वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'किताबें बोलती हैं' श्रृंखला के अन्तर्गत मुरादाबाद के मशहूर मुहक़्क़िक़ और शोधकर्ता डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन की ताज़ा प्रकाशित किताब ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । चर्चा में स्थानीय साहित्यकारों और अतिथि साहित्यकारों ने अपने अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।
चर्चा प्रारम्भ करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मुरादाबाद के उर्दू अदब के सिलसिले में डॉ. आसिफ हुसैन साहब की ग़ज़ल के सफ़र पर एक किताब हाल ही में प्रकाशित होकर आई है ।मैं निजी तौर पर उनके इस काम का स्वागत करता हूँ ।मेरे मन में जिस तरह के काम का खाका था उसमें अफसाना निगारों और ड्रामा का ज़िक्र भी शामिल था। खैर कोई बात नहीं। जिगर साहब के नाम से जाना जानेवाले शहर के ग़ज़ल के सफर पर यह किताब तैयार कर के आसिफ साहब ने एक अहम कदम बढ़ाया है मंज़िल की तरफ और एक उम्मीद जगा दी है कि उनकी कलम से ही बात आगे बढ़ेगी और हम अपने ही कीमती खजाने की बेशकीमती दौलत के रूबरू होंगे ।
मशहूर और मारूफ उस्ताद शायर ज़मीर दरवेश ने कहा कि लाइके़ सद तौक़ीर है यह ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’, बिखरे मोती, सच्चे मोती, एक लड़ी में पिरो दिए हैं आपने। उन पर कोई मसनूई पालिश भी नहीं की है। बहुत अच्छा किया। यह तो ख़ुद ही आने वाली नस्लों के हाथों में आकर और ज़्यादा चमकेंगे। इससे और ज़्यादा रोशन होगा इस बस्ती का अदबी चेहरा। इससे यह भी साबित हो जाएगा कि शहरे-जिगर होने से पहले जब यह मुरादाबाद था, तब भी यह सचमुच दिलवालों और ग़ज़ल वालों का शहर था।
मशहूर और मकबूल शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब में गजल का सफर चर्चा में है और मुरादाबाद के एक बहुत खामोश कलमकार, ईमानदार इतिहास कार और होनहार साहित्य कार डॉ मौहम्मद आसिफ हुसैन के एक बहतरीन काम को सराहा जा रहा है। इस किताब ने बताया कि इस शहर की खाक में बेशुमार चिंगारियां दबी हुई थीं जिनको बाहर लाया जाना था और ये कारनामा आसिफ साहब ने कर दिखाया जिसके लिए वह सिर्फ तारीफ नहीं हमारी दुआओं के भी हकदार हैं। ये शहर अब जिगर का शहर नहीं वफा का शहर भी है। मुहब्बत की बारीकियों को जानने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि वफा और जिगर का फलसफा क्या है।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि डॉ.आसिफ़ भाई को बहुत-बहुत मुबारकबाद। वह मुरादाबाद की ऐसी ख़िदमात करते रहें और हम उसका रस लेते रहें। पूरी किताब पढ़ चुका हूं। बड़ा काम है। रास्ता दिखाता है। अपनी जड़ों से जोड़ता है। कुछ सकारात्मक करने की नसीहत देता है। सोये हुओं को जगाता है। प्रेरित करता है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र, महज़ एक किताब नहीं है यह पांच सदियों के मुरादाबाद का लिटरेरी रोज़नामचा है। लिखना आसान है, उद्देश्य परक लिखना मुश्किल है। इतिहास लिखना मेहनत मांगता है मगर पुराने पन्ने टटोल कर प्रामाणिक इतिहास लिखना तभी मुमकिन है कि जब वैसा जुनून सवार हो गया हो। ऐसी किताब का मोल इससे समझ आता है कि इससे हिन्दी/उर्दू के अलग होने का भरम टूटेगा और शोध करने वालों को नये रास्ते मिलेंगे। पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर डॉ आसिफ साहब को हार्दिक बधाई और क्लब के प्रति आभार।
