखला कोरोना की
                इसको मार भगायेंगे

फैलाओ मत द्वेष हवाएं
        ‌‌      खुद इतनी ज़हरीली हैं
 क़दम क़दम पर मौत खड़ी है
               सबकी आंखें गीली हैं
 कट्टर मज़हब की दीवारें
              मिलकर आज गिराएंगे
तोड़ श्रंखला कोरोना की
               इसको मार भगायेंगे

 तेरा दुख मेरा है भाई
                मेरा दुख है आज तेरा
 हर संकट में साथ खड़े हम
                 कोई ग़ैर न कोई सगा
 झुका न पाएं दर्द अनेकों
                मिलकर प्यार लुटाएंगे
 तोड़ श्रंखला कोरोना की
                      इसको मार भगायेंगे
       
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
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श्यामल केश  मनोहर मुखारविंद, चंचल नेत्र तेज धरे हैं
कर्ण शोभित केश लता अति, कोमल होठों पे धीर मुस्कान भरे हैं

कर लेकर पुष्प कमल नैनन को कोटि कोटि प्रणाम करे है

प्रेम आनंद जिसके मुख पर भाव धरे है
उसके नेत्र तीक्ष्ण हृदय पर घाव करे है

वस्त्र ओढ़ लाल ले घट कर में
प्रियतमा सजन पर यूं वार करे है ll

विभांशु दुबे "विदीप्त"
गोविंद नगर, मुरादाबाद
9958149835
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सितारे जमीं पे अब आने लगे हैं,
पर ज़ख्म अब भी पुराने लगे हैं।

पीछा छुड़ाकर चले जो गए थे,
अब हम उन्हें रास आने लगे हैं।

कुछ गहरे घाव दिए थे जिन्होंने,
मेरी ग़लतियाँ वो बताने लगे हैं।

अपराध करके सुरक्षित नहीं जो,
अब तो वे ख़ुद को बचाने लगे हैं।

जिन्होंने लगाई सदा आग दिल में,
वे ही ख़ुद उसे अब बुझाने लगे हैं।

इस भीड़ में हूँ मैं अब भी अकेला,
भले लोग अपना बनाने लगे हैं।

समझो मुझे चाहे कुछ भी जहां में,
बनने में ऐसा ज़माने लगे हैं।।

अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फतेहपुर विश्नोई
 मुरादाबाद
(उ०प्र)- 244504
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यह तड़प हिचकियों की बताती रही
रात तुमको मेरी याद आती रही।

 कोशिशें रात भर तुमने
 की होंगी पर
            नींद द्वारे खड़े
मुस्कुराती रही।

देख कर मेरी तस्वीर
भरी आंख से
 तुमने तकिए के नीचे
  होगी रखी
 छत से लेकर के
  कमरे की दीवारों तक
    मेरी परछाई और मै
                  ही  होगी दिखी
             हार कर बैठे तुम
  कुछ कुछ भूल कर
       आंधी यादों की तुमको हिलाती रही ।
नींद द्वारे खड़ी मुस्कुराती रही।

 यह तड़प हिचकियों की
 बताती रही ।

रात तुमको मेरी याद आती रही।।
    निवेदिता सक्सेना।।
        मुरादाबाद
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बहारें याद करती हैं हवाएं याद करती हैं ।
ये रिमझिम की फुहारें और सदाएं याद करती हैं ।।
ये आंसू याद करते हैं निगाहें याद करती हैं ।
दुआएं याद करती हैं सनाएं याद करती हैं ।।
ये बादल याद करता है,ये आंगन याद करता है ।
ये सावन याद करता है,घटाएं याद करती हैं ।।
ये चिलमन याद करता है ये दर्पन याद करता है ।
अंधेरे मुंतज़िर हैं और शमाएं याद करती हैं ।।
वो कातिल मुस्कुराहट सुर्ख लब सब याद आते हैं ।
मेरा बिस्तर,बदन,धड़कन, अदाएं याद करती हैं ।।
चमन,खुशबू,कली,शबनम, शफ़क़ सब याद करते हैं ।मुजाहिद को मोहब्बत और वफाएं याद करती हैं ।।

मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर, अमरोहा
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नदी,पहाड़,फूल और प्यार मन को नही लुभाते
दिल दहलता देख वो सब जो मन को तड़पाते

क्या लिखूं मैं प्रीत कोई क्या गीत भला मै गाऊँ
खेत खलिहां झरने और बाग तनिक नही हर्षाते

दहक रहा है मत भेदों मे मुल्क ये मेरा सारा
गीत कजली और बरखा के बिल्कुल नही सुहाते

कुदरत भी अब हुई खफा है देख इंसानी राक्षस
नग्मे प्रीत वफाओं के जरा नही पिघलाते

 हुई है बदतर पशुओं से भी आज की युवा पीढ़ी
क्या कहिये औ क्या ना कह कर हम इनको समझाते

इन्दु रानी
अमरोहा
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लाख ख़ुशियों का  इक़्तिबास मिला ,
फिर भी दिल ग़म के आसपास मिला ।
एक शकुनि से पांच पांडव को,
छल, कपट ,अज्ञातवास मिला ।
सच की गर्दन प झूठ है अबतक ,
हक़ से हर इक ही ना-शनास मिला।
गर्द आलूद आईने है सभी ,
गर्द का जिस्म को लिबास मिला ।
उसने माथे पे है लिखी तकदीर ,
सूर जैसा ना सूरदास मिला ।
मेघदूतम का दे गया उपहार,
ऐसा विद्वान कालिदास मिला।
है समुंदर की प्यास दिल में शुभम,
फिर भी खाली हमे गिलास मिला।

शुभम कश्यप
मुरादाबाद
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हरियाली परिपूर्ण पावन माह
श्रावण मास का होता प्रारम्भ,
बरस रहा मतवाला सावन
संग भीनी भीनी फुहार लिए।

साधना अराधना का उत्सव प्रारंभ
हरियाली समेटे हरियाली तीज प्रारंभ,
अपने सुहाग के लिए पुन: नववधु सी
सजधज कर उपासना का उत्सव प्रारंभ।

प्रकृति भी होती निरी प्रसन्न
इतरा रही कैसे ठुमक ठुमक,
ओढ़के दुशाला हरियाली रूपी
मुस्करा रही खिलते पुष्पों संग।

वृक्षों की शाखाओं पर
डल चुके कितने झूले है,
मोर नाच रहे बौछारों संग
मन चितवन सुहागनों संग।

उत्सव ये महिलाओं का
आस्था सौंदर्य प्रेम का,
हो रही बेताब नारियां
मनाने को हरियाली तीज।

रचाकर मेंहदी हाथों में
दुल्हन सी सजती सुहागिनें,
उमा महेश्वर के पूजन में
रख उपवास रमती सुहागिनें।

उत्सव है यह नारियों का
हरियाली समेटे हरियाली तीज का,
अपने प्रियतम संग सुखमय जीवन
व्यतीत करने के आशीर्वाद प्राप्ति का।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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खो रही  इंसानियत  देखो किसी को क्या कहें।
बढ़ रही है बहसियत देखो किसी को क्या कहें।।

आदमी  ही  सींचते हैं आज बन काँटों  भरे।
वो रहे शैतानियत देखो किसी को क्या कहें।।

तोड़ दी  सब मर्यादायें आज सुत ने  फर्ज की।
खो गई रूहानियत देखो, किसी को क्या कहें।।

सालता  है  डर पिता को लौटती ना  घर सुता।
कब दिखे हैवानियत देखो, किसी को क्या कहें।।

फेंकते हैं  आज पत्थर  रक्षकों  पर  ही  तपन।
मर गई रुमानियत देखो किसी को क्या कहें।।

  ✍पिंकेश चौहान 'तपन'
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लगता है फिर वही गुजरा जमाना आ गया है,
उनको देखते देखते ग़ज़ल बनाना आ गया है ।

कश्तियां कभी साहिल से तूफानों में उतारी ही नहीं,
आज तूफानों से लड़कर उबर जाना आ गया है।
कितनी ही बातों के मुआफ़िक नहीं था कभी,
आज हर तदबीर को आजमाना आ गया है।
कभी गर्दिश में था सितारा-ए-मुस्तकविल अपना,
आज हर मजलिस पर छा जाना आ गया है।*
वक्त की मार से बेनूर हो जाता था कभी,
अब वक्त की हर शह को मात देना आ गया है।
उम्र बीत जाती है फ़िकर ,हिजरत और तिजारत में,
लगता है अब हर किरदार निभाना आ गया है।।