पूर्व उर्दू विभाग अध्यक्ष, हिंदू कॉलेज मुरादाबाद डॉ आरिफ़ हसन ख़ां ने कहा कि अगर आप मुरादाबाद की इल्मी, अदबी और तहज़ीबी या सक़ाफ़ती तारीख़ के ताल्लुक से कुछ मालूमात हासिल करना चाहते हैं तो डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन उन चंद लोगों में से एक हैं जिनसे आप बेझिझक रुजू कर सकते हैं कि आपको उनसे मुस्तनद मालूमात हासिल होगी। उनकी यह नई किताब मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर हिंदी में इस ऐतिबार से बहुत अहम है कि इसके ज़रिए उनकी बात ज़्यादा बड़े हल्के़ तक पहुंचेगी और वह लोग भी जो उर्दू रस्मुलख़त से ना वाक़िफ़ है इससे फ़ायदा उठा सकेंगे।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि डा. मौहम्मद आसिफ़ साहब मुरादाबाद के अदब में जाना पहचाना नाम है। डॉ.आसिफ़ अदब के इतने ख़ामोश ख़ितमतगार हैं कि किसी तरह की बनावट या शोर शराबा उनके यहाँ नहीं है। किताब का इन्तेसाब पढ़ कर तबियत बाग़ बाग़ हो जाती है। मातृ भूमि हिन्दुस्तान की पवित्र नदियाँ गंगा यमुना के संगम के नाम जो केवल आस्था का केन्द्र नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतीक भी हैं,बता देता है कि लेखक भारतीय संस्कृति के प्रति कितना संवेदन शील है।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि यह पुस्तक ग़ज़लकारों और ग़ज़ल के शोधार्थियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसमें उन्होंने 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी में जिगर साहब के समय तक के महत्वपूर्ण शायरों को उनके संक्षिप्त परिचय और चुनिंदा अशआर के साथ सम्मिलित किया है। यह पुस्तक उर्दू और हिंदी के ग़ज़ल के शोधार्थियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आसिफ़ हुसैन साहब ने इसे बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ तैयार किया है। तीन सदियों की ख़ुर्द-बुर्द चीज़ों में से अपने मतलब की सामग्री निकाल पाना कोई हँसी-खेल नहीं है। बोसीदा डायरियों और छूते ही टूट जाने वाले काग़ज़ों के टुकड़ों और किताबों से विवरण इकट्ठा किया गया है।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज़ ने कहा कि डॉ आसिफ़ साहब ने मुरादाबाद में ग़ज़ल के सफ़र की तीन सदियों को एक जगह जमा कर के जहाँ यह साबित किया है कि उन के पास प्यास भी थी और जुनून भी,वहीं उन का यह कारनामा उन लोगों के लिए भी आइना है जो सियासत का घिनावना लिबास पहन कर शायरों या अदीबों को ज़बान,धर्म या ज़ातपात में तक़सीम करने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि वह समझ सकें कि ग़ज़ल की बादशाहत का ताज अगर "अली सिकंदर जिगर मुरादाबादी" के सर है तो इस के इतिहास का पहला पन्ना "नवल राय वफ़ा" हैं। अगर "अमजद अली नय्यर" और "सय्यद बरकत अली नहीफ़"मुरादाबाद में ग़ज़ल के ताज के नगीने हैं, तो "राधा कृष्ण शुक्र" और "लाला श्रीवास्तव रहीफ़" भी इस की चमक दमक बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। डॉ आसिफ़ के इस कारनामे से सारी दुनिया को यह भी पता चल सकेगा कि मुरादाबाद सिर्फ़ पीतल की चमक को ही दुनिया के बाज़ार में नहीं उतारता है बल्कि यहाँ की साहित्यिक साधना भी दुनिया के लिए एक गंगा जमनी पैग़ाम ख़ुद में समोए हुए है।
एम.जी.एम. कॉलेज संभल के प्रिंसिपल, डॉक्टर आबिद हुसैन हैदरी ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन का नाम मुरादाबाद वालों के लिए अपरिचित नहीं है। वह बड़ी लगन और जुस्तजू के साथ इलाकाई अदब पर काम कर रहे हैं,जिसकी ताजा़ मिसाल उनकी यह किताब मुरादाबाद में गज़ल का सफ़र है। यह एक बड़ा काम है जिससे आइंदा तहक़ीक़ करने वालों के लिए रास्ते खुलेंगे और उन्हें काफ़ी हद तक आसानी होगी। यह रासता यकीनन बड़ा दुश्वार और मुश्किल है जिस पर डॉ आसिफ़ हुसैन चल रहे हैं। इसमें मेहनत ज़्यादा और हौसला अफ़जा़ई बहुत कम होती है, शोहरत आसानी से नहीं मिलती, लेकिन यह बुनियादी काम होता है। इसका महत्व वही लोग समझ सकते हैं जो इस राह के मुसाफ़िर हैं।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन साहब को मुरादाबाद के ग़ज़ल के बेशकीमती इतिहास की विरासत को सहेज कर उसे प्रकाश में लाने के लिए दिली मुबारकबाद देना चाहूंगा। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। मुरादाबाद का ग़ज़ल का सफ़र बहुत सुहाना और लुभावना रहा है जिसने पूरे हिन्दुस्तान को अपनी और आकर्षित किया है। आज के माहौल में गंगा जमुनी तहजीब की बहुत जरूरत है। यह तहजीब ही देश को अम्न के रास्ते पर ले जाने में सहायक होगी। डॉ आसिफ साहब ने शायद इसी मकसद से इस पुस्तक को प्रकाशित करने का प्रयास किया है। सबको डॉ आसिफ साहब का शुक्रगुजार होना चाहिए।