अमित कुमार सिंह
7C/61 बुद्धिविहार
मुरादाबाद
मोबाइल-9412523624
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जाना था जिसको जहां, वो पहुंच गया उस धाम,
यूपी की पुलिस ने, नही किया कुछ काम,

किया नही कुछ काम,कार अपनी पलटाई
कई पुलिस-नेताओं की तुमने यूँ लाज बचाई,

कह रहे लोग विकास कई 'राज' दबा गया फंसाना
जिंदा रहता तो कह जाता जाने-जाना,

यूँ ये तरीका मारने का समझ न आया,
ये करके तुमने बस नेताओ को बचाया,
ईशांत शर्मा
मुरादाबाद
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 मैं भारत माँ का बेटा हूँ , अमन और चैन चाहता हूँ।
वतन है गुलिस्तां मेरा, मैं इस मे खिलना चाहता हूँ ।।
अमन और चैन के दुश्मनों की सदा मौत चाहता हूँ।
मै दंगे और फसादों को जड़ो से काटना चाहूँ।
मैं धर्मों और ईमानो को कभी न बाँटना चाहूँ ।
मैं भारत माँ का बेटा हूँ, अमन और चैन चाहता हूँ।।
वतन है गुलिस्तां मेरा , मैं इस मे खिलना चाहता हूँ।।
ना मंदिर और ना मस्जिद के लिए स्थान चाहता हूँ।
मैं सपनों से भरा हंसी हिंदुस्तान चाहता हूँ।
सभी के ख्बाब हो पुरे , सभी के दर्द हो आधे।
सभी खुशहाल हो बस यही मेरी तमन्ना है।
मैं अपने देश की खातिर जीना और मारना चाहता हूँ।।
मैं भारत माँ का बेटा हूँ, अमन और चैन चाहता हूँ।
वतन है गुलिस्तां मेरा मैं इसमें खिलना चाहता हूँ ।।

आवरण अग्रवाल " श्रेष्ठ "
मुरादाबाद
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सावन की झम झम झड़ी लगी, मैं पिया मिलन को जाय रही।
बैरन बिजुरी तड़ तड़ तड़ कर, पग पग पर मोहे डराय रही।
मोहे लगी लगन पिया साँवरे की, मैं पिया से प्रीत निभाय रही।
कोई और नहीं सुध रही मुझे, निज तन मन सभी भुलाये रही।
सावन मनभावन मास सखी, मुझे पिय की याद सताय रही।
बाहर की बिजली की क्या कहूँ, मेरे भीतर तड़ित समाय रही।
कोई बाधा राह ना रोक सके, मैं अविनाशी की बाँह गही।
मेरे प्रीतम जग के स्वामी हैं, मैं अंश जीव कहलाये रही।
ये जन्म मरण सब मिथ्या है, मैं मोक्ष परम पद धाय रही।
मुझे लोक लाज की कहाँ पड़ी, मैं तो निज धाम को जाय रही।
मेरे सतगुरु की हुई दया, जो पाई मैंने राह सही।
सब मोह बन्ध मेरे छूटे, मन में आनन्द मनाय रही।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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ग़द्दारी का खूब हुई,
इस झूठे संसार में
अपने डण्ठल कुल्हाड़ी मारी
जब नोंक नुकीली धार ने ।।1।।

अपनों ने जब किया दगा
अपने ही परिवार  में..
मौत ने ही कफ़न ओढ़ लिया
इंसानों के बाजार में..।।2।।

जय चंद का नाम जपूँ
या जपूँ मैं माला उसकी
हर कोई लूट रहा हवा को
बता, यह कहाँ और किसकी?।।3।।

-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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तुझे प्यार करने को जी चाहता है
बाहों में भरने को जी चाहता है
नहीं आज बस में है जज़्बात मेरे
हद से गुजरने को जी चाहता है
तुझे प्यार करने ------------
बाहो में भरने ---------------
तेरे गेंसुओ की घटाओं में हर दम
हर पल ठहरने को दिल चाहता है
मिटा दीजिए कोष भर कि ये दूरी
तुम्हींपर बिखरने को जी चाहता है
तुझे प्यार करने -----------
बाहों में भरने को ---------
सावन का महीना है बाँहो झूला है
यू ही मुखा़तिब रहों जाने  जाँ तुम
नहीं कोई सुनता मेरी यहाँ बादल
बहुँतकुछ सुनाने को जी चाहता है
तुझे प्यार करने को --------
बाँहो में भरने को -----------

डा एम पी बादल जायसी
मुरादाबाद
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अभी गर्दिशों से मैं हारा नहीं हूं
मैं जुगनू हूं टूटा सितारा नहीं हूं

दिया हूं करूंगा घरों में उजाला
जला दूं घरों को वो शरारा नहीं हूं

अमीरी थी जब तक तो था तुम्हारा
कंगाल हूं मैं अब तुम्हारा नहीं हूं

गलत सोच है मुझको बुजदिल समझना
हूं जख्मी मगर मै हारा नहीं हूं

मै रोकू भी तो जज़्बात कैसे किसी के
मैं दरिया का कोई किनारा नहीं हूं

ख़ामोश सागर सा है स्वभाव मेरा
बहकुं वो नदियां की धारा नहीं हूं

हसीनो से नजर मिलाऊ भी कैसे
शादीशुदा हूं  मैं कुवारा नहीं हूं

भरूंगा मै दामन में खुशियां तुम्हारे
मै रहीं गमों का पिटारा नहीं हूं

प्रवीण राही
मुरादाबाद


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन की ताज़ा प्रकाशित किताब ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा-------

वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'किताबें बोलती हैं'  श्रृंखला के अन्तर्गत मुरादाबाद के मशहूर मुहक़्क़िक़ और शोधकर्ता डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन की ताज़ा प्रकाशित किताब ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । चर्चा में स्थानीय साहित्यकारों और अतिथि साहित्यकारों ने अपने अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।
चर्चा प्रारम्भ करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मुरादाबाद के उर्दू अदब के सिलसिले में डॉ. आसिफ हुसैन साहब की ग़ज़ल के सफ़र पर एक किताब हाल ही में प्रकाशित होकर आई है ।मैं निजी तौर पर उनके इस काम का स्वागत करता हूँ ।मेरे मन में जिस तरह के काम का खाका था उसमें अफसाना निगारों और ड्रामा का ज़िक्र भी शामिल था। खैर कोई बात नहीं। जिगर साहब के नाम से जाना जानेवाले शहर के ग़ज़ल के सफर पर यह किताब तैयार कर के आसिफ साहब ने एक अहम कदम बढ़ाया है मंज़िल की तरफ और एक उम्मीद जगा दी है कि उनकी कलम से ही बात आगे बढ़ेगी और हम अपने ही कीमती खजाने की बेशकीमती दौलत के रूबरू होंगे ।
मशहूर और मारूफ उस्ताद शायर ज़मीर दरवेश ने कहा कि लाइके़ सद तौक़ीर है यह ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’, बिखरे मोती, सच्चे मोती, एक लड़ी में पिरो दिए हैं आपने। उन पर कोई मसनूई पालिश भी नहीं की है। बहुत अच्छा किया। यह तो ख़ुद ही आने वाली नस्लों के हाथों में आकर और ज़्यादा चमकेंगे। इससे और ज़्यादा रोशन होगा इस बस्ती का अदबी चेहरा। इससे यह भी साबित हो जाएगा कि शहरे-जिगर होने से पहले जब यह मुरादाबाद था, तब भी यह सचमुच दिलवालों और ग़ज़ल वालों का शहर था।
मशहूर और मकबूल शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब में गजल का सफर चर्चा में है और मुरादाबाद के एक बहुत खामोश कलमकार, ईमानदार इतिहास कार और होनहार साहित्य कार डॉ मौहम्मद आसिफ हुसैन के एक बहतरीन काम को सराहा जा रहा है। इस किताब ने बताया कि इस शहर की खाक में बेशुमार चिंगारियां दबी हुई थीं जिनको बाहर लाया जाना था और ये कारनामा आसिफ साहब ने कर दिखाया जिसके लिए वह सिर्फ तारीफ नहीं हमारी दुआओं के भी हकदार हैं। ये शहर अब जिगर का शहर नहीं वफा का शहर भी है। मुहब्बत की बारीकियों को जानने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि वफा और जिगर का फलसफा क्या है।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि डॉ.आसिफ़ भाई को बहुत-बहुत मुबारकबाद। वह मुरादाबाद की ऐसी ख़िदमात करते रहें और हम उसका रस लेते रहें। पूरी किताब पढ़ चुका हूं। बड़ा काम है। रास्ता दिखाता है। अपनी जड़ों से जोड़ता है। कुछ सकारात्मक करने की नसीहत देता है। सोये हुओं को जगाता है। प्रेरित करता है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र, महज़ एक किताब नहीं है यह पांच सदियों के मुरादाबाद का लिटरेरी रोज़नामचा है। लिखना आसान है, उद्देश्य परक लिखना मुश्किल है। इतिहास लिखना मेहनत मांगता है मगर पुराने पन्ने टटोल कर प्रामाणिक इतिहास लिखना तभी मुमकिन है कि जब वैसा जुनून सवार हो गया हो। ऐसी किताब का मोल इससे समझ आता है कि इससे हिन्दी/उर्दू के अलग होने का भरम टूटेगा और शोध करने वालों को नये रास्ते मिलेंगे। पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर डॉ आसिफ साहब को हार्दिक बधाई और क्लब के प्रति आभार।
पूर्व उर्दू विभाग अध्यक्ष, हिंदू कॉलेज मुरादाबाद डॉ आरिफ़ हसन ख़ां ने कहा कि अगर आप मुरादाबाद की इल्मी, अदबी और तहज़ीबी या सक़ाफ़ती तारीख़ के ताल्लुक से कुछ मालूमात हासिल करना चाहते हैं तो डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन उन चंद लोगों में से एक हैं जिनसे आप बेझिझक रुजू कर सकते हैं कि आपको उनसे मुस्तनद मालूमात हासिल होगी। उनकी यह नई किताब मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर हिंदी में इस ऐतिबार से बहुत अहम है कि इसके ज़रिए उनकी बात ज़्यादा बड़े हल्के़ तक पहुंचेगी और वह लोग भी जो उर्दू रस्मुलख़त से ना वाक़िफ़ है इससे फ़ायदा उठा सकेंगे।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि  डा. मौहम्मद आसिफ़ साहब मुरादाबाद के अदब में जाना पहचाना नाम है। डॉ.आसिफ़ अदब के इतने ख़ामोश ख़ितमतगार हैं कि किसी तरह की बनावट या शोर शराबा उनके यहाँ नहीं है। किताब का इन्तेसाब पढ़ कर तबियत बाग़ बाग़ हो जाती है। मातृ भूमि हिन्दुस्तान की पवित्र नदियाँ गंगा यमुना के संगम के नाम जो केवल आस्था का केन्द्र नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतीक भी हैं,बता देता है कि लेखक भारतीय संस्कृति के प्रति कितना संवेदन शील है।