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि अतीत के पृष्ठों जिन पर वक्त की गर्द जम चुकी हो उन्हें पलटना और उनमें से सुनहरे पन्नों को खोजकर उजागर करना कोई सरल व सहज कार्य नहीं है। डॉ आसिफ पिछले एक लंबे अरसे से इन पृष्ठों को खोज रहे हैं और उन्हें उजागर कर रहे हैं। उनकी मेहनत और दीवानगी का ही नतीजा है उनकी उर्दू में लिखी 512 पेज की किताब "तज्किरा शोअरा ए मुरादाबाद" (आरम्भ से जिगर से पहले तक) और इस महत्वपूर्ण किताब का हिंदी में सारांश मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर (नवल राय वफ़ा से जिगर तक)। यह किताब जहां सामान्य पाठकों की प्यास को बुझा देती है वहीं साहित्य अनुरागियों को थोड़ी राहत देकर उनकी प्यास को और बढ़ा देती है। डॉ आसिफ निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अपनी मेहनत को हिंदी पाठकों के सामने रखा है। मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि उनकी इस किताब को विशेषकर हिंदी भाषी पाठकों द्वारा बेहद पसंद किया जाएगा और यह किताब हिंदी शोधार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मशहूर सहाफी सय्यद मोहम्मद हाशिम ने कहा कि शहर ए जिगर की सुप्रसिद्ध अदबी शख्सि़यत और शोधकर्ता डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन ने अपनी नवीनतम पुस्तक मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर ( नवल राय वफ़ा से जिगर तक) में सच कहूं तो गागर में सागर भर दिया है, जिसके लिए वह हार्दिक बधाई के पात्र हैं। इस पुस्तक को पढ़कर मुरादाबाद के इतिहास की भी जानकारी होती है और यह भी ज्ञात होता है कि हज़रते जिगर मुरादाबादी से पहले भी मुरादाबाद के मुस्लिम और गै़र मुस्लिम शायरों ने उरुसे सुख़न ग़ज़ल के गेसू संवारने का काम अच्छी तरह अंजाम दिया है।
नवगीत कवि योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि डॉ. आसिफ़ हुसैन साहब ने अपनी-हमारी-आपकी अदबी विरासतों को सलीक़े के साथ सजाकर प्रस्तुत किया है। ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ को पलटते हुए मुरादाबाद में ग़ज़ल की 300 वर्षों की यात्रा और इस यात्रा में ग़ज़ल के मिज़ाज, कहन और भाषा में समय के साथ आते रहे परिवर्तनों को साफ़-साफ़ महसूस किया जा सकता है। विश्वभर में पीतलनगरी के नाम से विख्यात मुरादाबाद को आज यदि ‘शहर-ए-जिगर’ के रूप में जाना और पहचाना जाता है तो इसके पीछे यहाँ की अदबी विरासत के दस्तावेज़ी सृजन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। डॉ. आसिफ़ हुसैन साहब की किताब ने मुरादाबाद में शायरी के समृद्ध इतिहास से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है। आसिफ साहब की यह मौन साहित्यिक साधना अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखती है. सच में उन्होंने 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ किताब के माध्यम से बहुत बड़ा काम किया है जो सराहनीय भी है और अनुकरणीय भी।
उर्दू के मशहूर अफसाना निगार ज़ाकिर फ़ैज़ी ने कहा कि डॉक्टर आसिफ़ की किताब मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर बहुत अहम काम है। 17 वीं शताब्दी से लेकर जिगर मुरादाबादी के ज़माने तक उन्होंने मुरादाबाद ग़ज़ल गोई का जायज़ा लिया है। डॉक्टर आसिफ़ जो भी तहक़ीक़ी काम करते हैं वह निहायत मेहनत व अरक़ रेज़ी से करते हैं। उनकी यह किताब यह साबित करती है कि उनका मुताअला वसी है और वह बहुत ख़ुबी के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि वर्तमान में, जबकि असंख्य रचनाकार अपनी विधा के इतिहास से प्राय: मुँह मोड़ते अथवा उसके प्रति उदासीन दिखाई देते हैं, डॉ० मोहम्मद आसिफ़ की यह कृति उन्हें उस इतिहास से जुड़ने एवं उसे गहराई से जानने के लिये निश्चित ही प्रेरित करेगी। शायरी के अनेक नगीनों से सजा यह अनमोल वृतांत, विश्राम पर आते-आते इस बात का अहसास भी करा देता है कि डॉ० मोहम्मद आसिफ़ हुसैन की उत्कृष्ट लेखनी ने इस विश्राम के पश्चात् आगे बढ़ने की तैयारी भी कर ली है तथा भविष्य में इस यात्रा के आगामी अनेक पड़ावों को भी वह ऐसी ही एक और पुस्तक के रूप में साहित्यिक समाज के सम्मुख लायेंगे।