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि यह पुस्तक ग़ज़लकारों और ग़ज़ल के शोधार्थियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसमें उन्होंने 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी में जिगर साहब के समय तक के महत्वपूर्ण शायरों को उनके संक्षिप्त परिचय और चुनिंदा अशआर के साथ सम्मिलित किया है। यह पुस्तक उर्दू और हिंदी के ग़ज़ल के शोधार्थियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आसिफ़ हुसैन साहब ने इसे बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ तैयार किया है। तीन सदियों की ख़ुर्द-बुर्द चीज़ों में से अपने मतलब की सामग्री निकाल पाना कोई हँसी-खेल नहीं है। बोसीदा डायरियों और छूते ही टूट जाने वाले काग़ज़ों के टुकड़ों और किताबों से विवरण इकट्ठा किया गया है।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज़ ने कहा कि डॉ आसिफ़ साहब ने मुरादाबाद में ग़ज़ल के सफ़र की तीन सदियों को एक जगह जमा कर के जहाँ यह साबित किया है कि उन के पास प्यास भी थी और जुनून भी,वहीं उन का यह कारनामा उन लोगों के लिए भी आइना है जो सियासत का घिनावना लिबास पहन कर शायरों या अदीबों को ज़बान,धर्म या ज़ातपात में तक़सीम करने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि वह समझ सकें कि ग़ज़ल की बादशाहत का ताज अगर "अली सिकंदर जिगर मुरादाबादी" के सर है तो इस के इतिहास का पहला पन्ना "नवल राय वफ़ा" हैं। अगर "अमजद अली नय्यर" और "सय्यद बरकत अली नहीफ़"मुरादाबाद में ग़ज़ल के ताज के नगीने हैं, तो "राधा कृष्ण शुक्र" और "लाला श्रीवास्तव रहीफ़" भी इस की चमक दमक बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। डॉ आसिफ़ के इस कारनामे से सारी दुनिया को यह भी पता चल सकेगा कि मुरादाबाद सिर्फ़ पीतल की चमक को ही दुनिया के बाज़ार में नहीं उतारता है बल्कि यहाँ की साहित्यिक साधना भी दुनिया के लिए एक गंगा जमनी पैग़ाम ख़ुद में समोए हुए है।
एम.जी.एम. कॉलेज संभल के प्रिंसिपल, डॉक्टर आबिद हुसैन हैदरी ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन का नाम मुरादाबाद वालों के लिए अपरिचित नहीं है। वह बड़ी लगन और जुस्तजू के साथ इलाकाई अदब पर काम कर रहे हैं,जिसकी ताजा़ मिसाल उनकी यह किताब मुरादाबाद में गज़ल का सफ़र है। यह एक बड़ा काम है जिससे आइंदा तहक़ीक़ करने वालों के लिए रास्ते खुलेंगे और उन्हें काफ़ी हद तक आसानी होगी। यह रासता यकीनन बड़ा दुश्वार और मुश्किल है जिस पर डॉ आसिफ़ हुसैन चल रहे हैं। इसमें मेहनत ज़्यादा और हौसला अफ़जा़ई बहुत कम होती है, शोहरत आसानी से नहीं मिलती, लेकिन यह बुनियादी काम होता है। इसका महत्व वही लोग समझ सकते हैं जो इस राह के मुसाफ़िर हैं।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन साहब को मुरादाबाद के ग़ज़ल के बेशकीमती इतिहास की विरासत को सहेज कर उसे प्रकाश में लाने के लिए दिली मुबारकबाद देना चाहूंगा। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। मुरादाबाद का ग़ज़ल का सफ़र बहुत सुहाना और लुभावना रहा है जिसने पूरे हिन्दुस्तान को अपनी और आकर्षित किया है। आज के माहौल में गंगा जमुनी तहजीब की बहुत जरूरत है। यह तहजीब ही देश को अम्न के रास्ते पर ले जाने में सहायक होगी। डॉ आसिफ साहब ने शायद इसी मकसद से इस पुस्तक को प्रकाशित करने का प्रयास किया है। सबको डॉ आसिफ साहब का शुक्रगुजार होना चाहिए।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि अतीत के पृष्ठों जिन पर वक्त की गर्द जम चुकी हो उन्हें पलटना और उनमें से सुनहरे पन्नों को खोजकर उजागर करना कोई सरल व सहज कार्य नहीं है। डॉ आसिफ पिछले एक लंबे अरसे से इन पृष्ठों को खोज रहे हैं और उन्हें उजागर कर रहे हैं। उनकी मेहनत और दीवानगी का ही नतीजा है उनकी उर्दू में लिखी 512 पेज की किताब "तज्किरा शोअरा ए मुरादाबाद" (आरम्भ से जिगर से पहले तक) और इस महत्वपूर्ण किताब का हिंदी में सारांश मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर (नवल राय वफ़ा से जिगर तक)। यह किताब जहां सामान्य पाठकों की प्यास को बुझा देती है वहीं साहित्य अनुरागियों को थोड़ी राहत देकर उनकी प्यास को और बढ़ा देती है। डॉ आसिफ निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अपनी मेहनत को हिंदी पाठकों के