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि ग़ज़ल के 300 साला इतिहास को न जाने किस मशक्कत से समेट कर आने वाली नस्ल के लिए इतनी अहम और वसी जानकारी को एक ही जगह एक किताब में पिरो देने वाले अदब के पैरोकार , क़ाबिले सद अहतराम जनाब आसिफ़ साहब को बहुत बहुत मुबारक बाद बधाइयाँ कि ये किताब आपने देवनागरी लिपि में लाकर गैर उर्दू पाठकों को ग़ज़ल के इतने महत्वपूर्ण इतिहास से रूबरू होने का मौका दिया।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि डॉक्टर आसिफ़ हुसैन साहब ने मुरादाबाद में उर्दू अदब की तारीख़ को 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र' नाम की इस दास्तान में जिस ख़ूब-सूरती और ख़ूबी से समोया है, मेरे नज़्दीक मुरादाबाद के हवाले से इस की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। इस किताब में हमें डॉक्टर आसिफ़ साहब की अदब के अच्छे नाक़िद के तौर पर सलाहियत के नमूने भी जगह-जगह मिलते हैं। मुझे उम्मीद है, आने वाले वक़्त में ये किताब मुरादाबाद के हर संजीदा क़ारी और अदीब के पास मिलेगी और उन गुम-नाम शायरों को फिर से एक पहचान मिलेगी जिन के नामों पर इस किताब में रौशनी डाली गयी है।
युवा समीक्षक डॉ अज़ीम उल हसन ने कहा कि सबसे पहले में अपने बड़े भाई मोहतरम डॉ आसिफ साहब को "मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र" के लिए तहे दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ साथ ही साथ आपका बेहद ममनून ओ मशकूर भी हूँ कि उन्होंने अपनी इस काविश के ज़रिये अपनी इस किताब की शक्ल में हमें एक ऐसा तोहफा इनायत फ़रमाया जिससे हम अपने अदबी माज़ी से रूबरू हो सके। सोने पे सुहागा ये की डॉ साहब ने इस किताब को देवनागरी में शाये किया जिससे अदब का एक बहुत बड़ा हलक़ा इस से फैज़्याब हो सकता है। किताब में दी गई मालूमात हवालों के साथ दी गई है जिससे यह किताब और ज़्यादा मोतबर हो जाती है। मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है कि यह किताब मौजूदा नस्ल के साथ साथ आने वाली नस्लों के लिए भी एक मिशल ऐ राह साबित होगी।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर' के लिए डॉ आसिफ साहब को बधाई। है। किताब में ग़ज़ल के ढेरों रंग मौजूद हैं। मुरादाबाद की ग़ज़ल के कुछ सुने और कुछ अनसुने नामों और उनकी ग़ज़लों से रूबरू कराती ये किताब ग़ज़ल के तालिबे इल्मों के लिए उच्च कोटि का पाठ्यक्रम प्रदान करती है। आसिफ साहब ने मुरादाबाद के उर्दू साहित्य के हर बड़े नाम के मोतियों को चुनकर एक बेहतरीन माला बनाई है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि इस किताब की सबसे बड़ी ख़ूबी और कामयाबी मेरी नज़र में यह है कि इससे हम सब शायरी से मोहब्बत करने वालों के लिए हैरतों का एक नया जहान खुला है। हम लोग जब भी मुरादाबादी ग़ज़ल की तारीख़ के बारे में तसव्वुर करते थे तो जिगर साहब की रोशनी का पर्दा हमारे ज़हनों पर छा जाता था और उस पर्दे के दूसरी जानिब टिमटिमाते हुए सितारे जिगर साहब जैसे आफ़ताब की तेज़ रोशनी में दिखाई नहीं देते थे। उस रोशनी के पार जाकर उन टिमटिमाते, झिलमिलाते और जगमगाते सितारों को अपनी झोली में भर कर हमारी आंखों में माज़ी की ताज़ा चमक पैदा करने का क़तई अहम काम डॉ आसिफ़ साहब ने किया है। मैं ज़ाती तौर पर उनका शुक्रिया अदा करता हूं और इस किताब की इशाअत पर डॉ आसिफ़ साहब को बहुत-बहुत मुबारकबाद पेश करता हूं। यह किताब मुरादाबाद के हर साहित्यकार, हर ग़ज़ल से मोहब्बत करने वाले की पर्सनल लाइब्रेरी में ज़रूर होनी चाहिए।
-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 7017612289
चर्चा प्रारम्भ करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मुरादाबाद के उर्दू अदब के सिलसिले में डॉ. आसिफ हुसैन साहब की ग़ज़ल के सफ़र पर एक किताब हाल ही में प्रकाशित होकर आई है ।मैं निजी तौर पर उनके इस काम का स्वागत करता हूँ ।मेरे मन में जिस तरह के काम का खाका था उसमें अफसाना निगारों और ड्रामा का ज़िक्र भी शामिल था। खैर कोई बात नहीं। जिगर साहब के नाम से जाना जानेवाले शहर के ग़ज़ल के सफर पर यह किताब तैयार कर के आसिफ साहब ने एक अहम कदम बढ़ाया है मंज़िल की तरफ और एक उम्मीद जगा दी है कि उनकी कलम से ही बात आगे बढ़ेगी और हम अपने ही कीमती खजाने की बेशकीमती दौलत के रूबरू होंगे ।
मशहूर और मारूफ उस्ताद शायर ज़मीर दरवेश ने कहा कि लाइके़ सद तौक़ीर है यह ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’, बिखरे मोती, सच्चे मोती, एक लड़ी में पिरो दिए हैं आपने। उन पर कोई मसनूई पालिश भी नहीं की है। बहुत अच्छा किया। यह तो ख़ुद ही आने वाली नस्लों के हाथों में आकर और ज़्यादा चमकेंगे। इससे और ज़्यादा रोशन होगा इस बस्ती का अदबी चेहरा। इससे यह भी साबित हो जाएगा कि शहरे-जिगर होने से पहले जब यह मुरादाबाद था, तब भी यह सचमुच दिलवालों और ग़ज़ल वालों का शहर था।
मशहूर और मकबूल शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब में गजल का सफर चर्चा में है और मुरादाबाद के एक बहुत खामोश कलमकार, ईमानदार इतिहास कार और होनहार साहित्य कार डॉ मौहम्मद आसिफ हुसैन के एक बहतरीन काम को सराहा जा रहा है। इस किताब ने बताया कि इस शहर की खाक में बेशुमार चिंगारियां दबी हुई थीं जिनको बाहर लाया जाना था और ये कारनामा आसिफ साहब ने कर दिखाया जिसके लिए वह सिर्फ तारीफ नहीं हमारी दुआओं के भी हकदार हैं। ये शहर अब जिगर का शहर नहीं वफा का शहर भी है। मुहब्बत की बारीकियों को जानने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि वफा और जिगर का फलसफा क्या है।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि डॉ.आसिफ़ भाई को बहुत-बहुत मुबारकबाद। वह मुरादाबाद की ऐसी ख़िदमात करते रहें और हम उसका रस लेते रहें। पूरी किताब पढ़ चुका हूं। बड़ा काम है। रास्ता दिखाता है। अपनी जड़ों से जोड़ता है। कुछ सकारात्मक करने की नसीहत देता है। सोये हुओं को जगाता है। प्रेरित करता है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र, महज़ एक किताब नहीं है यह पांच सदियों के मुरादाबाद का लिटरेरी रोज़नामचा है। लिखना आसान है, उद्देश्य परक लिखना मुश्किल है। इतिहास लिखना मेहनत मांगता है मगर पुराने पन्ने टटोल कर प्रामाणिक इतिहास लिखना तभी मुमकिन है कि जब वैसा जुनून सवार हो गया हो। ऐसी किताब का मोल इससे समझ आता है कि इससे हिन्दी/उर्दू के अलग होने का भरम टूटेगा और शोध करने वालों को नये रास्ते मिलेंगे। पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर डॉ आसिफ साहब को हार्दिक बधाई और क्लब के प्रति आभार।
पूर्व उर्दू विभाग अध्यक्ष, हिंदू कॉलेज मुरादाबाद डॉ आरिफ़ हसन ख़ां ने कहा कि अगर आप मुरादाबाद की इल्मी, अदबी और तहज़ीबी या सक़ाफ़ती तारीख़ के ताल्लुक से कुछ मालूमात हासिल करना चाहते हैं तो डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन उन चंद लोगों में से एक हैं जिनसे आप बेझिझक रुजू कर सकते हैं कि आपको उनसे मुस्तनद मालूमात हासिल होगी। उनकी यह नई किताब मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर हिंदी में इस ऐतिबार से बहुत अहम है कि इसके ज़रिए उनकी बात ज़्यादा बड़े हल्के़ तक पहुंचेगी और वह लोग भी जो उर्दू रस्मुलख़त से ना वाक़िफ़ है इससे फ़ायदा उठा सकेंगे।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि डा. मौहम्मद आसिफ़ साहब मुरादाबाद के अदब में जाना पहचाना नाम है। डॉ.आसिफ़ अदब के इतने ख़ामोश ख़ितमतगार हैं कि किसी तरह की बनावट या शोर शराबा उनके यहाँ नहीं है। किताब का इन्तेसाब पढ़ कर तबियत बाग़ बाग़ हो जाती है। मातृ भूमि हिन्दुस्तान की पवित्र नदियाँ गंगा यमुना के संगम के नाम जो केवल आस्था का केन्द्र नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रतीक भी हैं,बता देता है कि लेखक भारतीय संस्कृति के प्रति कितना संवेदन शील है।