सामने रखा है। मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि उनकी इस किताब को विशेषकर हिंदी भाषी पाठकों द्वारा बेहद पसंद किया जाएगा और यह किताब हिंदी शोधार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मशहूर सहाफी सय्यद मोहम्मद हाशिम ने कहा कि शहर ए जिगर की सुप्रसिद्ध अदबी शख्सि़यत और शोधकर्ता डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन ने अपनी नवीनतम पुस्तक मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर ( नवल राय वफ़ा से जिगर तक) में सच कहूं तो गागर में सागर भर दिया है, जिसके लिए वह हार्दिक बधाई के पात्र हैं। इस पुस्तक को पढ़कर मुरादाबाद के इतिहास की भी जानकारी होती है और यह भी ज्ञात होता है कि हज़रते जिगर मुरादाबादी से पहले भी मुरादाबाद के मुस्लिम और गै़र मुस्लिम शायरों ने उरुसे सुख़न ग़ज़ल के गेसू संवारने का काम अच्छी तरह अंजाम दिया है।
नवगीत कवि योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि डॉ. आसिफ़ हुसैन साहब ने अपनी-हमारी-आपकी अदबी विरासतों को सलीक़े के साथ सजाकर प्रस्तुत किया है। ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ को पलटते हुए मुरादाबाद में ग़ज़ल की 300 वर्षों की यात्रा और इस यात्रा में ग़ज़ल के मिज़ाज, कहन और भाषा में समय के साथ आते रहे परिवर्तनों को साफ़-साफ़ महसूस किया जा सकता है। विश्वभर में पीतलनगरी के नाम से विख्यात मुरादाबाद को आज यदि ‘शहर-ए-जिगर’ के रूप में जाना और पहचाना जाता है तो इसके पीछे यहाँ की अदबी विरासत के दस्तावेज़ी सृजन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। डॉ. आसिफ़ हुसैन साहब की किताब ने मुरादाबाद में शायरी के समृद्ध इतिहास से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है। आसिफ साहब की यह मौन साहित्यिक साधना अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखती है. सच में उन्होंने 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ किताब के माध्यम से बहुत बड़ा काम किया है जो सराहनीय भी है और अनुकरणीय भी।
उर्दू के मशहूर अफसाना निगार ज़ाकिर फ़ैज़ी ने कहा कि डॉक्टर आसिफ़ की किताब मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर बहुत अहम काम है। 17 वीं शताब्दी से लेकर जिगर मुरादाबादी के ज़माने तक उन्होंने मुरादाबाद  ग़ज़ल गोई का जायज़ा लिया है। डॉक्टर आसिफ़ जो भी तहक़ीक़ी काम करते हैं वह निहायत मेहनत व अरक़ रेज़ी से करते हैं। उनकी यह किताब यह साबित करती है कि उनका मुताअला वसी है और वह बहुत ख़ुबी के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि वर्तमान में, जबकि असंख्य रचनाकार अपनी विधा के इतिहास से प्राय: मुँह मोड़ते अथवा उसके प्रति उदासीन दिखाई देते हैं, डॉ० मोहम्मद आसिफ़ की यह कृति उन्हें उस इतिहास से जुड़ने एवं उसे गहराई से जानने के लिये निश्चित ही प्रेरित करेगी। शायरी के अनेक नगीनों से सजा  यह अनमोल वृतांत, विश्राम पर आते-आते इस बात का  अहसास भी करा देता है कि डॉ० मोहम्मद आसिफ़ हुसैन की उत्कृष्ट लेखनी ने इस विश्राम के पश्चात् आगे बढ़ने की तैयारी भी कर ली है तथा भविष्य में इस यात्रा के आगामी अनेक पड़ावों को भी वह ऐसी ही एक और पुस्तक के रूप में साहित्यिक समाज के सम्मुख लायेंगे।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि ग़ज़ल के 300 साला इतिहास को न जाने किस मशक्कत से समेट कर आने वाली नस्ल के लिए इतनी अहम और वसी जानकारी को एक ही जगह एक किताब में पिरो देने वाले अदब  के पैरोकार , क़ाबिले सद अहतराम जनाब आसिफ़ साहब को बहुत बहुत मुबारक बाद बधाइयाँ कि ये किताब आपने देवनागरी लिपि में लाकर गैर उर्दू पाठकों को ग़ज़ल के इतने महत्वपूर्ण इतिहास से रूबरू होने का मौका दिया।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि डॉक्टर आसिफ़ हुसैन साहब ने मुरादाबाद में उर्दू अदब की तारीख़ को 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र' नाम की इस दास्तान में जिस ख़ूब-सूरती और ख़ूबी से समोया है, मेरे नज़्दीक मुरादाबाद के हवाले से इस की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। इस किताब में हमें डॉक्टर आसिफ़ साहब की अदब के अच्छे नाक़िद के तौर पर सलाहियत के नमूने भी जगह-जगह मिलते हैं। मुझे उम्मीद है, आने वाले वक़्त में ये किताब मुरादाबाद के हर संजीदा क़ारी और अदीब के पास मिलेगी और उन गुम-नाम शायरों को फिर से एक पहचान मिलेगी जिन के नामों पर इस किताब में रौशनी डाली गयी है।

युवा समीक्षक डॉ अज़ीम उल हसन ने कहा कि सबसे पहले में अपने बड़े भाई मोहतरम डॉ आसिफ साहब को "मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र" के लिए तहे दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ साथ ही साथ आपका बेहद ममनून ओ मशकूर भी हूँ कि उन्होंने अपनी इस काविश के ज़रिये अपनी इस किताब की शक्ल में हमें एक ऐसा तोहफा इनायत फ़रमाया जिससे हम अपने अदबी माज़ी से रूबरू हो सके। सोने पे सुहागा ये की डॉ साहब ने इस किताब को देवनागरी में शाये किया जिससे अदब का एक बहुत बड़ा हलक़ा इस से फैज़्याब हो सकता है। किताब में दी गई मालूमात हवालों के साथ दी गई है जिससे यह किताब और ज़्यादा मोतबर हो जाती है। मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है कि यह किताब मौजूदा नस्ल के साथ साथ आने वाली नस्लों के लिए भी  एक मिशल ऐ राह साबित होगी।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर' के लिए डॉ आसिफ साहब को बधाई। है। किताब में ग़ज़ल के ढेरों रंग मौजूद हैं। मुरादाबाद की ग़ज़ल के कुछ सुने और कुछ अनसुने नामों  और उनकी ग़ज़लों से रूबरू कराती ये किताब ग़ज़ल के तालिबे इल्मों के लिए उच्च कोटि का पाठ्यक्रम प्रदान करती है। आसिफ साहब ने मुरादाबाद के उर्दू साहित्य के हर बड़े नाम के मोतियों को चुनकर एक बेहतरीन माला बनाई है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि इस किताब की सबसे बड़ी ख़ूबी और कामयाबी मेरी नज़र में यह है कि इससे हम सब शायरी से मोहब्बत करने वालों के लिए हैरतों का एक नया जहान खुला है। हम लोग जब भी मुरादाबादी ग़ज़ल की तारीख़ के बारे में तसव्वुर करते थे तो जिगर साहब की रोशनी का पर्दा हमारे ज़हनों पर छा जाता था और उस पर्दे के दूसरी जानिब टिमटिमाते हुए सितारे जिगर साहब जैसे आफ़ताब की तेज़ रोशनी में दिखाई नहीं देते थे। उस रोशनी के पार जाकर उन टिमटिमाते, झिलमिलाते और जगमगाते सितारों को अपनी झोली में भर कर हमारी आंखों में माज़ी की ताज़ा चमक पैदा करने का क़तई अहम काम डॉ आसिफ़ साहब ने किया है। मैं ज़ाती तौर पर उनका शुक्रिया अदा करता हूं और इस किताब की इशाअत पर डॉ आसिफ़ साहब को बहुत-बहुत मुबारकबाद पेश करता हूं। यह किताब मुरादाबाद के हर साहित्यकार, हर ग़ज़ल से मोहब्बत करने वाले की पर्सनल लाइब्रेरी में ज़रूर होनी चाहिए।

-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
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