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि यह पुस्तक ग़ज़लकारों और ग़ज़ल के शोधार्थियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसमें उन्होंने 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी में जिगर साहब के समय तक के महत्वपूर्ण शायरों को उनके संक्षिप्त परिचय और चुनिंदा अशआर के साथ सम्मिलित किया है। यह पुस्तक उर्दू और हिंदी के ग़ज़ल के शोधार्थियों के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आसिफ़ हुसैन साहब ने इसे बड़ी ज़िम्मेदारी के साथ तैयार किया है। तीन सदियों की ख़ुर्द-बुर्द चीज़ों में से अपने मतलब की सामग्री निकाल पाना कोई हँसी-खेल नहीं है। बोसीदा डायरियों और छूते ही टूट जाने वाले काग़ज़ों के टुकड़ों और किताबों से विवरण इकट्ठा किया गया है।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज़ ने कहा कि डॉ आसिफ़ साहब ने मुरादाबाद में ग़ज़ल के सफ़र की तीन सदियों को एक जगह जमा कर के जहाँ यह साबित किया है कि उन के पास प्यास भी थी और जुनून भी,वहीं उन का यह कारनामा उन लोगों के लिए भी आइना है जो सियासत का घिनावना लिबास पहन कर शायरों या अदीबों को ज़बान,धर्म या ज़ातपात में तक़सीम करने की कोशिश कर रहे हैं। ताकि वह समझ सकें कि ग़ज़ल की बादशाहत का ताज अगर "अली सिकंदर जिगर मुरादाबादी" के सर है तो इस के इतिहास का पहला पन्ना "नवल राय वफ़ा" हैं। अगर "अमजद अली नय्यर" और "सय्यद बरकत अली नहीफ़"मुरादाबाद में ग़ज़ल के ताज के नगीने हैं, तो "राधा कृष्ण शुक्र" और "लाला श्रीवास्तव रहीफ़" भी इस की चमक दमक बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। डॉ आसिफ़ के इस कारनामे से सारी दुनिया को यह भी पता चल सकेगा कि मुरादाबाद सिर्फ़ पीतल की चमक को ही दुनिया के बाज़ार में नहीं उतारता है बल्कि यहाँ की साहित्यिक साधना भी दुनिया के लिए एक गंगा जमनी पैग़ाम ख़ुद में समोए हुए है।
एम.जी.एम. कॉलेज संभल के प्रिंसिपल, डॉक्टर आबिद हुसैन हैदरी ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन का नाम मुरादाबाद वालों के लिए अपरिचित नहीं है। वह बड़ी लगन और जुस्तजू के साथ इलाकाई अदब पर काम कर रहे हैं,जिसकी ताजा़ मिसाल उनकी यह किताब मुरादाबाद में गज़ल का सफ़र है। यह एक बड़ा काम है जिससे आइंदा तहक़ीक़ करने वालों के लिए रास्ते खुलेंगे और उन्हें काफ़ी हद तक आसानी होगी। यह रासता यकीनन बड़ा दुश्वार और मुश्किल है जिस पर डॉ आसिफ़ हुसैन चल रहे हैं। इसमें मेहनत ज़्यादा और हौसला अफ़जा़ई बहुत कम होती है, शोहरत आसानी से नहीं मिलती, लेकिन यह बुनियादी काम होता है। इसका महत्व वही लोग समझ सकते हैं जो इस राह के मुसाफ़िर हैं।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन साहब को मुरादाबाद के ग़ज़ल के बेशकीमती इतिहास की विरासत को सहेज कर उसे प्रकाश में लाने के लिए दिली मुबारकबाद देना चाहूंगा। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। मुरादाबाद का ग़ज़ल का सफ़र बहुत सुहाना और लुभावना रहा है जिसने पूरे हिन्दुस्तान को अपनी और आकर्षित किया है। आज के माहौल में गंगा जमुनी तहजीब की बहुत जरूरत है। यह तहजीब ही देश को अम्न के रास्ते पर ले जाने में सहायक होगी। डॉ आसिफ साहब ने शायद इसी मकसद से इस पुस्तक को प्रकाशित करने का प्रयास किया है। सबको डॉ आसिफ साहब का शुक्रगुजार होना चाहिए।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि अतीत के पृष्ठों जिन पर वक्त की गर्द जम चुकी हो उन्हें पलटना और उनमें से सुनहरे पन्नों को खोजकर उजागर करना कोई सरल व सहज कार्य नहीं है। डॉ आसिफ पिछले एक लंबे अरसे से इन पृष्ठों को खोज रहे हैं और उन्हें उजागर कर रहे हैं। उनकी मेहनत और दीवानगी का ही नतीजा है उनकी उर्दू में लिखी 512 पेज की किताब "तज्किरा शोअरा ए मुरादाबाद" (आरम्भ से जिगर से पहले तक) और इस महत्वपूर्ण किताब का हिंदी में सारांश मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर (नवल राय वफ़ा से जिगर तक)। यह किताब जहां सामान्य पाठकों की प्यास को बुझा देती है वहीं साहित्य अनुरागियों को थोड़ी राहत देकर उनकी प्यास को और बढ़ा देती है। डॉ आसिफ निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अपनी मेहनत को हिंदी पाठकों के सामने रखा है। मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि उनकी इस किताब को विशेषकर हिंदी भाषी पाठकों द्वारा बेहद पसंद किया जाएगा और यह किताब हिंदी शोधार्थियों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मशहूर सहाफी सय्यद मोहम्मद हाशिम ने कहा कि शहर ए जिगर की सुप्रसिद्ध अदबी शख्सि़यत और शोधकर्ता डॉ मोहम्मद आसिफ़ हुसैन ने अपनी नवीनतम पुस्तक मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर ( नवल राय वफ़ा से जिगर तक) में सच कहूं तो गागर में सागर भर दिया है, जिसके लिए वह हार्दिक बधाई के पात्र हैं। इस पुस्तक को पढ़कर मुरादाबाद के इतिहास की भी जानकारी होती है और यह भी ज्ञात होता है कि हज़रते जिगर मुरादाबादी से पहले भी मुरादाबाद के मुस्लिम और गै़र मुस्लिम शायरों ने उरुसे सुख़न ग़ज़ल के गेसू संवारने का काम अच्छी तरह अंजाम दिया है।
नवगीत कवि योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि डॉ. आसिफ़ हुसैन साहब ने अपनी-हमारी-आपकी अदबी विरासतों को सलीक़े के साथ सजाकर प्रस्तुत किया है। ‘मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ को पलटते हुए मुरादाबाद में ग़ज़ल की 300 वर्षों की यात्रा और इस यात्रा में ग़ज़ल के मिज़ाज, कहन और भाषा में समय के साथ आते रहे परिवर्तनों को साफ़-साफ़ महसूस किया जा सकता है। विश्वभर में पीतलनगरी के नाम से विख्यात मुरादाबाद को आज यदि ‘शहर-ए-जिगर’ के रूप में जाना और पहचाना जाता है तो इसके पीछे यहाँ की अदबी विरासत के दस्तावेज़ी सृजन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। डॉ. आसिफ़ हुसैन साहब की किताब ने मुरादाबाद में शायरी के समृद्ध इतिहास से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है। आसिफ साहब की यह मौन साहित्यिक साधना अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान रखती है. सच में उन्होंने 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र’ किताब के माध्यम से बहुत बड़ा काम किया है जो सराहनीय भी है और अनुकरणीय भी।
उर्दू के मशहूर अफसाना निगार ज़ाकिर फ़ैज़ी ने कहा कि डॉक्टर आसिफ़ की किताब मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर बहुत अहम काम है। 17 वीं शताब्दी से लेकर जिगर मुरादाबादी के ज़माने तक उन्होंने मुरादाबाद ग़ज़ल गोई का जायज़ा लिया है। डॉक्टर आसिफ़ जो भी तहक़ीक़ी काम करते हैं वह निहायत मेहनत व अरक़ रेज़ी से करते हैं। उनकी यह किताब यह साबित करती है कि उनका मुताअला वसी है और वह बहुत ख़ुबी के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि वर्तमान में, जबकि असंख्य रचनाकार अपनी विधा के इतिहास से प्राय: मुँह मोड़ते अथवा उसके प्रति उदासीन दिखाई देते हैं, डॉ० मोहम्मद आसिफ़ की यह कृति उन्हें उस इतिहास से जुड़ने एवं उसे गहराई से जानने के लिये निश्चित ही प्रेरित करेगी। शायरी के अनेक नगीनों से सजा यह अनमोल वृतांत, विश्राम पर आते-आते इस बात का अहसास भी करा देता है कि डॉ० मोहम्मद आसिफ़ हुसैन की उत्कृष्ट लेखनी ने इस विश्राम के पश्चात् आगे बढ़ने की तैयारी भी कर ली है तथा भविष्य में इस यात्रा के आगामी अनेक पड़ावों को भी वह ऐसी ही एक और पुस्तक के रूप में साहित्यिक समाज के सम्मुख लायेंगे।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि ग़ज़ल के 300 साला इतिहास को न जाने किस मशक्कत से समेट कर आने वाली नस्ल के लिए इतनी अहम और वसी जानकारी को एक ही जगह एक किताब में पिरो देने वाले अदब के पैरोकार , क़ाबिले सद अहतराम जनाब आसिफ़ साहब को बहुत बहुत मुबारक बाद बधाइयाँ कि ये किताब आपने देवनागरी लिपि में लाकर गैर उर्दू पाठकों को ग़ज़ल के इतने महत्वपूर्ण इतिहास से रूबरू होने का मौका दिया।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि डॉक्टर आसिफ़ हुसैन साहब ने मुरादाबाद में उर्दू अदब की तारीख़ को 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र' नाम की इस दास्तान में जिस ख़ूब-सूरती और ख़ूबी से समोया है, मेरे नज़्दीक मुरादाबाद के हवाले से इस की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। इस किताब में हमें डॉक्टर आसिफ़ साहब की अदब के अच्छे नाक़िद के तौर पर सलाहियत के नमूने भी जगह-जगह मिलते हैं। मुझे उम्मीद है, आने वाले वक़्त में ये किताब मुरादाबाद के हर संजीदा क़ारी और अदीब के पास मिलेगी और उन गुम-नाम शायरों को फिर से एक पहचान मिलेगी जिन के नामों पर इस किताब में रौशनी डाली गयी है।
युवा समीक्षक डॉ अज़ीम उल हसन ने कहा कि सबसे पहले में अपने बड़े भाई मोहतरम डॉ आसिफ साहब को "मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र" के लिए तहे दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ साथ ही साथ आपका बेहद ममनून ओ मशकूर भी हूँ कि उन्होंने अपनी इस काविश के ज़रिये अपनी इस किताब की शक्ल में हमें एक ऐसा तोहफा इनायत फ़रमाया जिससे हम अपने अदबी माज़ी से रूबरू हो सके। सोने पे सुहागा ये की डॉ साहब ने इस किताब को देवनागरी में शाये किया जिससे अदब का एक बहुत बड़ा हलक़ा इस से फैज़्याब हो सकता है। किताब में दी गई मालूमात हवालों के साथ दी गई है जिससे यह किताब और ज़्यादा मोतबर हो जाती है। मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन है कि यह किताब मौजूदा नस्ल के साथ साथ आने वाली नस्लों के लिए भी एक मिशल ऐ राह साबित होगी।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि 'मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफर' के लिए डॉ आसिफ साहब को बधाई। है। किताब में ग़ज़ल के ढेरों रंग मौजूद हैं। मुरादाबाद की ग़ज़ल के कुछ सुने और कुछ अनसुने नामों और उनकी ग़ज़लों से रूबरू कराती ये किताब ग़ज़ल के तालिबे इल्मों के लिए उच्च कोटि का पाठ्यक्रम प्रदान करती है। आसिफ साहब ने मुरादाबाद के उर्दू साहित्य के हर बड़े नाम के मोतियों को चुनकर एक बेहतरीन माला बनाई है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि इस किताब की सबसे बड़ी ख़ूबी और कामयाबी मेरी नज़र में यह है कि इससे हम सब शायरी से मोहब्बत करने वालों के लिए हैरतों का एक नया जहान खुला है। हम लोग जब भी मुरादाबादी ग़ज़ल की तारीख़ के बारे में तसव्वुर करते थे तो जिगर साहब की रोशनी का पर्दा हमारे ज़हनों पर छा जाता था और उस पर्दे के दूसरी जानिब टिमटिमाते हुए सितारे जिगर साहब जैसे आफ़ताब की तेज़ रोशनी में दिखाई नहीं देते थे। उस रोशनी के पार जाकर उन टिमटिमाते, झिलमिलाते और जगमगाते सितारों को अपनी झोली में भर कर हमारी आंखों में माज़ी की ताज़ा चमक पैदा करने का क़तई अहम काम डॉ आसिफ़ साहब ने किया है। मैं ज़ाती तौर पर उनका शुक्रिया अदा करता हूं और इस किताब की इशाअत पर डॉ आसिफ़ साहब को बहुत-बहुत मुबारकबाद पेश करता हूं। यह किताब मुरादाबाद के हर साहित्यकार, हर ग़ज़ल से मोहब्बत करने वाले की पर्सनल लाइब्रेरी में ज़रूर होनी चाहिए।
-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 7017612289
एक वाकई हैरतअंगेज कारनामा जिसे सोच पाना ही मुश्किल हो उसे कर दिखाने की तो बात ही क्या।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत मुबारकबाद डाॅक्टर मोहम्मद आसिफ़ हुसैन साहब को।
बहुत बहुत धन्यवाद हिमांशु जी । कृपया यह ब्लॉग फॉलो भी कीजिये ।
हटाएंइस ऐतिहासिक पुस्तक का साहित्यिक समाज के सम्मुख आना निश्चित ही गर्व का विषय है। डॉ० आसिफ़ हुसैन साहब द्वारा लिखी गई यह पुस्तक निश्चित ही भविष्य में शोधार्थियों के लिये एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में सामने होगी। डॉ० आसिफ़ हुसैन साहब को पुनः बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामना। सुंदर एवं सार्थक आयोजन के लिए सभी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ,प्रखर जी ।
जवाब देंहटाएं